पृथ्वी की गति | घूर्णन गति | परिक्रमण गति
घूर्णन गति
- पृथ्वी
अपने अक्ष पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है, जिसे
घूर्णन गति कहते हैं। पृथ्वी अपने अक्ष पर एक चक्कर 23 घंटे 56
मिनट में लगाती हैं। घुर्णन गति को दैनिक गति या परिभर्मन गति
भी कहा जाता हैं।
परिक्रमण
गति
- जब
पृथ्वी सूर्य के चारो तरफ एक चक्कर लगा लेती हैं तो इसे परिक्रमण गति कहते है, चुकि यह पृथ्वी एक चक्कर एक वर्ष में लगाती हैं इसलिए इसे
वार्षिक गति कहा जाता हैं। पृथ्वी सूर्य की एक परिक्रमा 365 दिन 6
घण्टा में लगाती
हैं।
- पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा अंडाकार
कक्षा में लगाती है जिसके कारण पृथ्वी 6 महीने
में सूर्य से दूर चली जाती हैं तथा फिर 6 महीने
में सूर्य से नजदीक आ जाती हैं।
उपसौर
तथा अपसौर
- पृथ्वी
3 जनवरी को सूर्य के सबसे नजदीक आ जाती हैं तथा इस स्थिति
को उपसौर कहते हैं।
- तथा
ठीक 6 महीने के बाद 4 जुलाई को पृथ्वी सूर्य से सर्वाधिक दूरी पर होती हैं तथा
इस स्थिति को अपसौर कहते हैं।
- अगर
पृथ्वी झकी नही होती तो प्रकाश वृत विषुवत रेखा सहित सभी अक्षांश रेखा को दो
बराबर भागो में बाटती जिसके कारण पृथ्वी पर सभी जगह 12 घण्टे का दिन तथा 12 घण्टे
की रात होती। परन्तु ऐसा नही हैं क्योंकि पृथ्वी अपने अक्ष पर 23 1/2° झुकी हुई हैं।
- चुकी
पृथ्वी के झुके रहने के स्थिति में भी प्रकाश वृत केवल विषुवत रेखा को दो
बराबर भागो में बाटती हैं जिसके कारण विषुवत रेखा पर 12 घण्टे का दिन एवं 12 घण्टे
की रात होती हैं। विषुवत रेखा के अलावा सभी अक्षांस रेखाओं को प्रकाश वृत
असमान भागो में बाटती है जिसके कारण दिन और रात में अंतर होता हैं।
- :
अतः विषुवत रेखा
के उत्तर में दिन बडा एवं रात छोटी दक्षिण में दिन छोटा एवं रात बड़ी होती
हैं। जिसके कारण पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव पर 24 घँटे
का दिन एवं दक्षिणी ध्रुव पर 24 घँटे
की रात होती हैं। ( 6
महीने तक)
- 21
मार्च से 23 Sept – सूर्य की किरणें उतरी गोलार्ध पर अधिक
- 23
सितम्बर से 21
march – सूर्य की किरणे
दक्षिणी गोलार्ध पर अधिक
- अतः
विषुवत रेखा पर सदैव 12
घँटे का दिन एवं
12 घँटे की रात होती हैं। क्योंकि प्रकाश वृत सदैव विषुवत
रेखा को दो बराबर भागो में बाटती हैं। ex कांगो
देश
दिन और
रात
- विषुवत
रेखा के उत्तर और दक्षिण में जाने पर दिन और रात की लंबाई में अंतर बढ़ता जाता
हैं।
- 21
मार्च से 23 सितंबर तक उत्तरी गोलार्ध में दिन बड़े होंगे तथा राते
छोटी होंगी तथा दक्षिणी गोलार्ध में दिन छोटा तथा रात बड़ी होगी।
- 23
सितम्बर से
21 मार्च – दक्षिण गोलार्ध में दिन बड़ा एवं रात छोटी तथा उतरी
गोलार्ध में दिन छोटा एवं रात बड़ी होगी।
- 21
मार्च एवं 23 सितम्बर को सूर्य की किरणें विषुवत रेखा पर लम्बवत पड़ती
हैं जिसके कारण पूरे पृथ्वी पर दिन रात बराबर होता हैं।
- 21
जून को सूर्य की
लम्बवत किरणे कर्क रेखा पर सीधी चमकती हैं जिसके कारण इस दिन उतरी गोलार्ध
में सबसे बड़ा दिन एवं सबसे छोटी रात होती हैं।
- 22
दिसम्बर को
सूर्य की लंबवत किरणे मकर रेखा पर पड़ती हैं जिसके कारण इस दिन दक्षिणी
गोलार्ध में सबसे बड़ा दिन एवं सबसे छोटी रात होती हैं।
- 21
मार्च को सूर्य
की लम्बवत किरणे विषुवत रेखा पर पड़ती हैं जिसके कारण पूरे पृथ्वी पर दिन और
रात की ल० बराबर होती हैं,
इसी कारण 21 मार्च को पूरे पृथ्वी पर मौसम एक समान पाया जाता हैं।
विषुव
- जब
सूर्य की लम्बवत किरणे विषुवत रेखा पर पड़ती हैं, तो इसे विषुव कहा जाता है, तथा
21 मार्च को बसन्त विषुव कहा जाता हैं।
- 21
जून को सूर्य की
लंबवत किरणे कर्क रेखा पर पड़ती है तथा उतरी गोलार्ध में दिन की लंबाई बढ़ जाती
हैं, इसी कारण उतरी गोलार्ध में गर्मी का मौसम होता हैं।
- इसके
ठीक विपरीत दक्षिणी गोलार्ध में सूर्य की किरणें तिरछी तथा कम समय तक पड़ती
हैं जिसके कारण दिन की लंबाई कम तथा दक्षिणी गोलार्ध में शीत ऋतु पाया जाता
हैं।
- 21
जून के बाद
सूर्य दक्षिणायन होने लगता है तथा 23 sep को
सूर्य की किरणें विषुवत रेखा पर लंबवत पड़ती हैं जिसके कारण दोनों गोलार्ध को
सूर्यताप बराबर 2
मिलता हैं जिसके
कारण पूरे पृथ्वी पर मौसम एकसमान होता है। इस स्थिति को शरद विषुव कहते है।
ज्वार भाटा और सूर्यग्रहण चन्द्रग्रहण
- समुद्र
का सतह जब औसत सतह से ऊपर उठ जाता है तो उसे ज्वार तथा जब समुद्र का सतह जब
समुद्र के औसत सतह से नीचे चला जाता है तो उसे भाटा कहते हैं।
- पृथ्वी
पर महासागर में ज्वार एवं भाटा का कारण चन्द्रमा एवं सूर्य की आकर्षण शक्ति
है।
- किसी
भी वस्तु का जितना बड़ा द्रव्यमान होता हैं, उतना
ही बड़ा उसका आकर्षण शक्ति होता है।
- सूर्य
पृथ्वी से बहुत दूर है (14.98
करोड़ km) जिसके कारण उसका आकर्षण शक्ति पर बहुत कम पड़ता हैं, वही दूसरी ओर चन्द्रमा का आकर्षण शक्ति पृथ्वी पर सूर्य
के अपेक्षा बहुत अधिक होता हैं क्योंकि चंद्रमा सूर्य की अपेक्षा पृथ्वी से
बहुत नजदीक हैं। (284000
km) जबकि चंद्रमा
सूर्य से बहुत छोटा है। यही कारण है कि ज्वार भाटा में मुख्य भूमिका चद्रमा
के आकर्षण शक्ती का होता हैं।
- चन्द्रमा
पृथ्वी से अपने तरफ चीजो को खीचना चाहता है। चुकी जल पर बल लगाने पर वह अपनी
आकार व स्थिति को आसानी से बदल लेता है। चंद्रमा पृथ्वी पर उपस्थित जल को
अपनी तरफ खीचना चाहता है। वही सागर सतह उठता है, जिसके सामने चद्रमा होता हैं अर्थात पृथ्वी के जिस
महासागरीय बिंदु के ऊपर चद्रमा होगा, उस
महासागरीय बिंदु में उठान आएगा।
- ज्वार
एक साथ धरती पर दो जगहों पर आता हैं 1 चन्द्रमा
के सामने वाले भाग पर 2
पृथ्वी के ठीक
विपरीत वाले भाग पर
कारण
- चद्रमा
से जनित आकर्षण शक्ति की ओर पृथ्वी में जो खिंचाव होता हैं, उसको सन्तुलित करने के लिए पृथ्वी द्वारा एक विपरीत बल
लगाया जाता हैं जिसके कारण ज्वार के ठीक विपरीत वाले जगह पर पृथ्वी पर पानी
का सतह ऊपर उठ जाता हैं,
अतः इसी कारण एक
ही समय मे दो जगह ज्वार आता हैं।
- दोनों
ज्वार के पार्श्व के किनारों पर जलराशि धंस जाती हैं क्योंकि जलराशि की
अधिकतम मात्रा ज्वार के द्वारा खीच ली जाती हैं जिसके कारण पार्श्व के किनारो
पर जलराशि नीचे चलि जाती हैं, इसे
भाटा कहा जाता हैं।
- अर्थात
एक ही समय मे पृथ्वी पर अलग अलग जगहों पर दो ज्वार तथा दो भाटा आता हैं।
- चुकी
पृथ्वी अपना एक घुर्णन 24
घण्टा में पूरा
करती हैं। अतः इसी कारण एक ही स्थल पर 24 घँटे
में दो बार ज्वार तथा दो बार भाटा आएगा ।
- किसी
स्थल पर एक ज्वार के 6
घण्टे के बाद
तथा 12 घन्टे बाद फिर से ज्वार आएगा। तथा 18 घँटे बाद भाटा तथा 24 घन्टे
बाद ज्वार आएगा ।
- जब
चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करते हुवे सूर्य और पृथ्वी के बीच मे आ जाता हैं
या जब पृथ्वी,
चन्द्रमा और
सूर्य एक सीध में आ जाते है तो पृथ्वी पर चन्द्रमा और सूर्य के आकर्षण शक्ति
का प्रभाव सम्मिलित रूप से पड़ता हैं, ऐसी
स्थिति में महासागरीय जल में अधिक उठान होता हैं, तथा इसे दीर्घ ज्वार कहते है।
- जब
चद्रमा, पृथ्वी और सूर्य समकोण की स्थिति
में हो तो चद्रमा और सूर्य का आकर्षण बल एक दूसरे के विपरीत कार्य करने लगता
हैं, जिसके कारण दोनों की आकर्षण शक्ति पृथ्वी पर प्रभावी नही
हो जाती हैं परिणाम स्वरूप निम्न ज्वार आता हैं।
- दुनिया
का सबसे ऊंचा ज्वार 18
मीटर का अमेरिका
के तट पर फंडि की खाड़ी में आता है
- एक
ऐसा सँकरा समुद्री क्षेत्र जो तीन ओर से महाद्वीप से घिरा हुआ है।
- भारत
मे खंभात की खाड़ी में तथा कच्छ की खाड़ी में ज्वार के समय लहरे या तरंगे पैदा
होती है, जिसे हम ज्वारीय तरंग कहते है, अर्थात संकरी खाड़ियों में ज्वार के समय शक्तिशाली तरंगे
उठती है जो तटों के तरफ चल पड़ती है जिनको ज्वारीय तरंग कहा जाता हैं।
- चुकी
कच्छ की खाड़ी दलदली क्षेत्र है जिसके कारण ज्वारीय तरंग का प्रभाव इस क्षेत्र
में अधिक नही पड़ता ।
- खंभात
की खाड़ी में ज्वारीय तरंग प्रभावशाली उठती है तथा महाद्वीप के तट की ओर बहुत
उर्जा के साथ बढ़ती है,
इन ज्वारीय
तरंगों में गतिज ऊर्जा होता है, ये
गतिज ऊर्जा तट पर जाकर टकराती है। इस ऊर्जा का दोहन करने के लिए तटों पर
विधुत संयत्र लगा देते है।
सूर्य ग्रहण
- जब चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए सूर्य और पृथ्वी के बीच मे आ जाता हैं, तो सूर्य का प्रकाश चंद्रमा के सामने वाले पृथ्वी के भूभाग पर नही पहुंच पाता है, ऐसी स्थिति को सूर्य ग्रहण कहते है।
- सूर्य
ग्रहण पृथ्वी पर सर्वत्र घटित नही होता, बल्कि
सूर्य ग्रहण पृथ्वी के उसी भाग पर घटित होता हैं, जहाँ चद्रमा की छाया पड़ती हैं। सूर्य ग्रहण दिन में घटित
होता हैं।
- जब
पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करते हुए सूर्य और चन्द्रमा के बीच मे आ जाता हैं, तो चन्द्रमा पृथ्वी की छाया के कारण पूरी तरह अंधकारमय हो
जाता हैं, ऐसी स्थिति को चन्द्रग्रहण कहते
है।
- एक
वर्ष में अधिकतम 7
सूर्यग्रहण और
चन्द्रग्रहण हो सकते है।
- पूर्ण सूर्यग्रहण की स्थिति में भी चन्द्रमा सूर्य को पूरी तरह से ढक नही पाता है, तथा सूर्य बाहरी भाग अत्यधिक चमकता हुआ दिखाई देता हैं, जिसे कोरोना कहा जाता हैं। इसे हीरक वलय या diamond ring कहा जाता है।
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