पृथ्वी की गति दो प्रकार की है, घूर्णन एवं परिक्रमण।
पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमना घूर्णन कहलाता है। सूर्य के चारों ओर एक स्थिर कक्ष
में पृथ्वी की गति कोपरिक्रमणकहते हैं।
पृथ्वी का अक्ष एक काल्पनिक रेखा है, जो इसके कक्षीय सतह से 66½° का कोण बनाती है। वह समतल
जो कक्ष के द्वारा बनाया जाता है, उसेकक्षीय समतलकहते हैं।
पृथ्वी सूर्य से प्रकाश प्राप्त करती है। पृथ्वी का आकार गोले
के समान है, इसलिए एक समय में सिर्फ
इसके आधे भाग पर ही सूर्य की रोशनी प्राप्त होती है। सूर्य की ओर वाले भाग में दिन
होता है, जबकि दूसरा भाग जो सूर्य
से दूर होता है वहाँ रात होती है। ग्लोब पर वह वृत्त जो दिन तथा रात को विभाजित
करता है उसे प्रदीप्ति वृत्त कहते हैं।
पृथ्वी अपने अक्ष पर एक चक्कर पूरा करने में लगभग 24 घंटे का समय लेती है।
घूर्णन के समय काल को पृथ्वी दिन कहा जाता है। यह पृथ्वी की दैनिक गति है।
अगर पृथ्वी घूर्णन नहीं करे तो क्या होगा? सूर्य के तरफ वाले पृथ्वी
के भाग में हमेशा दिन होगा जिसके कारण उस भाग में गर्मी लगातार पड़ेगी। दूसरे भाग
में हमेशा अंधेरा रहेगा एवं पूरे समय ठंड पड़ेगी। इस तरह की अवस्था में जीवन संभव
नहीं हो पाएगा।
पृथ्वी की दूसरी गति जो सूर्य के चारों ओर कक्ष में होती है उसे
परिक्रमण कहा जाता है। पृथ्वी एक वर्ष या 365 ¼ दिन में सूर्य का एक चक्कर लगाती है। हम लोग एक वर्ष 365 दिन का मानते हैं तथा सुविधा
के लिए 6 घंटे को इसमें नहीं जोड़ते
हैं।
चार वर्षों में प्रत्येक वर्ष के बचे हुए 6 घंटे मिलकर एक दिन यानी 24 घंटे के बराबर हो जाते
हैं। इसके अतिरिक्त दिन को फरवरी के महीने में जोड़ा जाता है। इस प्रकार प्रत्येक
चौथे वर्ष फरवरी माह 28 के बदले 29 दिन का होता है। ऐसा वर्ष जिसमें 366 दिन होते हैं उसे लीप वर्ष कहा
जाता है।
पृथ्वी दीर्घवृत्ताकार पथ पर सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है।
सामान्यतः एक वर्ष को गर्मी, सर्दी, वसंत एवं शरद् ऋतुओं में बाँटा जाता है। ऋतुओं में परिवर्तन सूर्य के
चारों ओर पृथ्वी की स्थिति में परिवर्तन के कारण होता है।
सूर्य की किरणें कर्क रेखा पर सीधी पड़ती हैं। इसके
परिणामस्वरूप इन क्षेत्रों में उष्मा अधिक प्राप्त होती है। ध्रुवों के पास वाले
क्षेत्रों में कम ऊष्मा प्राप्त होती है, क्योंकि वहाँ सूर्य की किरणेंतिरछी पड़ती हैं।
उत्तर ध्रुव सूर्य की तरफ झुका होता है तथा उत्तरी ध्रुव रेखा
के बाद वाले भागों पर लगभग 6 महीने तक लगातार दिन रहता है।
उत्तरी गोलार्ध के बहुत बड़े भाग में सूर्य की रोशनी प्राप्त
होती है, इसलिए विषुवत् वृत्त के
उत्तरी भाग में गर्मी का मौसम होता है। 21 जून को इन क्षेत्रों में सबसे लंबा दिन तथा सबसे छोटी
रात होती है। पृथ्वी की इस अवस्था कोउत्तर अयनांतकहते हैं।
22 दिसंबर को दक्षिण ध्रुव के
सूर्य की ओर झुके होने के कारण मकर रेखा पर सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं। चूँकि, सूर्य की किरणें मकर रेखा
पर लंबवत् पड़ती हैं इसलिए दक्षिणी गोलार्ध के बहुत बड़े भाग में प्रकाश प्राप्त
होता है। इसलिए,
दक्षिणी गोलार्ध में लंबे
दिन तथा छोटी रातों वाली ग्रीष्म ऋतु होती है। इसके ठीक विपरीत स्थिति उत्तरी
गोलार्ध में होती है। पृथ्वी की इस अवस्था कोदक्षिण अयनांतकहा जाता है।
21 मार्च एवं 23 सितंबर को सूर्य की किरणें
विषुवत् वृत्त पर सीधी पड़ती हैं। इस अवस्था में कोई भी ध्रुव सूर्य की ओर नहीं
झुका होता है,
इसलिए पूरी पृथ्वी पर रात
एवं दिन बराबर होते हैं। इसेविषुवकहा जाता है।
23 सितंबर को उत्तरी गोलार्ध
में शरद् ऋतु होती है, जबकि दक्षिणी गोलार्ध में वसंत ऋतु होती है। 21 मार्च को स्थिति इसके
विपरीत होती है जब उत्तरी गोलार्ध में वसंत ऋतु तथा दक्षिणी गोलार्ध में शरद् ऋतु
होती है।
पृथ्वी के घूर्णन एवं परिक्रमण के कारण दिन एवं रात तथा ऋतुओं
में परिवर्तन होता है।
Post a Comment