लघु सौरमंडलीय पिंड | पुच्छल तारे या धूमकेतु


लघु सौरमंडलीय पिंड

पुच्छल तारे या धूमकेतु Comet

 Comet  gk in hindi
  • ये सौरमण्डल के सबसे अधिक उत्केन्द्रित कक्षा वाले सदस्य हैं, जो सूर्य के चारों और लंबी किन्तु अनियमित कक्षा में घूमते हैं। ये आकाशीय धूल, बर्फ और हिमानी गैसों के पिण्ड हैं जो सूर्य से दूर, ठण्डे और अंधेरे क्षेत्र में रहते हैं तथा अपनी कक्षा में घुमते हुए कई वर्षों के पश्चात जब ये सूर्य के समीप से गुजरते हैं तो गर्म होकर इनसे गैसों की फुहार निकलती है जो एक लंबी चमकीली पूंछ के समान प्रतीत होती है। यह पूंछ कभी-कभी लाखों किलोमीटर लंबी होती है। सामान्य अवस्था में पुच्छल तारा बिना पूंछ के होता है परन्तु ज्यों-ज्यों वह सूर्य के निकट आता है, सूर्य की गर्मी के कारण इसकी बाह्य परत पिघलकर गैस में परिवर्तित हो जाती है।
  • 1843 में विशाल पुच्छल तारा दृष्टिगत हुआ था जिसकी पूॅछ 80 करोड़ किलोमीटर लंबी थी। 1986 में हैली पुच्छल तारा दिखाई दिया था, यह तारा 76.3 वर्षों के अंतराल के बाद सूर्य के निकट आया था, तब इसे बिना दूरदर्शी यंत्र के भी देखा गया। ऐंकी धूमकेतु हर तीन वर्ष सूर्य के समीप से गुजरता है। काहूतेक धूमकेतु जो 1974 में दिखाई दिया था अब 75 हजार वर्ष बाद दिखाई देगा। खगोलशास्त्रियों के अनुसार सौरमण्डल में लगभग 100000 धूमकेतु विचरण कर रहे हैं। जो कई लाख वर्षों के बाद सूर्य के निकट पहुंचते हैं।

अवान्तर ग्रह (एस्टेराइड) Asteroid  

  • मंगल और वृहस्पति ग्रह के मध्य 547 मिलियन किमी क्षेत्र में छोटे से लेकर सैकड़ों किमी आकार के हजारों पिण्ड, लघु ग्रह या अवान्तर ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते रहते हैं। इनकी अनुमानित संख्या 40000 है । सेरस नामक अवान्तर ग्रह को सर्वप्रािम इटली के खगोलशास्त्रती पियाजी ने खोजा था। इसके उपरांत पलास, जूना तथा वेस्टा की खोज हुई। वैज्ञानिको के अनुसार ग्रहों के विस्फोट के फलस्वरूप टूटे हुए ग्रह (अवान्तर ग्रह) के रूप में इनकी प्राप्ति हुई। ये सभी अवान्प्तर ग्रह अन्य ग्रहों की भांति सूर्य की परिक्रमा करते हैं चार वेस्टा एकमात्र क्षुद्र ग्रह है जिसे आंखो से देखा जा सकता है।

उल्का और उलकाश्म Meteor



  • अंतरिक्ष  में घूमते धूल और गैस पिण्ड जब पृथ्वी के समीप से गुजरते हैं तो पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण के कारण तेजी से पृथ्वी की ओर आते हैं और पृथ्वी के वायुमंडल में आकर घर्षण से चमकने लगते हैं जो पृथ्वी पर पहुॅचने से पूर्व ही जलकर राख हो जाते है। कुछ पिण्ड वायुमंडल में घर्षण से पूर्णतः जल नहीं पाते और चट्टानों के रूप में पृथ्वी पर आ गिरते हैं इन्हें उल्काश्म (शूटिंग स्टार) कहते हैं। इनकी संरचना पृथ्वी के समान है।


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