पृथ्वी और सौरमण्डल के पारिभाषिक शब्द | Solar System Terminology

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सौरमण्डल पारिभाषिक शब्द

पृथ्वी का घूर्णन अथवा आवर्तन गति

  • पृथ्वी एक कल्पित धुरी पर सदैव पश्चिम से पूर्व को घूमती रहती है। पृथ्वी की इसी गति को घूर्णन अथवा आवर्तन गति कहा जाता है। पृथ्वी अपनी धुरी पर जब एक पूरा चक्कर लगा लेती है तो एक दिन होता है। इसी से इस गति को दैनिक गति भी कहते हैं।
  • पृथ्वी जिस धुरी अथवा अक्ष पर घूमती है वह काल्पनिक रेखा है जो पृथ्वी के केन्द्र से होकर उसके उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों को मिलाती है। पृथ्वी का यह अक्ष अपने कक्ष तल के साथ 66 डिग्री अंश का कोण बनाता है। पृथ्वी का यह अक्ष सदैव एक ही ओर झुका रहता है।
  • एक मध्यान्ह रेखा के ऊपर किसी निश्चित नक्षत्र के उत्तरोत्तर दो बार गुजरने के बीच की पृथ्वी का अक्ष सदैव एक ही ओर झुका रहता है। 
  • एक दिन की अवधि की गणना जब किसी निश्चित मध्यान्ह रेखा के ऊपर, मध्यान्ह सूर्य के उत्तरोत्तर दो बार गुजरने के बीच लगने वाले समय के आहार पर की जाती है तो वह सौर दिवस होता है। सौर दिवस की औसत लम्बाई पूरे 24 घण्टे होती है सौर दिवस, नक्षत्र दिवस से 3 मिनट और 56 सेकेण्ड अधिक बड़ा होता है।
  • पृथ्वी के धूर्णन के कारण पृथ्वी का प्रत्येक भाग बारी-बारी से सूर्य के सम्मुख आता रहता हैअतः सूर्य के सम्मुख वाले भाग में दिन और पीछे वाले भाग में रात्रि होती है। इस प्रकार दिन-रात का क्रम पृथ्वी की घूर्णन गति का परिणाम है।
  • 24 घण्टे की अवधि वाला दिन अस्तित्व में आता है।
  • घूर्णन के अक्ष के आधार पर ही अक्षांश एवं देशांतर का निर्धारण किया जाता है।
  • पृथ्वी पर भौतिक एवं जैविक प्रक्रियायें प्रभावित होती हैं।
  • कोरिआलिस बल की उत्पत्ति होती है जिसके कारण उत्तरी गोलार्द्ध में जल एवं पवनें अपनी दायीं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अपनी बायी ओर मुड़ जाते हैं।
  • महासागरों में ज्वार-भाटा आता है।

छुद्र ग्रह

  • ग्रह और उनके चंद्रमा और परिवार के बड़े सदस्य हैं। इनके अलावा कुछ नन्हें सदस्य भी हैं, जिन्हें छुद्र ग्रह कहते हैं। मंगल और बृहस्पति ग्रहों के बीच की पट्टी से सबसे अधिक छुद्र ग्रह है। सूर्य से इनकी दूरी 2.2-3.3 au है। ये भी सूर्य की परिक्रमा कर रहे हैं। ऐसा अनुमान है कि इस पट्टी में 40,000 से 50,000 तक छुद्र ग्रह हैं। इनमें से अधिकांश इतने छोटे हैं कि प्रचलित तरीकों से उनका व्यास भी नहीं मापा जा सकता। इनमें सबसे बड़ा सेरेज है, जिसका व्यास 1003 से 1040 किमी. है। इसकी खोज सन् 1801 में हुई थी। केवल एक ही छुद्र ग्रह ऐसा है, जो बिना दूरबीन के दिखाई पड़ता है, वह है 4 वेस्ता, जिसका व्यास 555 किमी. है। जिस छुद्र ग्रह की दूरी पृथ्वी के सबसे निकट आने पर नापी गई, वह है हमीज। पृथ्वी से इसकी दूरी 780,000 किमी. या 0.006 au थी। यह अब लुप्त हो गया है।
  • कोई नहीं जानता कि छुद्र ग्रह कैसे बने। कुछ लोगों का अनुमान है कि ये किसी ग्रह के टुकड़े हैं जो कभी मंगल और बृहस्पति के बीच में स्थित रहा होगा। ऐसा भी कहा जाता है कि ये मंगल और बृहस्पति ग्रह के ही टूटे हुए हिस्से हैं। कुछ छुद्र ग्रह धूमकेतु के भी टुकड़े हो सकते हैं।

उल्का और उल्कापिंड

  • कभी-कभी रात के समय आकाश में कोई चमकता बिंदु, चमकीली रेखा खींचता हुआ गायब हो जाता है। इसे सामान्यतः तारा टूटना कहते है। लेकिन तारे तो कभी टूटते नहीं टूटकर गिरने वाले ये पिंड तारे नहीं बल्कि उल्काएं होती हैं। ये बड़ी तेज गति से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं और हवा में रगड़ खाकर जल उठते हैं। उनका यह जलना ही हमें टूटते तारा जैसा नजर आता है। उल्काएं नहीं सौर परिवार की सदस्य हैं। जब कोई खगोलीय पिंड गति करता हुआ पृथ्वी के पास आता है तो धरती की आकर्षण शक्ति से खिंचकर पृथ्वी की ओर आता है और पृथ्वी पर गिर पड़ता है।
  • आसमान के गिरी हुई सभी उल्काएं धरती तक नहीं पहुंचती। उनमें से अधिकांश रास्ते में ही हवा की रगड़ से जलकर नष्ट हो जाती हैं या भाप और राख बन जाती हैं, लेकिन जब कोई उल्का पूरी तरह नहीं जल पाती और धरती पर गिर जाती है तब उसके अवशेष को उल्कापिंड कहते हैं।
  • चंद्रमा, मंगल और बुध ग्रहों पर उल्कापिंडों के गिरने से ही गड्ढ़े बन गए हैं। पृथ्वी पर सबसे बड़ा गढ्डा जो उत्तरी ऐरिजोना में है, शायद उल्कापिंड के टकराने से बना। 1265 मीटर व्यास के इस क्रेटर की गहराई 175 मीटर है। यह गड्ढ़ा लगभग 25,000 वर्ष पहले बना था।
  • ऐसा अनुमान है कि प्रतिदिन साढ़े सात करोड़ उल्काएं पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करती हैं। इनकी गति 35-95 किमी. प्रति सेकण्ड होती है। एक साधारण उल्का को भाप बनने में लगभग एक सेकंड का समय लगता है। हर साल लगभग 500 उल्कापिंड पृथ्वी की सतह पर गिरते हैं। सबसे बड़ा उल्का पिंड जो धरती पर गिरा उसका भार 37 टन था। उल्का पिंड तीन प्रकार के होते है। धूमकेतु जैसे, पत्थर जैसे और आग की गेंदनुमा जैसे। अधिकांश उल्कापिंड पत्थर, लोहा, निकल और दूसरे तत्वों से मिलकर बने हैं।

आकाशीय पिंड

  • आकाश गंगा या मंदाकिनी, तारों का एक विशाल पुंज है अंतरिक्ष में 10000 मिलियन (1010) आकाश गंगायें हैं। प्रत्येक आकाश गंगा में 100000 मिलियन (1010) तारे है, तारों के अतिरिक्त आकाशगंगा में धूल और गैस पाई जाती है।
  • निहारिका अत्याधिक प्रकाशमान आकाशीय पिंड है, जो गैस और धूल के कणों से मिलकर बना है।
  • तारामण्डल तारों का एक समूह है, इस समय 89 तारामण्डलों की पहचान की गई है। इनमें हाइड्रा सबसे बड़ा है। जैसे ग्रेट बियर, कालपुरूष आदि तारामण्डल हैं।
  • बारह तारामण्डलों की पट्टी को राशि चक्र कहते हैं।
  • क्वेसर आकाशीय पिंड है जो आकार में आकाशगंगा से छोटे हैं, परन्तु ऊर्जा का उत्सर्जन अधिक मात्रा में करते हैं।
  • पुच्छल तारे या धूमकेतू आकाशीय धूल, बर्फ और हिमानी गैसों के पिण्ड हैं, जो सूर्य के चारों ओर लंबी किंतु अनियमित कक्षा में घूमते हैं। 1986 ई. में हैली पुच्छलतारा 76.3 वर्षों के अन्तराल के बाद सूर्य के निकट बिना दूरदर्शी यंत्र में देखा गया।
  • सबसे बड़ा उल्कापिंड दक्षिण पश्चिम अफ्रीका में ग्रुटफॉण्टीन के पास होबा वेस्ट में सन् 1920 में पाया गया था। इसका वजन 60,000 किग्रा. है। यह प्रागौतिहासिक काल में कभी गिरा था।
  • कोलकाता के अजायबघर में कुछ उल्कापिंड दर्शकों के लिए रखे हुए हैं। अमेरिका के विभिन्न अजायबघरों में 672 उल्कापिंड रखे हुए हैं।

अक्षांश

किसी दिये गये बिंदु को विषुवत वृत्त से उत्तर या दक्षिण की कोणीय दूरी की माप को अक्षांश कहते हैं। अर्थात ग्लोब पर पश्चिम से पूर्व की ओर खीची गई काल्पनिक रेखा अक्षांश है। जिसे अंश में प्रदर्शित किया जाता है।
सभी अक्षांश रेखाएं समान्तर होती हैं। इनकी संख्या 180 है तथा अंश में प्रदर्शित की जाती है। दो अक्षांशों के मध्य की दूरी 111 किमी. होती है। विषुवत वृत 0 डिग्री अक्षांश को प्रदर्शित करता है। विषुवत वृत्त के उत्तर के सभी अक्षांश उत्तरी अक्षांश तथा दक्षिण के सभी अक्षांश कहलाते हैं।
पृथ्वी पर खीचे गये अक्षांशों वृतों में विषुवत वृत्त सबसे बड़ा है। इसकी लम्बाई 40069 किमी. है।

कुछ महत्वपूर्ण अक्षांश

  • कर्क वृत्त धरातल पर उत्तरी गोलार्द्ध में विषुवत वृत्त से 23(1/2)° की कोणीय दूरी पर खींचा गया काल्पनिक वृत्त है।
  • मकर वृत्त धरातल पर दक्षिणी गोलार्द्ध में विषुवत रेखा से 23(1/2)° की कोणीय दूरी पर खींचा गया काल्पनिक वृत्त है।
  • आर्कटिक वृत्त धरातल पर उत्तरी गोलार्द्ध में विषुवत रेखा से 66(1/2)° की कोणीय दूरी पर खींचा गया काल्पनिक वृत्त है।

देशान्तर

  • किसी स्थान को कोणीय को प्रधान यामोत्तर (0° ग्रीनविच) के पूर्ण व पश्चिम में होती है। देशान्तर कहलाती है। इग्लैण्ड के ग्रीनविच स्थान से गुजरने वाली रेखा को 0° देशान्तर या ग्रीनविच रेखा कहते हैं। इसके पूर्व में 180° तक सभी देशान्तर, पूर्वी देशान्तर और ग्रीनविच देशान्तर से पश्चिम की ओर सभी देशान्तर, पश्चिमी देशान्तर कहलाती है।
  • पृथ्वी 24 घण्टे में 360° अंश देशान्तर घूम जाती है। इसलिए पृथ्वी की घूर्णन गति 15 अंश देशान्तर प्रति घंटा या प्रति चार मिनट में एक देशान्तर है।

कुछ महत्वपूर्ण देशान्तर

1884 में वाशिंग्टन में हुये एक समझौते के अनुसार 180° देशान्तर को अन्तर्राष्ट्रीय तिथि रेखा कहते हैं। यह रेखा प्रशान्त महासागर में उत्तर से दक्षिण तक फैली है।
अनेक द्वीपों को काटने के कारण इस रेखा को 180° देशान्तर से कहीं-कहीं खिसका दिया गया है जैसे-
  • 66(1/2)° उत्तर में पूर्व की ओर झुकाव बेरिंग जलसंधि तथा पूर्वी साइबेरिया में एक समय रखने के लिए।
  • 52(1/2)° उत्तर में पश्चिम की ओर झुकाव, एल्युशियन द्वीप एवं अलास्का में एक ही समय दर्शन के लिए।
  • 52(1/2)° दक्षिण में पूर्व की ओर झुकाव, एलिस, वालिस, फिजी, टोंगा, न्यूजीलैण्ड एवं आस्ट्रेलिया में एक ही समय रखने के लिए।

यदि अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा को पार किया जाता है तो तिथि में एक दिन का परिवर्तन हो जाता है। कोई यात्री यदि पूर्व से पश्चिम (एशिया से उत्तर अमेरिका) दिशा में अन्तर्राष्ट्रीय तिथि रेखा को पार करेगा तो वह एक दिन पीछे हो जायेगा।
इसी तरह कोई यात्री यदि पश्चिम से पूर्व (उत्तर अमेरिका से एशिया) की ओर यात्रा करता है तो वह एक दिन आगे हो जायेगा।
अगर अन्तर्राष्ट्रीय तिथि रेखा पर मध्यरात्रि है तो यदि एशियाई भाग की तरफ शुक्रवार है तो अमेरिकी भाग की तरफ गुरूवार होगा।

ग्रीनविच मीन टाइम

  • इंग्लैंड के निकट शून्य देशान्तर पर स्थित ग्रीनविच वेधशाला से गुजरने वाली काल्पनिक रेखा को प्राइम मेरिडियन माना गया है।
  • ग्रीन विच याम्योत्तर 0° देशान्तर पर है कि ग्रीनलैण्ड व नार्वेजियन सागर व बिट्रेन, फ्रांस, स्पेन, अल्जीरिया, माले, बुर्कींनाफासो, घाना व दक्षिण अटलांटिक समुद्र से गुजरता है।
प्रामाणिक समय
  • चूंकि विभिन्न देशान्तरों पर स्थित स्थानों का स्थानीय समय भिन्न-भिन्न होता है, इसके कारण बड़े विशाल देश के कोने से दूसरे कोने के स्थानों के बीच के समय में बड़ा अंतर पड़ जाता है। फलस्वरूप तृतीयक व्यवसायों के कार्यों में बड़ी बाधा उत्पन्न हो जाती है। इस बाधा व समय की गड़बड़ी को दूर करने के लिये सभी देशों में एक देशान्तर रेखा के स्थानीय समय को सारे देश का प्रामाणिक समय मान लिया जाता है। इस प्रकार किसी देश में सभी स्थानों पर माने जाने वाले ऐसे समय को प्रामाणिक अथवा मकर समय कहते है। हमारे देश में 82°30पूर्वी देशान्तर रेखा को मकर मध्यान्ह रेखा माना गया है। इस मध्यान्ह रेखा स्थानीय समय सारे देश का मानक समय माना जाता है। इसी को भारतीय मानक समय (आई. एस.टी.) कहा जाता है। भारत का प्रामाणिक समय ग्रीनविच माध्य समय (जी.एम.टी.) से 5 घंटा 30 मिनट आगे है।
  • स्थानीय समय, वह समय है, जो कि सूर्य के अनुसार हर देशान्तर पर निकाला जाता है। जब सूर्य उस देशान्तर पर लम्बवत् चमके तो उसे दोपहर का 12 बजे मान लेते हैं। इसे ही स्थानीय समय कहते हैं, यह प्रत्येक देशान्तर 4 मिनट के अन्तर से भिन्न होता है।
  • भारत में 82(1/2)° अंश पूर्वी देशान्तर रेखा के समय को मानक समय माना गया है, जो इलाहाबाद के निकट नैनी से गुजरती है।
  • भारत का मानक समय, ग्रीनविच मीन टाइम से 5(1/2)° घंटे आगे रहता है।



पृथ्वी और सौरमण्डल से संबन्धित पारिभाषिक शब्द

दैनिक गति

पृथ्वी द्वारा अपनी धुरी पर लगाया गया एक चक्कर जो एक दिन होता है।

वार्षिक गति

पृथ्वी द्वारा अपनी कक्षा में सूर्य के चारों ओर लगाया गया एक चक्कर जिसमें उसे 365(1/4) दिन लगते हैं।

नक्षत्र दिवस

एक मध्यान्ह रेखा के ऊपर किसी निश्चित नक्षत्र के उत्तरोत्तर दो बार गुजरने के बीच की अवधि।

सौर दिवस

किसी निश्चित मध्यान्ह रेखा के ऊपर मध्यान्ह सूर्य के उत्तरोत्तर दो बार गुजरने के बीच की अवधि।

उपसौर

पृथ्वी द्वारा अपनी अण्डाकार कक्षा में सूर्य की परिक्रमा अवधि के क्रम में सूर्य से सबसे अधिक दूरी की स्थिति जो 4 जुलाई को होती है।

कर्क संक्रांति

पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के क्रम में 22 दिसंबर की स्थिति जब सूर्य मकर रेखा पर लम्बवत् चमकता है।

विषुव

21 मार्च और 23 सितंबर की स्थितियां जब सूर्य भूमध्य रेखा पर लम्बवत् चमकता है, जिसके कारण दोनों गोलार्द्धों में सर्वत्र दिन-रात बराबर होते हैं। 21 मार्च की स्थिति को बसत विषुव और 23 सितंबर वाली स्थिति को शरद विषुव की अवस्था कहा जाता है।

सिजिगी

सूर्य, चन्द्रमा, और पृथ्वी की एक रेखीय स्थिति।

वियुति

सूर्य और चन्द्रमा के बीच पृथ्वी की स्थिति, जिसके कारण चंद्र ग्रहण होता है।

युति

सूर्य और पृथ्वी के बीच चंद्रमा की स्थिति, जिसके कारण सूर्य ग्रहण होता है।

परिक्रमा
  • पृथ्वी की परिक्रमा का मार्ग अण्डाकार हैं। अत: पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी वर्ष भर एक सी नहीं रहती। जनवरी में यह सूर्य के सबसे निकट होती है। इस समय पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी 470 लाख किमी. होती है। पृथ्वी की इस स्थिति को उपसौर कहते हैं। जुलाई में पृथ्वी सूर्य से अपेक्षा तथा अधिक दूर होती है। इस समय सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी 470 लाख किमी. रहती है। अत: पृथ्वी की यह स्थिति अपसौर कहलाती है। अपसौर की स्थिति 4 जुलाई की होती है।

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