तारो में अपनी स्वयं की उष्मा एवं प्रकाश
होती हैं। इनके उष्मा का स्त्रोत नाभिकीय संलयन की क्रिया है। तारो में अपार मात्रा
में हाइड्रोजन होता हैं तथा यह तारों का ईंधन होता हैं।
जब हाइड्रोजन के चार नाभिक मिलकर एक
हीलियम (He) के नाभिक का
निर्माण करे तो इस क्रिया को नाभिकीय संलयन की क्रिया कहते हैं।
इस क्रिया में अपार ऊर्जा मुक्त
होती हैं। और नाभिकीय संलयन की क्रिया में उत्पन्न यही ऊर्जा तारो के ऊष्मा एवं
प्रकाश के स्त्रोत होते हैं।
H+H+H+H+ =He+ अपार ऊर्जा
किसी भी तारे का हाइड्रोजन एक समय
ऐसा आएगा कि समाप्त हो जाएगा तथा नाभिकीय संलयन की क्रिया रुक जाएगी तथा तारा अपना
उष्मा एवं प्रकाश खो देगा तथा ठंडा हो जायेगा अतः तारो का जीवन एक निश्चित अवधि का
होता हैं।
तारों के आकार और जीवन मे
व्युत्क्रमानुपाती सम्बन्ध होता हैं अर्थात बड़ा तारा का जीवन अवधि कम तथा छोटा
तारा का जीवन अवधि अधिक होगा।
किसी तारे के जीवन की प्रारम्भिक
अवस्था मे उसमें हाइड्रोजन अपार मात्रा में रहता हैं जिसके कारण नाभिकीय संलयन की
क्रिया के तहत उष्मा एवं प्रकाश भी अपार मात्रा में उत्सर्जित होता रहता हैं।
परन्तु कालक्रम में हाइड्रोजन का मात्रा घटता चला जाता हैं और तारा का रंग भी
बदलता चला जाता हैं। और तारा का तापमान भी कम होता चला जाता हैं। अतः तारा का रंग
उष्मा का परिचय देता हैं।
लाल तारा
जब किसी तारे का उष्मा समाप्त हो
जाता हैं तो वह लाल हो जाता हैं। और उसे लाल तारा या रेड जायन्ट कहते हैं। लाल
तारा का बाहरी सतह फैलता रहता हैं तथा एक समय ऐसा आता हैं कि विस्फोट हो जाता हैं
इसे सुपरनोवा विस्फोट कहा जाता हैं।
लाल तारा मे सुपरनोवा विस्फोट के
बाद बचे हुवे अवशेष का द्रव्यमान अगर सूर्य के द्रव्यमान के 1.44 गुणा से कम होता
हैं तो वह while dwarf अर्थात श्वेतमान तारा एक ठंडा तारा
होता हैं। परन्तु कालक्रम में यह अत्यधिक ठंडा होने परblack dwarf तारा बन जाता हैं।
परन्तु 1.44 से अधिक होने पर
वह न्यूट्रॉन तारा या पल्सर तारा बन जाता हैं।
न्यूट्रॉन तारा की
विशेषता
न्यूट्रॉन तारा
धीरे – धीरे सिकुड़ता चला
जाता हैं अर्थात तारे का पूरा द्रव्यमान और घनत्व एक बिंदु पर आकर ठहर जाता हैं
जिसके कारण इसका घनत्व असीमित हो जाता हैं तथा गुरुत्वाकर्षण इतना अधिक हो जाता
हैं कि अपना पूरा द्रव्यमान अपने अंदर समेट लेता हैं। गुरुत्वाकर्षण शक्ति इतनी
अधिक होती हैं कि प्रकाश का भी पलायन नही हो पाता अतः इसी कारण इसका रंग काला होता
हैं। और इसे black hole या कृष्ण छिद्र या कृष्ण विवर कहते
हैं।
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