इतिहास का अध्ययन क्यों जरूरी है | Why is the study of history important?
इतिहास का अध्ययन क्यों जरूरी है?
- प्रत्येक देश का इतिहास उसकी भावी संतान के लिए मार्गदर्शक धरोहर होता है। अपने पूर्वजों के महान कार्यों से भावी पीढ़ियां प्रेरणा प्राप्त करती है। उनकी भूलों का विश्लेषण करके भावी मार्ग निर्धारित करती हैं तथा गौरवशाली इतिहास की पुनःप्रतिष्ठा का प्रयास होता है।
- प्राचीन इतिहास से कटकर कोई समाज सांस्कृतिक धरोहर को नष्ट होने से बच नहीं सकता। अतः प्रत्येक समाज अपने अतीत से जुड़ा रहना चाहता है और उक्त अतीत के आधार पर महान भविष्य के निर्माण की योजना बनाता है। यही कारण है कि सभी देश में प्राचीन इतिहास के अध्ययन पर बहुत बल दिया जाता है।
- जब हम प्राचीन भारत के इतिहास के महत्व पर विचार करते हैं तब हमारे सामने उस काल की अनेक श्रेष्ठ विशेषताएं उजागर हो जाती हैं, जो किसी दूसरे देश की प्राचीन संस्कृति से हमें प्राप्त नहीं होती।
भारत के इतिहास पर गर्व होने के कारण
- भारत संसार का एकमात्र ऐसा प्राचीन देश है जिसने मानव को सबसे पहले सभ्य व सुसंस्कृत बनाया। जिस समय वर्तमान संसार के अत्यंत सभ्य प्रगत देशों के लोग जंगलों में रहकर पशुओं सा जीवन व्यतीत कर रहे थे, उस समय तक भारत ने अत्यंत उन्नत संस्कृति का विकास कर लिया था।
- भारत ही संसार का एकमात्र ऐसा देश है जिसकी सांस्कृतिक जीवनधारा अत्यंत प्राचीन काल से निरंतर बढ़ती चली आई है। संसार के अनेक देशों में जिन विशिष्ट प्राचीन संस्कृतिेयों का विकास हुआ वे सब काल के प्रवाह में विलीन हो गई और उनका अस्तित्व समाप्त हो गया। आज वे इतिहास की वस्तु बन कर रह गई हैं। यूनान, मिस्त्र व रोम आदि देशों में जिन महान प्राचीन संस्कृतियों का विकास हुआ वे संस्कृतियों नष्ट हो गई, उनका अस्तित्व समाप्त हो गया, और उनके स्थान पर नई संस्कृतियां स्थापित हो गई जिनका प्राचीन संस्कृति से कोई संबंध नहीं है। किन्तु संसार में मात्र भारत ही ऐसा देश है जिसकी प्राचीन संस्कृति नष्ट नहीं हुई और वह आज भी अपने श्रेष्ठ मूल्यों के साथ जीवित है।
- प्राचीन भारतीय संस्कृति की विशेषता है कि यह मनुष्य को भौतिक और आध्यातिमक दोनों प्रकार से सुख देने की क्षमता रखती है, अर्थात यह मनुष्य का सर्वांगीण विकास करने की क्षमता रखती है। इसी की छत्रछाया में भारत एक ओर ‘सोने की चिड़िया‘ कहलाया और दूसरे ओर इसे विश्व गुरू का पद प्राप्त हुआ।
- भारत की प्राचीन संस्कृति विश्व में शांति स्थापित करने की क्षमता रखती है, क्योंकि इसी ने संपूर्ण विश्व समाज को एक परिवार के रूप में देखा है और भारतवासियों को इस वृहद् परिवार की सुख-समृद्धि के विकास के लिए प्रयास करने की प्रेरणा दी है।
प्राचीन भारतीय इतिहास का अध्ययन क्यों?
- भारत की महान प्राचीन संस्कृति के संदर्भ में जानकारी हमें प्राचीन भारत के इतिहास के अध्ययन से प्राप्त होती है।
- इतिहास अध्ययन के अभाव में हम यह नहीं जान सकते कि हमें किस महान संस्कृति की विरासत प्राप्त है।
- इतिहास के अध्ययन से भारत के गौरवशाली श्रेष्ठ संस्कृति व परम्परा के प्रति स्वभिमान जागृत होता है।
- अंग्रेजों द्वारा भारत के इतिहास को योजनाबद्ध तरीके से तोड़-मरोड़ कर इस प्रकार हमारे सामने रखा गया है जिससे भारतीयों में हीनता की भावना उत्पन्न हो और उनका पौरूष नष्ट हो जाए।
- भारत के गौरवपूर्ण प्राचीन इतिहास के अध्ययन से समाज में महान कार्य करने की प्रेरणा की जा सकती है और भारत के प्राचीन गौरव को पुर्नप्रतिष्ठित करने की आकांक्षा जगाई जा सकती है।
प्राचीन भारत मे भारतीयों की इतिहास के प्रति उदासीनता
भारत एक प्राचीन देश है। अनेक भारतीय विद्वानों
के अनुसार भारत की सभ्यता संसार की प्राचीनतम सभ्यता है। भारतवासियों ने जीवन के
प्रत्येक पहलू पर विचार किया और लेखन-कला में पारंगत होने के कारण उन्होंने काव्य, दर्शन, कला, विज्ञान और अन्य विषयों पर श्रेष्ठ
ग्रंथों की रचना की। विदेशी विद्वानों के अनुसार भारतीय सभ्यता मिस्त्र, मेसोपोटामिया व चीन आदि प्राचीन
सभ्यताओं के इतिहास से अधिक प्राचीन है। भारत जैसे सभ्य देश में विभिन्न विषयों के
प्रखर विद्वानों के रहते हुए भी यहां क्रमबद्ध इतिहास नहीं लिखा गया, यह सामान्यतया आश्चर्यचकित करने वाली
बात ज्ञत होती है। कुछ विदेशी इतिहासकारों ने तो यहां तक कह दिया है कि प्राचीन
भारतवासियों में ऐतिहासिक चेतना का अभाव था। वास्तव में प्राचीन भारत के लोग
राजनीति व इतिहास के विषयों का अध्ययन समाज के अन्य अनुशासनों के अंतर्गत ही करते
थे।
आ.सी. मूजमदार के कथन-
‘‘भारतीय संस्कृति का एक गंभीर दोष इतिहास लेखन के प्रति भारवासियों की विमुखता है।भारतीयों ने साहित्य की सभी शाखाओं से संबंध स्थापित किया और अनेक श्रेष्ठता भी प्राप्त की, किन्तु उन्होंने कभी भी गंभीरतापूर्वक इतिहास लेखन का कार्य नहीं किया‘‘
अलबरूनी का कथन-
‘‘हिन्दू लोग घटनाओं के ऐतिहासिक क्रम की ओर विशेष ध्यान नहीं देते हैं।‘‘
जहां तक भारत के इतिहास के स्त्रोतों का प्रश्न
है ई. पू. छठी शताब्दी से पहले के इतिहास को जानने के साधन सीमित हैं बाद के
स्त्रोत पर्याप्त विद्यमान हैं अब तक होने वाले शोध प्रयासों ने प्राचीन भारत के
ऐतिहासिक स्त्रोतों को पर्याप्त मात्रा में खोेज निकाला है। इतना होते हुए भी
भारतीय प्राचीन इतिहास का क्रमबद्ध वर्णन उस प्रकार संभव नहीं है जिस प्रकार संसार
के अन्य प्राचीन देशों में है।
इतिहास लेखन के प्रति भारतीयों की उदासीनता के कारण
प्राचीन भारत के साहित्य में क्रमबद्धता के
अभाव में ऐतिहासिक चेतना के अभाव को देखना उचित प्रतीत नहीं होता । वास्तव में
इतिहास की क्रमबद्धता के अभाव के अनेक कारण हो सकते हैं। जो निम्नलिखत हैं
इतिहास लेखक ब्राम्हण थे
- भारत में संपूर्ण साहित्य के रचयिता ब्राहम्ण थे जो राजनीति के प्रति उदासीन थे। उनकी रूचि काव्य, दर्शन, विज्ञज्ञन व कला आदि में अधिक थी। समाज का यह वर्ग अधिकांशतः आध्यात्मिक चिंतन में संलग्न रहता था और सामाजिक जीवन के मूल्यों की प्रस्थापना करने में लगा रहता था। भौतिक जीवन में साधरणतः इनकी अरूचि थी। इन्होंने राजाओं व सम्राटों के क्रिया कलापों का वर्णन करने के स्थान पर उनके राज्यों में बसने वाले समाज का मार्ग दर्शन करने के लिए विभिन्न अनुशासनों का अध्ययन किया। यही कारण है कि उनकी दृष्टि ऐतिहासिक घटनाओं के क्रमबद्ध वर्णन की ओर नहीं गई।
इतिहासकारों ने घटनाओं के स्थान पर विचारधाराओं को महत्व दिया
- प्राचीनकाल की रचनाओं का अध्ययन करने से स्पष्ट होता है कि उस काल के विद्वानों की दृष्टि में विशिष्ट विचाराधाराओं का प्रतिपादन अधिक महत्वपूर्ण था। वे समाज में घटित होने वाली घटनाओं को महत्व नहीं देते थे। उनका विचार था कि विभिन्न घटनाओं के घटित होने के पीछे जो शक्ति कार्य करती है उसक अध्ययन आवश्यक है। घटनाएँ स्वयं में महत्वपूर्ण नहीं होती। अतः घटनाओं की उपेक्षा के कारण क्रमबद्ध इतिहास की उपेक्षा हो गई।
विद्वानों का विशाल दृष्टिकोण
- यह मान लेना कि प्राचीन काल में भारत के लोग इतिहास के प्रति पूर्णतः उदासीन थे, उचित प्रतीत नहीं होता क्योंकि विभिन्न ग्रंथों के अध्ययन से उस काल के इतिहास की सामग्री हमें प्राप्य है। वास्तव में प्राचीन भारतीयों का इतिहास के प्रति विशाल दृष्टिकोण था और उन्होंने उसे विस्तृत ज्ञान का अंग माना। वे इतिहास को धर्म, नैतिकता, राजनीति, अर्थशास्त्र, व साहित्य का अंग मानते थे।अतः क्रमबद्ध इतिहास लेखन की आवश्यकता ही प्रतीत नहीं हुई।
निष्कर्ष
- इतना होते हुए भी प्राचीन भारतीय विद्वानों की इतिहास लेखन के प्रति उदासीनता से इंकार नहीं किया जा सकता। यद्यपि संसार की किसी भी जाति ने उस प्रकार इतिहास की रचना नहीं कि जिस प्रकार वर्तमान काल में की जाती है। फिर भी भारतवासियों की तुलना में इतिहास को पृथक शाखा के रूप में स्वीकार करने की प्रवृत्ति विदेशियों में अधिक दिखाई देती है।
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