सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी, उल्का पिंड तथा वे सभी वस्तुएँ जो रात के
समय आसमान में चमकती है,खगोलीय
पिंड कहलाती हैं.
कुछ खगोलीय पिंड बड़े आकार
वाले तथा गर्म होते हैं। ये गैसों से बने होते हैं। इनके पास अपनी ऊष्मा तथा
प्रकाश होता है,जिसको
वे बड़ी मात्रा में उत्सर्जित करते हैं। इन खगोलीय पिंडों को तारा कहते हैं। सूर्य
भी एक तारा है।
रात्रि में आसमान की ओर
देखते समय तारों के विभिन्न समूहों के द्वारा बनाई गई आकृतियाँ दिखाई देती हैं
इन्हें नक्षत्रमंडल कहते हैं।
अर्सा मेज़र या बिग बीयर
एक प्रकार के नक्षत्र मंडल हैं। बहुत आसानी से पहचान में आने वाला नक्षत्रमंडल
सप्तऋषि (सात तारों का समूह) नक्षत्र मंडल अर्सा मेजर का भाग है।
कुछ खगोलीय पिंडों में
अपना प्रकाश एवं ऊष्मा नहीं होता है। वे तारों के प्रकाश से प्रकाशित होते हैं।
ऐसे पिंड ग्रह कहलाते हैं। ग्रह जिसे अंग्रेज़ी में प्लेनेट (Planet)कहते हैं ग्रीक भाषा के
प्लेनाइट से बना हैजिसका
अर्थ होता है चारों ओर घूमने वाले।
पृथ्वी, जिस पर हम रहते हैं एक ग्रह है। यह अपना
संपूर्ण प्रकाश एवं ऊष्मा सूर्य से प्राप्त करती है जो कि पृथ्वी के सबसे नज़दीक का
तारा है। पृथ्वी को बहुत अधिक दूरी से देखने पर,
यह
चंद्रमा की तरह चमकती हुई प्रतीत हेागी। सूर्य से दूरी के हिसाब से पृथ्वी तीसरा
ग्रह है तथा आकार में 5वाँ सबसे बड़ा ग्रह है।
सूर्य से दूरी के हिसाब
से ग्रहों का सही क्रम-बुध - शुक्र -
पृथ्वी - मंगल - बृहस्पति - शनि - यूरेनस (अरुण) - नेप्च्यून (वरुण
वे ग्रह जो सूर्य के
नज़दीक हैं एवं चट्टानों से बने हैंआंतरिक
ग्रह कहलाते हैं। बुध, शुक्र पृथ्वी और मंगल आंतरिक ग्रह के अंतर्गत
आते हैं।
बाह्य ग्रह सूर्य से बहुत
दूर हैं तथा बहुत बड़े आकार के हैं। ये गैस और तरल पदार्थों से बने हैं। बृहस्पति,शनि, यूरेनस
और नेप्च्यून बाह्य ग्रह हैं।
जितने समय में कोई ग्रह
सूर्य के चक्कर लगाता है,उसे
ग्रह का परिक्रमण काल कहते है। परिक्रमण काल का वर्ग सूर्य से दूरी के घन के
समानुपाती होता है।
इसलिये सूर्य से अधिक
दूरी वाले ग्रहों का परिक्रमण काल अधिक और कम दूरी वाले ग्रहों का परिक्रमण काल कम
होता है। बुध ग्रह का परिक्रमण काल सबसे कम यानी 88 दिन है, क्योंकि बुध सौरमंडल में सूर्य के सबसे
नज़दीक ग्रह है.
तारों,ग्रहों एवं उपग्रहों के अतिरिक्त,असंख्य छोटे पिंड सूर्य के चारों ओर चक्कर
लगाते हैं। इन पिंडों को क्षुद्र ग्रह कहते हैं। ये मंगल और बृहस्पति की कक्षाओं
के बीच पाए जाते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार क्षुद्र ग्रह,ग्रह के ही भाग होते हैं जो बहुत वर्ष
पहले विस्फोट के बाद ग्रहों से टूटकर अलग हो गए।
सूर्य से दूरी के अनुसार
ग्रहों की स्थिति है- बुध - शुक्र - पृथ्वी - मंगल - बृहस्पति - शनि - यूरेनस -
नेप्च्यून
वर्ष 2006 में
अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संगठन ने अपनी बैठक में यह निर्णय लिया कि प्लूटोतथा
अन्य खगोलीय पिंड "बौने ग्रह" कहे जा सकते हैं, जो अभी तक एक ग्रह माने जाते थे।
अंतरिक्ष से देखने पर
पृथ्वी नीले रंग की दिखाई पड़ती है क्योंकि पृथ्वी की दो-तिहाई सतह पानी से ढँकी
हुई है,इसलिये इसे नीला ग्रह कहा जाता है।
सूर्य,आठ ग्रह, उपग्रह
तथा कुछ अलग खगोलीय पिंड जैसे- क्षुद्र ग्रह एवं उल्कापिंड मिलकर सौरमंडल का
निर्माण करते हैं। उसे हम सौर परिवार का नाम देते हैंजिसका मुखिया सूर्य है।
सूर्य सौरमंडल के केंद्र
में स्थित है। यह बहुत बड़ा है एवं अत्यधिक गर्म गैसों से बना है,इसका खिंचाव बल,सौरमंडल को बाँधे रखता है।
सूर्य सौरमंडल
के लिये प्रकाश एवं उष्मा का एकमात्र स्रोत है। हम सूर्य के अत्यधिक तेज उष्मा को
महसूस नहीं करते क्योंकि यह पृथ्वी के सबसे नजदीक तारा होने के बावजूद हमसे लगभग
15 करोड़ किलोमीटर दूर है तथा सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी पर पहुँचने में लगभग 8
मिनट लगते हैं।
सौरमंडल के सभी आठ ग्रह
एक निश्चित पथ पर सूर्य का चक्कर लगाते हैं। ये रास्ते दीर्घवृत्ताकार में फैले
हुए हैंये कक्षा कहलाते हैं।
शुक्र को पृथ्वी का
जुड़वाँ ग्रह मानते हैंक्योंकि
इसका आकार एवं आकृति लगभग पृथ्वी के ही समान हैं।
पृथ्वी के सबसे निकटतम
ग्रह शुक्र है। पृथ्वी से शुक्र की दूरी 41.4 मिलियन किमी. है। पृथ्वी से मंगल
ग्रह की दूरी = 78.3 मिलियन किमी. है।
हमारे सौरमंडल में ग्रहों
में बृहस्पति सबसे बड़ा है तथा बुध सबसे छोटा है।
शुक्र और यूरेनस की
परिक्रमण की दिशा अन्य ग्रहों से विपरीत होती है। शुक्र और यूरेनस घड़ी की सूई की
दिशा में (Clockwise)घूमते
हैं जबकि अन्य ग्रह घड़ी की सूई के विपरीत दिशा (Anti Clockwise)में
घूमते हैं।
हमारे सौरमंडल में बुध एवं
शुक्र के पास कोई चन्द्रमा (प्राकृतिक उपग्रह) नहीं है।
शनि के चंद्रमा
की संख्या = 62
बृहस्पति के चंद्रमा की
संख्या = 67
मंगल के चंद्रमा की
संख्या = 2
यूरेनस के चंद्रमा की
संख्या = 27
उपग्रह को अंग्रेज़ी में
सैटेलाइट कहते हैं,जिसका
अर्थ होता है साथी या सहचर। अपने नाम को सार्थक करते हुए उपग्रह अपने ग्रहों की
परिक्रमा करते हुए सूर्य के इर्द गिर्द भी चक्कर लगाते हैं।
हमारी पृथ्वी के पास केवल
एकउपग्रह हैचंद्रमा।
इसका व्यास, पृथ्वी
के व्यास का केवल एक चौथाई (1/4)है।
यह इतना बड़ा इसलिये प्रतीत होता है क्योंकि यह हमारे ग्रह से अन्य खगोलीय पिंडों
की अपेक्षा नजदीक है।
चंद्रमा पृथ्वी का एक
चक्कर लगभग 27 दिनों में पूरा करता है। लगभग इतने ही समय में यह अपने अक्ष पर एक
चक्कर भी पूरा करता है। अतः चंद्रमा के द्वारा पृथ्वी का एक चक्कर पूरा करने में
लगने वाला समय अपने अक्ष पर एक चक्कर पूरा करने में लगने वाले समय के बराबर ही
होता है। इसके परिणामस्वरूप पृथ्वी से हमें चंद्रमा का केवल एक ही भाग दिखाई देता
है।
सूर्य के चारों ओर चक्कर
लगाने वाले पत्थरों के छोटे-छोटे टुकड़ों को उल्का पिंड कहते हैं।
खुले आकाश में एक छोर से
दूसरे छोर तक फैली चौड़ी सफेद पट्टीजो
कि एक चमकदार रास्ते की तरह दिखती है,यह
लाखों तारों का समूह है। यह पट्टी आकाशगंगा है।
हमारा सौरमंडल आकाश गंगा का ही एक
भाग है। प्राचीन भारत में इसकी कल्पना आकाश में प्रकाश की एक बहती नदी से की गई
थी। इस प्रकार इसका नाम आकाश गंगा पड़ा।
लाखों अकाश गंगाएँ मिलकर
ब्रह्मांड का निर्माण करते हैं।
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