पृथ्वी की प्राकृतिक आकृतियों जैसे-पर्वतों, पठारों, मैदानों, नदियों, महासागरों इत्यादि को दर्शाने वाले मानचित्र को भौतिक या उच्चावच
मानचित्र कहा जाता है।
राज्यों, नगरों, शहरों तथा गाँवों और विश्व के विभिन्न
देशों व राज्यों तथा उनकी सीमाओं को दर्शाने वाले मानचित्र को राजनितिक मानचित्र
कहा जाता है।
कुछ मानचित्र हमें विशेष जानकारियाँ प्रदान
करते हैं, जैसे-सड़क मानचित्र, वर्षा मानचित्र, रेलवे मानचित्र, वन तथा उद्योगों आदि के वितरण दर्शाने
वाले मानचित्र इत्यादि। इस प्रकार के मानचित्र को थिमैटिक मानचित्र कहते हैं।
मानचित्र में चार मुख्य दिशाओं- उत्तर, दक्षिण, पूर्व तथा पश्चिम को प्रधान दिग्बिंदु कहा जाता है। बीच की चार
दिशाएँ-उत्तर-पूर्व, दक्षिण-पूर्व, दक्षिण-पश्चिम तथा उत्तर-पश्चिम है। इन
बीच वाली दिशाओं की मदद से किसी भी स्थान की सही स्थिति का पता लगाया जा सकता है।
मानचित्र के तीन घटक होते हैं- दिशा, दूरी और प्रतीक। प्रतीक मानचित्र का
तीसरा प्रमुख घटक है।
प्रतीकों के इस्तेमाल के द्वारा मानचित्र को आसानी से खींचा
जा सकता है तथा इनका अध्ययन करना आसान होता है।
मानचित्रों की एक विश्वव्यापी भाषा होती है।
प्रतीकों के उपयोग के संबंध में एक अंतर्राष्ट्रीय सहमति है। इन्हें रूढ़ प्रतीक
कहा जाता है। जैसे- रेलवे लाइन,पक्की
सड़क,गिरजाघर,कच्ची सड़क इत्यादि।
रेखाचित्र मानचित्र के अंतर्गत कच्चे आरेख को
बिना पैमाने की सहायता से खींचा जाता है जो कि याददाश्त और स्थानीय प्रेक्षण पर
आधारित होता है।
एक छोटे क्षेत्र का बड़े पैमाने पर खींचा गया
रेखाचित्र खाका कहा जाता है।
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