नालंदा महाविहार | नालंदा विश्वविद्यालय
नालंदा महाविहार
मगध में नालंदा का महाविहार, शिक्षा का प्राचीनतम एवं महानतम
केन्द्र था। इसकी स्थापना गुप्तवंश के सम्राट कुमार गुप्त (राज्यकाल425-55 ई.पू.)
ने की थी। बाद में गुप्त वंश के अन्य सम्राटों ने यहाँ बहुत से भवन बनवाए और
नालंदा के शिक्षकों और विद्यार्थियों के खर्चें के लिए बहुत सी संपत्ति लगा दी।
वर्तमान में बिहार राज्य के पटना से लगभग 85-90 किमी दक्षिण पूर्व में नालंदा
विश्वविद्यालय के भग्नावशेष हैं।
नालंदा से संबंधित महत्वपूर्ण बातें
- प्रसिद्ध चीनी यात्री हेनसांग द्वारा नालंदा के बारे में लिखे विवरण से ज्ञात होता है कि यहाँ आचार्यों और विद्यार्थियों की संख्या लगभग 10 हजार थी।
- महाविहार में शिक्षा के लिए प्रवेश पाने वालो विद्यार्थी जहाँ बौद्ध धर्म के विशाल साहित्य का अध्ययन करते थे, वहाँ साथ ही शब्द विद्या, चिकित्सा विज्ञान, धातु विज्ञान, सांख्यशास्त्र, तंत्र आदि की पढ़ाई की भी वहाँ व्यवस्था थी।
- पॉचवीं और छठी शताब्दी में बुद्ध और महावीर दोनों नालंदा पधारे।
- यह बुद्ध के प्रसिद्ध अनुयायी सारिपुत्र के जन्म और निर्वाण का स्थान भी था।
- शुन्यता का सिद्धांत देने वाले नागार्जुन, श्वेनत्सांग के शिक्षक धर्मपाल, चंद्रकीर्ति, शीलभद्र तर्कशास्त्री, धर्मकीर्ति, बहुष्टि लॉजिक के संस्थापक दिड्नाद, जिन मित्र शांतरक्षित, पदम संभव आदि प्रसिद्ध आचार्यों ने नालंदा में आपना अध्ययन एवं अध्यापन किया।
- नालंदा दुनिया के आवासीय विश्वविद्यालयों में सबसे पहला विश्व विद्यालय था।
- इसमें आठ अलग-अलग अहाते और दस मंदिर थे।
- नालंदा का पुस्तकालय बड़ा विशाल था। इसकी तीन विशाल इमारतें थीं जिनके नाम थे- रत्नसागर, रत्नोनिधि और रत्नांरंजक।
- रत्नोनिधि भवन नौ मंजिल ऊँचा था, इसमें धर्मग्रंथों का संग्रह किया गया था।
- 1193 ई. में मामलुक वंश के एक मुस्लिम शासक मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी ने विहार पर आक्रमण किया तो नालंदा के इस प्राचीन महाविहार को तहस-नहस कर दिया।
- वर्ष 2016 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर के रूप में मान्यता प्रदान की है।
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