एस.आर.बोम्मई बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया,1994 मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय
ने प्रस्तावना को संविधान का अभिन्न अंग माना है।
केशवानन्द भारती बनाम केरल राज्य, 1973 मामले में भी सर्वोच्च न्यायालय
नेप्रस्तावना को भारतीय संविधान की मौलिक
संरचना का भाग स्वीकार किया है।
संविधान की आत्मा ‘प्रस्तावना’ को माना जाता है, परन्तु डॉ. अम्बेडकर नेसंविधान की आत्मा ‘प्रस्तावना’ को नहीं, बल्कि ‘संवैधानिक उपचारों के अधिकार’(अनुच्छेद-32) को माना है।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में जिन आदर्शों
एवं उद्देश्यों की रूपरेखा दी गई है,उसकी व्याख्या मूल अधिकारों,राज्य के नीति निदेशक सिद्धान्तों एवं मौलिक कर्त्तव्यों में की गई
है।
संविधान सभा की प्रारूप समिति के सदस्य
के.एम.मुंशी के अनुसार प्रस्तावना‘हमारे सम्प्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य का भविष्यफल/जन्मकुण्डली है।’
राजनीतिशास्त्री अर्नेस्ट बार्कर ने अपनी
पुस्तक प्रिंसिपल्स ऑफ सोशल एण्ड पॉलिटिकल थ्योरी की शुरुआत भारतीय संविधान की
प्रस्तावना से की है।
डॉ.अम्बेडकर द्वारा संविधान सभा में दिये गए
अपने अन्तिम भाषण में स्वतंत्रता, समानता
एवं बंधुत्व शब्द का उल्लेख किया गया है।
डॉ.अम्बेडकर को भारतीय संविधान के पिता एवं
आधुनिक मनु की उपाधि दी जाती है।
संविधान सभा में संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित एवं आत्मार्पित करने की
तारीख 26 नवम्बर, 1949 ई.(मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी,संवत् दो हज़ार छह विक्रमी) है।
प्रस्तावना में न्याय तीन प्रकार के हैं:
सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय।
स्वतंत्रता पाँच प्रकार की हैः विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म एवं उपासना की स्वतंत्रता।
समानता दो प्रकार की हैः प्रतिष्ठा एवं अवसर की
समानता।
नागरिकता, चुनाव, तदर्थ संसद आदि 26 नवम्बर, 1949 को स्वतः लागू हो गए एवं संविधान का शेष प्रावधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ।
प्रत्येक वर्ष 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाते हैं।
प्रत्येक वर्ष 26 नवम्बर को संविधान दिवस मनाते हैं।
प्रत्येक वर्ष 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं।
डॉ. अम्बेडकर ने संविधान को एक पवित्र दस्तावेज़
कहा है।
भारतीय संविधान के प्रस्तावना में लोकतंत्र का
प्रयोग व्यापक रूप में किया गया है। राजनीतिक स्वतंत्रता के साथ-साथ सामाजिक एवं
आर्थिक स्वतंत्रता को शामिल किया गया है।
जून 1948 में एस.के.धर की अध्यक्षता में ‘भाषायी प्रांत आयोग’का गठन किया गया। आयोग ने अपनी रिपोर्ट
दिसंबर 1948 में पेश की एवं भारत में भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के बदले
प्रशासनिक सुविधा को वरीयता दी।
दिसंबर 1948 में जवाहरलाल नेहरू, वल्लभ भाई पटेल एवं पट्टाभि सीतारमैया
(JVP समिति) को मिलाकर एक अन्य भाषायी
प्रांत समिति का गठन किया गया। समिति ने अप्रैल, 1949 में अपनी रिपोर्ट पेश की एवं भारत में राज्यों के पुनर्गठन के
भाषायी आधार को अस्वीकार कर दिया।
दिसंबर 1953 में फजल अली की अध्यक्षता में तीन
सदस्यीय राज्य पुनर्गठन आयोग (फजल अली आयोग) का गठन किया गया। इसके दो अन्य सदस्य-
के.एम. पणिक्कर एवं एच.एन. कुंजरू थे। इसने अपनी रिपोर्ट 1955 में पेश की एवं कहा
कि भारत में राज्यों का पुनर्गठन भाषायी आधार पर होना चाहिये।
राज्य पुनर्गठन अधिनियम एवं 7वें संविधान
संशोधन अधिनियम, 1956 के तहत 1 नवंबर, 1956 को 14 राज्यों एवं 6 केंद्र-शासित
प्रदेशों का गठन किया गया।
भाषायी आधार पर वर्ष 1953 में आंध्र प्रदेश का
गठन किया गया। तेलुगू भाषायी क्षेत्रों को लेकर मद्रास में एक लम्बा आंदोलन चला।
इस आंदोलन में 56 दिन की भूख हड़ताल के पश्चात् एक कांग्रेसी नेता पोट्टी श्री
रामुलु का निधन हो गया, परिणामस्वरूप आंध्र प्रदेश का गठन हुआ।
भारतीय संविधान में फेडरेशन(संघात्मक)शब्द का
प्रयोग कहीं नहीं किया गया है। भारतीय संविधान में ‘यूनियन ऑफ स्टेट्स’(राज्यों
का संघ)शब्द का प्रयोग किया गया है। हमारा संविधान किसी समझौते का परिणाम नहीं है
जैसा कि अमेरिका का संविधान है। हमारे संविधान में किसी भी राज्य को अलग होने की
स्वतंत्रता नहीं है।
हमारा देश विभाजी राज्यों का अविभाजी संघ है,जबकि अमेरिका अविभाजी राज्यों का
अविभाजी संघ है।
भारतीय संविधान के पहले भाग में संघ एवं उसका
राज्य क्षेत्र है एवं पहले अनुच्छेद में भारत अर्थात् इंडिया,राज्यों का संघ होगा,कहा गया है।
संसद संविधान के अनुच्छेद-2 एवं 3 में दिये गए प्रावधानों में परिवर्तन
के लिये संविधान के अनुसूची-1
एवं 4 में कोई संशोधन या परिवर्तन करता है,तो उसे संविधान के अनुच्छेद-368 के तहत संविधान में संशोधन नहीं माना
जाएगा। संसद संविधान के अनुच्छेद-2 एवं 3 से संबंधित विधेयक साधारण बहुमत एवं
सामान्य विधायी प्रक्रिया के तहत पारित करता है।
नए राज्यों के निर्माण संबंधी विधेयक संसद के
किसी भी सदन में पेश (पुरःस्थापित)करने से पूर्व राष्ट्रपति की सिफारिश आवश्यक है।
नए राज्यों के निर्माण से संबंधित विधेयक संसद
के किसी भी सदन में पेश करने से पूर्व उस राज्य के विधानमंडल को विनिर्दिष्ट करना
आवश्यक है,जिस राज्य के नाम,क्षेत्र एवं सीमा पर प्रभाव पड़ता है।
इसके लिये समय-सीमा निश्चित होती है। राष्ट्रपति, राज्य विधानमंडल के मत को मानने के लिये बाध्य नहीं है।
यदि भारत किसी दूसरे देश को अपना भू-भाग सौंपता
है या किसी राज्य की सीमा समाप्त करता है, तो इसके लिये संविधान के अनुच्छेद-368 के तहत संविधान में संशोधन करना आवश्यक है। जैसा कि 9वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1960 द्वारा भारत ने अपना क्षेत्र
पाकिस्तान को हस्तांतरित किया एवं 100वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2015 द्वारा भारत 111
इनक्लेव (अंतः क्षेत्र) बांग्लादेश को सौंपा गया एवं बांग्लादेश 51 इनक्लेव (अंतः क्षेत्र) भारत को
सौंपा।
भारत एवं अन्य देशों के बीच सीमा निर्धारण
संबंधी विवाद को हल करने के लिये संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता नहीं है,यह कार्य कार्यपालिका द्वारा किया जा
सकता है (उच्चतम न्यायालय,1969)।
वर्ष 1960 में बम्बई पुनर्गठन
अधिनियम, 1960 के तहत महाराष्ट्र एवं गुजरात
राज्य का गठन हुआ।
नागालैण्ड राज्य अधिनियम, 1962 के तहत वर्ष 1963 में नागालैण्ड
राज्य का गठन हुआ।
वर्ष 1966 में पंजाब राज्य से हरियाणा
राज्य का गठन किया गया।
वर्ष 1971 में हिमाचल प्रदेश को
पूर्ण राज्य का दर्ज़ा मिला।
मणिपुर, त्रिपुरा एवं मेघालयः वर्ष 1972 में इन्हें पूर्ण राज्य का दर्ज़ा
मिला।
सिक्किमः 35वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1974 के द्वारा इसे ‘संबद्ध राज्य’ का दर्जा दिया गया एवं 36वें संविधान
संशोधन अधिनियम, 1975 के तहत इसे पूर्ण राज्य का दर्ज़ा
मिला।
मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश एवं गोवाः वर्ष 1987 में इन्हें राज्य का दर्ज़ा मिला।
छत्तीसगढ़, उत्तराखंड एवं झारखंडः सन् 2000 में मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड एवं बिहार
से झारखंड राज्य का गठन किया गया।
तेलंगानाः 2 जून, 2014 को आंध्र प्रदेश से एक नए राज्य तेलंगाना का गठन किया गया।
वर्तमान में भारत में 28 राज्य एवं 9
केंद्र-शासित प्रदेश हैं।
दादरा एवं नागर हवेली 1954 तक पुर्तगाल के अधीन था । 10वें संविधान संशोधन अधिनियम,1961 द्वारा इसे संघ-शासित क्षेत्र में
परिवर्तित कर दिया गया।
पुडुचेरी 1954 तक फ्राँस के अधीन था.1954 में फ्राँस ने इसे भारत को सौंप दिया।
14वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा इसे
संघ-शासित प्रदेश घोषित किया गया।
गोवा,दमन एवं दीव पर पुर्तगालियों का अधिपत्य था। सन् 1961 में भारत ने पुलिस कार्यवाही के द्वारा
इन क्षेत्रों को अधिगृहीत कर लिया। 12वें संविधान संशोधन अधिनियम,1962 द्वारा इन क्षेत्रों को संघ-शासित प्रदेशों में बदल दिया गया। 56वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा दमन
एवं दीव को गोवा से अलग कर दिया गया एवं गोवा को पूर्ण राज्य का दर्ज़ा दे दिया
गया।
अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह को भाग-घ में
रखा गया था। भाग-घ में केवल अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह को ही शामिल किया गया
था। राज्य पुनर्गठन अधिनियम एवं 7वें
संविधान संशोधन, 1956 के द्वारा भाग-क एवं ख के राज्यों के
बीच की दूरी समाप्त कर दी गई। भाग-ग को समाप्त कर दिया गया।
भारत में संसदीय शासन प्रणाली (ब्रिटेन के
समान) को अपनाया गया है। मंत्रिमंडल के सदस्य संसद के सदस्य होते हैं एवं
मंत्रिमंडल के सदस्य सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होते हैं। अतः
संसदीय शासन प्रणाली में सामूहिक उत्तरदायित्व का सिद्धान्त पाया जाता है। इसमें
विधायिका का कार्यपालिका पर नियंत्रण रहता है।
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली अमेरिका से अपनाई गई
है। इस शासन प्रणाली का आधारभूत तत्त्व एकल कार्यपालिका का होना है। इसमें राज्य
एवं सरकार का प्रमुख राष्ट्रपति ही होता है। राष्ट्रपति अपनी मंत्रिपरिषद का चयन
स्वयं अपने विवेक के आधार पर करता है। इस प्रणाली में शक्ति पृथक्करण का सिद्धान्त
पाया जाता है। अर्थात्कार्यपालिका, विधायिका एवं न्यायपालिका का अधिकार
एवं क्षेत्र अलग-अलग होता है। इस प्रणाली में राष्ट्रपति का कार्यकाल निश्चित होता
है औरइससे पहले राष्ट्रपति को नहीं हटाया
जा सकता है।
गणतंत्रात्मक प्रणाली में राज्य का प्रमुख
वंशानुगत नहीं होता है, बल्कि जनता द्वारा प्रत्यक्ष या
अप्रत्यक्ष रूप से चुना जाता है।
ब्रिटेन में राजतंत्र व्यवस्था को अपनाया गया
है। वहाँ राज्य का प्रमुख सम्राट/महारानी होता है, जिसका चयन वंशानुगत विधि से किया जाता है। अतः ब्रिटेन में
गणतंत्रात्मक प्रणाली को नहीं अपनाया गया है।
भारत में राज्य प्रमुख (राष्ट्रपति) का चुनाव
जनता द्वारा अप्रत्यक्ष तरीके से किया जाता है। इसलिये भारत में गणतंत्रात्मक
प्रणाली को अपनाया गया है।
भारत एवं अमेरिका एक लोकतांत्रिक गणतंत्र हैं, जबकि ब्रिटेन लोकतांत्रिक राजतंत्र।
भारत में राजनैतिक सत्ता का प्रमुख स्रोत जनता
है, क्योंकि भारत का संविधान "हम भारत
के लोग.....।" से प्रारंभ होता है। अतः भारत में राजसत्ता जनता में निहित
होती है
संवैधानिक शासन व्यवस्था में सरकार की शक्ति का
स्रोत संविधान होता है। इसमें सीमित शासन व्यवस्था को अपनाया जाता है। व्यक्ति की
स्वतंत्रता के हित में राज्य की सत्ता पर प्रभावकारी प्रतिबंध लगाती है,न कि राज्य की सत्ता के हित में
व्यक्ति की स्वतंत्रता पर। ब्रिटेन एवं अमेरिका में संविधानवाद का उदय हुआ।
भारत में संसदीय प्रणाली के साथ-साथ
गणतंत्रात्मक प्रणाली को भी अपनाया गया है, क्योंकि गणतंत्रात्मक प्रणाली में राज्य प्रमुख (राष्ट्रपति) का
चुनाव जनता द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से किया जाता है। भारत में
राष्ट्रपति का चुनाव जनता द्वारा अप्रत्यक्ष विधि से किया जाता है।
भारतीय शासन प्रणाली में लोकतंत्र के साथ-साथ
गणतंत्रीय प्रणाली को अपनाया गया है, क्योंकि लोकतांत्रिक प्रणाली में जनता को सरकार को चुनने एवं बदलने
का अधिकार होता है। भारत में भी चुनाव के माध्यम से जनता को सरकार चुनने एवं बदलने
का अधिकार है।
एस.आर.बोम्मई बनाम भारत संघ (1994) में सर्वोच्च न्यायालय ने
पंथनिरपेक्षता को संविधान के आधारभूत ढाँचे के रूप में मान्य ठहराया है ।
केशवानन्द भारती बनाम केरल राज्य, 1973
के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने पंथनिरपेक्षता को संविधान का आधारभूत ढाँचा
माना है। संविधान के आधारभूत ढाँचे का विचार केशवानन्द भारती मामले में ही दिया
गया है।
राज्य का अपना कोई धर्म नहीं है। राज्य सभी
धर्मों को समान महत्त्व देता है एवं सभी धर्मों का संरक्षण करता है। भारत का समाज
बहुधर्मवादी है, इसलिये भारत का संविधान सभी धर्मों का
समान आदर/सम्मान करता है।
भारत में पंथनिरपेक्षता की पश्चिमी अवधारणा को
नहीं अपनाया गया है, क्योंकि पंथनिरपेक्षता की पश्चिमी
अवधारणा नकारात्मकहै र्म एवं राजनीति
को पूर्णतः पृथक् मानता है,
जबकि भारत में
पंथनिरपेक्षता की सकारात्मक अवधारणा को स्वीकार किया गया है।
मूल प्रस्तावना/उद्देशिका में पंथनिरपेक्षता की
चर्चा नहीं की गईहै, बल्कि 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 के द्वारा इसे जोड़ा गया है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद-326 में मतदान के अधिकार का उपबंध किया
गया है। लोक सभा एवं राज्य की विधानसभाओं के चुनाव में मतदान करने की न्यूनतम आयु 18 वर्ष है।
61वें संविधान संशोधन अधिनियम,1988 के तहत सन् 1989 में मतदान के अधिकार की न्यूनतम आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई.
ग्राम पंचायत के चुनाव में भी मतदान करने की
न्यूनतम आयु 18 वर्ष निर्धारित की गई है।
प्रस्तावना को भारतीय संविधान का अंग माना गया
है। केशवानन्द भारती बनाम
केरल राज्य, 1973 में व्यवस्था दी कि प्रस्तावना
संविधान का अंग है।
पं. नेहरू द्वारा 13 दिसम्बर, 1946 को संविधान सभा में एक उद्देश्य
प्रस्ताव रखा, जिसे संविधान के द्वारा 22 जनवरी, 1947 को स्वीकार कर लिया गया, जो संविधान कीउद्देशिका
बनी।
उद्देशिका गैर-न्यायिक है अर्थात् इसकी प्रकृति
न्याय योग्य नहीं है। इसे न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।
केशवानन्द भारती मामले में उच्चतम न्यायालय ने
यह निर्णय दिया कि उद्देशिका में संशोधन किया जा सकता है, परन्तु इसमें निहित मूल विशेषताओं में
संशोधन नहीं किया जा सकता। अभी तक प्रस्तावना में केवल एक बार संशोधन हुआ है। 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 के द्वारा‘समाजवादी’ ‘पंथनिरपेक्ष’ एवं ‘अखण्डता’ शब्दको जोड़ा गया है।
सर्वप्रथम अमेरिकी संविधान में प्रस्तावना को
सम्मिलित किया गया था।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुता का आदर्श फ्राँस के
संविधान से लिया गयाहै।
संविधान का अनुच्छेद-2 यह प्रावधान करता है कि संसद विधि
द्वारा नए राज्यों का प्रवेश या स्थापना कर सकेगी।
संविधान का अनुच्छेद-4 यह प्रावधान करता है कि संसद
अनुच्छेद-2 एवं 3 के प्रावधानों में कोई परिवर्तन करती है तो उसे अनुच्छेद-368 के तहत संशोधन नहीं माना जाएगा।
अनुच्छेद-1 में कहा गया है कि भारत, अर्थात् इंडिया, राज्यों
का संघ होगा। इस अनुच्छेद में भारत के राज्य क्षेत्र को तीन श्रेणियों में बाँटा
गया है-
(क) राज्यों के राज्य क्षेत्र
(ख) पहली अनुसूची में शामिल संघ राज्यक्षेत्र
(ग) ऐसे अन्य राज्यक्षेत्र, जो भारत सरकार द्वारा किसी भी समय अर्जित किये जाये।
क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का सबसे छोटा
राज्य गोवा है, न कि सिक्किम।
जनसंख्या की दृष्टि से भारत का सबसे छोटा राज्य
सिक्किम है, न कि गोवा।
अमरावती को आंध्र प्रदेश की राजधानी बनाया गया
है, तेलंगाना की राजधानी
हैदराबाद है।
संविधान के अनुच्छेद-4 में यह प्रावधान किया गया है कि संसद
नए राज्यों के प्रवेश या गठन अथवा नए राज्यों के निर्माण या किसी राज्य की सीमा, क्षेत्र या नाम में परिवर्तन बिना किसी
राज्य की सहमति से कर सकती है। संसद यह परिवर्तन साधारण विधायी प्रक्रिया/साधारण
बहुमत द्वारा करती है। केवल संसद ही इस संबंध में विधेयक बना सकती है।
गोवा और दमन एवं दीव में सन् 1961 से पूर्व पुर्तगालियों का अधिकार था।
भारत ने सन् 1961 में पुलिस कार्यवाही के द्वारा इन
क्षेत्रों को अधिगृहीत कर लिया।
पुडुचेरीः 1954 तक इस पर फ्राँस का अधिकार था। 1954 में फ्राँस ने इसे भारत को सौंप दिया।
सिक्किमः 1947 में ब्रिटिश शासन समाप्त होने के पश्चात् भारत ने इसे रक्षित
क्षेत्र घोषित किया। 1947 तक इस पर चोग्याल का शासन था। 35वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा
सहयुक्त एवं 36वें संशोधन अधिनियम द्वारा पूर्ण राज्य
का दर्ज़ा प्रदान किया गया।
दादर एवं नागर हवेलीः 1954 तक यहाँ पुर्तगालियों का शासन था। भारत
द्वारा 1961 में इसे संघ राज्यक्षेत्र का दर्ज़ा
दिया गया।
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