मुहावरे की परिभाषा उदाहरण सहित | List of Proverbs in Hindi
मुहावरे क्या होते हैं
- मुहावरे भाषा और वाक्य को स्पष्ट और चित्रमय बनाते हैं। मुहावरे किसी न किसी व्यक्ति के अनुभव पर आधारित होते हैं। मुहावरों के शब्दों की अपनी अहमियत होती है और ये ज्यों के त्यों वाक्य में प्रयुक्त होते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो मुहावरों में प्रयुक्त शब्दों को उन्हीं के पर्यायवाची शब्दों से बदल कर प्रयोग किया जाय तो न केवल उसकी खूबसूरती समाप्त हो जाती है बल्कि उनके अर्थ भी बदल जाते हैं। उदहारण के लिए पानी पानी होना की जगह जल जल होना प्रयोग करें तो वाक्य का सौंदर्य और भाव दोनों समाप्त हो जायेगा।
- मुहावरें वास्तव में एक पूर्ण वाक्य न होकर वाक्यांश होते। हैं। ये किसी वाक्य में प्रयुक्त होकर ही वाक्य को रोचक और प्रभावशाली बनाते हैं।
मुहावरों के पर्यावाची
- मुहावरा मूल रूप से अरबी भाषा के शब्द है जिसका अर्थ होता है बातचीत करना या उत्तर देना।
- मुहावरा का समानार्थक शब्द के मामले में अलग अलग विद्वानों की अलग अलग राय है। संस्कृत भाषा में कुछ लोग इसके लिए प्रयुक्तता, वागृति, वाग्धारा या भाषा संप्रदाय प्रयोग करते हैं।
- वी एस आप्टे ने अपने इंग्लिश संस्कृत कोश में इसका अर्थ वाक पद्धति, वाक रीति, वाक् व्यवहार और विशिष्ट स्वरुप लिखा है।
- पराड़कर ने वाक् संप्रदाय को मुहावरे के पर्यावाची के रूप में स्वीकार किया है।
- काका कालेलकर वाक् प्रचार को मुहावरे के लिए रूढ़ि शब्द के रूप में अपनी अनुशंसा की है।
- अंग्रेजी भाषा में इसके लिए इडियम शब्द का प्रयोग होता है।
मुहावरे की परिभाषा
- ऐसे सुगठित शब्द समूह जिनसे लक्षणाजन्य और कभी कभी व्यंजनाजन्य कुछ विशिष्ट अर्थ निकलता है मुहावरा कहलाते हैं। ये शब्द समूह कई बार व्यंग्यात्मक भी हो सकते है। मुहावरे किसी भाषा को जीवंत, रंगीन और सरस बना देती है। इनके प्रयोग से भाषा प्रभावशाली, गतिशील और रोचक बन जाती है।
ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के अनुसार मुहावरे की परिभाषा
- "किसी भाषा की अभिव्यंजना के विशिष्ट रूप को ‘मुहावरा’ कहते हैं। एक अन्य पक्ष है कि विशिष्ट शब्दों विचित्र प्रयोगों एवं प्रयोग-सिद्ध विशिष्ट वाक्यांशों वाक्य-पद्धति को ‘मुहावरा’ कहते हैं।"
लोकोक्ति और मुहावरे में क्या अंतर है
- लोकोक्ति पूरा वाक्य होती है अर्थात लोकोक्तियों में उद्द्येश्य और विधेय दोनों होता है वहीँ मुहावरे वाक्यांश होते हैं यानि इनमे उद्द्येश्य और विधेय नहीं होता।
- लोकोक्तियों या कहावतों का प्रयोग स्वतंत्र रूप में हो सकता है परन्तु मुहावरे चूँकि वाक्यांश होते हैं अतः इनका प्रयोग स्वतंत्र रूप से नहीं हो सकता। इनका प्रयोग वाक्य के अंतर्गत ही हो सकता है।
- लोकोक्तियों का रूपांतरण दूसरी भाषा में हो सकता है किन्तु मुहावरे शब्द शक्ति पर आधारित होने की वजह से दूसरी भाषा में रूपांतरित नहीं हो सकते क्योंकि इससे उनके शब्दों का अर्थ नष्ट हो सकता। है प्रायः "ना " प्रत्यय लगा होता है।
- लोकोक्तियाँ गद्य और पद्य दोनों रूप में प्रयोग हो सकते हैं किन्तु मुहावरे केवल गद्य रूप में प्रयुक्त होते हैं।
- लोकोक्ति लोक में प्रचलित उक्ति होती हैं जो भूतकाल का लोक अनुभव होती हैं जबकि मुहावरा अपने रूढ़ अर्थ के लिए प्रसिद्ध होता हैं।
- इस प्रकार हम देखते हैं लोकोक्तियाँ और मुहावरे दोनों एक दूसरे से अलग अलग होते हुए भी दोनों ही किसी भाषा की निधि होते हैं। लोकोक्ति और मुहावरे भाषाओँ को जीवंत, प्रभावशाली, तीक्ष्ण और स्पष्ट बनाने में अपना खूब योगदान देते हैं।
मुहावरे एवं उनके वाक्यों में प्रयोग
अँगारे बरसना—अत्यधिक गर्मी पड़ना।
जून मास की दोपहरी में अंगारे बरसते
प्रतीत होते हैं।
अंगारों पर पैर रखना-कठिन कार्य करना।
युद्ध के मैदान में हमारे सैनिकों ने
अंगारों पर पैर रखकर विजय प्राप्त की।
अँगारे सिर पर धरना—विपत्ति मोल लेना।
सोच-समझकर काम करना चाहिए। उससे झगड़ा
लेकर व्यर्थ ही अंगारे सिर पर मत धरो।
अँगूठा चूसना-बड़े होकर भी बच्चों की तरह नासमझी की बात करना।
कभी तो समझदारी की बात किया करो, कब तक
अंगूठा चूसते रहोगे?
अँगूठी का नगीना-अत्यधिक सम्मानित व्यक्ति अथवा वस्तु
अकबर के नवरत्नों में बीरबल तो जैसे
अंगूठी का नगीना थे।
अंग-अंग फूले न समाना-अत्यधिक प्रसन्न होना
राम के अभिषेक की बात सुनकर कौशल्या का अंग-अंग फूले नहीं समाया।
अंगद का पैर होना-अति दुष्कर/असम्भव कार्य होना।
यह पहाड़ी कोई अंगद का पैर तो है नहीं, जिसे हटाकर रेल की पटरी न बिछाई जा
सके।
अन्धी सरकार—विवेकहीन शासन
कालाबाजारी खूब फल-फूल रही है, किन्तु अन्धी सरकार उन्हीं का पोषण
करने में लगी है।
अन्धे की लाठी लकड़ी.होना-एकमात्र सहारा होना
निराशा में प्रतीक्षा अन्धे की लाठी है।
अन्धे के आगे रोना-निष्ठुर के आगे अपना दुःखड़ा रोना
जिस व्यक्ति ने पैसों के लिए अपनी
पत्नी को जलाकर मार दिया, उससे सहायता माँगना तो अन्धे के आगे रोना जैसा व्यर्थ है।
अम्बर के तारे गिनना-नींद न आना
तुम्हारे वियोग में मैं रातभर अम्बर के
तारे गिनता रहा।
List of Proverbs in Hindi
- अन्धे के हाथ बटेर लगना-भाग्यवश इच्छित वस्तु की प्राप्ति होना
- अन्धों में काना राजा- अज्ञानी के बीच कम ज्ञानवाले को भी श्रेष्ठ माना जाता है
- अक्ल का अन्धा- मूर्ख
- अक्ल के घोड़े दौड़ाना-हवाई कल्पनाएँ करना
- अक्ल चरने जाना-मति-भ्रम होना, बुद्धि भ्रष्ट हो जाना
- अक्ल पर पत्थर पड़ना-बुद्धि नष्ट होना
- अक्ल के पीछे लाठी लिये फिरना-मूर्खतापूर्ण कार्य करना
- अगर मगर करना-बचने का बहाना ढूँढना
- अटका बनिया देय उधार-जब अपना काम अटका होता है तो मजबूरी में अनचाहा भी करना पड़ता है।
- अधजल गगरी छलकत जाए-अज्ञानी पुरुष ही अपने ज्ञान की शेखी बघारते हैं।
- अन्त न पाना-रहस्य न जान पाना।
- अन्त बिगाड़ना-नीच कार्यों से वृद्धावस्था को कलंकित करना।
- अन्न-जल उठना-मृत्यु के सन्निकट होना।
- अपना उल्लू सीधा करना-अपना काम निकालना।
- अपनी खिचड़ी अलग पकाना – सबसे पृथक् कार्य करना।
- अपना राग अलापना-दूसरों की अनसुनी करके अपने ही स्वार्थ की बात कहना।
- अपने मुँह मियाँ मिट्ठ बनना-अपनी प्रशंसा स्वयं करना।
- अपना-सा मुँह लेकर रह जाना-लज्जित होना।
- अपना घर समझना–संकोच न करना।
- अपने पैरों पर खड़ा होना- स्वावलम्बी होना।
- अपने पाँव में कुल्हाड़ी मारना-अपने अहित का काम स्वयं करना।
- आकाश-पाताल एक करना-अत्यधिक प्रयत्न अथवा परिश्रम करना।
- आँख चुराना-बचना, छिप जाना।
- आँखें फेरना-उपेक्षा करना, कृपा दृष्टि न रखना।
- आँखें बिछाना-आदरपूर्वक किसी का स्वागत करना।
- आँख मिलाना-सामने आना।
- आँखें खुल जाना—वास्तविकता का ज्ञान होना, सीख मिलना।
- आँखें नीची होना-लज्जा से गड़ जाना, लज्जा का अनुभव करना।
- आँखें चार होना/आँखें दो-चार होना-प्रेम होना।
- आँख का तारा-अत्यन्त प्यारा।
- आँखों पर परदा पड़ना-विपत्ति की ओर ध्यान न जाना।
- आँखों में धूल झोंकना-धोखा देना।
- आँखों में सरसों का फूलना-मस्ती होना।
- आँखों का पानी ढलना-निर्लज्ज हो जाना।
- आँख दिखाना—क्रुद्ध होना।
- आँचल-बाँधना-गाँठ बाँधना, याद कर लेना।
- आग-बबूला होना-अत्यधिक क्रोध करना।
- आग में घी डालना-क्रोध अथवा झगड़े को और अधिक भड़का देना।
- आठ-आठ आँसू बहाना-बहुत अधिक रोना।
- आड़े हाथों लेना-शर्मिन्दा करना।
- आधा तीतर आधा बटेर-अधूरा ज्ञान।
- आपे से बाहर होना-सामर्थ्य से अधिक क्रोध प्रकट करना।
- आसमान टूट पड़ना-अचानक घोर विपत्ति आ जाना।
- आसमान से बातें करना-बहुत बढ़-चढ़कर बोलना।
- आसमान पर दिमाग चढ़ना-अत्यधिक घमण्ड होना।
- आसमान पर थूकना-सच्चरित्र व्यक्ति पर कलंक लगाने का प्रयास करना।
- आस्तीन का साँप-कपटी मित्र।
- इज्जत मिट्टी में मिलाना-मान-मर्यादा नष्ट करना।
- इधर की उधर लगाना-चुगली करना।
- ईंट से ईंट बजाना-हिंसा का करारा जवाब देना, खुलकर लड़ाई करना।
- ईमान बेचना-विश्वास समाप्त करना।
- ईद का चाँद होना-कभी-कभी दर्शन देना।
- उँगली उठाना—दोष दिखाना।
- उँगली पकड़ते-पकड़ते पहुँचा पकड़ना-थोड़ा प्राप्त हो जाने पर अधिक पर अधिकार जमाना।
- उँगली पर नचाना-संकेत पर कार्य कराना।
- उड़ती चिड़िया पहचानना-दूर से भाँप लेना।
- उड़ती चिड़िया के पंख गिनना-कार्य-व्यापार को देखकर व्यक्तित्व को जान लेना।
- ऊँची दुकान फीके पकवान-प्रसिद्ध स्थान की निकृष्ट वस्तु होना।
- ऊँट के मुँह में जीरा-बहुत कम मात्रा में कोई वस्तु देना।
- उल्टी गंगा बहाना—परम्परा के विपरीत काम करना।
- उल्टी माला फेरना—किसी के अमंगल की कामना करना, लोक विश्वास अथवा परम्परा के विपरीत कार्य करना।
- उल्लू सीधा करना किसी को बेवकूफ बनाकर काम निकालना।
- एक आँख से देखना-सबके साथ समानता का व्यवहार करना, पक्षपातरहित होना।
- एक अनार सौ बीमार-एक वस्तु के लिए बहुत-से व्यक्तियों द्वारा प्रयत्न करना।
- एक और एक ग्यारह होना-एकता में शक्ति होना।
- एक हाथ से ताली नहीं बजती-झगड़ा एक ओर से नहीं होता।
- एड़ी-चोटी का पसीना एक करना-अत्यधिक परिश्रम करना।
- ऐसी-तैसी करना-अपमानित करना/काम खराब करना।
- ओखली में सिर देना-जान-बूझकर अपने को मुसीबत में डालना।
- कंगाली में आटा गीला होना–विपत्ति में और विपत्ति आना।
- कन्धे से कन्धा मिलाना–सहयोग देना।
- कच्चा चिट्ठा खोलना—गुप्त भेद खोलना।
- कमर टूटना–हिम्मत पस्त होना।
- कलाम तोड़ना–अत्यन्त अनूठा, मार्मिक या हृदयस्पर्शी वर्णन करना।
- कलेजा छलनी होना-कड़ी बात से जी दुःखना।
- कलेजा थामना-दु:ख सहने के लिए हृदय को कड़ा करना।
- कलेजा धक-धक करना-भयभीत होना।
- कलेजा निकालकर रख देना-सर्वस्व दे देना।
- कलेजा मुँह को आना-अत्यधिक व्याकुल होना।
- कलेजे पर पत्थर रखना-धैर्य धारण करना।
- कसाई के खूटे से बाँधना-निर्दयी व्यक्ति को सौंपना।
- काँटों पर लोटना-ईर्ष्या से जलना, बेचैन होना।
- कागज काला करना-व्यर्थ ही कुछ लिखना।
- कागजी घोड़े दौड़ाना-कोरी कागजी कार्यवाही करना।
- काठ का उल्लू होना-मूर्ख होना।
- कान काटना-मात देना, बढ़कर होना।
- कान का कच्चा होना—बिना सोचे-विचारे दूसरों की बातों पर विश्वास करना।
- कान खड़े होना-सचेत होना।
- कान खाना-निरन्तर बातें करके परेशान करना।
- कान पर जूं न रेंगना-~-बार-बार कहने पर भी प्रभाव न होना।
- कान भरना-चुगली करना।
- काया पलट देना-स्वरूप में आमूल परिवर्तन कर देना।
- काला अक्षर भैंस बराबर—बिल्कुल अनपढ़।
- कीचड़ उछालना-लांछन लगाना।
- कुएँ में भाँग पड़ना-सम्पूर्ण समूह परिवार. का दूषित प्रवृत्ति का होना।
- कुएँ में बाँस डालना-बहुत तलाश करना।
- कुत्ते की मौत मरना-बुरी तरह मरना।
- कूप-मण्डूक होना-संकुचित विचारवाला होना।
- कोयले की दलाली में हाथ काले-कुसंगति से कलंक अवश्य लगता है।
- कोल्हू का बैल-अत्यन्त परिश्रमी।
- खटाई में डालना-उलझन पैदा करना।
- खरी-खोटी सुनाना-फटकारना।
- खरी मजूरी चोखा काम–अच्छी मजदूरी लेनेवाले से अच्छे काम की ही अपेक्षा की जाती है।
- खाक छानना-भटकना।
- खाक में मिलाना-नष्ट करना।
- खून का प्यासा होना-जानी दुश्मन होना।
- खून सूख जाना—भयभीत होना।
- खून सफेद होना—उत्साह का समाप्त हो जाना, बहुत डर जाना।
- खून-पसीना एक करना-कठोर परिश्रम करना।
- खेल खिलाना-प्रतिपक्षी को समय देना।
- खेत रहना-लड़ाई में मारा जाना।
- गड़े मुर्दे उखाड़ना-बहुत पुरानी बात दोहराना।
- गागर में सागर भरना-थोड़े शब्दों में अधिक बात कहना।
- गाल बजाना-डींग मारना।
- गुड़-गोबर करना—काम बिगाड़ना।
- गूलर का फूल होना-अलभ्य वस्तु होना।
- घड़ों पानी पड़ना-दूसरों के सामने हीन सिद्ध होने पर अत्यन्त लज्जित होना।
- घर का दीपक-घर की शोभा और कुल की कीर्ति को बढ़ानेवाला।
- घर की खेती सहज में मिलनेवाला पदार्थ।
- घर फूंक तमाशा देखना-क्षणिक आनन्द के लिए बहुत अधिक खर्च करना।
- घाट-घाट का पानी पीना–अनेक स्थलों का अच्छा-बुरा अनुभव प्राप्त करना/चालाक होना।
- घाव पर नमक छिड़कना-दु:खी व्यक्ति के हृदय को और दुःख पहुँचाना।
- घाव हरा होना-भूले दुःख की याद आना।
- घी के दीये जलाना-खुशी मनाना।
- घोड़े बेचकर सोना निश्चिन्त होना।
- चम्पत होना-भाग जाना।
- चाँद पर थूकना-निर्दोष को दोष देना।
- चूना लगाना-हानि पहुँचाना।
- चाँदी काटना- अधिक लाभ प्राप्त करना।
- चिकना घड़ा होना-निर्लज्ज होना।
- चिकनी-चुपड़ी बातें करना-चालबाजी से भरी मीठी बातें करना।
- चुल्लूभर पानी में डूब मरना-अपने गलत काम के लिए लज्जा का अनुभव करना।
- चेहरे पर हवाइयाँ उड़ना-घबराहट आदि के कारण चेहरे का रंग उड़ जाना।
- चोर की दाढ़ी में तिनका वास्तविक अपराधी का बिना पूछे बोल उठना।
- चोली-दामन का साथ होना-घनिष्ठ अथवा अटूट सम्बन्ध।
- छक्के छुड़ाना-हिम्मत पस्त कर देना।
- छठी का दूध याद आना-घोर संकट में फँसना।
- छठी का दूध याद कराना-बहुत अधिक कष्ट देना।
- छाती पर मूंग दलना-अत्यन्त कष्ट देना।
- छाती पर पत्थर रखना-दुःख सहने के लिए हृदय कठोर करना।
- छाती/कलेजे पर साँप लोटना-ईर्ष्या से हृदय जल उठना।
- जमीन पर पैर न रखना-बहुत अभिमान करना।
- जहर उगलना-कठोर, जली-कटी, लगनेवाली बात कहना।
- जली-कटी कहना-व्यंग्यपूर्ण बात करना।
- जहाज का पंछी होना—ऐसी मजबूरी होना, जिससे वही आश्रय लेने के लिए बाध्य होना पड़े।
- जी-जान लड़ाना-बहुत परिश्रम करना।
- जीती मक्खी निगलना-अहित की बात स्वीकार करना।
- जोड़-तोड़ करना–दाँव-पेंचयुक्त उपाय करना।
- झख मारना-व्यर्थ समय गँवाना/विवश होना।
- टस से मस न होना—विचलित न होना।
- टका-सा जवाब देना-साफ इनकार करना।
- टपक पड़ना-सहसा बिना बुलाए आ पहुँचना।।
- टाँग अड़ाना-दखल देना।
- टाट उलटना-दिवालिया होने की सूचना देना।
- टेढ़ी खीर-कठिन कार्य।
- टोपी उछालना-इज्जत से खिलवाड़ करना।
- ठकुरसुहाती करना/कहना-चापलूसी करना।
- ठगा-सा रह जाना—चकित रह जाना।
- ठिकाने लगाना-मार डालना।
- ठोकर खाना-असावधानी के कारण नुकसान उठाना।
- डूबते को तिनके का सहारा-संकट में छोटी वस्तु से भी सहायता मिलना।
- ढाई ईंट की मस्जिद अलग बनाना-सार्वजनिक मत के विरुद्ध कार्य करना।
- ढिंढोरा पीटना-बात का खुलेआम प्रचार करना।
- ढोल की पोल/ढोल के भीतर पोल—बाहरी दिखावे के पीछे छिपा खोखलापन।
- तकदीर फूट जाना—भाग्यहीन होना।
- तलवे चाटना-खुशामद करना। रमेश में तनिक भी स्वाभिमान नहीं है।
- तिल का ताड़ करना/बनाना-छोटी-सी बात को बड़ी बनाना।
- तीन-तेरह करना-गायब करना, तितर-बितर करना।
- तीन-पाँच करना-बहाना बनाना, इधर-उधर की बात करना।
- तोते के समान रहना-बात के सार को समझे बिना उसे रट लेना।
- थाली का बैंगन होना-पक्ष बदलते रहना।
- थूककर चाटना-त्यक्त वस्तु को पुनः ग्रहण करना, कही हुई बात पर अमल न करना।
- दंग रह जाना—आश्चर्यचकित होना।
- दाँत खट्टे करना-हरा देना।
- दाँत पीसकर रह जाना-क्रोध रोक लेना।
- दाँतों तले उँगली दबाना-आश्चर्यचकित होना।
- दाने-दाने को तरसना-भूखों मरना।
- दाल न गलना-युक्ति में सफल न होना।
- दाल में काला होना-दोष छिपे होने का सन्देह होना।
- दिल बाग-बाग होना अत्यधिक प्रसन्न होना।
- दिल भर आना-दुःखी होना।
- दूध का दूध पानी का पानी-सही और उचित न्याय।।
- दूध की नदियाँ बहाना-दूध का जरूरत से अधिक उत्पादन करना/धन-धान्य से परिपूर्ण होना।
- दूध की मक्खी की तरह निकाल देना-अवांछित, अनुपयोगी व्यक्ति को व्यवस्था से अलग करना।
- दुम दबाकर चल देना-डरकर हट जाना।
- देवता कूच कर जाना—अत्यन्त भयभीत हो जाना, होश गायब हो जाना।
- दो नावों पर पैर रखना-दो अलग-अलग पक्षों से मिलकर रहना।
- दो टूक बात कहना–स्पष्ट कहना। मोहन किसी से भी नहीं डरता।
- दो दिन का मेहमान होना-थोड़े दिन रहना।
- धूप में बाल सफेद नहीं होना-अनुभवी होना।
- नकेल हाथ में होना-नियन्त्रण अपने हाथ में होना।।
- नजर लग जाना—बुरी दृष्टि का प्रभाव पड़ना।
- नजर से गिरना-प्रतिष्ठा खो देना।
- नदी-नाव संयोग-आश्रय-आश्रित का सम्बन्ध।
- नमक-मिर्च लगाना-बात को बढ़ा-चढ़ाकर कहना।
- नमकहरामी करना-कृतघ्नता करना।
- नहले पे दहला चलना-अकाट्य दाँव चलना।
- नाक कटना-बेइज्जती होना।
- नाक कटने से बचाना-बेइज्जत होने से बचाना।
- नाक का बाल-अत्यन्त अन्तरंग, प्रिय।
- नाक नीची कराना–बेइज्जती कराना।
- नाक बचाना-इज्जत बचाना।
- नाक रगड़ना-किसी बात के लिए अत्यधिक खुशामद और क्षमा-याचना करना।
- नाक रख लेना-इज्जत रख लेना।
- नाकों चने चबाना-बहुत तंग करना।
- नौ-दो-ग्यारह होना—गायब हो जाना।
- पगड़ी उछालना-बेइज्जती करना।
- पत्ता काटना-मामले या पद से हटा देना।
- पत्थर की लकीर-अमिट बात।
- पर्दा डालना-दुर्गुणों को छिपाना।
- पसीना-पसीना होना-पसीने से तर-ब-तर होना।
- पहाड़ टूट पड़ना—मुसीबतें आना।
- पाँचों उँगली घी में होना-आनन्द-ही-आनन्द होना।
- पानी उतर जाना-इज्जत समाप्त हो जाना।
- पानी-पानी होना–शर्मिन्दगी अनुभव होना।
- पानी फेर देना—निराश कर देना।
- पापड़ बेलना–कष्ट झेलना।
- पीठ दिखाना-हारकर भाग जाना।
- पेट में दाढ़ी होना—कम अवस्था में ही अधिक बुद्धिमान्/चतुर-चालाक होना।
- पौ बारह होना-खूब लाभ प्राप्त होना।
- प्यासा ही कुएँ के पास जाता है—जरूरतमन्द ही अपनी जरूरत की वस्तु के स्रोत को ढूँढता हुआ उस तक पहुँचता है।
- प्राण हथेली पर रखना-मृत्यु के लिए तैयार रहना।
- फुलझड़ी छोड़ना-हँसी की बात कहना।
- फूटी आँखों न देखना-ईर्ष्या रखना।
- फूला न समाना-अत्यधिक प्रसन्न होना।
- बगुलाभगत होना–साधु के वेश में ठग, पाखण्डी।
- बगलें झाँकना-निरुत्तर होना।
- बाँछे खिल जाना—प्रसन्नता से भर उठना।।
- बाल की खाल निकालना–बारीकी से जाँच-पड़ताल करना।
- बाल-बाँका न होना-कुछ भी हानि न पहुँचना।
- बालू की दीवार-दुर्बल आधार।
- बिजली गिरना-घोर विपत्ति आना।
- बीड़ा उठाना-कोई जोखिम भरा काम करने की जिम्मेदारी लेना।
- बे-पर की उड़ाना-झूठी बात फैलाना।
- बे-सिर-पैर की बात करना—निरर्थक बात करना।
- बोटी-बोटी फड़कना-जोश आना।
- भण्डा फूटना-भेद खुल जाना, रहस्य प्रकट हो जाना।
- भीगी बिल्ली बनना-भय या स्वार्थवश अति नम्र होना।
- मक्खन लगाना-चापलूसी करना।
- मक्खियाँ मारना-बेकार बैठे रहना।
- मन के मोदक खाना-काल्पनिक बातों से प्रसन्न होना।
- मन खट्टा हो जाना–मन घृणा से भर जाना।
- मन मारकर बैठना-विवशता के कारण निराश होना।
- मन्त्र फॅकना-सफल युक्ति का प्रयोग करना।
- मिट्टी के मोल बिकना-अत्यन्त कम मूल्य पर बिकना।
- मिट्टी में मिलाना–पूरी तरह नष्ट कर देना।
- मुँह पर कालिख लगना-कलंक लगना।
- मुँह की खाना-परास्त होना, अपमानित होना।
- मुँह में पानी भर आना-जी ललचाना।
- मुट्ठी गर्म करना-रिश्वत देना।
- मँखें नीची हो जाना-अपमानित होना।
- मूंछों पर ताव देना-शक्ति पर घमण्ड करना।
- मैदान मारना-सफलता/जीत प्राप्त करना।
- रंग उतरना-रौनक खत्म होना।
- रंग जमाना-धाक जमाना।
- रंग में भंग पड़ना-आनन्द में विघ्न होना।
- राई से पर्वत करना-छोटी बात को बहुत बढ़ा देना।
- रास्ते का काँटा बनना-मार्ग में बाधा डालना।
- रोंगटे खड़े होना-भयभीत होना, हर्ष/आश्चर्य से पुलकित होना।
- लकीर का फकीर होना-पुरानी नीति पर चलना।
- लाल-पीला होना क्रोधित होना।
- लुटिया डुबोना-प्रतिष्ठा नष्ट करना, काम बिगाड़ देना, कलंक लगाना।
- लोहा लोहे को काटता है-कठोर बनकर ही कठोरता का समाधान किया जा सकता है।
- लोहा लेना-साहसपूर्वक सामना करना।
- लोहे के चने चबाना-अत्यधिक कठिन काम करना।
- श्रीगणेश करना-कार्य आरम्भ करना।
- सफेद झूठ-बिल्कुल झूठ।
- सिर उठाना–विरोध में खड़े होना, बगावत करना।
- सिर खाना-परेशान करना।
- सिर खुजलाना-सोच में पड़ जाना, अनिर्णय की स्थिति में होना।
- सितारा चमकना-उन्नति पर होना।।
- सिर पर सवार होना-कड़ाई से निगरानी करना।
- सिर माथे पर चढ़ाना/लेना-सादर स्वीकार करना।
- सीधी उँगली से घी नहीं निकलता-बेशर्म लोगों से काम कराने के लिए कठोर टेढ़ा. होना ही पड़ता है।
- सीधे मुँह बात न करना-अकड़कर बोलना।
- सौ बात की एक बात-सार तत्त्व।
- साँप-छछंदर की गति होना-दुविधा में पड़ना।
- हथियार डाल देना-हिम्मत हार जाना, समर्पण कर देना।
- हवाई किले बनाना/हवा में किले बनाना-काल्पनिक योजनाएँ बनाना।
- हवा से बातें करना-बहुत तेज गति से दौड़ना।
- हाथ मलना-अपनी विवशता व्यक्त करना।
- हाँ में हाँ मिलाना-चापलूसी करना।
- हाथ के तोते उड़ना-अचानक किसी अनिष्ट के कारण स्तब्ध रह जाना।
- थ पर हाथ रखकर बैठना-निष्प्रयत्न निष्क्रिय. होना।
- हाथ-पाँव मारना-प्रयत्न करना।
- हाथ-पाँव फूलना-भय से घबरा जाना।
- हाथ पीले करना-विवाह करना।
- हाथ को हाथ नहीं सूझना-बहुत अँधेरा होना।
- हाथ मलते रह जाना-पश्चात्ताप होना।
- हिलोरें मारना-तरंगित होना, उत्साहित होना।
- हुक्का भरना–सेवा करना, जी हुजूरी करना।
- अन्त भला सो भला-परिणाम अच्छा रहता है तो सब-कुछ अच्छा कहा जाता है।
- अन्धा क्या चाहे दो आँखें—प्रत्येक व्यक्ति अपनी उपयोगी वस्तु को पाना चाहता है।
- अन्धी पीसे कुत्ता खाय-परिश्रमी के असावधान रहने पर उसके परिश्रम का फल निकम्मों को मिल जाता है।
- अन्धे के आगे रोए अपने नैन खोए-जिसमें सहानुभूति की भावना न हो, उसके सामने दुःख-दर्द की बातें करना व्यर्थ है।
- अन्धों में काना राजा- मूर्खों के समाज में कम ज्ञानवाला भी सम्मानित होता है।
- अक्ल बड़ी या भैंस-शारीरिक शक्ति की अपेक्षा बुद्धि अधिक बड़ी होती है।
- अधजल गगरी छलकत जाय-अधूरे ज्ञानवाला व्यक्ति ही अधिक बोलता डींगें हाँकता. है।
- अपना पैसा खोटा तो परखनेवाले का क्या दोष-अपने अन्दर अवगुण हों तो दूसरे बुरा कहेंगे ही।
- अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग-सबका अपनी-अपनी अलग बात करना।
- अपनी करनी पार उतरनी-अपने बुरे कर्मों का फल भुगतना ही होता है।
- अपने घर पर कुत्ता भी शेर होता है-अपने स्थान पर निर्बल भी अपने को बलवान् प्रकट करता है।
- अपना हाथ जगन्नाथ-अपना कार्य स्वयं करना।
- अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता-अकेला व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता।
- अशर्फियाँ लुटें और कोयलों पर मुहर-मूल्यवान् वस्तुओं की उपेक्षा करके तुच्छ वस्तुओं की चिन्ता करना।
- आँख के अन्धे गाँठ के पूरे—मूर्ख और हठी।
- आँखों के अन्धे, नाम नयनसुख-गुणों के विपरीत नाम होना।।
- आई मौज फकीर की दिया झोपड़ा फूंक-वह व्यक्ति, जो किसी भी वस्तु से मोह नहीं करता है।
- आगे कुआँ पीछे खाई—विपत्ति से बचाव का कोई मार्ग न होना।
- आगे नाथ न पीछे पगहा-कोई भी जिम्मेदारी न होना।
- आटे के साथ घुन भी पिसता है-अपराधी के साथ निरपराधी भी दण्ड प्राप्त करता है।
- आधी तज सारी को धाए, आधी मिले न सारी पाए-लालच में सब-कुछ समाप्त हो जाता है।
- आप भला सो जग भला-अपनी नीयत ठीक होने पर सारा संसार ठीक लगता है।
- आम के आम गुठलियों के दाम-दुहरा लाभ उठाना।
- आये थे हरि भजन को ओटन लगे कपास-किसी महान कार्य को करने का लक्ष्य बनाकर भी निम्न स्तर के काम में लग जाना।
- आसमान से गिरा खजूर पर अटका-एक विपत्ति से छूटकर दूसरी में उलझ जाना।
- उठी पैंठ आठवें दिन लगती है—एक बार व्यवस्था भंग होने पर उसे पुन: कायम करने में समय लगता है।
- उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई-निर्लज्ज बन जाने पर किसी की चिन्ता न करना।
- उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे-अपना दोष स्वीकार न करके उल्टे पूछनेवाले पर आरोप लगाना।
- ऊधो का लेना न माधो का देना–स्पष्ट व्यवहार करना।
- एक और एक ग्यारह होना—एकता में शक्ति होती है।
- एक चुप सौ को हराए-चुप रहनेवाला अच्छा होता है।
- एक तन्दुरुस्ती हजार नियामत-स्वास्थ्य का अच्छा रहना सभी सम्पत्तियों से श्रेष्ठ होता है।
- एक तो करेला, दूसरे नीम चढ़ा-अवगुणी में और अवगुणों का आ जाना।
- एक तो चोरी दूसरी सीनाजोरी-गलती करने पर भी उसे स्वीकार न करके विवाद करना।
- एक थैली के चट्टे-बट्टे-सबका एक-सा होना।
- एक पन्थ दो काज-एक ही उपाय से दो कार्यों का करना।
- एक हाथ से ताली नहीं बजती-झगड़ा एक ओर से नहीं होता।
- एक म्यान में दो तलवारें नहीं समा सकतीं—एक ही स्थान पर दो विचारधाराएँ नहीं रह सकतीं।
- एकै साधे सब सधे, सब साधे सब जाय-प्रभावशाली एक ही व्यक्ति के प्रसन्न कर लेने पर सबको प्रसन्न करने की आवश्यकता नहीं रह जाती
- ओखली में सिर दिया तो मूसलों का क्या डर–कठिन कार्य में उलझकर विपत्तियों से घबराना बेकार है।
- ओछे की प्रीत बालू की भीत-नीच व्यक्ति का स्नेह रेत की दीवार की तरह अस्थायी क्षणभंगुर. होता है।
- कभी गाड़ी नाव पर, कभी नाव गाड़ी पर- संयोगवश कभी कोई किसी के काम आता है तो कभी कोई दूसरे के।
- कभी घी घना, कभी मुट्ठीभर चना, कभी वह भी मना-जो कुछ मिले, उसी से सन्तुष्ट रहना चाहिए।
- करघा छोड़ तमाशा जाय, नाहक चोट जुलाहा खाय-अपना काम छोड़कर व्यर्थ के झगड़ों में फँसना हानिकर होता है।
- कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगू तेली-दो असमान स्तर की वस्तुओं का मेल नहीं होता।
- कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा; भानुमती ने कुनबा जोड़ा-इधर-उधर से उल्टे-सीधे प्रमाण एकत्र कर अपनी बात सिद्ध करने का प्रयत्न करना।
- गज की नाव नहीं चलती-बिना किसी ठोस आधार के कोई कार्य नहीं हो सकता।
- कागा चला हंस की चाल-अयोग्य व्यक्ति का योग्य व्यक्ति जैसा बनने का प्रयत्न करना।
- काठ की हाँड़ी केवल एक बार चढ़ती है-कपटपूर्ण व्यवहार बार-बार सफल नहीं होता।
- का बरसा जब कृषि सुखाने-उचित अवसर निकल जाने पर प्रयत्न करने का कोई लाभ नहीं होता।
- को नृप होउ हमहिं का हानी—राजा चाहे कोई भी हो, प्रजा की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होता। प्रजा, प्रजा ही रहती है।
- खग जाने खग ही की भाषा–एकसमान वातावरण में रहनेवाले अथवा प्रवृत्तिवाले एक-दूसरे की बातों के सार शीघ्र ही समझ लेते हैं।
- खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है—एक का प्रभाव दूसरे पर पड़ता है।
- खोदा पहाड़ निकली चुहिया-अधिक परिश्रम करने पर भी मनोवांछित फल न मिलना।
- गंगा गए गंगादास जमुना गए जमुनादास-देश-काल-वातावरण के अनुसार स्वयं को ढाल लेना।
- गुड़ न दे, गुड़ जैसी बात तो करे–चाहे कुछ न दे, परन्तु वचन तो मीठे बोले।
- गुड़ खाए, गुलगुलों से परहेज-किसी वस्तु से दिखावटी परहेज।
- घर का भेदी लंका ढावै-अपना ही व्यक्ति धोखा देता है।
- घर का जोगी जोगना,आन गाँव का सिद्ध-गुणवान् व्यक्ति की अपने स्थान पर प्रशंसा नहीं होती।
- घर की मुर्गी दाल बराबर-घर की वस्तु का महत्त्व नहीं समझा जाता।
- घर खीर तो बाहर खीर-यदि व्यक्ति अपने घर में सुखी और सन्तुष्ट है तो उसे सब जगह सुख और सन्तुष्टि का अनुभव होता है।
- घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने-झूठी शान दिखाना।
- घी कहाँ गिरा, दाल में व्यक्ति का स्वार्थ के लिए पतित होना।
- घोड़ा घास से यारी करेगा तो खाएगा क्या-संकोचवश पारिश्रमिक न लेना।
- घोड़े को लात, आदमी को बात-घोड़े के लिए लात और सच्चे आदमी के लिए बात का आघात असहनीय होता है।
- चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए-लालची होना।
- चलती का नाम गाड़ी—जिसका नाम चल जाए वही ठीक।
- चादर के बाहर पैर पसारना—हैसियत क्षमता. से अधिक खर्च करना।
- चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात-सुख क्षणिक ही होता है।
- चिड़िया उड़ गई फुरै-अभीष्ट व्यक्ति अथवा वस्तु का प्राप्ति से पूर्व ही गायब हो जाना/मृत्यु हो जाना।
- चिराग तले अँधेरा-अपना दोष स्वयं को दिखाई नहीं देता।
- चोर-चोर मौसेरे भाई-समाजविरोधी कार्य में लगे हुए व्यक्ति समान होते हैं।
- चूहे का जाया बिल ही खोदता है-बच्चे में पैतृक गुण आते ही हैं।
- चोरी का माल मोरी में जाता है—छल की कमाई यों ही समाप्त हो जाती है।
- छछून्दर के सिर पर चमेली का तेल-कुरूप व्यक्ति का अधिक शृंगार करना।
- जल में रहकर मगर से बैर-अधिकारी से शत्रुता करना।
- जहाँ चाह वहाँ राह—इच्छा, शक्ति से ही सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है।
- जहाँ देखी भरी परात, वहीं गंवाई सारी रात-लोभी व्यक्ति वहीं जाता है, जहाँ कुछ मिलने की आशा होती है।
- जाके पाँव व फटी बिबाई, सो क्या जाने पीर पराई—जिसने कभी दुःख न देखा हो, वह दूसरे की पीड़ा दुःख. को नहीं समझ सकता।
- जिसकी लाठी उसकी भैंस-शक्तिशाली की विजय होती है।
- जिस थाली में खाना उसी में छेद करना-कृतघ्न होना।
- जैसे कंता घर रहे वैसे रहे विदेश–स्थान परिवर्तन करने पर भी परिस्थिति में अन्तर न होना।
- जैसा देश वैसा भेष—प्रत्येक स्थान पर वहाँ के निवासियों के अनुसार व्यवहार करना।
- जो गरजते हैं बरसते नहीं-अकर्मण्य लोग ही बढ़-चढ़कर डींग मारते हैं। अथवा कर्मनिष्ठ लोग बातें नहीं बनाते। .
- ढाक के वही तीन पात-कोई निष्कर्ष हल. न निकलना।
- तबेले की बला बन्दर के सिर—एक के अपराध के लिए दूसरे को दण्डित करना।
- तीन लोक से मथुरा न्यारी-सबसे अलग, अत्यन्त महत्त्वपूर्ण।
- तीन में न तेरह में, मृदंग बजावे डेरा में किसी गिनती में न होने पर भी अपने अधिकार का ढिंढोरा पीटना।
- तुम डाल-डाल हम पात-पात-प्रतियोगी से अधिक चतुर होना। अथवा प्रतियोगी की प्रत्येक चाल को विफल करने का उपाय ज्ञात होना।
- तुरत दान महाकल्याण-किसी का देय जितनी जल्दी सम्भव हो, चुका देना चाहिए।
- तू भी रानी मैं भी रानी, कौन भरेगा पानी—सभी अपने को बड़ा समझेंगे तो काम कौन करेगा।
- तेली का तेल जले, मशालची का दिल-व्यय कोई करे, दुःख किसी और को हो।
- तेल देख तेल की धार देख–कार्य को सोच-विचारकर करना और अनुभव प्राप्त करना।
- थोथा चना बाजे घना-कम गुणी व्यक्ति में अहंकार अधिक होता है।
- दान की बछिया के दाँत नहीं देखे जाते-मुफ्त की वस्तु का अच्छा-बुरा नहीं देखा जाता।
- दाल-भात में मूसलचंद-किसी कार्य में व्यर्थ टाँग अड़ाना।
- दिन दूनी रात चौगुनी-गुणात्मक वृद्धि।
- दीवार के भी कान होते हैं रहस्य खुल ही जाता है।
- दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम-दुविधाग्रस्त व्यक्ति को कुछ भी प्राप्त नहीं होता।
- दूर के ढोल सुहावने होते हैं—प्रत्येक वस्तु दूर से अच्छी लगती है।
- धोबी का कुत्ता घर का न घाट का-लालची व्यक्ति कहीं का नहीं रहता/लालची व्यक्ति लाभ से वंचित रह ही जाता है।
- न तीन में, न तेरह में महत्त्वहीन होना, किसी काम का न होना।
- न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी-झगड़े की जड़ काट देना।
- नाच न जाने/आवै आँगन टेढ़ा-काम न आने पर दूसरों को दोष देना।
- नाम बड़े, दर्शन छोटे-प्रसिद्धि के अनुरूप निम्न स्तर होना।
- न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी-न इतने अधिक साधन होंगे और न काम होगा।
- नीम हकीम खतरा-ए-जान-अप्रशिक्षित चिकित्सक रोगी के लिए जानलेवा होते हैं।
- नौ नकद न तेरह उधार-नकद का विक्रय कम होने पर भी उधार के अधिक विक्रय से अच्छा है।
- नौ दिन चले अढ़ाई कोस-धीमी गति से कार्य करना।
- नौ सौ चूहे खाय बिल्ली हज को चली—जीवनभर पाप करने के बाद बुढ़ापे में धर्मात्मा होने का ढोंग करना।
- पढ़े फारसी बेचे तेल, यह देखा कुदरत का खेल-भाग्यवश योग्य व्यक्ति द्वारा तुच्छ कार्य करने के लिए विवश होना।
- बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी-विपत्ति अधिक समय तक नहीं टल सकती।
- बगल में छोरा, नगर में ढिंढोरा-वाँछित वस्तु की प्राप्ति के लिए अपने आस-पास दृष्टि न डालना।
- बड़े मियाँ सो बड़े मियाँ छोटे मियाँ सुभानअल्लाह-छोटे का बड़े से भी अधिक धूर्त होना।
- बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद-मूर्ख व्यक्ति गुणों के महत्त्व को नहीं समझ सकता।
- बाप ने मारी मेंढकी, बेटा तीरंदाज-कुल-परम्परा से निम्न कार्य करते चले आने पर भी महानता का दम्भ भरना।
- बिल्ली के भाग्य से छींका टूटना-अचानक कार्य सिद्ध हो जाना।
- भइ गति साँप छछून्दति केरी-दुविधा की स्थिति।
- भागते भूत की लँगोटी भली-न देनेवाले से जो भी मिल जाए, वही ठीक है।
- भूखे भजन न होय गोपाला-भूखे पेट भक्ति भी नहीं होती।
- भैंस के आगे बीन बजाना-मूर्ख के आगे गुणों का प्रदर्शन करना व्यर्थ होता है।
- मन चंगा तो कठौती में गंगा-मन के शुद्ध होने पर तीर्थ की आवश्यकता नहीं होती।
- मरे को मारे शाहमदार राजा से लेकर धूर्त तक सभी सामर्थ्यवान् कमजोर को ही सताते हैं।
- मान न मान मैं तेरा मेहमान-जबरदस्ती गले पड़ना।
- मुँह में राम बगल में छुरी-कपटपूर्ण व्यवहार।
- मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक-प्रत्येक व्यक्ति अपनी पहुँच के भीतर कार्य करता है।
- यथा नाम तथा गुण-नाम के अनुरूप गुण।
- यथा राजा तथा प्रजा-जैसा स्वामी वैसा सेवक।
- रस्सी जल गई ऐंठ न गई-अहित होने पर भी अकड़ न जाना।
- राम नाम जपना पराया माल अपना-धर्म का आडम्बर करते हुए दूसरों की सम्पत्ति को हड़पना।
- लातों के भूत बातों से नहीं मानते-नीच बिना दण्ड के नहीं मानते।
- लाल गुदड़ी में भी नहीं छिपते—गुणवान् हीन दशा में होने पर भी पहचाना जाता है।
- शौकीन बुढ़िया चटाई का लहँगा-शौक पूरे करते समय अपनी आर्थिक स्थिति की अनदेखी करना।
- साँच को आँच नहीं सत्यपक्ष का कोई भी विपत्ति कुछ नहीं बिगाड़ सकती/सत्य की सदैव विजय होती है।
- साँप निकल गया लकीर पीटते रहे कार्य का अवसर हाथ से निकल जाने पर भी परम्परा का निर्वाह करना।
- साँप भी मरे और लाठी भी न टूटे-काम भी बन जाए और कोई हानि भी न हो।
- सावन हरे न भादों सूखे-सदैव एक-सी स्थिति में रहना।
- सिर मुड़ाते ही ओले पड़ना—कार्य के आरम्भ में ही बाधा उत्पन्न होना।
- सूरज को दीपक दिखाना-सामर्थ्यवान को चुनौती देना; ज्ञानी व्यक्ति को उपदेश देना।
- हंसा थे सो उड़ गए, कागा भए दिवान–सज्जनों के पलायन कर जाने पर सत्ता दुष्टों के हाथ में आ जाती है।
- हमारी बिल्ली हमीं को म्याऊँ-पालक पालनेवाले. के प्रति विद्रोह की भावना रखना।
- हल्दी/हर्र लगे न फिटकरी, रंग चोखा आए-बिना कुछ प्रयत्न किए कार्य अच्छा होना।
- हाथ कंगन को आरसी क्या-प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती।
- हाकिम की अगाड़ी, घोड़े की पिछाड़ी-विपत्ति से बचकर ही निकलना चाहिए।
- हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और-कपटी व्यक्ति कहते कुछ हैं, करते कुछ हैं।
- हाथी के पाँव में सबका पाँव-ओहदेदार व्यक्ति की हाँ में ही सबकी हाँ होती है।
- होनहार बिरवान के होत चीकने पात-प्रतिभाशाली व्यक्ति के लक्षण आरम्भ से ही दिखने लगते हैं।
- हाथी निकल गया, दुम रह गई—सभी मुख्य काम हो जाने पर कोई मामूली-सी अड़चन रह जाना।
- होइहि सोइ जो राम रचि राखा-वही होता है, जो भगवान् ने लिखा होता है।
- अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना - (स्वयं अपनी प्रशंसा करना ) - अच्छे आदमियों को अपने मुहँ मियाँ मिट्ठू बनना शोभा नहीं देता ।
- अक्ल का चरने जाना - (समझ का अभाव होना) - इतना भी समझ नहीं सके ,क्या अक्ल चरने गए है ?
- अपना हाथ जगन्नाथ:- स्वंय के द्वारा किया गया कार्य ही महत्वपूर्ण होता है.
- सौ सुनार की एक लुहार की :- एक महत्वपूर्ण कार्य कई अनर्गल कार्यों से ज्यादा सटीक होता है.
- चर गयी भेड्की, कुटिज गयी मोडी:-शक्तिवान द्वारा किये गए कार्य के लिए निर्दोष को सजा मिलना.
- सौ चूहे खा के बिल्ली चली हज को :- धूर्त व्यक्ति द्वारा धिकावे का किया गया अच्छा कार्य
- सर सलामत तो पगड़ी हजार:- व्यक्ति बाधाओं से मुक्त हो जाये तो अन्य वस्तुओं की परवाह नहीं करनी चाहिए.
- अंत भला सब भला:- यदि कार्य का अंत अच्छा हो जाये तो पूरा कार्य ही सफल हो जाता है.
- अधजल गगरी छलकत जाय:- मुर्ख व्यक्ति ज्यादा चिल्लाता है, जबकि ज्ञानी शांत रहता है.
- ना नों मन तेल होगा ना राधा नाचेगी:- कारण समाप्त हो जाने पर परिणाम स्वतः ही समाप्त हो जायेंगे.
- नांच ना जाने आँगन टेढा:-स्वंय की अकुशलता को दूसरों पर थोपना.
- ओंखली में सर दिया तो मूसलो से क्या डरना:-जब आफत को निमंत्रण दे ही दिया है तो फिर डरने से क्या फायदा.
- घर का भेदी लंका ढाए:- राजदार ही विनाश का कारण बनता है.
- गरजने वाले बरसते नहीं हैं :- शक्तिहीन व्यक्ति निरर्थक चिल्लाता है. वह कुछ कर नहीं सकता है.
- बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद :- मुर्ख एव असक्षम व्यक्ति किसी अच्छी एव मूल्यवान वस्तु का मोल नहीं जान सकता है.
- अपने पैरों पर खड़ा होना - (स्वालंबी होना) - युवकों को अपने पैरों पर खड़े होने पर ही विवाह करना चाहिए
- अक्ल का दुश्मन - (मूर्ख) - राम तुम मेरी बात क्यों नहीं मानते ,लगता है आजकल तुम अक्ल के दुश्मन हो गए हो ।
- अपना उल्लू सीधा करना - (मतलब निकालना) - आजकल के नेता अपना अपना उल्लू सीधा करने के लिए ही लोगों को भड़काते है ।
- आँखे खुलना - (सचेत होना) - ठोकर खाने के बाद ही बहुत से लोगों की आँखे खुलती है
- आँख का तारा - (बहुत प्यारा) - आज्ञाकारी बच्चा माँ -बाप की आँखों का तारा होता है ।
- आँखे दिखाना - (बहुत क्रोध करना) - राम से मैंने सच बातें कह दी , तो वह मुझे आँख दिखाने लगा
- आसमान से बातें करना - (बहुत ऊँचा होना) - आजकल ऐसी ऐसी इमारते बनने लगी है ,जो आसमान से बातें करती है ।
- ईंट से ईंट बजाना - (पूरी तरह से नष्ट करना) - राम चाहता था कि वह अपने शत्रु के घर की ईंट से ईंट बजा दे।
- ईंट का जबाब पत्थर से देना - (जबरदस्त बदला लेना) - भारत अपने दुश्मनों को ईंट का जबाब पत्थर से देगा ।
- ईद का चाँद होना - (बहुत दिनों बाद दिखाई देना) - राम ,तुम तो कभी दिखाई ही नहीं देते ,ऐसा लगता है कि तुम ईद के चाँद हो गए हो
- उड़ती चिड़िया पहचानना - (रहस्य की बात दूर से जान लेना) - वह इतना अनुभवी है कि उसे उड़ती चिड़िया पहचानने में देर नहीं लगती ।
- उन्नीस बीस का अंतर होना - (बहुत कम अंतर होना) - राम और श्याम की पहचान कर पाना बहुत कठिन है ,क्योंकि दोनों में उन्नीस बीस का ही अंतर है ।
- उलटी गंगा बहाना - (अनहोनी हो जाना) - राम किसी से प्रेम से बात कर ले ,तो उलटी गंगा बह जाए ।
- घायल की गति घायल जाने : दुखी व्यक्ति की हालत दुखी ही जानता है
- घी खाया बाप ने सूंघो मेरा हाथ : दूसरों की कीर्ति पर डींग मारने वालों पर उक्ति।
- घोड़ा घास से यारी करे तो खाय क्या : मेहनताना या किसी चीज का दाम मांगने में संकोच नहीं करना चाहिए
- चक्की में कौर डालोगे तो चून पाओगे : पहले कुछ रुपया पैसा खर्च करोगे या पहले कुछ खिलाओगे तभी काम हो सकेगा
- चट मँगनी पट ब्याह : शीघ्रतापूर्वक मंगनी और ब्याह कर देना, जल्दी से अपना काम पूरा कर देने पर उक्ति।
- चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाय : बहुत अधिक कंजूसी करने पर उचित।
- चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात : थोड़े दिनों के लिए सुख तथा आमोद-प्रमोद और फिर दु:ख
- चाह है तो राह भी : जब किसी काम के करने की इच्छा होती है तो उसकी युक्ति भी निकल आती है।
- चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता : बेशर्म आदमी पर किसी बात का असर नहीं होता
- चिकने मुँह सब चूमते हैं : सभी लोग बड़े और धनी आदमियों की हाँ में हाँ मिलाते हैं।
- चित भी मेरी, पट भी मेरी : हर तरह से अपना लाभ चाहने पर उक्ति।
- चिराग तले अँधेरा : जहाँ पर विशेष विचार, न्याय या योग्यता आदि की आशा हो वहाँ पर यदि कुविचार, अन्याय या अयोग्यता पाई जाए।
- बेवकूफ मर गए औलाद छोड़ गए : जब कोई बहुत मूर्खता का काम करता है तब उसके लिए ऐसा कहते हैं
- चूल्हे में जाय : नष्ट हो जाय। उपेक्षा और तिरस्कारसूचक शाप जिसका प्रयोग स्त्रियाँ करती हैं।
- चोर उचक्का चौधरी, कुटनी भई प्रधान : जब नीच और दुष्ट मनुष्यों के हाथ में अधिकार होता है।
- चोर की दाढ़ी में तिनका : यदि किसी मनुष्य में कोई बुराई हो और कोई उसके सामने उस बुराई की निंदा करे, तो वह यह समझेगा कि मेरी ही बुराई कर रहा है, वास्तविक अपराधी जरा-जरा-सी बात पर अपने ऊपर संदेह करके दूसरों से उसका प्रतिवाद करता है
- चोर-चोर मौसेरे भाई : एक व्यवसाय या स्वभाव वालों में जल्द मेल-जोल हो जाता है।
- चोरी और सीनाजोरी : अपराध करना और जबरदस्ती दिखाना, अपराधी का अपने को निरपराध सिद्ध करना और अपराध को दूसरे के सिर मढ़ना।
- चौबे गए छब्बे होने दुबे रह गए : यदि लाभ के लिए कोई काम किया जाय परन्तु उल्टे उसमें हानि हो
- छूछा कोई न पूछा : गरीब आदमी का आदर-सत्कार कोई नहीं करता।
- छोटा मुँह बड़ी बात : छोटे मनुष्य का लम्बी-चौड़ी बातें करना।
- जंगल में मोर नाचा किसने देखा : जब कोई ऐसे स्थान में अपना गुण दिखावे जहाँ कोई उसका समझने वाला न हो
- जने-जने से मत कहो, कार भेद की बात : अपने रोजगार और भेद की बात हर एक व्यक्ति से नहीं कहनी चाहिए।
- जब आया देही का अन्त, जैसा गदहा वैसा सन्त : सज्जन और दुर्जन सभी को मरना पड़ता है।
- जब ओखली में सिर दिया तो मूसलों का क्या डर : जब कष्ट सहने के लिए तैयार हुआ हूँ तब चाहे जितने कष्ट आवें, उनसे क्या डरना।
- जब तक जीना तब तक सीना : जब तक मनुष्य जीवित रहता है तब तक उसे कुछ न कुछ करना ही पड़ता है।
- जबरा मारे और रोने न दे : जो मनुष्य जबरदस्त होता है उसके अत्याचार को चुपचाप सहना होता है।
- जर, जोरू, ज़मीन जोर की, नहीं और की : धन, स्त्री और ज़मीन बलवान् मनुष्य के पास होती है, निर्बल के पास नहीं
- जल की मछली जल ही में भली : जो जहाँ का होता है उसे वहीं अच्छा लगता है।
- थोथा चना बाजे घना : दिखावा बहुत करना परन्तु सार न होना।
- दूर के ढोल सुहावने : किसी वस्तु से जब तक परिचय न हो तब तक ही अच्छी लगती है।
- नदी में रहकर मगरमच्छ से बैर : अपने को आश्रय देने वाले से ही शत्रुता करना।
- बाप बड़ा न भैया सबसे बड़ा रुपैया : रुपये वाला ही ऊँचा समझा जाता है।
- भेड़ जहाँ जायेगी, वहीं मुँडेगी : सीधे-सादे व्यक्ति को सब लोग बिना हिचक ठगते हैं।
- रस्सी जल गई पर बल नहीं गया : बरबाद हो गया, पर घमंड अभी तक नहीं गया।
- अपने बेरों को कोई खट्टा नहीं बताता : अपनी वस्तु को कोई बुरी नहीं बताता।
- अपने मुँह मियाँ मिट्ठू : अपने मुँह अपनी प्रशंसा करना।
- अन्त भले का भला : अच्छे आदमी की अन्त में भलाई होती है।
- अन्धे के हाथ बटेर : अयोग्य व्यक्ति को कोई अच्छी वस्तु मिल जाना
- जिसकी बंदरी वही नचावे और नचावे तो काटन धावे : जिसकी जो काम होता है वही उसे कर सकता है।
- जिसकी बिल्ली उसी से म्याऊँ करे : जब किसी के द्वारा पाला हुआ व्यक्ति उसी से गुर्राता है।
- जिसकी लाठी उसकी भैंस : शक्ति अनधिकारी को भी अधिकारी बना देती है, शक्तिशाली की ही विजय होती है।
- जिसके पास नहीं पैसा, वह भलामानस कैसा : जिसके पास धन होता है उसको लोग भलामानस समझते हैं, निर्धन को लोग भलामानस नहीं समझते
- जिसके राम धनी, उसे कौन कमी : जो भगवान के भरोसे रहता है, उसे किसी चीज की कमी नहीं होती।
- जिसके हाथ डोई (करछी) उसका सब कोई : सब लोग धनवान का साथ देते हैं और उसकी खुशामद करते हैं
- जिसे पिया चाहे वही सुहागिन : जिस पर मालिक की कृपा होती है उसी की उन्नति होती है और उसी का सम्मान होता है।
- जी कहो जी कहलाओ : यदि तुम दूसरों का आदर करोगे, तो लोग तुम्हारा भी आदर करेंगे।
- जीभ और थैली को बंद ही रखना अच्छा है : कम बोलने और कम खर्च करने से बड़ा लाभ होता है।
- जीभ भी जली और स्वाद भी न पाया : यदि किसी को बहुत थोड़ी-सी चीज खाने को दी जाये।
- जीये न मानें पितृ और मुए करें श्राद्ध : कुपात्र पुत्रों के लिए कहते हैं जो अपने पिता के जीवित रहने पर उनकी सेवा-सुश्रुषा नहीं करते, पर मर जाने पर श्राद्ध करते हैं।
- जी ही से जहान है : यदि जीवन है तो सब कुछ है। इसलिए सब तरह से प्राण-रक्षा की चेष्टा करनी चाहिए
- जुत-जुत मरें बैलवा, बैठे खाय तुरंग : जब कोई कठिन परिश्रम करे और उसका आनंद दूसरा उठावे तब कहते हैं, जैसे गरीब आदमी परिश्रम करते हैं और पूँजीपति उससे लाभ उठाते हैं।
- जूँ के डर से गुदड़ी नहीं फेंकी जाती : साधारण कष्ट या हानि के डर से कोई व्यक्ति काम नहीं छोड़ देता।
- जेठ के भरोसे पेट : जब कोई मनुष्य बहुत निर्धन होता है और उसकी स्त्री का पालन-पोषण उसका बड़ा भाई (स्त्री का जेठ) करता है तब कहते हैं।
- जेते जग में मनुज हैं तेते अहैं विचार : संसार में मनुष्यों की प्रकृति-प्रवृत्ति तथा अभिरुचि भिन्न-भिन्न हुआ करती है
- जैसा ऊँट लम्बा, वैसा गधा खवास : जब एक ही प्रकार के दो मूर्खों का साथ हो जाता है।
- जैसा कन भर वैसा मन भर : थोड़ी-सी चीज की जाँच करने से पता चला जाता है कि राशि कैसी है
- जैसा काछ काछे वैसा नाच नाचे : जैसा वेश हो उसी के अनुकूल काम करना चाहिए।
- जैसा तेरा ताना-बाना वैसी मेरी भरनी : जैसा व्यवहार तुम मेरे साथ करोगे, वैसा ही मैं तुम्हारे साथ करूँगा।
- जैसा देश वैसा वेश : जहाँ रहना हो वहीं की रीतियों के अनुसार आचरण करना चाहिए।
- गुड़ खाय गुलगुले से परहेज : कोई बड़ी बुराई करना और छोटी से बचना।
- गुड़ न दे तो गुड़ की-सी बात तो करे : किसी को चाहे कुछ न दे, पर उससे मीठी बात तो करे।
- गुड़ होगा तो मक्खियाँ भी आएँगी : यदि पास में धन होगा तो साथी या खाने वाले भी पास आएँगे।
- गुरु गुड़ ही रहा चेला शक्कर हो गया : जब शिष्य गुरु से बढ़ जाता है तब ऐसा कहते हैं।
- गुरु से कपट मित्र से चोरी या हो निर्धन या हो कोढ़ी : गुरु से कपट नहीं करना चाहिए और मित्र से चोरी नहीं करना चाहिए, जो मनुष्य ऐसा करता है उसकी बड़ी दुर्गति होती है।
- गेहूँ के साथ घुन भी पिसता है : अपराधियों के साथ निरपराध व्यक्ति भी दण्ड पाते हैं।
- गैर का सिर कद्दू बराबर : दूसरे की विपत्ति को कोई नहीं समझता।
- गों निकली, आँख बदली : स्वार्थ सिद्ध हो जाने पर लोगों की आँख बदल जाती हैं, कृतघ्न मनुष्यों के विषय में ऐसा कहा जाता है।
- बगल में छोरा शहर में ढिंढोरा : पास में रहने पर भी किसी वस्तु या व्यक्ति का दूर-दूर ढूँढ़ा जाना।
- गौरी रूठेगी अपना सोहाग लेगी, भाग तो न लेगी : जब कोई आदमी किसी नौकर को छुड़ा देने की धमकी देता है तब नौकर अपनी स्वाधीनता प्रकट करने के लिए ऐसा कहता है।
- ग्वालिन अपने दही को खट्टा नहीं कहती : कोई भी व्यक्ति अपनी चीज को बुरी नहीं कहता।
- घड़ीभर की बेशरमी और दिनभर का आराम : संकोच करने की अपेक्षा साफ-साफ कहना अच्छा होता है।
- घड़ी में तोला घड़ी में माशा : जो जरा-सी बात पर खुश और जरा-सी बात पर नाराज हो जाय ऐसे अस्थिर चित्त व्यक्ति के कहा जाता है।
- घर आई लक्ष्मी को लात नहीं मारते : मिलते हुए धन या वृत्ति का त्याग नहीं करना चाहिए।
- घर आए कुत्ते को भी नहीं निकालते : अपने घर आने पर कोई बुरे आदमी को भी नहीं दुतकारता।
- घर आए नाग न पूजिए, बामी पूजन जाय : किसी निकटस्थ तपस्वी सन्त की पूजा न करके किसी साधारण साधु का आदर-सत्कार करना।
- घर कर सत्तर बला सिर कर : ब्याह करने और घर बनबाने में बहुत-से झंझटों का सामना करना पड़ता है।
- घर का भेदी लंका ढाये : आपसी फूट से सर्वनाश हो जाता है।
- घर की मुर्गी दाल बराबर : घर की वस्तु या व्यक्ति का उचित आदर नहीं होता।
- घर घर मटियारे चूल्हे : सब लोगों में कुछ न कुछ बुराइयाँ होती हैं, सब लोगों को कुछ न कुछ कष्ट होता है।
- घर में नहीं दाने, बुढ़िया चली भुनाने : झूठे दिखावे पर उक्ति।
- घायल की गति घायल जाने : दुखी व्यक्ति की हालत दुखी ही जानता है।
- घी खाया बाप ने सूंघो मेरा हाथ : दूसरों की कीर्ति पर डींग मारने वालों पर उक्ति।
- घोड़ा घास से यारी करे तो खाय क्या : मेहनताना या किसी चीज का दाम मांगने में संकोच नहीं करना चाहिए।
- चक्की में कौर डालोगे तो चून पाओगे : पहले कुछ रुपया पैसा खर्च करोगे या पहले कुछ खिलाओगे तभी काम हो सकेगा।
- चट मँगनी पट ब्याह : शीघ्रतापूर्वक मंगनी और ब्याह कर देना, जल्दी से अपना काम पूरा कर देने पर उक्ति।
- चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाय : बहुत अधिक कंजूसी करने पर उचित।
- चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात : थोड़े दिनों के लिए सुख तथा आमोद-प्रमोद और फिर दु:ख।
- चाह है तो राह भी : जब किसी काम के करने की इच्छा होती है तो उसकी युक्ति भी निकल आती है।
- चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता : बेशर्म आदमी पर किसी बात का असर नहीं होता।
- चिकने मुँह सब चूमते हैं : सभी लोग बड़े और धनी आदमियों की हाँ में हाँ मिलाते हैं।
- चित भी मेरी, पट भी मेरी : हर तरह से अपना लाभ चाहने पर उक्ति।
- चिराग तले अँधेरा : जहाँ पर विशेष विचार, न्याय या योग्यता आदि की आशा हो वहाँ पर यदि कुविचार, अन्याय या अयोग्यता पाई जाए।
- बेवकूफ मर गए औलाद छोड़ गए : जब कोई बहुत मूर्खता का काम करता है तब उसके लिए ऐसा कहते हैं।
- चूल्हे में जाय : नष्ट हो जाय। उपेक्षा और तिरस्कारसूचक शाप जिसका प्रयोग स्त्रियाँ करती हैं।
- चोर उचक्का चौधरी, कुटनी भई प्रधान : जब नीच और दुष्ट मनुष्यों के हाथ में अधिकार होता है।
- चोर की दाढ़ी में तिनका : यदि किसी मनुष्य में कोई बुराई हो और कोई उसके सामने उस बुराई की निंदा करे, तो वह यह समझेगा कि मेरी ही बुराई कर रहा है, वास्तविक अपराधी जरा-जरा-सी बात पर अपने ऊपर संदेह करके दूसरों से उसका प्रतिवाद करता है।
- चोर-चोर मौसेरे भाई : एक व्यवसाय या स्वभाव वालों में जल्द मेल-जोल हो जाता है।
- चोरी और सीनाजोरी : अपराध करना और जबरदस्ती दिखाना, अपराधी का अपने को निरपराध सिद्ध करना और अपराध को दूसरे के सिर मढ़ना।
- चौबे गए छब्बे होने दुबे रह गए : यदि लाभ के लिए कोई काम किया जाय परन्तु उल्टे उसमें हानि हो।
- खेती खसम सेती : खेती या व्यापार में लाभ तभी होता है जब मालिक स्वयं उसकी देखरेख करे.
- खेल खतम, पैसा हजम : सुखपूर्वक काम समाप्त हो जाने पर ऐसा कहते हैं
- खेल खिलाड़ी का, पैसा मदारी का : काम कर्मचारी करते हैं और नाम अफसर का होता है.
- खोदा पहाड़ निकली चुहिया : बहुत परिश्रम करने पर थोड़ा लाभ होना
- खौरही कुतिया मखमली झूल : जब कोई कुरूप मनुष्य बहुत शौक-श्रृंगार करता है या सुन्दर वेश-भूषा धारण करता है, तब इस कहावत का प्रयोग होता है.
- गंजी कबूतरी और महल में डेरा : किसी अयोग्य व्यक्ति के उच्च पद प्राप्त करने पर ऐसा कहते हैं.
- गंजी यार किसके, दम लगाए खिसके : स्वार्थी मनुष्य किसी के साथ नहीं होते, अपना मतलब सिद्ध होते ही वे चल देते हैं.
- गगरी दाना सूत उताना : ओछा आदमी थोड़ा धन पाकर इतराने लगता है.
- गढ़े कुम्हार भरे संसार : कुम्हार घड़ा बनाते हैं, सब लोग उससे पानी भरते हैं। एक आदमी की कृति से अनेक लोग लाभ उठाते हैं.
- गधा मरे कुम्हार का, धोबिन सती होय : जब कोई आदमी किसी ऐसे काम में पड़ता है जिससे उसका कोई संबंध नहीं तब ऐसा कहा जाता है.
- गधे के खिलाये न पुण्य न पाप : कृतघ्न के साथ नेकी करना व्यर्थ है.
- गये थे रोजा छुड़ाने नमाज़ गले पड़ी : यदि कोई व्यक्ति कोई छोटा कष्ट दूर करने की चेष्टा करता है और उससे बड़े कष्ट में फंस जाता है तब कहते हैं.
- गरीब की लुगाई, सबकी भौजाई : गरीब और सीधे आदमी को लोग प्राय: दबाया करते हैं.
- कंगाली में गीला आटा : धन की कमी के समय जब पास से कुछ और चला जाता है.
- गवाह चुस्त मुद्दई सुस्त : जिसका काम हो वह अधिक परवाह न करे, किन्तु दूसरा आदमी अत्यधिक तत्परता दिखावे
- गाँठ में जमा रहे तो खातिर जमा : जिसके पास धन रहता है वह निश्चिंत रहता है.
- गाँव के जोगी जोगना आन गाँव के सिद्ध : अपनी जन्मभूमि में किसी विद्वान या वीर की उतनी प्रतिष्ठा नहीं होती जितनी दूसरे स्थानों में होती है.
- गाय गुण बछड़ा, पिता गुण घोड़, बहुत नहीं तो थोड़ै थोड़ : बच्चों पर माता-पिता का प्रभाव थोड़ा-बहुत अवश्य पड़ता है.
- गाल बजाए हूँ करैं गौरीकन्त निहाल : जो व्यक्ति उदार होते हैं वे सहज में ही प्रसन्न हो जाते हैं.
- गीदड़ की शामत आए तो गाँव की तरफ भागे : जब विपत्ति आने को होती है तब मनुष्य की बुद्धि विपरीत हो जाती है.
- कंगाली में आटा गीला : मुसीबत पर मुसीबत आना.
- कभी घी घना, कभी मुट्ठी चना : जो मिल जाए उसी पर संतुष्ट रहना चाहिए।
- कमजोर की जोरू सबकी सरहज गरीब की जोरू सबकी भाभी: कमजोर आदमी को कोई गौरव नहीं प्रदान करना, सब उसकी स्त्री से हँसी-मजाक करते हैं।
- करे कारिन्दा नाम बरियार का, लड़े सिपाही नाम सरदार का : छोटे लोग काम करते हैं परन्तु नाम उनके सरदार का होता है।
- करनी न करतूत, लड़ने को मजबूत : जो व्यक्ति काम तो कुछ न करे पर लड़ने-झगड़ने में तेज हो।
- खग जाने खग ही की भाषा : जो मनुष्य जिस स्थान या समाज में रहता है उसको उसी जगह या समाज के लोगों की बात समझ में आती है
- खर को गंग न्हवाइए तऊ न छोड़े छार : चाहे कितनी ही चेष्टा की जाय पर नीच की प्रकृति नहीं सुधरती.
- खरादी का काठ काटे ही से कटता है : काम करने ही से समाप्त होता है या ऋण देने से ही चुकता है.
- खरी मजूरी चोखा काम : नगद और अच्छी मजदूरी देने से काम अच्छा होता है.
- खल की दवा पीठ की पूजा : दुष्ट लोग पीटने से ही ठीक रहते हैं.
- खलक का हलक किसने बंद किया है : संसार के लोगों का मुँह कौन बंद कर सकता है?
- खाइए मनभाता, पहनिए जगभाता : अपने को अच्छा लगे वह खाना खाना चाहिए और जो दूसरों को अच्छा लगे वह कपड़ा पहनना चाहिए.
- खाल ओढ़ाए सिंह की, स्यार सिंह नहीं होय : केवल रूप बदलने से गुण नहीं बदलता.
- खाली दिमाग शैतान का घर : जो मनुष्य बेकार होता है उसे तरह-तरह की खुराफातें सूझती हैं
- खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे : लज्जित होकर बहुत क्रोध करना.
- खुदा गंजे को नाखून न दे : अनधिकारी को कोई अधिकार नहीं मिलना चाहिए.
- खूंटे के बल बछड़ा कूदे : किसी अन्य व्यक्ति, मालिक या मित्र के बल पर शेखी बघारना.
- खूब गुजरेगी जब मिल बैठेंगे दीवाने दो : जब एक प्रकृति या रुचि के दो मनुष्य मिल जाते हैं तब उनका समय बड़े आनंद से व्यतीत होता है.
- खूब मिलाई जोड़ी, एक अंधा एक कोढ़ी : दो मूर्खों का साथ, एक ही प्रकार के दो मनुष्यों का साथ.
- खेत खाय गदहा मारा जाय जोलहा : जब अपराध एक व्यक्ति करे और दंड दूसरा पावे.
- एक और एक ग्यारह होते हैं : मेल में बड़ी शक्ति होती है.
- एक कहो न दस सुनो : यदि हम किसी को भला-बुरा न कहेंगे तो दूसरे भी हमें कुछ न कहेंगे.
- एक चुप हजार को हरावे : जो मनुष्य चुप अर्थात शान्त रहता है उससे हजार बोलने वाले हार मान लेते हैं.
- एक तवे की रोटी क्या पतली क्या मोटी : एक कुटुम्ब के मनुष्यों में या एक पदार्थ के कभी भागों में बहुत कम अन्तर होता है.
- एक तो करेला (कडुवा) दूसरे नीम चढ़ा : कटु या कुटिल स्वभाव वाले मनुष्य कुसंगति में पड़कर और बिगड़ जाते हैं.
- एक ही थैले के चट्टे-बट्टे : एक ही प्रकार के लोग.लो और सुनो, सब एक ही थैले के चट्टे-बट्टे हैं।
- एक मछली सारे तालाब को गंदा करती है : यदि किसी घर या समूह में एक व्यक्ति दुष्चरित्र होता है तो सारा घर या समूह बुरा या बदनाम हो जाता है।
- एक लख पूत सवा लख नाती, ता रावण घर दिया न बाती : किसी अत्यंत ऐश्वर्यशाली व्यक्ति के पूर्ण विनाश हो जाने पर इस लोकोक्ति का प्रयोग किया जाता है।
- ऐरा गैरा नत्थू खैरा : मामूली आदमी.कोई ऐरा गैरा नत्थू खैरा महल के अंदर नहीं जा सकता था।
- ऐसे बूढ़े बैल को कौन बाँध भुस देय : बूढ़े और बेकार मनुष्य को कोई भोजन और वस्त्र नहीं देता.
- ओछे की प्रीति, बालू की भीति : बालू की दीवार की भाँति ओछे लोगों का प्रेम अस्थायी होता है।
- ओखली में सिर दिया तो मूसलों का क्य डर : कष्ट सहने पर उतारू होने पर कष्ट का डर नहीं रहता.
- औंधी खोपड़ी उल्टा मत : मूर्ख का विचार उल्टा ही होता है।
- औसर चूकी डोमनी, गावे ताल बेताल : जो मनुष्य अवसर से चूक जाता है, उसका काम बिगड़ जाता है और केवल पश्चाताप उसके हाथ आता है।
- कपड़े फटे गरीबी आई : फटे कपड़े देखने से मालूम होता है कि यह मनुष्य गरीब है।
- कभी नाव गाड़ी पर, कभी गाड़ी नाव पर : समय पर एक-दूसरे की सहायता की आवश्यकता पड़ती है।
- कर ले सो काम, भज ले सो राम : जो कुछ करना हो उसे शीघ्र कर लेना चाहिए, उसमें आलस्य नहीं करना चाहिए।
- करनी खास की, बात लाख की : जब कोई निकम्मा आदमी बढ़-चढ़कर बातें करता है।
- ओस चाटे से प्यास नहीं बुझती : किसी को इतनी थोड़ी चीज़ मिलना कि उसकी तृप्ति न हो।
- और बात खोटी सही दाल रोटी : संसार की सब चीज़ों में भोजन ही मुख्य है।
- तनी सी जान गज भर की जबान : जब कोई लड़का या छोटा आदमी बहुत बढ़-चढ़ कर बातें करता .
- इधर के रहे न उधर के रहे : दोनों तरफ से जाना, दो बातों में से किसी में भी सफल न होना.
- इधर कुआँ, उधर खाई : दो विपत्तियों के बीच में.
- इधर न उधर यह बला किधर : जब कोई न मरे न उसे आराम हो, तब कहते हैं.
- इन तिलों में तेल नहीं निकलता : ऐसे कंजूसों से कुछ प्राप्ति नहीं होती.
- इब्तदाये इश्क है रोता है क्या आगे-आगे देखिए होता है क्या :
- इस हाथ दे, उस हाथ ले : दान से बहुत पुण्य और लाभ होता है
- ईंट की लेनी पत्थर की देनी : कठोर बदला चुकाना, मुँह तोड़ जवाब देना.
- ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया : भगवान की माया विचित्र है
- उत्तम को उत्तम मिले, मिले नीच को नीच : जो आदमी जैसा होता है उसको वैसा ही साथी भी मिल जाता है.
- पर भाई, ऐसा रूप तो न आँखों देखा न कानों सुना. यह तो राजकन्या के योग्य ही है. इसमें उसने अनुचित क्या किया, क्योंकि जैसी सुन्दर वह है ऐसा ही यह भी है.
- उत्तम खेती मध्यम बान, निकृष्ट चाकरी भीख निदान :
- खेती सबसे श्रेष्ठ व्यवसाय है, व्यापार मध्यम है, नौकरी करना निकृष्ट है और भीख माँगना सबसे बुरा है. यह बुद्धिमानों का महानुभूत सिद्धांत है कि 'उत्तम खेती...निदान' पर आज कल कृषिजीवी लोग ही अधिक दरिद्री पाए जाते हैं.
- उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई : जब
इज्जत ही नहीं है तो डर किसका?
- जब लोगों ने मुझे बिरादरी से खारिज कर ही दिया है तो अब मैं खुले आम अंग्रेजी होटल में खाना खाऊँगा.
- उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे : अपना अपराध स्वीकार न करके पूछने वाले को डाँटना, फटकारना या दोषी ठहराना.
- आज एक ग्राहक ने मेज पर से किताब उठा ली. उससे पूछा तो लगा शरीफ बनने और धौंस जमाने कि तुम मुझे चोरी लगाते हो.
- उल्टे बाँस बरेली को : बरेली में बाँस बहुत पैदा होता है. इसी से उसको बाँस बरेली कहते हैं.
- यहाँ से बाँस दूसरी जगह को भेजा जाता है. दूसरे स्थानों से वहाँ बाँस भेजना मूर्खता है. इसलिए इस कहावत का अर्थ है कि स्थिति के विपरीत काम करना, जहाँ जिस वस्तु की आवश्यकता न हो उसे वहाँ ले जाना।
- उसी की जूती उसी का सर : किसी को उसी की युक्ति से बेवकूफ बनाना.
- दो-एक बार धोखा खा के धोखेबाजों की हिकमतें सीख लो और कुछ अपनी ओर से जोड़कर 'उसी की जूती उसी का सिर' कर दिखाओ.
- ऊँची दुकान फीका पकवान : जिसका नाम तो बहुत हो पर गुण कम हों.
- नाम ही नाम है, गुण तो ऐसे-वैसे ही हैं. बस ऊँची दुकान फीका पकवान समझ लो.
- ऊँट घोड़े बहे जाए गधा कहे कितना पानी :जब किसी काम को शक्तिशाली लोग न कर सकें और कोई कमजोर आदमी उसे करना चाहे तब ऐसा कहते हैं.
- ऊँच बिलैया ले गई, हाँ जी, हाँ जी कहना : जब कोई बड़ा आदमी कोई असम्भव बात भी कहे और दूसरा उसकी हामी भरे.
- ऊधो का लेना न माधो का देना : जो अपने काम से काम रखता है, किसी के झगड़े में नहीं पड़ता उसके विषय में उक्ति.
- एक अनार सौ बीमार : एक चीज के बहुत चाहने वाले.
- जितने लोग हैं उनके उतनी तरह के काम हैं और एक बेचारी गाँधी टोपी है जिसे सबको पार लगाना है.
- अन्धों में काना राजा : मूर्ख मण्डली में थोड़ा पढ़ा-लिखा भी विद्वान् और ज्ञानी माना जाता है.
- अक्ल बड़ी या भैंस : शारीरिक बल से बुद्धि बड़ी है.
- अपनी-अपनी ढपली अपना-अपना राग : सबका अलग-अलग रंग-ढंग होना
- अपनी करना पार उतरनी : अपने ही कर्मों का फल मिलता है.
- अब पछताये होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गईं खेत : समय बीत जाने पर पछताने का क्या लाभ
- आँख का अन्धा नाम नैनसुख : नाम अच्छा पर काम कुछ नहीं.
- आगे कुआँ पीछे खाई : सब ओर विपत्ति.
- आ बैल मुझे मार : जान-बूझकर आपत्ति मोल लेना।
- आम खाने हैं या पेड़ गिनने : काम की बात करनी चाहिए, व्यर्थ की बातों से कोई लाभ नहीं
- अँधेरे घर का उजाला : घर का अकेला, लाड़ला और सुन्दर पुत्र.
- ओखली में सिर दिया तो मूसली से क्या डर : जब कठिन काम के लिए कमर कस ली तो कठिनाइयों से क्या डरना.
- अपना उल्लू सीधा करना : अपना स्वार्थ सिद्ध करना.
- उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे : अपराधी अपने अपराध को स्वीकार करता नहीं, उल्टा पूछे वाले को धमकाता है.
- ऊँची दुकान फीका पकवान : सज-धज बहुत, चीज खराब.
- एक पंथ दो काज : आम के आम गुठलियों के दाम. एक कार्य से बहुत से कार्य सिद्ध होना.
- एक मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है : एक बुरा व्यक्ति सारे कुटुम्ब, समाज या साथियों को बुरा बनाता है.
- काठ की हांडी एक बार ही चढ़ती है : छल-कपट से एक बार तो काम बन जाता है, पर सदा नहीं.
- आस पराई जो तके जीवित ही मर जाए : जो दूसरों पर निर्भर रहता है वह जीवित रहते हुए भी मृतप्राय होता है.
Nice 😊
ReplyDeleteबहुत अच्छा
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