नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत | ऊर्जा के स्रोत

 

ऊर्जा के स्रोत

नवकरणीय ऊर्जा संसाधन Renewable Energy Sources

ऊर्जा Energy

शारीरिक अथवा मानसिक रूप से सक्रिय रहने के लिए आवश्यक शक्ति अथवा क्षमता ऊर्जा कहलाती है। विशुद्ध भौतिक विज्ञान की शब्दावली के अनुसार, कार्य करने की क्षमता ऊर्जा कहलाती है।

ऊर्जा प्रदान करने वाले स्त्रोत ऊर्जा संसाधन कहलाते हैं। मानव जीवन की लगभग सभी भौतिक आवश्यकताएं ऊर्जा पर निर्भर हैं।

जिस प्रकार विभिन्न शारीरिक गतिविधियों एवं मानसिक सक्रियता हेतु मनुष्य भोजन के माध्यम  से ऊर्जा प्राप्त करता है, ठीक उसी प्रकार सभी प्रकार के उपकरणों, यंत्रों एवं मरीजों के संचालन हेतु ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

ऊर्जा के संसाधन Energy Resources

वे पदार्थ अथवा स्त्रोत जो ऊर्जा प्रदान करते हैं ऊर्जा संसाधन कहलाते हैं। संसाधनों की सीमितता एवं पुनर्निमाण में लगने वाले समय े आधार पर ऊर्जा संसाधनों को मुख्यतः दो भागों में वर्गीकृत किया जाता है।

  • नवकरणीय ऊर्जा संसाधन Renewable Energy Resources 
  • गैर-नवकरीण ऊर्जा संसाधन Non- Renewable Energy Resources 

ऊर्जा संसाधनों का वर्गीकरण Classification of Energy Resources

नवकरीण ऊर्जा संसाधन Renewable Energy Resources 

  • सौर ऊर्जा
  • पवन ऊर्जा
  • जल विद्यु ऊर्जा
  • महासागरीय ऊर्जा
  • भूतापीय ऊर्जा
  • जैव भार जैव ईंधन
  • हाइड्रोजन ऊर्जा

गैर- नवकरणीय ऊर्जा Non- Renewable Energy Resources

  • कोयला
  • पेट्रोलियम (डीजल, केरोसिन, पेट्रोल आदि)
  • प्राकृतिक गैस
  • शेल गैस
  • नाभिकीय ऊर्जा

नवकरणीय ऊर्जा संसाधन Renewable Energy Resources

ऐसे ऊर्जा संसाधन जो प्रकृति में असीमित मात्रा में विद्यमान हैं तथा जिनका प्रकृति द्वारा स्वतः एवं लगातार पुनर्भरण किया जा सकता है, नवकरणीय ऊर्जा संसाधन कहलाते हैं। उपभोग के कारण कभी भी पूर्ण रूप से खत्म न होने के विशिष्ट गुण के कारण इन्हें अक्षय ऊर्जा स्त्रोत भी कहा जाता है।

नवकरणीय ऊर्जा संसाधनों के उपयोग ने पर्यावरण प्रदूषण को कम किया है, परन्तु बायोमास ऊर्जा का आंतरिक प्रदूषण में प्रमुख योगदान है।

 

सौर ऊर्जा Solar Energy

सूर्य ऊर्जा का प्राथमिक स्त्रोत है। सूर्य का प्रकार एक स्वच्छ एवं कभी न समाप्त होने वाला ऊर्जा स्त्रोत है। मुख्यतः कर्क एवं मकर रेखाओं के मध्य स्थित देषों में सौर ऊर्जा के उपयोग की असीम संभावनाएँ विद्यमान हैं। इस दृष्टि से भारत की भौगोलिक स्थिति अत्याधिक अनुकूल है।

सौर ऊर्जा के लाभ

  • यह लगभग पूरे वर्ष उपलब्ध रहने वाला प्राकृतिक एवं निःशुल्क ऊर्जा संसाधन है, जो असीमित मात्रा में उपलब्ध है।
  • यह गैर प्रदूषणकारी है जो उपयोग के दौरान किसी प्रकार के हानिकारक प्रदूषकों अथवा हरि गृह गैसों का उत्सर्जन नहीं करता है।
  • यह जीवाश्म ईंधनों (पेट्रोलियम) के विपरीत अंतर्राष्ट्रीय राजनति के प्रभाव मूल्यों के उतार-चढ़ाव से मुक्त है।

सौर ऊर्जा की कमियाँ

  • सौर ऊर्जा की उपलब्धता, भौगोलिक अवस्थिति एवं मौसम व ऋतु पर निर्भर करती है । इसलिए यह एक स्थान पर वर्ष के 365 दिन एवं सर्वत्र उपलब्ध नहीं रहती है।
  • वृहद सौर संयत्रों की स्थापना के लिए अधिक प्रारंभिक निवेश एवं अधिक भूमि की आवश्यकता होती है।
  • सौर ऊर्जा  के संग्रहण की तकनीक बहुत अधिक विकसित नहीं हुई हैं।

सौर ऊर्जा के विद्युत निर्माण की विधियाँ

सौर फोटोवोल्टिक विद्युत

इसके अंतर्गत सौर विकिरण को सौर फोटोवोटिक सेलों के द्वारा अवशोषित करके दिष्ट धारा विद्युत का निर्माण किया जाता है, जिसे सीधे प्रयोग किया जा सकता है अथवा बाद में प्रयोग हेतु संग्राहक बैटरियों में संग्रहित किया जा सकता है। वर्तमान में सौर फोटोवोल्टिक सेलों का  प्रयोग घरो, मार्ग प्रकाशन तथा खेतों की सिंचाई हेतु पंप चलाने में किया जा रहा है।

सौर तापीय विद्युत

इसके अंतर्गत विद्युत निर्माण की प्रक्रिया दो चरणों में संपन्न होती है। पहले चरण में सौर ऊर्जा को संग्राहकों में एकत्रित करके उसका उपयोग जल अथवा पिघले हुए नमक को गर्म करने में किया जाता है। परिणामस्वरूप वाष्प का निर्माण होता है। दूसरे चरण में इसी वाष्प से टरबाइन अथवा इंजन को चलाकर विद्युत का निर्माण किया जाता है।


पवन ऊर्जा Wind Energy 

पवन, नवीकरणीय ऊर्जा का प्रमुख स्त्रोत है। इसकी गतिज ऊर्जा को पवन चक्की से जुड़ी टरबाइन द्वारा यांत्रिक ऊर्जा में तथा यांत्रिक ऊर्जा को जनरेटर की सहायता है विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।

चीन, जर्मनी, अमेरिका, डेनमार्क, स्पेन तथा भारत कुल पवन ऊर्जा का 80 प्रतिशत उत्पादित करते हैं।

भारत में गुजरात तथा तमिलनाडु में पवन ऊर्जा की सबसे अधिक क्षमता है। देश में सर्वाधिक पवन टरबाइन तमिलनाडु में मुप्पनडल पेरूगुडी (कन्याकुमारी के निकट) मंे स्थापित किए गए हैं।

महाराष्ट्र का सतारा जिला पवन ऊर्जा संयंत्र के लिए प्रसिद्ध है। पवन ऊर्जा उत्पन्न करने हेतु यहां पर 500 टाॅवर लगाए गए हैं।

जल विद्युत Hydro Energy

टरबाइन के ऊपर ऊँचाई से जल प्रवाहित करने पर टरबाइन द्वारा जल की गतिज ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित कर दिया जाता है, जो विद्युत जनरेटर द्वारा विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित कर दी जाती है। यह सस्ता स्वच्छ ऊर्जा स्त्रोत तथा पर्यावरण अनुकूल है अर्थात इसके उत्पादन में हानिकार गैसों का उत्सर्जन नहीं होता है।

विश्व के कुल ऊर्जा उत्पादन का एक-चैथाई भाग जल विद्युत से उत्पादित किया जाता है।

भारत में अनेक बहुउद्देशीय परियोजनाएं संचालि है जो जल विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करती हैं। जैसे भाखड़ा-नांगल, दामोदर घाटी, कोयना हाइड्रो परियोजना आदि।

अरूणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू एवं कश्मीर उत्तराखंड, सिक्किम, मेघालय तथा केल जल विद्युत का प्रमूख स्त्रोत हैं।

महासागरीय ऊर्जा Ocean Energy

पृथ्वी की सतह के लगभग 70 प्रतिशत  भाग पर महासागरों का विस्तार है जो ऊर्जा के वृहद् भंडार हैं यद्यपि अब तक इनकी संभावित क्षमता का समुचित उपयोग नहीं हो पाया है। महासागरीय ऊर्जा के विभिन्न रूप है जो निम्न प्रकार हैं-

  • तरंग ऊर्जा
  • ज्वारीय ऊर्जा
  • धारा ऊर्जा

महासागरीय तापीय ऊर्जा रूपातंरण

तरंग ऊर्जा Wave Energy

समुद्र में उत्पन्न लहरों की गतिज ऊर्जा को टरबाइन की सहायता से विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।

भारत के तटीय क्षेत्रों में तरंग ऊर्जा की संभावित क्षमता लगभग 40 हजार मेगावाट है।

ज्वारीय ऊर्जा Tide Energy

चंद्रमा के गुरूत्वाकर्षण बल के कारण पृथ्वी पर स्थित महासागरों में प्रति 12 घण्टे ज्वारीय चक्र उत्पन्न होता है। इस दौरान समुद्री जल एक बार ऊपर उठता है एवं एक बार नीचे की ओर जाता है जिन्हें क्रमशः उच्च ज्वार तथा निम्न ज्वार कहा जाता है। निम्न ज्वार से उच्च ज्वार के मध्य समुद्री जल की ऊंचाई से होने वाला परिवर्तन जल की स्थितिज ऊर्जा का स्त्रोत होता है।

परम्परागत जलाशयों में जल विद्युत उत्पादन की प्रक्रिया के समान ही उच्च ज्वार के समय समुद्री जल एक बैराज में रोक लिया जाता है तथा निम्न ज्वार के समय उसे टरबाईन से होकर गुजारा जाता है, जिससे विद्युत ऊर्जा का उत्पादन होता है।

ज्वारीय ऊर्जा से पर्याप्त मात्रा में विद्युत उत्पादन करने के लिए उच्च ज्वार की ऊंचाई निम्न ज्वार से न्यूनतम 5 मीटर अधिक होनी चाहिए।

भारत में गुजरात के तट पर खम्भात की खाड़ी में ज्वारीय ऊर्जा से विद्युत उत्पादन की संभावना है।

धारा ऊर्जा Current Energy

एक दिशा में प्रवाहित होने वाले महासागरीय जल को महासागरीय धारा कहा जाता है। उदाहरण के तौर पर गल्फ स्ट्रीम, हम्बोल्ट आदि। समुद्र ज्वार के कारण भी महासागरीय धाराएं उत्पन्न होती हैं। समुद्र के भीतर टरबाईनें लगाकर इन धाराओं की गतिज ऊर्जा से विद्युत ऊर्जा का उत्पादन किया जाता है।

महासागरीय तापीय ऊर्जा रूपांतरण

इस तकनीक द्वारा समुद्र की सतह से नितल तक ताप भिननता का उपयोग कर विद्युत का उत्पादन किया जाता है। गर्म जल का प्रवाह महासागरीय तापीय ऊर्जा रूपांरतण गैस चैंबर में होने से गैस द्वारा समुद्री जल की ऊष्मा का अवशोषण किया जाता है जिसके कारण गतिज ऊर्जा में वृद्धि होती है। इस गतिज ऊर्जा के कारण टरबाईन के चलने से विद्युत का उत्पादन होता है।

भारत की अवस्थिति विषुवत रेखा के समीप होने के कारण वर्ष भर जल का तापमान अधिक रहता है जिससे समुद्री ऊर्जा का उपयोग किया जा सकता है।

भू-तापीय ऊर्जा

पृथ्वी के आंतरिक भागों में उत्पन्न ताप का प्रयोग करके उत्पन्न की जाने वाली विद्युत को भू-तापीय ऊर्जा कहते हैं।

जब पृथ्वी के आंतरिक भाग से मैग्मा निकलता है, तो अत्याधिक ऊष्मा मुक्त होती है। इस तापीय ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।

इसके अतिरिक्त, गीजर ( गर्म जल का प्राकृतिक स्त्रोत) से निकलते हुए गर्म पानी से भी ताप ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है। इसे एक वैकल्पिक स्त्रोत के रूप में विकसित किया जा सकता है।

भू-तापीय ऊर्जा इसलिए अस्तित्व में आती है क्योंकि बढ़ती गहराई के साथ पृथ्वी के आंतरिक भाग का तापमान बढ़ता जाता है। जहाँ भूतापीय अंतर अधिक होता है वहां कम गहराई पर भी अधिक तापमान पाया जाता हैं ऐसे क्षेत्रों में स्थित भूमिगत जल, चट्टानों से ऊष्मा का अवशोषण कर गर्म हो जाता है तथा पृथ्वी की सतह की ओर उठते हुए वाष्प में परिर्तित हो जाता है। इसी वाष्प का उपयोग टरबाईन को चलाने और विद्युत उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।

भूमिगत ताप के उपयोग का पहला सफल प्रयस 1890 ई में बायजे शहर, इडाहो (यू.एस.ए) में हआ था, जहां आसपास के भवनों को ताप देने के लिए गर्म जल के पाइपों का नेटवर्क बनाया गया था यह संयंत्र वर्तमान समय में भी कार्य कर रहा है।

जैव भार ऊर्जा Biomass Energy 

जैव भार ऊर्जा का महत्वपूर्ण स्त्रोत है। यह पौधों एवं जंतुओं के कार्बनिक अपशिष्ट (जैसे- गन्ने की खोई, चावल की भूसी, पुआल आदि) से उत्पन्न की जाती है। इसके प्रमुख स्त्रोत टिम्बर उद्योग, कृषि एवं घरेलू अपशिष्ट, नगरपालिका एवं औद्योगिक अपशिष्ट हैं।

जैवभार सदैव एक महत्वपूर्ण ऊर्जा स्त्रोत रहा है। देश में प्रयोग की जाने वाली प्राथमिक ऊर्जा का 32 प्रतिशत जैवभार से प्राप्त किया जाता है। तथा लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या अपनी ऊर्जा आवश्यकता के लिए इस पर निर्भर है।

जैवभार की संभावनाओं एवं ऊर्जा में इसकी भूमिका को पहचानते हुए, नवीन एवं नवकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने जैवभार ऊर्जा को कुशल तकनीकों तथा अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रकों में इसके प्रयोग को प्रोत्साहित व संर्धन देने हेतु अनेक कार्यक्रम प्रारंभ किए हैं।

शैवाल ऊर्जा Algae Energy 

लगातार बढ़ रही ऊर्जा आवश्यकतओं एवं पर्यावरणीय प्रदूषण के मध्य मानव, जैव ईंधन एवं बायोगैस जैसे नवकरणीय ऊर्जा संसाधनों पर विचार करने पर बाध्य हुआ है। इसी क्रम में समुद्री शैवाल की पहचान स्थायी जैव ईंधन के रूप में की गई है।

समुद्री शैवालों में सेल्युलोज की कमी तथा जैव तेल की अधिकता होती है। इस जैव तेल को विभिन्न तापीय उपचार एवं किणवन के माध्यम से जैव ईंधन में परिवर्तित किया जा सकता हैं

बायोगैस Bio-gas

बायोगैस एक जैव ईंधन जो जैविक अपशिष्ट के अपघटन से उत्पन्न होती है। जब खाद्य पदार्थ, पशुओं द्वारा उत्सर्जित अपशिष्ट एवं सूखे पत्ते व अन्य जैविक अपशिष्ट अवायवीय (आॅक्सीजन रहित) वातावरण में अपघटित होते हैं तो उनसे मीथेन तथा कार्बन डायआॅक्साइड सहित अनेक गैसों का मिश्रण उत्सर्जित होता है, जिसे बायोगैस कहा जाता है।

बायोगैस में मीथेन की 50-75 प्रतिशत मात्रा होने के कारण यह अत्यधिक ज्वलनशील होती है। इसलिए बायोगैस को ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाता है।

बायोगैस उत्पादन एक स्वच्छ व भिन्न कार्बन  तकनीक है, जो जैविक अपशिष्ट को स्वच्छ व नवीकरणीय जैव ईंधन तथा जैविक उर्वरक में परिवर्तित कर देती है। इसप्रकार इसमें सतत आजीविका केन्द्र के विकास तथा स्थानीय व वैश्विक प्रदूषण के समाधान की संभावनाएँ विद्यमान हैं।

ईंधन सेल

ईंधन सेल ईंधन (हाइड्रोजन अथवा हाइड्रोजन स्त्रोत) तथा एक आॅक्सीकारक का संयोजन होता है। यह एक विद्युत रासायनिक उपकरण है जो रासायनिक ऊर्जा को विद्युत एवं ताप ऊर्जा में परिवर्तित करता हैं इस प्रक्रिया के द्वारा ईंधन के दहन से बचा जा सकता है।

वाहनों में ईंधन सेल का प्रयोग करने से बहुत ही कम मात्रा में प्रदूषण होता है।

हाइड्रोजन एवं फास्फोरिक एसिड सामान्य प्रकार के ईंधन सेल हैं। इनके सफल प्रयोग के कारण अंतरिक्षयानों में इनका उपयोग किया जा रहा है।

हाइड्रोजन ऊर्जा

हाइड्रोजन को जलाये जाने पर उप-उत्पाद के रूप में पानी का उत्पाद होता है फलतः इसे न केवल कुशल ऊर्जा वाहक बल्कि एक स्वच्छ एवं पर्यावरणा हितैषी ईंधन के रूप में भी पाया जाता है।

पृथ्वी पर हाइड्रोजन मिश्रित अवस्था में पायी जाती है इसलिए इसका उत्पादन इसके यौगिक की अपघअन प्रक्रिया द्वारा किया जाता है। हाइड्रोजन उत्पादन के लिए तीन विधियों जैसे -तापीय विधि, विद्युत अपघटन विधि एवं प्रकाश अपघटन विधि का प्रयोग किया जाता है।

हाइड्रोजन ऊर्जा  का प्रयोग परिवहन, विद्युत उत्पादन के साथ-साथ अंतरिक्ष यानों में भी किया जा सकता है। अतः इसकी उपयोगिता को देखते हुए इसे भविष्य का ईंधन भी कहा जाता है। हाइड्रोजन के महत्व को देखते हुए भारत सरकार द्वारा वर्ष 2003 में राष्ट्रीय हाइड्रोजन बोर्ड का गठन किया गया है।

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