संविधान के अनुच्छेद 148 में उपबंध है कि
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक को उसके पद से उसी रीति से राष्ट्रपति के द्वारा
हटाया जा सकता है जिस रीति से उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाते हैं।
अर्थात संसद में विशेष बहुमत के साथ उसके दुर्व्यवहार या अयोग्यता पर प्रस्ताव
पारित कर पद से हटा सकते हैं। संसद में विशेष बहुमत का अर्थ हैः प्रत्येक सदन की
कुल सदस्य संख्या के बहुमत तथा सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के कम
से कम 2/3 बहुमत द्वारा पारित होना चाहिये। ऐसा संसद के एक ही सत्र में प्रस्तावित
और स्वीकृत होना चाहिये।
संविधान के अनुच्छेद-148 में नियंत्रक एवं
महालेखा परीक्षक के संबंध उपबंध में है।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति भारत
के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है और वह अपने पद पर 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु (जो
भी पहले हो) तक बना रहता है, न
कि राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद धारण करता है। उसे केवल राष्ट्रपति द्वारा
संविधान में उल्लेखित प्रक्रिया के तहत हटाया जा सकता है।
संविधान के अनुच्छेद-148(2) में उपबंध है कि
नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक संविधान की तीसरी अनुसूची के तहत भारत के राष्ट्रपति
के समक्ष शपथ लेगा या प्रतिज्ञा करेगा, न कि भारत के मुख्य न्यायमूर्ति के समक्ष।
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के
कार्यालय के प्रशासनिक व्यय जिसके अंतर्गत उस कार्यालय में सेवा करने वाले
व्यक्तियों को या उसके संबंध में संदेय सभी वेतन, भत्ते और पेंशन है, भारत
सरकार के संचित निधि पर भारित होंगें, अतः इन पर संसद में मतदान नहीं होगा [अनुच्छेद-148(6)]
संविधान के अनुच्छेद-148(2) में उपबंध है कि
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के वेतन व सेवा की अन्य शर्तें संविधान की दूसरी
अनुसूची के तहत होंगी।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक का वेतन उच्चतम
न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर होता है। वर्ष 2009 में उच्चतम न्यायालय के
न्यायाधीश का वेतन ` 90,000 प्रतिमाह कर दिया गया।
इसका वेतन एवं अन्य सेवा शर्त्ते संसद द्वारा
निर्धारित होती हैं।
भारत के संविधान में नियंत्रक एवं महालेखा
परीक्षक (कैग) की परिकल्पना नियंत्रक के साथ-साथ महालेखा परीक्षक के रूप में की गई
है, किंतु व्यवहार में भारत में कैग केवल
महालेखा परीक्षक की भूमिका का निर्वाह करता है। कैग सार्वजनिक धन की प्राप्ति और
निगर्म का नियंत्रण नहीं कर सकता उसका भारत की संचित निधि से धन निकासी पर कोई
नियंत्रण नहीं है। उसकी भूमिका व्यय होने के पश्चात केवल लेखा परीक्षा की है। इसके
विपरित ब्रिटेन में कैग को नियंत्रक के साथ-साथ महापरीक्षक की शक्ति भी प्राप्त
है।
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक संसद की
लोक लेखा समिति की बैठकों में भाग ले सकता है।
लोक लेखा समिति की कार्यवाही की मध्यस्थता
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक करता है, इसलिये इसे लोक लेखा समिति का मित्र और मार्गदर्शक कहा जाता है।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक संघ और राज्यों
की लोक निधियों के सभी व्ययों की लेखा-परीक्षा करता है। इसलिये इसे लोक वित्त/लोक
निधि का संरक्षक/अभिभावक कहा जाता है।
संविधान के अनुच्छेद-151(1) में उपबंध है कि
कैग अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपेगा और राष्ट्रपति उसे संसद के दोनों सदनों के
समक्ष रखवाएगा। इस आधार पर कैग की रिपोर्ट पर उचित कार्यवाही करने की अंतिम
ज़िम्मेदारी संसद की है।
संविधान के अनुच्छेद-149 में कैग की शक्तियों
और कर्त्तव्यों के संबंध में उपबंध किया गया है।
व्यवहार में कैग केवल महालेखा परीक्षक की
भूमिकाका निर्वाह करता है, नियंत्रक की भूमिका वह नहीं निभाता
जैसा कि ब्रिटेन में निभाता है। कैग का भारत की संचित निधि से धन निकासी पर कोई
नियंत्रण नहीं है, कैग की भूमिका व्यय होने के पश्चात
केवल लेखा परीक्षण का होता है।
कैग सरकारी व्यय की तर्कसंगतता, निष्ठा और मितव्ययता की जाँच करता है
किंतु उसे ऐसी न्यायिक शक्ति प्राप्त नहीं है कि वह सरकारी कंपनियों के विरुद्ध
अभियोग चला सके।
कैग अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपता है और
राष्ट्रपति इस रिपोर्ट को संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखवाता है और संसद की लोक
लेखा समिति इसके रिपोर्ट पर विचार-विमर्श करती है। यह समिति अपनी रिपोर्ट लोकसभा
अध्यक्ष को सौंपती है।
कैग के प्रतिवेदनों के आधार पर जाँचकर्त्ता
एजेंसियाँ उन लोगों के विरूद्ध आरोप दाखिल कर सकती है जिन्होंने लोक निधि के प्रबंधन
में कानून का उल्लंघन किया है।
कैग संसद का एजेंट होता है और उसी के माध्यम से
खर्चों का लेखा परीक्षण करता है, इसलिये
वह केवल संसद के प्रति ज़िम्मेदार होता है।
लेखा परीक्षा बोर्ड के अध्यक्ष एवं सदस्यों की
नियुक्ति नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) द्वारा की जाती है, न कि राष्ट्रपति के द्वारा।
इस बोर्ड की स्थापना भारतीय प्रशासनिक सुधार
आयोग की अनुशंसाओं पर वर्ष 1968 में की गई।
इसकी स्थापना नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक
कार्यालय के अंग के रूप में की गई।
इसका एक अध्यक्ष और दो सदस्य होते हैं।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) अपनी
रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपता है और राष्ट्रपति उस रिपोर्ट को संसद के दोनों सदनों
के समक्ष रखवाता है। संसद उस रिपोर्ट को लोक लेखा समिति को सौंपती है और समिति उस
रिपोर्ट की समीक्षा करती है। कैग समिति की सहायता करता है। समिति अपना प्रतिवेदन
लोकसभा अध्यक्ष को सौंपती है।
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