संविधान के अनुच्छेद-59(1) में उपबंध है कि
राष्ट्रपति संसद के किसी भी सदन या किसी राज्य के विधानमंडल के किसी भी सदन का
सदस्य नहीं होगा।
संविधान के अनुच्छेद-79 में उपबंध है कि संघ के
लियेएक संसद होगी जो राष्ट्रपति और दोनों
सदनों से मिलकर बनेगी। अतः राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग है।
संसद के अभिन्न अंग होने के तहत दोनों सदनों
द्वारा पारित कोई विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति के पश्चात् ही कानून बन पाता है।
संविधान के अनुच्छेद-80(1)(ख) में उपबंध है कि
राज्यसभा में राज्यों एवं संघ राज्य क्षेत्रों से 238 से अधिक प्रतिनिधि नहीं
होंगे। संविधान के अनुच्छेद-81(1)(क) में उपबंध है कि लोकसभा में राज्यों से 530
और संघ राज्य क्षेत्रों से 20 से अधिक प्रतिनिधि नहीं होंगे।
वर्तमान में राज्यसभा में 245 और लोकसभा में
545 सदस्य हैं।राज्यसभा में राज्यों के 229 प्रतिनिधि और संघ राज्य क्षेत्रों के 4
प्रतिनिधि हैं तथा 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किये गए हैं।लोकसभा में 530
सदस्य राज्यों से, 13 सदस्य संघ राज्य क्षेत्रों से और 2
सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किये गए हैं।
लोकसभा में अधिकतम सदस्य संख्या 552 और
राज्यसभा में अधिकतम सदस्य संख्या 250 हो सकती है।
संविधान की चौथी अनुसूची में उपबंध है कि
राज्यसभा में राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों से कितने प्रतिनिधि होंगे जबकि
लोकसभा के लिये संविधान में ऐसी कोई अनुसूची नहीं है।
राज्यसभा में सभी संघ राज्य क्षेत्रों का
प्रतिनिधित्व नहीं है। केवल दिल्ली और पुडुचेरी के प्रतिनिधि शामिल हैं।
संघ राज्य क्षेत्रों में दिल्ली के प्रतिनिधि
सबसे अधिक तीन (3) हैं जबकि पुडुचेरी का एक प्रतिनिधि है।
राज्य विधानमंडल के निम्न सदन के निर्वाचित
सदस्यों कोऔर राज्यसभा दोनों के निर्वाचन
में मतदान के अधिकार प्राप्त हैं। भारत के नागरिक होने के नाते वे लोकसभा के
निर्वाचन में मतदान कर सकता है और राज्यसभा के निर्वाचन में संविधान के
अनुच्छेद-80(4) के तहत मतदान कर सकते हैं।
राज्यसभा के लिये 12 और लोकसभा के लिये 2 सदस्य
राष्ट्रपति मनोनीत कर सकते हैं और संविधान इन्हें मंत्री बनाने से मना नहीं करता।
अर्थात् वे मंत्री बन सकते हैं।
राज्यसभा और लोकसभा के मनोनीत सदस्य
उप-राष्ट्रपति के निर्वाचन में तो मतदान कर सकते हैं किंतु राष्ट्रपति के निर्वाचन
में मतदान नहीं कर सकते।
राज्यसभा के कुल 250 सदस्यों में से 238 सदस्य
राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा निर्वाचित होते हैं जबकि 12 सदस्य
राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किये जाते हैं।
राज्यसभा में राज्यों का प्रतिनिधित्व उनकी
जनसंख्या के अनुपात (क्षेत्रफल के अनुपात में नहीं होगा) में किया गया है और
संविधान की चौथी अनुसूची में इसका निर्धारण कर दिया गया है कि किस राज्य से
राज्यसभा की कितनी सीटें होंगी।
संविधान के अनुच्छेद 83(1) में उपबंध है कि
राज्यसभा का विघटन नहीं होगा।
राज्यसभा के एक-तिहाई (1/3) सदस्य प्रत्येक दो
वर्ष की समाप्ति पर सेवानिवृत्त होंगे। ज्ञातव्य हो कि राज्यसभा के प्रथम बैच के 2
वर्ष की समाप्ति के बाद 1/3 सदस्यों की सेवानिवृत्ति लॉटरी के माध्यम से की गई थी।
राज्यसभा के सदस्यों का कार्यकाल छः वर्ष का
होता है। इसका निर्धारण संविधान में नहीं किया गया है बल्कि जनप्रतिनिधित्व
अधिनियम, 1951 के आधार पर तय हुआ।
संविधान के अनुच्छेद-84(ख) में उपबंध है कि
राज्यसभा की सदस्यता के लिये न्यूनतम आयु 30 वर्ष होनी चाहिये।
7वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1956 के द्वारा राज्यों का पुनर्गठन
किया गया और लोकसभा की सदस्य संख्या 500 से बढ़ाकर 520 निश्चित की गई।
31वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1973 के द्वारा लोकसभा की सदस्य संख्या
520 से बढ़ाकर 545 निश्चित की गई,जिसमें
530 सदस्य राज्यों से, 13 सदस्य संघ राज्यक्षेत्रों से तथा
राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत 2 एंग्लो-इंडियन सदस्य, यदि राष्ट्रपति को ऐसा लगे कि लोकसभा में एंग्लो-इंडियन का
प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं हैं।
लोकसभा की अधिकतम संख्या 552 हो सकती है,जिसमें 530 सदस्य राज्यों से 20 सदस्य
संघ राज्य क्षेत्रों से और 2 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत एंग्लो-इंडियन।
एंग्लो-इंडियन को लोकसभा में मनोनीत करने का
उपबंध 95वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2009 के द्वारा वर्ष 2020 तक के लिये बढ़ा दिया गया है।
संविधान के अनुच्छेद 84(ख) में उपबंध है कि
लोकसभा का सदस्य बनने के लिये न्यूनतम आयु 25 वर्ष होनी चाहिये।
लोकसभा में मतदान करने के लिये न्यूनतम आयु 18
वर्ष है। 61वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1988 के द्वारा मतदान करने की न्यूनतम आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष
कर दी गई है।
संविधान के अनुच्छेद-326 में लोकसभा और
विधानसभा में मत देने के अधिकार के संबंध में उपबंध है। अतः मत देने का अधिकार
संवैधानिक और वैधानिक दोनों है।
संविधान के अनुच्छेद 81(2)(क) में उपबंध है कि
लोकसभा में सीटों का आवंटन उस राज्य की जनसंख्या के अनुपात में होगा, किंतु यह उपबंध उन राज्यों पर लागू
नहीं होता जिनकी जनसंख्या 60 लाख से कम है।
संविधान के अनुच्छेद-81(2)(ख) में राज्यों को
प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित करने संबंधी उपबंध है।
वर्तमान लोकसभा में प्रत्येक राज्य के लिये
स्थानों/सीटों का आवंटन 1971 की जनगणना के आधार पर किया गया है। इसका उपबंध
संविधान के अनुच्छेद-82 में किया गया है। यह व्यवस्था वर्ष 2000 तक के लिये थी
किंतु 84वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2001 के द्वारा इसे 2026 तक के लिये बढ़ा दिया गया है। वर्ष 2026 तक
लोकसभा की सीटों/स्थानों में परिवर्तन नहीं होगा।
84वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2001 के द्वारा राज्यों के प्रादेशिक
निर्वाचन क्षेत्रों का पुनः समायोजन के लिये 1991 की जनगणना को आधार बनाने के लिये
कहा गया। बाद में 87वें संविधान संशोधन, अधिनियम, 2003 के द्वारा निर्वाचन क्षेत्रों के
परिसीमन के लिये 2001 की जनगणना को आधार बनाने के लिये कहा गया।
संसद ने परिसीमन आयोग अधिनियम, 1952, 1962, 1972 एवं 2002 पारित किया है।
95वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2009 के द्वारा इनकी आरक्षण की समय
सीमा बढ़ाकर वर्ष 2020 कर दी गई ।
संविधान के अनुच्छेद-330 में लोकसभा में इनके
लिये आरक्षण के संबंध में उपबंध किया गया है।
वर्तमान में लोकसभा में इनके लिये आरक्षित
सीटों के आवंटन के लिये 2001 की जनगणना को आधार बनाया गया है। यह प्रावधान 87वें
संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 के द्वारा किया गया।
अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिये आरक्षित
क्षेत्रों से केवल वही चुनाव लड़ सकते हैं, किंतु ये सामान्य निर्वाचन क्षेत्र से भी चुनाव लड़ सकते हैं। इन्हें
इनकी जनसंख्या के आधार पर सीटों का आरक्षण दिया जाता है। अनुसूचित जनजाति की
सर्वाधिक आरक्षित सीटें मध्य प्रदेश(6) में हैं।
लोकसभा का कार्यकाल आम चुनाव के बाद पहली बैठक
से पाँच वर्ष का होता है। अनुच्छेद-83(2)
लोकसभा को पाँच वर्ष पहले भी राष्ट्रपति
मंत्रिपरिषद की सलाह पर विघटित कर सकता है और इसके खिलाफ न्यायालय में चुनौती नहीं
दी जा सकती।
आपातकाल की घोषणा के समय लोकसभा का कार्यकाल एक
बार में एक वर्ष के लिये बढ़ाया जा सकता है, किंतु आपातकाल समाप्त होने के पश्चात इसका विस्तार छः माह से अधिक
नहीं हो सकता है।
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक संसद की
लोक लेखा समिति की बैठकों में भाग ले सकता है।
लोक लेखा समिति की कार्यवाही की मध्यस्थता
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक करता है, इसलिये इसे लोक लेखा समिति का मित्र और मार्गदर्शक कहा जाता है।,
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक संघ और राज्यों
की लोक निधियों के सभी व्ययों की लेखा-परीक्षा करता है। इसलिये इसे लोक वित्त/लोक
निधि का संरक्षक/अभिभावक कहा जाता है।
संविधान के अनुच्छेद-151(1) में उपबंध है कि
कैग अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपेगा और राष्ट्रपति उसे संसद के दोनों सदनों के
समक्ष रखवाएगा। इस आधार पर कैग की रिपोर्ट पर उचित कार्यवाही करने की अंतिम
ज़िम्मेदारी संसद की है।
संविधान और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में किसी व्यक्ति के संसद सदस्य
बनने संबंधी पात्रता का निर्धारण किया गया है।
संविधान में उपबंध है कि कोई व्यक्ति संसद
सदस्य नहीं बन सकता यदि न्यायालय ने किसी व्यक्ति को विकृत चित्त घोषित कर दिया
है।
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में अपात्रता के लिये निम्नलिखित
उपबंध किये गए हैं;
किसी अपराध में व्यक्ति को दो वर्ष या उससे
अधिक की सज़ा हुई हो।
निर्धारित समय के अन्दर चुनावी खर्च का ब्यौरा
नहीं दिया हो।
उसे छुआछूत, दहेज़ या सती प्रथा जैसे अपराधों में संलिप्त पाया गया हो।
संविधान के अनुच्छेद-103 में उपबंध है कि संसद
सदस्य अनुच्छेद-102(1) के तहत योग्य है या अयोग्य है का निर्णय राष्ट्रपति करेगा
और राष्ट्रपति का निर्णय अन्तिम होगा, किंतु राष्ट्रपति ऐसे किसी प्रश्न का निर्णय लेने से पहले निर्वाचन
आयोग की राय लेगा और उसी राय के अनुसार निर्णय करेगा।
91वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 के द्वारा दल-बदल कानून में
संशोधन किया गया। इसके द्वारा दल-बदल कानून को और अधिक सशक्त बनाया गया।
संविधान के अनुच्छेद 103 में उपबंध है कि संसद
का कोई सदस्य अनुच्छेद 102(1) के तहत योग्य है या नहीं है, इसका निर्णय राष्ट्रपति द्वारा किया
जाता है और उसका निर्णय अंतिम होता है, किंतु इससे पूर्व राष्ट्रपति निर्वाचन आयोग से राय लेगा और उसी के
अनुसार कार्य करेगा।
संविधान की दसवीं अनुसूची का संबंध दल-बदल
अधिनियम से है जिसे 52वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1985 के द्वारा संविधान में जोड़ा गया।
यदि कोई संसद सदस्य स्वेच्छा से अपनी राजनीतिक
दल की सदस्यता त्यागता है या अपने राजनीतिक दल के निर्देशों के विरुद्ध संसद में
मतदान करता है या नहीं करता है या कोई निर्दलीय सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल
हो जाता है या कोई नामित या नाम निर्देशित सदस्य छः माह बाद किसी राजनीतिक दल में
शामिल हो जाता है तो सदस्यता त्यागनी पड़ती है।
10वीं अनुसूची के तहत अयोग्यता के सवालों का
निपटारा राज्यसभा में सभापति और लोकसभा में लोकसभा अध्यक्ष करता है। वर्ष 1992 में
उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि सभापति/अध्यक्ष द्वारा दिये गए निर्णयों की
न्यायिक समीक्षा हो सकती है।
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