भारत में कृषि | भारत में कृषि महत्वपूर्ण तथ्य
भारत में
कृषि Bharat Me Krishi
भारत में कृषि महत्वपूर्ण तथ्य
- विश्व में चावल उत्पादन में चीन के बाद भारत का दूसरा स्थान है। भारत में खाद्यानों के अंतर्गत आने वाले कुल क्षेत्र के 47%भाग पर चावल की खेती की जाती है।
- विश्व में गेहूं के उत्पादन में चीन के बाद भारत का दूसरा स्थान है। देश की कुल कृषि योग्य भूमि का लगभग 15%भाग पर गेहूॅ की खेती की जाती है।
- देश में गेहूॅ के उत्पादन में उत्तरप्रदेश का प्रथम स्थान है जबकि प्रति हेक्टेयर उत्पादन में पंजाब का स्थान प्रथम है।
- भारत में हरित क्रांति लाने का श्रेय डाॅ. एम. एस. स्वामीनाथन को जाता है। भारत में हरित क्रांति की शुरूआत 1967-68 ई. में हुई।
- भारत की द्वितीय हरित क्रांति 1983-84 में हुई जिसमें अधिक आनाज उत्पादन, निवेश एवं कृषकों को दी जाने वाली सेवाओं का विस्तार हुआ।
- भारत को 15 कृषि जलवायुवीय क्षेत्रों में विभाजित किया गया है।
- खरीफ की फसल को जून-जुलाई में बोया जाता है तथा अक्टूबर-नवम्बर में काट लिया जाता है।
- रबी की फसल मुख्य रूप से शीत ऋतु की फसल है इसे अक्टूबर-नवम्बर में बोया जाता है तथा अप्रैल-मई में काट लिया जाता है।
- रबी की फसल ऋतु और खरीफ की फसल ऋतु के बीचबो ई जाने वाली फसल को जायद की फसल कहा जाता है
- खेतों को कीट-पतंगों तथा खरपतवारों से बचाने के लिए मुख्य फसल के साथ जो फसल उगाई जाती है उसे हम ट्रैप क्रॉप कहते हैं
सबसे बड़े कृषि उत्पादक राज्य और फसलें
- भारत में सबसे बड़ा केला उत्पादक राज्य तमिलनाडु है!
- भारत में सबसे बड़ा अमरूद उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश है!
- भारत में सबसे बड़ा अंगूर उत्पादक राज्य महाराष्ट्र है!
- भारत में सबसे बड़ा सेब उत्पादक राज्य जम्मू और कश्मीर है!
- भारत में सबसे बड़ा नारियल उत्पादक राज्य तमिलनाडु है!
- भारत में सबसे बड़ा सुपारी उत्पादक राज्य कर्नाटक है!
- भारत में सबसे बड़ा कोको उत्पादक राज्य केरल है!
- भारत में सबसे बड़ा काजू उत्पादक राज्य महाराष्ट्र है!
- भारत में सबसे बड़ा लीची उत्पादक राज्य बिहार है!
- भारत में सबसे बड़ा बैंगन उत्पादक राज्य ओडिशा है!
- भारत में सबसे बड़ा कुल मसाला उत्पादक राज्य आंध्र प्रदेश है!
- जम्मू और कश्मीर भारत का सबसे बड़ा अखरोट उत्पादक राज्य है!
प्रमुख कृषि विधियाँ
सेरीकल्चर ---------- रेशमकीट पालन
एपिकल्चर ---------- मधुमक्खी पालन
पिसीकल्चर ---------- मत्स्य पालन
फ्लोरीकल्चर ---------- फूलों का उत्पादन
विटीकल्चर ---------- अंगूर की खेती
वर्मीकल्चर ---------- केंचुआ पालन
पोमोकल्चर ---------- फलों का उत्पादन
ओलेरीकल्चर ---------- सब्जियों का उत्पादन
हॉर्टीकल्चर ---------- बागवानी
एरोपोर्टिक ---------- हवा में पौधे को उगाना
हाइड्रोपोनिक्स ---------- पानी में पौधों को उगा
प्रमुख कृषि क्रांति का नाम और संबंधित उत्पाद
पीला क्रांति---- तेल बीज उत्पादन
काला क्रांति----पेट्रोलियम उत्पादों
नीली क्रांति----मछली उत्पादन
ब्राउन क्रांति----चमड़ा / कोको / गैर परंपरागत उत्पाद
गोल्डन फाइबर----क्रांति जूट उत्पादन
स्वर्ण क्रांति---- फल
/ शहद उत्पादन
ग्रे क्रांति ----उर्वरक
गुलाबी क्रांति----प्याज उत्पादन / फार्मास्यूटिकल्स /
झींगा मछली उत्पादन
रजत क्रांति----अंडा उत्पादन
रजत फाइबर क्रांति----कपास
लाल क्रांति----मांस उत्पादन / टमाटर उत्पादन
गोल क्रांति----आलू
हरित क्रांति----खाद्यान्न उत्पादन
श्वेत क्रांति----दूध उत्पादन
भारत की प्रमुख फसलें
चावल – पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगाल भारत में चावल का सबसे बड़ा उत्पादक है, इसके बाद उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और पंजाब राज्य आते हैं। बंगाल राज्य मे चावल को अक्सर समृद्धि और उर्वरता से जोड़ा जाता है।
हरी सब्जियां – पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगाल भारत में ताजा सब्जियों
का सबसे बड़ा उत्पादक है, इसके बाद उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश हैं। भारत अदरक, भिंडी और आलू, प्याज, फूलगोभी, बैगन और गोभी के निर्यात का सबसे बड़ा
उत्पादक है।
जूट – पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगाल भारत में जूट का सबसे बड़ा उत्पादक है, इसके बाद बिहार, असम और आंध्र प्रदेश आते हैं। कपास के बाद जूट दूसरा सबसे महत्वपूर्ण प्राकृतिक फाइबर है और दुनिया में सबसे सस्ती प्राकृतिक फाइबर भी है।
गेहूं – उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक राज्य है, इसके बाद पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश हैं। उत्तर प्रदेश में कृषि प्रमुख व्यवसाय है। गेहूं राज्य की प्रमुख खाद्य फसल है और गन्ना मुख्य व्यावसायिक फसल है।
गन्ना – उत्तर प्रदेश
भारत में गन्ने की फसल खरीफ या मानसून की फसल होती है, जो बारिश के मौसम में होती है। उत्तर प्रदेश भारत में गन्ने का सबसे बड़ा उत्पादक है, इसके बाद महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु हैं।
कपास – गुजरात
भारत का गुजरात राज्य कपास का सबसे बड़ा उत्पादक है, इसके बाद महाराष्ट्र, तेलंगाना और कर्नाटक आते है। देश में कुल कपास उत्पादन में गुजरात का 35% योगदान है। गुजरात में कपास की खेती का कुल क्षेत्रफल 2.45 मिलियन हेक्टेयर है!
गुजरात राज्य भारत में मूंगफली का भी सबसे बड़ा उत्पादक है
चाय – असम
असम भारत में चाय का सबसे बड़ा उत्पादक है, इसके बाद पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश और उत्तर भारत के अन्य राज्य हैं। भारत में सबसे लोकप्रिय चाय के प्रकार असम चाय, नीलगिरी चाय, दार्जिलिंग चाय और कांगड़ा चाय हैं!
कॉफी – कर्नाटक
कर्नाटक भारत में कॉफी का सबसे बड़ा उत्पादक है, इसके बाद केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश का स्थान है। कर्नाटक भी बड़ी मात्रा में मक्का, चाय और सूरजमुखी का उत्पादन कर रहा है!
दाल – मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश भारत का सबसे बड़ा दलहन उत्पादक राज्य है, इसके बाद उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान हैं। मध्य प्रदेश राज्य सोयाबीन और लहसुन का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य भी है!सोयाबीन को भारत में खरीफ फसल के रूप में उगाया जाता है, भारत के शीर्ष तीन सोयाबीन उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान हैं!
रबर – केरल
केरल भारत में रबड़ का सबसे बड़ा उत्पादक है, इसके बाद तमिलनाडु, उत्तर पूर्व राज्य त्रिपुरा और कर्नाटक हैं। केरल राज्य काली मिर्च, छोटी इलायची और अच्छी मात्रा में लौंग और अन्य भारतीय मसालों के साथ-साथ विदेशी फलों का भी सबसे बड़ा उत्पादक है!
मक्का – आंध्र प्रदेश
आंध्र प्रदेश का भारत मे मक्का उत्पादक राज्यों का कुल मक्का उत्पादन में 80% से अधिक का योगदान है, आंध्र प्रदेश के बाद मक्का की खेती करने वाला सबसे बड़ा राज्य कर्नाटक, राजस्थान और महाराष्ट्र है!
सूरजमुखी – कर्नाटक
भारत देश में प्रमुख छह राज्य सूरजमुखी के प्रमुख उत्पादक हैं। आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, उड़ीसा और तमिलनाडु द्वारा 7.94 लाख हेक्टेयर के क्षेत्र से और 3.04 लाख टन के उत्पादन के साथ कर्नाटक भारत के प्रमुख सूरजमुखी उत्पादक राज्य हैं।
फसल और उनका वर्गीकरण
जीवन चक्र के अनुसार वर्गीकरण
एक वर्षी फसलें – ये फसलें अपना जीवन चक्र एक वर्ष या इससे कम समय में पूरा करती है जैसे –
धान, गेहूॅ, जौ, चना, सोयाबीन
द्विवर्षी फसलें – ऐसे पौधे में पहले वर्ष उनमें वानस्प्तिक वृद्धि होती है और दूसरे वर्ष
उनक फूल और बीज बनते हैं वे अपना जीवन चक्र दो वर्ष में पूरा करते हैं जैसे –
चुकन्दयर और गन्ना आदि
बहुवर्षी फसलें – ऐसे पौधे अनेक वर्षों तक जीवित रहते हैं इनके जीवन चक्र में प्रतिवर्ष या
एक वर्ष के अन्तऔराल पर फूल और फल आते हैं जैसे – लूसर्न,
नेपियर घास
ऋतुओं के अधार पर वर्गीकरण
खरीफ की फसल – इन फसलों को बोते समय अधिक तापमान एवं आद्रता तथा पकते समय शुष्क वातावरण की आवश्यकता होती है उत्तर भारत में इसे जून-जुलाई में बोते हैं धान, बाजरा, मूॅंग, मूॅंगफली, गन्ना इस ऋतु की प्रमुख फसलें हैं।
रबी की फसल – इन फसलों को बोआई के समय कम तापमान तथा पकते समय शुष्क और गर्म वातावरण की आवश्यकता होती है ये फसलें अक्टूबर-नवम्बर में महीनों में बोई जाती हैंं गेहॅू, जौ, चना, मसूर, सरसोंं इस ऋतु की प्रमुख फसलें हैं।
जायद की फसल – येे फसलें मार्च-अप्रैल में बोई जाती है इस फसलें में तेज गर्मी और शुष्क हवाओं को सहन करने की अच्छी क्षमता होती है तरबूज, ककडी,
खीरा, इस ऋतु की प्रमुख फसलें हैं
उपयोग के आधार पर वर्गीकरण
हरी खाद की फसलें – इसके लिए फलीदार फसलें अधिक उपयुक्त
होती है जैसे – सनई, ढैंचा,
मूॅग, आदि
भूमि संरक्षण फसलें – ये फसलें अत्यसधिक वृद्धि के कारण भूमि को ढक लेती हैंं जिससे हवा तथा
वर्षा से होने वाले कटाव से भूमि की रक्षा करती हैं जैसे – सोयाबीन,
लोबिया, मूॅंग आदि
नकदी फसलें – ये धन कमाने वाली फसलों के नाम से जानी जाती हैं जैसे – गन्ना , आलू, तम्बा कू,
सोयाबीन आदि
सूचक फसलें – यह फसलें जो पोषक पादार्थों की भूमि में कमी होने पर तुरन्त उनके ऊपर कमी के लक्षण प्रकट करने लगती है जैसे -मक्का
भारत में कृषि भाग -02
भारतीय कृषि का महत्त्व
भारत अब भी कृषि प्रधान देश है । यहाँ की लगभग दो-तिहाई आबादी (64:) कृषि पर आश्रित है। भारतीय अर्थव्यवस्था में भी कृषि का महत्त्वपूर्ण योगदान है ।
भारत उष्ण एवं समशीतोष्ण; दोनों कटिबंधों में स्थित होने के कारण
जहाँ यह एक ओर चावल, गन्ना, मूँगफली, तिल, केला, नारियल, गर्म मसाले, रबर जैसी उष्ण कटिबंधीय फसलें उत्पन्न करता है, वहीं दूसरी ओर कपास, गेहूँ, चना, सरसों, सोयाबीन तथा तम्बाकू जैसी समशीतोष्ण फसलें
भी । इस प्रकार कृषि यहाँ के जीवन का एक आधारभूत तत्त्व है ।
फसलों के मौसम -
भारत में फसलों के मौसम को मुख्यतः दो वर्गों में बाँटा जाता है:-
- खरीफ या गर्मी/बरसाती मौसम, जिसमें फसल के विकास के लिए अधिक जल जरूरी होता है।
- रबी या ठंडे मौसम की फसल, जिसे पानी की कम जरूरत होती है । इन मौसमों की समयावधि के कारण सामान्यतः साल में दो फसलों की ही कटाई हो पाती है । कुछ मामलों में साल में तीन फसलों की कटाई भी होती है ।
खरीफ फसल Kharib KI Fasal
- इन फसलों के लिए अधिक जल और लंबे गर्म मौसम की जरूरत होती है। इन्हें दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के आगमन के समय (जून या प्रारंभिक जुलाई) बोया जाता है और मानसून की समाप्ति पर (सितंबर/अक्टूबर) काट लिया जाता है । मुख्य खरीफ फसलें हैं:- चावल, ज्वार, मक्का, कपास, मूँगफली, जूट,तंबाकू, बाजरा, गन्ना, दाल, हरी-सब्जियाँ, मिर्च, भिंडी, गांजा, कद्दू तथा चारा वाली घास आदि ।
रबी फसल Rabi Ki Fasal
- ये फसलें जाड़े के मौसम में होती हैं । पहले इसके बीज के अंकुरण तथा उसके बाद कुछ समय तक शुष्क मौसम की आवश्यकता होती है । उसके बाद वृद्धि के लिये इन्हें अपेक्षाकृत ठंडे मौसम की जरूरत होती है । इसलिये फसलों की बोआई नवंबर में तथा कटाई अप्रैल-मई में होती है । मुख्य रबी फसलें हैं - गेहूँ, चना तथा तिलहन आदि ।
जैद फसल:-
- उपर्युक्त दो मुख्य फसलों के अतिरिक्त हाल में भारत में फसल का एक छोटा-सा मौसम शुरू किया गया है, जो मार्च से जून के बीच होता है । इन्हें जैद फसल कहा जाता है । इन्हें विशेषकर अच्छी सिंचाई सुविधा वाले प्रदेशों में लगाया जा रहा है, जहाँ फसलें जल्दी पक जाती हैं । मुख्य जैद - फसलें हैं उरद, मूँग, तरबूज, खीरा तथा कन्द वाली सब्जियाँ, आदि ।
भारतीय कृषि की समस्याएँ एवं समाधान
भारत कृषि प्रधान देश है, परन्तु कृषि की दशा सन्तोषप्रद नहीं है
। यहाँ की कृषि आज भी परम्परावादी है । भारतीय किसान कृषि को एक व्यवसाय के रूप
में नहीं अपितु जीवनयापन की प्रणाली के रूप में लेते हैं । स्वाभाविक है कि इससे
वांछनीय मात्रा में उत्पादन नहीं हो पाता । भारत का प्रति हेक्टेयर उत्पादन विश्व
के अन्य विकसित देशों की तुलना में काफी कम है । इस कम उत्पादकता के लिए भारतीय
कृषि की अनेक समस्याएँ जिम्मेदार हैं ।
इन समस्याओं को हम तीन श्रेणियों में विभाजित
कर सकते हैं -
(क) सामान्य समस्याएँ
(ख) संस्थागत समस्याएँ तथा
(ग) तकनीकी समस्याएँ
(क) सामान्य समस्याएँ (General
Problems)
(1) भाग्यवादी तथा रूढि़वादी अशिक्षित कृषक ।
(2) भूमि पर जनसंख्या का निरन्तर भार - सीमित
भूमि पर लगातार बढ़ रहा जनसंख्या का दबाव। 1991 की जनसंख्या के अनुसार भारत में
प्रति व्यक्ति कृषित भूमि केवल 0.21 हेक्टेयर थी ।
(3) जीविका आधारित कृषि - इसके कारण कृषि निम्न
आय वाला व्यवसाय हो जाती है । जिससे बचत कम होती है । फलस्वरूप कृषि में निवेश कम
होता है ।
(4) पशुओं की हीनावस्था - भारतीय कृषि में
पशुओं को अधिक महत्त्व दिया जाता है, परन्तु इनकी सामान्य स्थिति अच्छी नहीं
है ।
(5) अनिश्चित मौसम स्थिति - भारतीय किसान को आए
दिन कभी बाढ़ तो कभी सूखा का सामना करना पड़ता है ।
(6) मिट्टी में ह्यूमस की कमी - बेतहाशा वनों
की कटाई से मिट्टी में ह्यूमस की कमी हो जाती है। ह्यूमस की कमी से मिट्टी की नमी
सोखने की क्षमता घट जाती है ।
(7) मृदा अपरदन - वनों की कटाई तथा अनेक मानवीय
क्रिया-कलापों से मृदा अपरदन में तीव्र गति से वृद्धि हुई है ।
(8) भूमि की निम्न उर्वरा शक्ति - शताब्दियों
से निरन्तर प्रयोग में आने के कारण भारतीय कृषि-भूमि की उर्वरता का हृास हो गया है
।
(9) कीट और बीमारियों का प्रकोप ।
(ख) संस्थागत समस्याएँ -
1. भूमि का असन्तुलित वितरण - भूमि कुछ सीमित
वर्गों के हाथों में केन्द्रित है । स्वतंत्रता के बाद मध्यस्थों को समाप्त करने
के लिए बनाये गये कानूनों के बावजूद भूमि का थोड़े से व्यक्तियों के हाथ में
केन्द्रीकरण बना रहा और वास्तविक खेती करने वालों को जमींदारों से कोई खास भूमि
नहीं मिली । आज भी अधिकांश काश्तकारों की पट्टेदारी सुरक्षित नहीं है। उन्हें
अनुचित रूप से लगान देना होता है ।
2. पूँजी तथा साख की कमी - सस्ता ऋण तथा अन्य
गैर-कृषिगत सुविधाओं के अभाव में किसानों की गरीबी कम नहीं होती ।
3. विपणन सुविधा की कमी - इसके कारण उत्पादन की
तकनीक का भी विकास नहीं हो पाता । अपर्याप्त विपणन व्यवस्था के कारण अनाज का उचित
ढंग से मूल्य निर्धारण भी नहीं हो पाता ।
4. भंडारण-क्षमता की कमी - गोदामों के अभाव में
किसानों को अपनी फसल तुरंत बेचनी पड़ती है । उससे बाजार में अनाज का दाम कम हो
जाता है । इस प्रकार किसान उचित दाम पाने से वंचित रह जाता है।
5. छोटा जोत आकार - यह अनार्थिक एवं कम उत्पादकता का मुख्य कारण होता है । यहाँ खेत का औसत आकार केवल 1.69 हेक्टेयर है । हमारे यहाँ लगभग 78 प्रतिशत जोत 2 हेक्टेयर से कम थी । केवल 2 लोगों के पास 10 हेक्टेयर या उससे अधिक की जोत-भूमि है। इस प्रकार की भूमि पर केवल काम प्रधान तकनीकी से खेती हो सकती है। इससे उत्पादकता स्तर में कमी आती है ।
(ग) तकनीकी समस्याएँ
1. भूमि सुधार कार्यक्रमों का ठीक ढंग से लागू न हो पाना ।
2. परंपरागत उपकरणों का प्रयोग - अभी भी अधिकांश कृषकों द्वारा परम्परागत तथा अवैज्ञानिक विधि द्वारा कृषि-कार्य किया जाता है ।
3. उत्तम किस्म के बीजों का अभाव,
4. खाद एवं उर्वरकों का अभाव,
5. सिंचाई की अपर्याप्त व्यवस्था - भारत में कृषि के अधीन कुल क्षेत्र के केवल 36 प्रतिशत पर सिंचाई की व्यवस्था है । इसके अलावा सिंचाई की लागत में लगातार वृद्धि के कारण छोटे किसान इसका लाभ उठाने में असमर्थ रहते है । इससे उत्पादकता में कमी आती है।
6. विभिन्न विकास कार्यक्रम कृषि के बाधक के
रूप में - डैम, सड़कों, रेलमागोँ तथा नहरों के बढ़ते निर्माण
से प्राकृतिक जलनिकास तंत्र बाधित होता है । यह बाढ़ का भी कारण बनता है । साथ ही
इस तरह के विकास कार्यक्रमों से कृषिगत भूमि में हृस भी हो रहा है।
भारतीय कृषि की समस्याएँ का समाधान
समाधान
कृषि की समस्याओं से निजात पाने के लिए जिससे उत्पादकता बढ़ायी जा सके निम्नलिखित कदम उठाने आवश्यक हैं -
1- भूमि सुधार कार्यक्रमों का सही कार्यान्वयन ।
2- भूमि तथा जल साधनों का समन्वित प्रबन्धन - अर्थात् मृदा-अपरदन, जलरोध (Waterlogging) तथा लवणता की समस्या को कम करना । इसके लिए भूमि संरक्षण के उपाय ढूँढने आवश्यक हैं । साथ ही सामाजिक वानिकी को प्रोत्साहन देकर पुनः वृक्ष लगाने से वनों की कटाई से होने वाले नुकसान की भरपाई कर उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है ।
3- उन्नत बीजों का प्रयोग ।
4- कृषि अनुसंधान पर बल - इसकी मदद से अधिक उत्पादकता वाले बीजों को विकसित किया जाए । साथ ही शुष्क क्षेत्र में कृषि के लिए ड्रिप सिंचाई जैसी अन्य वैकल्पिक प्रणाली को विकसत करने के प्रयास किए जांए ।
5- उर्वरकों का सही प्रयोग - कृषि वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि भारतीय किसान आवश्यक खाद की मात्रा के केवल 1/10 भाग का ही प्रयोग करते हैं । (विशेष तौर पर छच्ज्ञद्ध का उचित अनुपात में प्रयोग कर उत्पादकता में कई गुणा वृद्धि की जा सकती है।
6- सिंचाई की समुचित व्यवस्था - उन्नत किस्म के बीजों और उर्वरकों का प्रयोग तभी संभव है, जब सिंचाई की उपयुक्त व्यवस्था हो । सिंचाई के द्वारा बहुत से क्षेत्रों में दो या दो से अधिक फसलें उगाई जा सकती हैं, जिससे उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है ।
7- खेती में मशीनीकरण - इसकी सहायता से कृषि उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है ।
8- साख व विपणन की सुविधा का विकास करना - साख एवं विपणन की सुविधा का विकास किसान के आर्थिक विकास के लिए आवश्यक है । सहकारी ऋण संस्थाओं को बड़े किसानों के चंगुल से मुक्त कराकर उसे ऐसे ढंग से विकसित किया जाए कि इसका लाभ छोटे एवं सीमांत किसानों को मिल सके ।
9- कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग - यह पौधों के संरक्षण एवं विकास के लिए आवश्यक है ।
10- कृषि को उद्योग का दर्जा प्रदान करना - कृषक को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से मूलभूत सुविधा मुहैया कराने के साथ-साथ कृषि को उद्योग का दर्जा दिया जाना चाहिए ।
11- सूचना-तंत्र को अधिक विकसित करना - कृषक को कृषि के क्षेत्र में होने वाले अनुसंधान से अवगत कराने के लिए सूचना तंत्र को और अधिक सुदृढ़ बनाने एवं प्रचार-प्रसार पर अधिक बल देने की आवश्यकता है ।
कृषकीय प्रादेशीकरण
कृषि प्रदेश वह भौगोलिक प्रदेश है, जिसकी सीमा के अंतर्गत फसलों की
समरूपता पायी जाती है । भारत के कृषि प्रादेशीकरण की दिशा में अनेक कार्य किये गये
हैं । इन कार्यों को अनुभवाश्रित तथा सांख्यिकी विधियों के माध्यम से किया गया है
।
भारत के कृषि प्रादेशीकरण की दिशा में सर्वाधिक
महत्त्वपूर्ण कार्य कृषि वैज्ञानिक रन्धावा (Randhava) तथा सेन गुप्ता (Sen Gupta)
द्वारा
किया गया है । इन विद्वानों ने फसलों की समरूपता के साथ-साथ स्थलाकृतिक-विशेषताएँ, जलवायु, मृदा और जनसंख्या जैसे कारकों का
विश्लेषण करते हुए भारत को निम्नलिखित 6 प्रमुख कृषि प्रदेशों में विभाजित किया है
-
1. फल और सब्जी प्रदेश
2. चावल, चाय और जूट प्रदेश
3. गेहूँ, और गन्ना प्रदेश
4. ज्वार, बाजरा और तिलहन प्रदेश
5. मक्का तथा मोटे अनाज का प्रदेश, तथा
6. कपास प्रदेश
1. फल और सब्जी प्रदेश
फल एवं सब्जी प्रदेश के अंतर्गत मुख्यतः हिमालय
क्षेत्र और पूर्वोंत्तर भारत को रखा जाता है । भौगोलिक विशेषताओं के आधार पर इस
कृषि प्रदेश को पुनः दो भागों में विभाजित किया जाता है -
(क) पूर्वी हिमालय प्रदेश, तथा
(ख) पश्चिमी हिमालय प्रदेश ।
(क) पूर्वी हिमालय प्रदेश -
इस
प्रदेश का औसत तापमान 230 से 290 सेल्सियस है, जबकि वार्षिक वर्षा 200 सेमी. से अधिक
होती है । कुल मिलाकर यह एक उष्ण आर्द्र प्रदेश है । इस प्रदेश के अनानास, केला और नारंगी, प्रमुख फल हैं । आलू सबसे प्रमुख सब्जी
है । लेकिन पर्वतीय और पठारी क्षेत्रों में विविध प्रकार की हरी सब्जियाँ भी
उत्पन्न की जाती हैं ।
(ख) पश्चिमी हिमालय प्रदेश -
यह
शीतोष्ण जलवायु का क्षेत्र है । यहाँ सामान्यतः तापमान 230 सेल्सियस से कम होता है
। यहाँ वार्षिक वर्षा 100 सेमी. से कम होती है । कम तापमान और कम वर्षा के कारण यह
प्रदेश शीतोष्ण फलों के लिए अनुकूल है । यहाँ उत्पन्न होने वाले फलों में सेब, अंगूर, अखरोट तथा विविध प्रकार के बेरी प्रमुख
हैं । यह सही अर्थों में रसदार फलों का क्षेत्र है । भारत का करीब तीन-चैथाई सेब
सिर्फ जम्मू एवं कश्मीर राज्य में होता है । भारत का करीब 80 : अखरोट भी
जम्मू-कश्मीर में होता है । सेब और अखरोट के उत्पादन में हिमाचल प्रदेश का दूसरा
स्थान है ।
2. चावल, चाय और जूट प्रदेश
चावल, चाय और जूट का प्रदेश भारत का वह
आर्द्र प्रदेश है, जहाँ वार्षिक वर्षा 400-200 से.मी. के बीच होती है । इसके अंतर्गत
भारत के अधिकतर मध्यवर्ती और तटीय मैदानी क्षेत्र आते हैं । चावल यहाँ की सर्वाधिक
महत्त्वपूर्ण फसल है । तीन-चैथाई से अधिक कृषि भूमि में चावल की कृषि होती है । यह
भारत का जीवन निर्वाह कृषि क्षेत्र है ।
चाय की कृषि दूसरे फसल के रूप में बिहार के
उत्तरी-पूर्वी मैदान यानि मुख्यतः किशनगंज जिला, उत्तरी पश्चिमी बंगाल मुख्यतः
सिलीगुड़ी और कूच बिहार जिला तथा ब्रह्मपुत्र घाटी के उत्तरी मैदानी क्षेत्र में
होती है । जूट की कृषि बिहार के पूर्वी मैदान, पश्चिम बंगाल के मैदान, पश्चिमी ब्रह्मपुत्र मैदान तथा महानदी
और गोदावरी के डेल्टाई क्षेत्रों में होती है ।
चावल में उत्तर प्रदेश का प्रथम स्थान है । इसके बाद क्रमशः पश्चिम बंगाल और आंध्रप्रदेश का स्थान आता है ।
3. गेहूँ और गन्ना कृषि प्रदेश -
यह प्रदेश भारत का नहर सिंचित क्षेत्र है । सही अर्थों में यह प्रथम चरण का हरित क्रांति क्षेत्र है । इसी के अंतर्गत पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के गंगानगर जिलों को रखा जाता है । नहर सिंचाई के विकास के पूर्व इस क्षेत्र में मोटे अनाज तथा तिलहन प्रमुख फसल थी । लेकिन नहर सिंचाई के विकसित होते ही गेहूँ और गन्ना को प्राथमिकता मिली है । इसी प्रदेश में भारत का लगभग 3/4 गेहूँ उत्पन्न होता है । यह प्रदेश भारत का करीब 40 गन्ना भी उत्पन्न करता है । हाल के वर्षों में चावल और कपास भी प्रमुख फसलों के रूप में उभर कर आये हैं । सिंचाई-सुविधा और संकर बीज के प्रयोग से इन फसलों का महत्त्व तेजी से बढ़ रहा है ।
4. ज्वार, बाजरा एवं तिलहन कृषि प्रदेश
ज्वार, बाजरा एवं तिलहन कृषि प्रदेश पठारी
भारत के उन क्षेत्रों की विशेषता है, जहाँ प्रथमतः लेटेराइट अथवा लाल मृदा
पाई जाती है । साथ ही वार्षिक वर्षा 75-125 से.मी. के मध्य हो । इन दो
परिस्थितियों के अंतर्गत दक्षिणी पठारी भारत के अधिकांश क्षेत्र आते हैं, जो सामान्यतः भारत का सूखा प्रभावित
क्षेत्र है । ये मूलतः एकफसली क्षेत्र हैं अर्थात् वर्ष में एक बार वर्षा ऋतु के
समय ही फसल उत्पन्न की जाती हैं । सामान्यतः प्रति हेक्टेयर उत्पादकता कम है ।
अच्छी मानसून की स्थिति में सभी कृषि योग्य भूमि पर फसल लगाई जाती है। लेकिन यदि
मानसून अनिश्चित हो, तो परती भूमि में काफी वृद्धि हो जाती है । अधिकतर कृषि-कार्य
परंपरागत विधि और उपकरणों की मदद से होता है ।
5. मक्का तथा मोटे अनाज का कृषि प्रदेश
मक्का एवं मोटे अनाज की कृषि मुख्यतः उन
क्षेत्रों में होती है, जहाँ निम्नलिखित दो शर्तें पूरी होती हैं । प्रथमतः वार्षिक वर्षा 75
सेमी. से कम हो और दूसरा मृदा की विशेषताएँ बलुई, लेटेराइट अथवा लाल प्रकार की हो । इन
दोनों ही परिस्थितियों से प्रभावित क्षेत्र भारत के इन चार भौगोलिक क्षेत्रों में
पाये जाते हैं - (क) प्रायद्वीपीय पठारी भारत का वृष्टि छाया क्षेत्र, (ख) संपूर्ण राजस्थान, (ग) उत्तरी गुजरात, तथा (घ) तमिलनाडु का दक्षिणी-पूर्वी
क्षेत्र ।
इन प्रदेशों में भी मानसून की अनिश्चितता के
कारण कृषि गहनता की कमी है । प्रायः प्रतिवर्ष परती भूमि छोड़ी जाती है। भारत में
राजस्थान में सर्वाधिक परती भूमि है । इन प्रदेशों में कम वर्षा के कारण मोटे अनाज
और जनसंख्या दबाव कम होने के कारण प्रति व्यक्ति जोत का आकार बढ़ जाता है । जहाँ
भी सिंचाई सुविधा उपलब्ध है, वहाँ चावल और कपास जैसी फसल भी उत्पन्न हो जाती है । लेकिन अधिकतर
क्षेत्रों में मक्का और मोटे अनाज ही प्रमुख फसल हैं ।
6. कपास कृषि प्रदेश
भारत का कपास क्षेत्र काली मृदा का क्षेत्र है । यह विश्व का सबसे बड़ा कपास क्षेत्र है । कुल बोयी गयी भूमि की दृष्टि से कपास से अधिक क्षेत्र ज्वार के अंतर्गत आते हैं, क्योंकि यही फसल इस प्रदेश का प्रमुख खाद्य पदार्थ है । लेकिन यह एक जीवन निर्वाह फसलहै । इसके विपरीत कपास व्यापारिक और औद्योगिक महत्त्व की फसल है । भारत विश्व के वृहतम् कपास उत्पादक देशों में से है । महाराष्ट्र और गुजरात के औद्योगीकरण का प्रमुख कारण इन प्रदेशों में कपास की कृषि का होना ही है । इन दो राज्यों के अतिरिक्त मालवा का पठार, तेलंगाना-पठार, मैसूर पठार के अंतर्गत बंगलौर तथा मैसूर के बीच का क्षेत्र तथा तमिलनाडु के अंतर्गत कोंयबटूर - मदुरै उच्च भूमि कपास की कृषि के लिए प्रसिद्ध है ।
यद्यपि कपास प्रमुख माली फसल (Cash Crop) है, लेकिन ट्यूबवेल सिंचाई विकास के कारण इन प्रदेशों में गन्ने की कृषि भी प्रारम्भ हुई है । महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक और गुजरात का सूरत जिला गन्ने की कृषि में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं ।
भारत में कृषि की स्थिति
- कृषि क्षेत्र में देश की लगभग आधी श्रमशक्ति कार्यरत है। हालांकि जीडीपी में इसका योगदान 17.5% है (2015-16 के मौजूदा मूल्यों पर)।
- 2009-10 तक देश की आधी से अधिक श्रमशक्ति (53%), यानी 243 मिलियन लोग कृषि क्षेत्र में कार्यरत थे। इस क्षेत्र में अपनी आजीविका कमाने वाले लोगों में भूस्वामी, काश्तकार, जोकि जमीन के एक टुकड़े में खेती करते हैं, और खेत मजदूर, जो इन खेतों में मजदूरी करते हैं, शामिल हैं।
- पिछले कुछ दशकों के दौरान, अर्थव्यवस्था के विकास में मैन्यूफैक्चरिंग और सेवा क्षेत्रों का योगदान तेजी से बढ़ा है, जबकि कृषि क्षेत्र के योगदान में गिरावट हुई है।
- 1950 के दशक में जीडीपी में कृषि क्षेत्र का योगदान जहां 50% था, वहीं 2015-16 में यह गिरकर 15.4% रह गया (स्थिर मूल्यों पर)।
- चावल उत्पादन में भारत का विश्व में स्थान तीसरा है जबकि दाल उत्पादन में दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
- खाद्यान्नों का कुल उत्पादन 1950-51 में 51 मिलियन टन से बढ़कर 2015-16 में 252 मिलियन टन हो गया।
- 1960 के दशक में हरित क्रांति के बाद गेहूं और चावल के उत्पादन में जबरदस्त वृद्धि हुई और 2015-16 तक, देश के कुल खाद्यान्न उत्पादन में गेहूं और चावल की हिस्सेदारी 78% हो गई।
- कृषि उपज प्रति हेक्टेयर जमीन में उत्पादित होने वाली फसल की मात्रा होती है। 1950-51 से खाद्यान्नों की उपज में चार गुना वृद्धि हुई है। 2014-15 के दौरान यह 2,071 किलो प्रति हेक्टेयर था।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना
जनवरी 2016 में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को केंद्र सरकार द्वारा प्रारंभ किया गया था। इस योजना का लक्ष्य फसल का नुकसान होने की स्थिति में किसानों को बीमा लाभ देना, किसानों की आय को स्थिर बनाना और किसानों को खेती के आधुनिक तौर-तरीके अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना, इत्यादि है।
जेनिटिकली मॉडिफाइड बीजों की किस्में
जेनिटिकली मॉडिफाइड (जीएम) बीज ऐसे बीज होते हैं जिनके कुछ जीन्स को इस प्रकार बदला (मॉडिफाई किया) जाता है कि उनमें कीटों और हर्बिसाइड्स के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो और उनकी उत्पादकता बढ़े। बीटी कॉटन भारत में एकमात्र स्वीकृत जीएम तकनीक वाले बीज हैं। 2002 में इसे अनुमोदित किया गया था और 2014 तक, कपास वाले 92% क्षेत्र में बीटी कॉटन का प्रयोग किया गया है। देश में बीटी कॉटन का इस्तेमाल करने के बाद कपास की उपज 2000-01 में 190 किलो प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 461 प्रति हेक्टेयर हो गई
मेगा फूड पार्क
खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय ने 2008 में मेगा फूड पार्क योजना की शुरुआत की थी। इस योजना का लक्ष्य कृषि उत्पादन को बाजार से जोड़ने वाले एक तंत्र का निर्माण करना है। इसमें क्लस्टर आधारित दृष्टिकोण के साथ किसानों, प्रसंस्करण कंपनियों और रीटेलरों को शामिल किया जाता है। योजना के अपेक्षित परिणामों में किसानों को कृषि उत्पादों की उच्च कीमत, अच्छी क्वालिटी के खाद्य प्रसंस्करण इंफ्रास्ट्रक्चर की स्थापना, खाद्य पदार्थों की बर्बादी का कम होना और कारगर खाद्य आपूर्ति श्रृंखला का सृजन इत्यादि शामिल है। कंपनी एक्ट, 2013 के तहत गठित स्पेशल पर्पज वेहिकल के जरिए इस योजना को लागू किया गया। जुलाई 2016 तक मंत्रालय ने 42 मेगा फूड पार्कों को मंजूरी दे दी थी, जिनमें से 38 को संचालित करने की मंजूरी मिल चुकी है।
कृषि मूल्य
- केंद्र या राज्य सरकारें कृषि उत्पादों की खरीद करती हैं। भारतीय खाद्य निगम कृषि उत्पादों की खरीद, स्टोरेज, मूवमेंट, वितरण और बिक्री का काम करता है
- न्यूनतम समर्थन मूल्य ऐसा मूल्य होता है, जिस पर सरकार किसानों से खाद्यान्न की खरीद करती है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी)
एमएसपी वह कीमत होती है, जिस पर केंद्र सरकार किसानों से खाद्यान्नों की खरीद करती है। किसानों को लाभकारी मूल्य प्राप्त हो, यह सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार एमएसपी का निर्धारण करती है। एमएसपी को निर्धारित करने के लिए जिन बातों पर विचार किया जाता है, उनमें पैदावार और उत्पादन की कीमत, फसल की उत्पादकता और बाजार मूल्य शामिल हैं।फसल का अधिक एमएसपी मिलने पर किसानों को खेती की आधुनिक तकनीक और तौर-तरीकों को अपनाने के लिए प्रोत्साहन मिलता है। सरकार ने 22 फसलों के लिए एमएसपी (और चीनी के लिए उचित और लाभकारी मूल्य) की घोषणा की है लेकिन सार्वजनिक वितरण प्रणाली, जिसके लिए खाद्यान्नों की खरीद की जाती है, मुख्य रूप से लाभार्थियों को गेहूं और चावल का वितरण ही करती है। चूंकि केवल गेहूं और चावल की ही खरीद की जाती है
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