संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations Organization) द्वारा विश्व– पर्यावरण दिवस (World Environment Day) मनाने की शुरूआत की गई
आधिकारिक तौर पर विश्व पर्यावरण दिवस (
World Environment Day ) पहली बार 5 जून 1974 को मनाया गया और
तब इसकी थीम थी – “Only
One Earth”
प्रत्येक वर्ष 5 जून को पर्यावरण दिवस
मनाया जाता है ।
प्राकृतिक संसाधनों का सर्वे और
अन्वेषण देश के पौध संसाधनों की अन्वेषण और आर्थिक महत्व की पौध प्रजातियों की
पहचान भारतीय वनस्पति सर्वे करता है। इसकी स्थापना 16 फरवरी, 1890 को हुई थी।
भारतीय प्राणी विज्ञान सर्वेक्षण
(जेडएसआई) देश के लिए उस तरह के सर्वेक्षण, खोज
और अनुसंधान में संलग्न है,
जिससे देश की समृद्ध जन्तु विविधता के
ज्ञान में वृद्धि हो। वर्ष 1916 में स्थापित जेडएसआई का मुख्यालय कोलकाता में है।
भारत अंतर्राष्ट्रीय उष्णकटिबंधीय
इमारती लकड़ी संगठन (आईटीटीओ) का उत्पादक सदस्य है, जिसकी स्थापना 1983 में अंतर्राष्ट्रीय उष्णकटिबंधीय इमारती लकड़ी
समझौते के तहत की गई थी।
वमंडलीय आरक्षित प्रमुख क्षेत्र का
संरक्षण वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972, भारतीय
वन अधिनियम 1927 और वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत जारी रहेगा।
पर्यावरण मंत्रालय 1987 से कच्छ
वनस्पति संरक्षण कार्यक्रम चला रहा है।
भारत में विश्व की कुछ सर्वश्रेष्ठ कच्छ
वनस्पतियां हैं। मंत्रालय ने उड़ीसा में राष्ट्रीय कच्छ वनस्पति अनुवांशिक संसाधन
केंद्र स्थापित किया है।
भारतीय प्रवाल भित्ति क्षेत्र लगभग
2,375 वर्ग किलोमीटर है। कठोर और नरम प्रवाल भित्ति के संबंध में बढ़ावा देने के
लिए मंत्रालय ने राष्ट्रीय प्रवाल भित्ति अनुसंधान केंद्र, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में
पोर्ट ब्लेयर में स्थापित किया है।
जैविक विविधता संबंधी अंतर्राष्ट्रीय
संधि (सीबीडी) पहला समझौता है, जिसमें
सभी पहलुओं पर ध्यान दिया गया है। सीबीडी के 184 देश सदस्य हैं, यह आर्थिक विकास के साथ पारिस्थितिकी
संतुलन बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है।
भारत उन कुछ देशों में से है जहां 1894
से ही वन नीति लागू है। इसे 1952 और 1988 में संशोधित किया गया।
वनों और वन जीवन क्षेत्र के कामकाज की
समीक्षा के लिए वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने 7 फरवरी, 2003 को राष्ट्रीय वन आयोग का गठन
किया।
भारतीय वन्य जीव बोर्ड की जनवरी, 2003 में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता
में हुई बैठक की सिफारिशों के मद्देनजर पर्यावरण और वन मंत्रालय ने फरवरी, 2003 में भारत के पूर्व मुख्य
न्यायाधीश, बी. एन. कृपाल की अध्यक्षता में
राष्ट्रीय वन आयोग का गठन किया।
वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 में 2006 में संशोधन कर उसमें
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण का गठन शामिल किया गया। अधिसूचना के बाद नवंबर, 2006 में प्राधिकरण की पहली बैठक हुई
थी।
प्रोजेक्ट टाइगर परियोजना का आरंभ 1973
में हुआ था जिसका उद्देश्य बाघों का सर्वांगीण रूप से संरक्षण करना था। अब इसका
नाम बदलकर ‘राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकार’ कर दिया गया है।
फरवरी, 1992 में हाथी परियोजना भी शुरू की गई।
राज्य सरकारों द्वारा 28 हाथी अभयारण्य
अधिसूचित किए गए और उड़ीसा में वैतरणी और दक्षिण उड़ीसा और उत्तर प्रदेश में गंगा
यमुना के लिए स्वीकृति प्रदान की गई।
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में 1992 में
संशोधन कर देश में चिड़ियाघर के प्रबंधन पर निगरानी के लिए केंद्रीय चिड़ियाघर
प्राधिकरण स्थापित किया गया है।
प्राणी कल्याण विभाग जुलाई, 2002 में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय का
अंग बना।
फरीदाबाद, बल्लभगढ़ में राष्ट्रीय प्राणी कल्याण
संस्थान की स्थापना की गई। यह संस्थान पशुओं के कल्याण और पशु रोग विज्ञान के लिए
प्रशिक्षण और जानकारी देता है।
पर्यावरण प्रभाव आकलन की प्रक्रिया को
वैधानिक बनाने के लिए, पर्यावरण प्रभाव आकलन को विकास की 32
श्रेणियों के लिए आवश्यक बना दिया गया।
पारदर्शिता सुनिश्चित करने, वनों की स्थिति और पर्यावरणीय संबंधी
मंजूरी के लिए फरवरी, 1999 में http://enfor.nic.in नाम से एक वेबसाइट शुरू की गई।
मंत्रालय ने छह क्षेत्रीय कार्यालय
(शिलांग, भुवनेश्वर, चंडीगढ़, बंगलौर, लखनऊ और भोपाल में) भी स्थापित किए
हैं।
पर्यावरण (सुरक्षा) अधिनियम, 1986 के अंतर्गत अप्रैल 1993 में जारी
एक गजट अधिसूचना के जरिए जल (प्रदूषण-नियंत्रण व रोकथाम) अधिनियम, 1974 या वायु (प्रदूषण-नियंत्रण व
रोकथाम) अधिनियम, 1981 या दोनों के तहत मंजूरी और खतरनाक
अपशिष्ट (प्रबंधन व निर्वाह) नियम, 1989
के तहत प्रदूषण उत्पन्न करने वाली लाइसेंस की इच्छुक इकाइयों के लिए पर्यावरण
संबंधी वक्तव्य पेश करना अनिवार्य बना दिया गया।
राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता निगरानी
कार्यक्रम, एन.ए.एम.पी. के अंतर्गत चार वायु
प्रदूषकों के रूप में, सल्फर डाईऑक्साइड (SO2), नाइट्रोजन
ऑक्साइड (NO), स्थगित विविक्त पदार्थ (ससपेंडेड
पार्टिकुलेट मैटर),(एसपीएम) और अंत:श्वसनीय स्थगित विविक्त
पदार्थ (रिस्पाइरेवल संस्पेंडिड पार्टिकुलर मैटर) के रूप में सभी स्थानों पर
नियमित निगरानी के लिए पहचान की गई है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के अंतर्गत
एक स्वायत्त संस्था है।
जल (प्रदूषण नियंत्रण व रोकथाम) अधिनियम, 1974 के प्रावधानों के अंतर्गत सितंबर, 1974 में बोर्ड की स्थापना की गई।
राष्ट्रीय वनारोपण और पारिस्थितिकी
विकास बोर्ड (एन.ए.ई.बी.) की स्थापना 1992 में की गयी थी।
पारिस्थितिकी विकास बल की स्थापना 1980
में एक ऐसी येोजना के रूप में हुई जिसे रक्षा मंत्रालय के जरिए ऐसे भू क्षेत्रों
के पारिस्थितिकी पुर्नस्थापन के लिए लागू किया गया।
संयुक्त वन प्रबंधन (जेएफएम) प्रकोष्ठ
की स्थापना 1998 में, जे एफ एम कार्यक्रम की निगरानी और नीति
निर्धारण के लिए हुई थी।
जीबी पंत हिमालयी पर्यावरण एवं विकास
संस्थान (जीबीपीआईएचईडी) अल्मोड़ा, जिसकी
स्थापना मंत्रालय द्वारा 1988 में मंत्रालय के स्वायत्तशासी शोध एवं विकास संस्थान
के रूप में हुई थी।
वन्य जीवन अनुसंधान के क्षेत्र में
भारतीय वन्य जीवन संस्थान (देहरादून) और सलीम अली पक्षी विज्ञान तथा प्राकृतिक
इतिहास केन्द्र (कोयम्बटूर) वन्यजीवन संबंधी अनुसंधान कर रहे हैं।
राष्ट्रीय प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय
की स्थापना नई दिल्ली में 1978 में की गयी थी।
मैसूर, भोपाल व भुवनेश्वर में तीन क्षेत्रीय प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय
खोले गये हैं।
देहरादून स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय
वानिकी अकादमी में भारतीय वन सेवा के अधिकारियों को व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया
जाता है। भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) वन विभाग के कर्मचारियों के लिए प्रशिक्षण
कार्यक्रम आयोजित करता है,
जिसमें वानिकी क्षेत्र में दूरसंवेदी
तकनीक के उपयोग के विभिन्न पहलुओं का प्रशिक्षण दिया जाता है।
राष्ट्रीय पर्यावरण नीति 2006 तैयार हो
गयी है।
इको मार्क योजना मंत्रालय द्वारा 1991
में आरंभ की गयी थी, जिसका उद्देश्य उन पर्यावरण-अनुकूल
उपभोक्ता उत्पादों को लेबल करना है जो भारतीय मानक केन्द्र (बीआईएस) की गुणवत्ता
आवश्यकताओं के अतिरिक्त कुछ पर्यावरण परिणामों का भी अनुकरण करते हैं।
ओजोन परत को सुरक्षित रखने के लिए
सत्तर के दशक के आरंभ में विश्वव्यापी प्रयास किए गए थे, जिनके चलते ओजोन परत को नष्ट करने वाले
पदार्थों (ओडीएस) पर 1985 में वियाना समझौता हुआ और 1987 में मॉट्रियाल संधि
प्रस्ताव पारित हुआ। भारत,
मांट्रियाल संधि प्रस्ताव में लंदन
संशोधन के साथ 1992 में शामिल हुआ।
पर्यावरण संरक्षण की शुरूआत 1948 में द
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कजर्वेशन ऑफ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्सेज की स्थापना द्वारा की
गई थी।
इको मार्क योजना मंत्रालय द्वारा 1991
में आरंभ की गयी थी, जिसका उद्देश्य उन पर्यावरण-अनुकूल
उपभोक्ता उत्पार्दो को लेबल करना है, जो
भारतीय मानक केन्द्र (बीआईएस) की गुणवत्ता आवश्यकताओं के अतिरिक्त कुछ पर्यावरण
परिणामों का भी अनुकरण करते हैं।
बाघ परियोजना: 1 अप्रैल, 1973 को ‘बाघ परियोजना’ की शुरूआत हुई। इस समय देश के 50 अभयारण्यों में यह परियोजना चल रही है।
लाल पांडा परियोजना: हिमालय क्षेत्र
में संरक्षण करने की परियोजना की शुरूआत वर्ष 1996 में की गई।
मणिपुर थामिन (ब्रो ऐन्टलर हिरण)
परियोजना: 1977 में मणिपुर थामिन परियोजना शुरू की गयी।
गिर सिंह अभयारण्य योजना: 1972 में
गुजरात सरकार ने इनके संरक्षण, सुरक्षा
एवं सुधार के लिए केन्द्र सरकार के सहयोग से यह परियोजना शुरू की।
हिमालय कस्तूरी परियोजना: भारत सरकार
के सहयोग से यह संरक्षण परियोजना उत्तर प्रदेश के ‘केदारनाथ अभयारण्य’ में
आरंभ की गयी।
हाथी परियोजना: यह परियोजना झारखंड के
सिंहभूम जिले में 7 दिसम्बर, 1992
को शुरू की गयी।
मगर प्रजनन परियोजना: भारत सरकार ने
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यू.एन.डी.पी.) की सहायता से 1975 में उड़ीसा में
मगर प्रजनन तथा प्रबंध की परियोजना आरंभ की।
प्रोजेक्ट हांगुल: ‘प्रोजेक्ट हांगुल’ 1970 में शुरू किया गया था।
एक्शन टाइगर्स परियोजना: 12 देशों के
माध्यम से बाघों के संरक्षण हेतु सरिस्का अभ्यारण्य में 2005 से शुरू हुई थी।
गिद्ध संरक्षण प्रोजेक्ट: बाम्बे
हिस्ट्री नेचुरल सोसायटी ने गिद्धों के संरक्षण हेतु 2006 में शुरू की।
हांगुल परियोजना: IUCN की रेड डाटा बुक में प्रविष्टी पा चुका
हिरन (रेन्डीयर प्रणाली) के संरक्षण हेतु 1970 में शुरू हुई।
कछुआ संरक्षण परियोजना: कछुओं का
संरक्षण व इसकी तस्करी रोकने हेतु 1975 में उड़ीसा के भीतर कनिका अभयारण्य से चालू
परियोजना है।
राष्ट्रीय वनारोपण और पारिस्थितिकी
बोर्ड (एन.ए.ई.बी.): 1992 में स्थापित इस संस्था का मुख्य उद्देश्य देश में
वनारोपण एवं पर्यावरणीय संतुलन के विकास कार्यक्रमों का क्रियान्वयन करना है।
Post a Comment