कार्बन टैक्स | Carbon Tax Kya Hai
कार्बन टैक्स Carbon Tax
- कार्बन टैक्स प्रदूषण पर नियंत्रण करने का एक साधन है, जिसमें कार्बन के उत्सर्जन की मात्रा के आधार पर जीवाश्म ईंधनों के उत्पादन, वितरण एवं उपयोग पर शुल्क लगाया जाता है।
- सरकार कार्बन के उत्सर्जन पर प्रतिटन मूल्य निर्धारित करती है और फिर इसे बिजली, प्राकृतिक गैस या तेल पर टैक्स के रूप में परिवर्तित कर देती है। क्योंकि यह टैक्स अधिक कार्बन उत्सर्जक ईंधन के उपयोग को महँगा कर देता है। अतः यह ऐसे ईंधनों के प्रयोग को हतोत्साहित करता है एवं ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देता है।
कार्बन टैक्स का आधार
- कार्बन टैक्स, नेगेटिव एक्सटर्नलिटीज़ के आर्थिक सिद्धांत (The Economic Principle of Negative Externalities) पर आधारित है।
- एक्सटर्नलिटीज़ (Externalities) वस्तु एवं सेवाओं के उत्पादन से प्राप्त लागत या लाभ (Costs or Benefits) हैं, जबकि नेगेटिव एक्सटर्नलिटीज़ वैसे लाभ हैं जिनके लिये भुगतान नहीं किया जाता है।
- जब जीवाश्म ईंधन के दहन से कोई व्यक्ति या समूह लाभ कमाता है तो होने वाले उत्सर्जन का नकारात्मक प्रभाव पूरे समाज पर पड़ता है।
- यही नेगेटिव एक्सटर्नलिटीज़ है, अर्थात् उत्सर्जन के नकारात्मक प्रभाव के एवज़ में लाभ तो कमाया जा रहा है लेकिन इसके लिये कोई टैक्स नहीं दिया जा रहा है।
- नेगेटिव एक्सटर्नलिटीज़ का आर्थिक सिद्धांत मांग करता है कि ऐसा नहीं होना चाहिये और नेगेटिव एक्सटर्नलिटीज़ के एवज़ में भी टैक्स वसूला जाना चाहिये।
कार्बन टैक्स पृष्टभूमि
- क्योटो प्रोटोकॉल के 20 वर्ष बाद अब जलवायु परिवर्तन के न्यूनीकरण के साधनों के लिए अधिक वैश्विक समर्थन और जागरूकता प्राप्त है। अभी हाल ही में 20 सितंबर 2018 को कनाडा में जलवायु परिवर्तन पर हुई जी-7 की बैठक में विश्व बैंक की मुख्य कार्यकारी अधिकारी क्रिस्टलीना जार्जिया ने कहा है कि- जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कार्बन उत्सर्जन पर कर लगाना या कार्बन प्रदूषण पर शुल्क लगाना जरूरी है।
- प्रति टन कार्बन उत्सर्जन पर शुल्क आंकलन की प्रक्रिया का हवाला देते हुए विश्व बैंक ने कहा कि हमारा मानना है कि कार्बन उत्सर्जन के प्रति एक शैडो शुल्क तय करके हम इस दिशा में एक आर्थिक संकेत दे सकते हैं।
- इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इकोनॉमिक्स के अनुसार वैज्ञानिक और अर्थशास्त्री इस बात पर एक मत हैं कि अर्थव्यवस्थाओं के व्यवहार में बदलाव लाने के संकेत देने का सबसे अच्छा विकल्प कार्बन शुल्क ही है। इस कर के तहत सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाली कंपनियों को कोटा दिया गया है। साथ ही उन्हें अन्य कंपनियों के साथ कोटे की खरीद-बिक्री का अधिकार भी दिया गया है।
- इस कर के अंतर्गत 1 टन उत्सर्जित कार्बन का मूल्य 1 डॉलर से लेकर 133 अमेरिकी डॉलर तक तय किया गया है।
- 1 अप्रैल 2018 से यह कर विश्व के 46 देशों और 26 द्वीपीय सरकारों नें अपने यहां लागू किया हुआ है।
कार्बन टैक्स
कार्बन टैक्स प्रदूषण पर कर का एक रूप है, जिसमें कार्बन के उत्सर्जन की मात्रा
के आधार पर जीवाश्म ईंधनों के उत्पादन, वितरण
एवं उपयोग पर शुल्क लगाया जाता है। कार्बन कर जीवाश्म ईंधन का मूल्य बढ़ायेगा।
इसमें कोयले की तरह अधिक उत्सर्जन करने वाले ईंधनों पर अधिक कर लगाया जायेगा। यह
कर उच्च कार्बन उत्सर्जन ईंधन की मांग को कम करेगा और प्राकृतिक गैस जैसे निचले
उत्सर्जन ईंधन की मांग में वृध्दि करेगा। सौर, हवा, परमाणु, और जलविद्युत जैसे अक्षय ऊर्जा के स्त्रोतों पर कम कर या कोई कर नहीं
होगा। यह निगेटिव एक्सटर्नलिटीज़ के आर्थिक सिध्दांतों पर आधारित एक अप्रत्यक्ष कर
है। सरकार प्रतिटन कार्बन उत्सर्जन पर मूल्य निर्धारित करती है, जिससे यह कार्बन उत्सर्जक ( जनजीवन पर
नकारात्मक असर डालने वाले) ईंधनों के उपयोग को मंहगा कर देता है, उन्हें हतोत्साहित करता है, साथ ही नवीकरणीय ऊर्जा दक्षता को
बढ़ावा देता है। वर्ष 1990 में अपने यहां कार्बन कर लगाने वाला फिनलैंड विश्व का
पहला देश बन गया था। उसके बाद वर्ष 1991 में स्वीडन और ब्रिटेन ने इसे अपनाया।
भारत में यह कर 1 जुलाई 2010 से लागू है।
मानवीय क्रियाओं द्वारा विश्व में 27 बिलियन टन
कार्बन प्रतिवर्ष उत्सर्जित किया जाता है। जो कि काफी चिंताजनक है। इस संबंध
में वर्ष 1992 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने
ब्राजील के रियो डि जेनेरियो शहर में आयोजित जलवायु परिवर्तन पर एक सम्मेलन में
हरित गैसों के स्तर को नियंत्रित करने तथा इससे पर्यावरण पर पड़ने वाले
दुस्प्रभावों को कम करने की दिशा में कार्बन कर का प्रस्ताव रखा गय़ा था।
आस्ट्रेलिया की पहली और एकमात्र महिला
प्रधानमंत्री जूलिया गिल्लार्ड ने जुलाई 2012 में विधानमंडल के दोनों सदनों से
अनुमति लेकर कार्बन कर की शुरुआत की थी। इस कर का आरंभिक 3 वर्षों के लिए निश्चित
मूल्य एक टन कार्बन उत्सर्जन के लिए 23 डॉलर था। इसे उद्योगों तथा ऊर्जा की कीमतों
में एक ऐसे अनावश्यक बोझ के तौर पर देखा गया जिसनें देश की प्रतिस्पर्ध्दात्मक
विकास को चोट पहुंचाई और वहां की अर्थव्यवस्था को मंहगाई की ओर धकेल दिया। बाद में
वर्ष 2014 में सीनेट ने कार्बन कर को निरसित कर दिया। इससे पहले भी वर्ष 1997 के क्योटो
प्रोटोकॉल में अमेरिका और आस्ट्रेलिया ने वैश्विक हरित गैसों के उत्सर्जन को कम
करने की प्रतिबध्दता नहीं जताई थी।
वर्तमान में भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक देश है। नीति आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए भारत के कार्बन करों का उपयोग समुचित ढ़ंग से नही हो पा रहा है।
दक्षिण अफ्रीका द्वारा कार्बन टैक्स (Carbon Tax) की शुरुआत 1 जून, 2019
से की है
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