जैव विविधता लिए संकट |Crisis for biodiversity
जैव विविधता लिए संकट Crisis for Biodiversity
जलवायु परिवर्ततन, बढ़ते प्रदूषण
स्तर, प्राकृतिक
संसाधनों के अंधाधुंध दोहन से विभिन्न प्रजातियों के आवास नष्ट हो रहे हैं, जिसके कारण
अधिकांश प्रजातियों या तो विलुप्त हो गयी हैं या विलुप्त होने के कगार पर हैं।
वनों के अत्याधिक कटाव, वायु एवं जल
प्रदूषण बढ़ने से जैव विविधता का अत्यधिक नुकासान हुआ है जिसके कारण भारत के
स्तनधरियों की 79, पक्षियों की 44,सरीसृपों की 15 तथा उभयचरों की 3 प्रजातियां
संकटग्रस्त हैं।
जैव विविधता के नुकसान के कारण इस प्रकार हैं-
आवासों का विनाश Habitat Loss
- औद्योगिक विकास, सड़क तथा भवन निर्माण की प्रक्रिया में जंगलों की कटाई से प्रजातियों के आवास नष्ट हो रहे हैं। आवास विखंडन से पर्यावास क्षति के साथ-साथ बहुत से जीवों के निवास स्थान बदल जाते हैं। यही कारण है कि, हजारों जीव-जंतुओं एवं वनस्पतियों की प्रजातियाँ तेजी से विलुप्त हो रही है।
विदेशी प्रजातियों का प्रवेश Entry of Foreign Species
- जब एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में प्रजातियां प्रवेश करती हैं तो वहां की मूल प्रजातियों को प्रभावित करती हैं, जिसके कारण स्थानीय प्रजातियों में संकट उत्पन्न होने लगता है और धीरे-धीरे विलुप्ति के कगार पर पहुंच जाती हैं। उदाहरण-भारत में अमेरिका से आयात किए हुए गेहूं के साथ एक घास भी आ गयी थी जिसे पारथेनियम हिस्टोफोरम के नाम से जाना जाता है। इस घास ने स्थानीय घास की प्रजातयों को प्रतिस्थापित कर दिया जिससे पारिस्थितिकी संकट उत्पन्न हो गया।
संसाधनों का अति दोहन Over Exploitation of Resources
- मानव, भोजन तथा आवास के लिए प्रकृति पर निर्भर रहता है ेकिन जब आवश्यकता लालच में बदल जाती है तब उस प्राकृतिक संपदा के अति दोहन से प्रजाति का संकट उत्पन्न हो जाता है।
कीटनाशकों का प्रयोग Use of Pesticides
- जैव विविधता ह्यस के प्रमुख कारणों में कीटनाशकों का प्रयोग भी महत्वपूर्ण कारक है। फसलों के बचाव में प्रयोग किए जाने वाले कीटनाशक जैव विविधता लिए हानिकारक हैं। कीटनाशकों का प्रयोग मोर, चील, गौरैया आदि के लिए हानिकारक है तथा इनके अत्याधिक प्रयोग से गिद्ध विलुप्ति के कगार पर पहुॅच चुके हैं।
जलवायु परिवर्तन Climate Change
- वैश्विक तापमान में वृद्धि द्वारा हिम चादरों या ग्लेशियरों के पिघलने से सागर तल में वृद्धि होती है जिससे छोटे द्वीप एवं उनकी जैव विविधता जलमग्न होकर नष्ट होती जा रही है। परन्तु इस घटना का सर्वाधिक प्रभाव प्रवालों पर देखा जा सकता है। जो जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील प्रजातियां हैं।
- जलवायु परिवर्तन के कारण पुष्पोदभवन के समय और प्रवास प्रतिरूपों में बदलावा के साथ-साथ प्रजातियों के वितरण में भी बदलाव देखे जा रहे हैं। जलवायु परिवर्तन से प्रजातियां अपने मौलिक निकेत का विस्तार करती है, यदि अनुकूलित हो पाती हैं तो खाद्य श्रृंखला एवं निकेत परिवर्तित हो जाते हैं परन्तु अनुकूलित न हुई तो विलुप्त होने लगती हैं।
- जलवायु परिवर्तन के कारण अनेक प्रकार के जीवों की प्रजातियां विलुप्त हो गयी हैं या विलुप्ति के कगार पर हैं। जैसे धु्रवीय भालू, दक्षिणी अमेरिकी व्हेल, कछुए, अफ्रीकी हाथी, मेढ़क प्रजातियां एवं पक्षी आदि।
कृषि क्षेत्रों का विस्तार Expansion of Agricultural Land
- कृषि क्षेत्र, जैव विविधता को कम कर रहा है क्योंकि आज पृथ्वी के कुल क्षेत्र का 40 प्रतिशत भाग फसल उगाने एवं मवेशी चराने के लिए प्रयोग किया जाता हैं वल्र्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट के अनुसार कई, विकासशील देशों में प्राकृतिक क्षेत्र तेजी
- से कृषि भूमि में परिवर्तित किये जा रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का अनुमान है कि, अफ्रीका और पश्चिम एश्यिा में कृषि भूमि क्षेत्र वर्ष 2050 तक लगभग दुगना हो सकता है।
- इसी प्रकार के परिवर्तन एशिया के देशों में भी देख जा सकते हैं इन परिवर्तनों से खाद्य श्रृंखलाएं बदल रही हैं परिणामस्वरूप परितंत्रो में असंगति उत्पन्न हो रही है।
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