ई-कॉमर्स क्या है | E- Commerce GK in Hindi
E- Commerce GK for MPPSC Exam
ई-कॉमर्स सामान्य परिचय
इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स को ही शॉर्ट फॉर्म में ई-कॉमर्स कहा जाता है। यह
ऑनलाइन व्यापार करने का एक तरीका है। इसके अंतर्गत इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम के द्वारा
इंटरनेट के माध्यम से वस्तुओं और सेवाओं की खरीद-बिक्री की जाती है।
आज के समय में ई-कॉमर्स के लिये
इंटरनेट सबसे महत्त्वपूर्ण पहलुओं में से एक है। यह बुनियादी ढाँचे के साथ-साथ
उपभोक्ता और व्यापार के लिये कई अवसर भी प्रस्तुत करता है। इसके उपयोग से
उपभोक्ताओं के लिये समय और दूरी जैसी बाधाएँ बहुत मायने नहीं रखती हैं।
इसमें कंप्यूटर, इंटरनेट नेटवर्क, वर्ल्डवाइड वेव और ई-मेल को उपयोग में
लाकर व्यापारिक क्रियाकलापों को संचालित किया जाता है।
ई-कॉमर्स क्या है?
इंटरनेट के माध्यम से उद्योग करने को ई-कॉमर्स
या इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स कहते हैं। सरल शब्दों में इंटरनेट की वर्चुअल दुनिया पर
अपनी सर्विस, या
सेवा प्रदान करना ही ई-कॉमर्स कहलाता है। इन सेवाओं के अंतर्गत इंटरनेट पर सामान
को खरीदना और बेचना, मार्केटिंग करना, सामान को पते पर डिलीवर करना, बिल का ऑनलाइन भुगतान करना, ऑनलाइन बैंकिंग करना आदि आते हैं।
इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स की शुरुआत 1960 में हुई थी जब दुनिया भर की अनेक
कंपनियों ने इंटरनेट के के फीचर इलेक्ट्रॉनिक डाटा इंटरचेंज (EDI) की मदद से बिज़नेस डाक्यूमेंट्स को
दूसरी कंपनियों के साथ शेयर करना शुरू किया।
ई-कॉमर्स का इतिहास E-commerce History Timeline
1969 – CompuServe की स्थापना हुई
1979 – माइकल
एल्ड्रिच ने इलेक्ट्रॉनिक शॉपिंग का आविष्कार किया
1981 – Thomson Holidays UK पहला B2B ऑनलाइन शॉपिंग सिस्टम शुरु हुआ
1982 – फ्रांस
टेलिकॉम नें Minitel को ऑनलाइन ऑर्डर लेने के लिए शुरु किया
1982 – बोस्टन
कम्प्युटर एक्सचेंज ने अपना पहला ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म लॉच किया
1990 – टिम
बर्नर्स ली ने पहला वेब ब्राउजर का कोड लिखा
1992 – बुक
स्टैक्स अनलिमिटेड ने किताबों का पहला मार्केटप्लैस शुरु किया जिसकी वेबसाईट www.books.com थी. अब यह वेबसाईट www.barnesandnoble.com हो गई है.
1994 – नेटस्केप
ने नेटस्केप नेविगेटर शुरु किया
1994 – NetMarket से Ten
Summoner’s Tales पहली
सुरक्षित खरीदारी बनी जिसे क्रेडिट कार्ड के माध्यम से खरीदा गया
1995 – eBay तथा Amazon ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाईट शुरु हुई
1998 – PayPal को ऑनलाइन पेमेंट सिस्टम के रूप में
शुरु किया गया
1999 – Alibaba.com की शुरुआत
2000 – गूगल
ने AdWords शुरु की
2005 – एमेजन
ने अपने ग्राहकों के लिए Amazon
Prime सेवा शुरु की
2005 – दस्तकारी
तथा पुराने कीमती सामात (Vintage
Goods) ऑनलाइन
बेचने-खरिदने के लिए Esty
मार्केटप्लेस शुरु हुआ
2009 – ऑनलाइन
स्टोरफ्रंट प्लैटफॉर्म BigCommerce
शुरु हुआ
2009 – Square, Inc. की शुरुआत हुई
2011 – Google Wallet को ऑनलाइन पेमेंट सिस्टम के लिए शुरु किया गया
2011 – फेसबुक
ने Sponsored Stories नाम से विज्ञापन शुरु किया
2011 – Stripe की शुरुआत
2014 – Apple Pay को मोबाइल पेमेंट के लिए शुरु किया गया
2014 – Jet.com की शुरूआत
2017 – Instagram Shoppable Posts पेश की गई
2020 – रिलायंस
रिटेल द्वारा Jio Mart की शुरुआत की गई.
ई-कॉमर्स का प्रकार – Types of E-commerce in Hindi
ई-कॉमर्स मुख्य रूप से सात Models of E-commerce से संचालित होता है. जिनका वर्णन इस
प्रकार है.
- Business to
Business (B2B)
- Business to
Consumer (B2C)
- Consumer to
Consumer (C2C)
- Consumer to
Business (C2B)
- Government to
Business (G2B)
- Business to
Government (B2G)
- Consumer to
Government (C2G)
Business to Business Model
- जब ऑनलाइन बिजनेस दो से अधिक बिजनेस कंपनियों, संस्थानों, एजेंसियों के बीच किया जाता है तो यह Business to Business Model (B2B) कहलाता है.
- क्योंकि इस प्रोसेस में अंतिम उपभोक्ता आप या हम नहीं होते है. बल्कि, एक दूसरा व्यापार ही होता है जो दूसरे व्यापार से अपनी जरूरत का सामान ऑनलाइन खरीदता है. इस बिजनेस मॉडल में उत्पादक, थोक व्यापारी और खुदरा व्यापारी शामिल होते है.
- यहाँ पर व्यापारी अधिकतर कच्चा सामान, रिपैकिंग होने वाला सामान खरीदते है और सेवाओं के रूप में सॉफ्टवेयर तथा कानूनी सलाह शामिल होती है. मगर यहीं तक सीमित नहीं है.
Business to Consumer Model
- ई-कॉमर्स का सबसे प्रचलित रुप B2C है. जब आप एक प्रकाशक से अपने लिए कोई किताब ऑर्डर करते है तो यह शॉपिंग इसी बिजनेस मॉडल में शामिल होती है. क्योंकि यहाँ पर ट्रांजेक्शन सीधा बिजनेस से उपभोक्ता के बीच होता है.
Consumer to Consumer Model
- यह मॉडल शुरुआत का बिजनेस मॉडल है. इस ई-कॉमर्स बिजनेस मॉडल में एक ग्राहक दूसरे ग्राहक से ऑनलाइन ट्रांजेक्शन करता है. eBay, Amazon पर आपको कुछ इसी तरह का मॉडल देखने को मिलता है. जहाँ पर एक ग्राहक अपना पुराना सामान तथा नया सामान भी सीधे ग्राहक को बेचता है.
Consumer to Business Model
- जब एक ग्राहक अपना सामान अथवा सेवाएं सीधे एक बिजनेस को बेचता है तो यह ई-कॉमर्स मॉडल C2B कहलाता है.
- एक फोटोग्राफर, गायक, कॉमेडियन, नृतक, यूट्युबर आदि अपने दर्शकों के हिसाब से बिजनेस से उत्पाद प्रचार के शुल्क लें सकते है और अपनी कुछ सेवाएं रॉयल्टी के आधार पर भी उपलब्ध करा सकते है.
- ये सभी कार्य Consumer to Business Model के अंतर्गत आते है. पेशेवर लोग इस बिजनेस मॉडल से खूब पैसा कमाते है.
ई-कॉमर्स के लाभ
- गौरतलब है कि ई-कॉमर्स के ज़रिये सामान सीधे उपभोक्ता को प्राप्त होता है। इससे बिचौलियों की भूमिका तो समाप्त होती ही है, सामान भी सस्ता मिलता है। इससे बाज़ार में भी प्रतिस्पर्द्धा बनी रहती है और ग्राहक बाज़ार में उपलब्ध सामानों की तुलना भी कर पाता है जिसके कारण ग्राहकों को उच्च गुणवत्ता वाला सामान मिल पाता है।
- एक तरफ ऑनलाइन शॉपिंग में ग्राहकों की राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार तक पहुँच आसान हो जाती है तो वहीं दूसरी तरफ, ग्राहकों का समय भी बचता है।
- ई-कॉमर्स के ज़रिये छोटे तथा मझोले उद्यमियों को आसानी से एक प्लेटफॉर्म मिल जाता है जहाँ वे अपने सामान को बेच पाते हैं। साथ ही इसके माध्यम से ग्राहकों को कोई भी स्पेसिफिक प्रोडक्ट आसानी से मिल सकता है।
- ई-कॉमर्स के ज़रिये परिवहन के क्षेत्र में भी सुविधाएँ बढ़ी हैं, जैसे ओला और ऊबर की सुविधा। इसके अलावा मेडिकल, रिटेल, बैंकिंग, शिक्षा, मनोरंजन और होम सर्विस जैसी सुविधाएँ ऑनलाइन होने से लोगों की सहूलियतें बढ़ी हैं। इसलिये बिज़नेस की दृष्टि से ई-कॉमर्स काफी महत्त्वपूर्ण होता जा रहा है।
- ई-कॉमर्स के आने से विज्ञापनों पर होने वाले बेतहाशा खर्च में भी कमी देखी गई है| इससे भी सामान की कीमतों में कमी आती है।
- इसी तरह एक ओर, जहाँ शो-रूम और गोदामों के खर्चों में कमी आती है, तो वहीं दूसरी ओर, नए बाज़ार की संभावनाएँ भी बढ़ती हैं। साथ ही इससे वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति में तीव्रता आती है और ग्राहकों की संतुष्टि का ध्यान भी रखा जाता है।
ई-कॉमर्स के चुनौतियाँ
- गौरतलब है कि ऑनलाइन शॉपिंग को लेकर कंज्यूमर्स के मन में हमेशा संदेह का भाव बना रहता है कि उन्होंने जो प्रोडक्ट खरीदा है वह सही होगा भी या नहीं। इस वर्ष सरकार को ई-कॉमर्स से जुड़ी बहुत सी वेबसाइट्स के खिलाफ शिकायतें भी मिलीं, जिनमें कंज्यूमर का कहना था कि उन्होंने जो सामान बुक किया था उसके बदले उन्हें किसी और सामान की डिलीवरी की गई या फिर वह सामान खराब था।
- इसी तरह कई बार लोगों की शिकायतें रहती हैं कि अब वे कहाँ इसके खिलाफ शिकायत करें।
- एक तरफ, जहाँ इसको लेकर किसी ठोस कानून का अभाव है, तो वहीँ दूसरी तरफ, लोगों में जागरूकता की कमी भी दिखती है।
- स्पष्ट नियम और कानून न होने की वज़ह से छोटे और मझोले उद्योगों के सामने कुछ चुनौतियाँ भी उत्पन्न हो सकती हैं| वे बाज़ार की इस अंधी दौड़ में इन बड़ी-बड़ी कंपनियों का सामना नहीं कर पाएंगे। ऐसे में बेरोज़गारी के बढ़ने की आशंका भी जताई जा रही है।
- ऑनलाइन शॉपिंग के मामले में सुरक्षा को लेकर लोगों ने पहले से ही चिंता जाहिर की है| उनका मानना है कि ये कंपनियाँ उनका डेटा कलेक्ट कर रही हैं, जो कि चिंता की बात है।
- इसी प्रकार ऑनलाइन शॉपिंग में लोगों के क्रेडिट या डेबिट कार्ड की क्लोनिंग कर उनके बैंक बैलेंस से रुपए निकाल लेना या फिर हैकरों के द्वारा बैंकिंग डेटा की हैकिंग कर लेना भी एक समस्या है। इतना ही नहीं, ऑनलाइन शॉपिंग के क्षेत्र में कार्यरत कुछ बड़ी कंपनियाँ अब सामानों की डिलीवरी ड्रोन से करने का मन बना रही हैं, जिसको लेकर सरकार और लोगों के चेहरे पर चिंता की लकीरें स्पष्ट दिख रही हैं।
ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म्स – E-commerce Platforms
ई-कॉमर्स इंफॉर्मेशन तकनीक के कई टूल्स का सहारा लेकर किया जाता है और एक ऑनलाइन स्टोर को बनाने में बहुत सारे अलग-अलग टूल्स इस्तेमाल होते है. जिनके जरिए ऑनलाइन स्टोर बनाए जाते है. ऑनलाइन स्टोर्स को हम दो वर्गों में बांट सकते है.
- Online Storefronts
- Online Marketplaces
- Online Storefronts
- आमतौर पर मर्चेंट अपना ऑनलाइन स्टोर किसी वेबसाइट के माध्यम से बनाते है. यह सबसे सीधा और आसान तरीका है ऑनलाइन स्टोर बनाने का. और अधिकतर बिजनेस इसी तरह अपना व्यापार कर रहे है.
- मर्चेंट्स शॉपिंग कार्ट, पेमेंट गेटवे तथा ई-कॉमर्स टूल्स का इस्तेमाल करके अपना ऑनलाइन स्टोर बना लेते है. तथा अपना सामान और सेवाएं बेचते है. ऑनलाइन स्टोरफ्र्न्ट्स बनाने के लिए बहुत सारे प्लैटफॉर्म उपलब्ध है.
Magento – यह सबसे लचिला और लोकप्रिय ई-कॉमर्स सॉल्युशन प्लैटफॉर्म है. जो
मर्चेंट्स को शक्तिशाली फीचर्स, आसान
कस्माईजेशन, एड-ऑन्स उपलब्ध करवाता है. साथ ही
विशेषज्ञों का समूह, डवलपर तथा एजेंसियों की सेवा आपके लिए
मौजूद रहती है.
Demandware – यह एक क्लाउड आधारित ई-कॉमर्स सॉल्युशन प्रोवाइडर है.
Oracle Commerce – यह एक B2B तथा
B2C ई-कॉमर्स
सॉल्युशन प्रोवाइडर है.
Shopify – यदि आप आसानी से एक स्टोरफ्रंट बनाने की सोच रहे थे शॉपिफाई आपके लिए
यह सुविधा दे सकता है. क्योंकि इसके Drag-and-Drop Builder द्वारा अपना ई-कॉमर्स स्टोर बनाना पत्ते सजाना
जैसा काम है. शॉपिफाई टेम्प्लेट्स, इंवेंट्री
टूल्स, बाई बटन, पेमेंट शॉल्युशन आदि एक ही जगह उपलब्ध करवाता है.
WooCommerce – यदि आप एक वर्डप्रेस ब्लॉग को ऑनलाइन स्टोर में बदलना चाहते तो
वूकॉमर्स इसमे आपकी मदद कर सकता है. यह एक ऑपन सॉर्स ई-कॉमर्स टूल है जो वर्डप्रेस
साइट को एक ऑनलाइन स्टोर में बदलने के लिए आवश्यक फीचर्स उपलब्ध करवाता है. मगर
साइट होस्टिंग, डोमेन नेम, एसएसएल, पेमेंट गेटवे आदि साइट ऑनर को संभालना पड़ता है. अन्य प्लैटफॉर्म्स
में यह झंझट नही रहता.
BigCommerce – यह प्लैटफॉर्म B2B ई-कॉमर्स के लिए शानदार फीचर्स उपलब्ध
करवाता है. इसके जरिए बडे आराम से एक ऑनलाइन स्टोर बनाया जा सकता है. साथ में इसके
द्वारा एक ब्लॉग, सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स पर भी सेलिंग
की जा सकती है.
Drupal Commerce – यदि आप Drupal
Platform का
इस्तेमाल करते है तब आप इस टूल के द्वारा अपना ऑनलाइन स्टोर बन सकते है.
Instamojo – यदि आप भारतीय सॉल्युशन ढूढ रहे तो इंस्टामोजो आपकी मदद कर सकता है.
आप इस Instamojo Tool की सहायता से अपना खुद का स्टोरफ्रंट
बना सकते है और सीधे पेमेंट भी ले सकते है. इंस्टामोजो बिल्ट-इन प्रोड्क्ट स्टोर
बनाने की सुविधा मुफ्त उपलब्ध करवाता है. बस आपको प्रति ट्रांजेक्शन कुछ शुल्क
देना पड़ता है. जो एक चाय के बराबर पड़ता है.
Online Marketplaces
- ऑनलाइन मार्केटप्लेस एक प्रकार के बिचौलिये का काम करता है. ऑनलाइन मार्केटप्लेस मर्चेंट और ग्राहक के बीच कम्युनिकेशन स्थापित करते है और अलग-अलग मर्चेंटों को एक जगह (ऑनलाइन बाजार) उपलब्ध करवाते है. ग्राहक का मर्चेंट से सीधा संबंध नही होता है. इस तरह के मार्केटप्लैस बहुत सारे उपलब्ध है जिनके द्वारा आज करोडों का ई-कॉमर्स व्यापार किया जा रहा है.
कुछ लोकप्रिय मार्केटप्लैस
Amazon – दुनिया की सबसे बडी ई-कॉमर्स मार्केटप्लैस होने का दावा ठोकने वाली
अमेजन कंपनी परिचय का मोहताज नहीं है. दुनियाभर के ग्राहकों के बीच इसने अपनी
पहचान कायम की है. और लोगों को a-z प्रोड्क्ट
पहुँचाकर खुशी बांटने का मंगल काम कर रही है.
Flipkart – यह भारतीय कंपनी एमेजन की तरह भारतीय मर्चेंट्स के लिए देशी तकनीक पर
आधारित विश्वव्यापि मार्केट उपलब्ध करा रही है.
eBay – यह ई-कॉमर्स की शुरूआती कंपनियों में से एक है. जो नए सामान के साथ
पुराना सामान खरीदने-बेचने के लिए मार्केटप्लेस उपलब्ध करा रही है. इसका बिजनेस
मॉडल C2C पर
ज्यादा आधारित है.
Etsy – इस मार्केटप्लेस पर हैण्डमैड, विंटिज
और कुछ दुर्लभ वस्तुएं खरीदी-बेची जा सकती है.
Alibaba – यह एक चीनी ई-कॉमर्स कंपनी है. जो थोक विक्रेताओं, निर्माताओं, सप्लायर्स, आयातक/निर्यातकों के लिए मार्केटप्लेस
उपलब्ध कराती है.
Indiamart – यह एक भारतीय मार्केटप्लेस है जो बिल्कुल एलिबाबा की तरह कार्य करता
है.
Fiverr – यह एक फ्रीलासिंग मार्केटप्लेस है जो पेशेवर लोगों को अपनी सेवाएं
उपलब्ध कराने का काम करती है. यहाँ पर एक ग्राफिक डिजाईनर, वेब डवलपर आदि लोग इस मार्केटप्लेस से
जुडकर अपनी सेवाएं मुहैया करा सकते है.
Example of E-commerce
ई-कॉमर्स विभिन्न तरीकों से हो सकता है. और
व्यापारी फिजिकटल प्रोडक्ट से लेकर पत्र लिखने तक की सेवाएं इसके द्वारा उपलब्ध
करा सकते है. नीचे ई-कॉमर्से के विभिन्न रूपों के बारे में बता रहे है.
Retail E-commerce
- यह खुदरा व्यापार कहलाता है. जिस तरह आप पडोस के किराना स्टोर से सामान खरीदते है ठीक इसी प्रकार इस बिजनेस मॉडल में भी किया जाता है. कोई बिचौलिया नहीं होता है. रिटेलर्स का सीधा संपर्क ग्राहक से होता है.
Wholesale E-commerce
- थोक व्यापार में वस्तुओं को समूह में बेचा जाता है. यहाँ पर ग्राहक रिटेलर्स होते है. क्योंकि असल उपभोक्ता से कोई संबंध नही रहता.
Dropshipping
- उस उत्पाद को बेचना जिसका निर्माता कोई और है और उसकी डिलिवरी कोई और करने वाला है. यानी बेचने वाला का संपर्क सिर्फ ग्राहक से होता है उत्पाद वह खुद निर्माण नहीं करता. बल्कि किसी अन्य निर्माता के उत्पाद को बेचता है. ड्रॉपशिपिंग आजकल उभरते हुए बिजनेसेस में से एक बन चुका है लोगों के बीच खासकर जो 9-5 के जॉब से आजादी चाहते है इस बिजनेस को हाथों हाथ ले रहे है.
Crowdfunding
- उत्पाद बाजार में आने से पहले ही लोगों से उसके बदले में पैसा लेना क्राउडफंडिग कहलाता है. यह स्टार्टाप बिजनेस के लिए शुराआती दौर में पैसे जुटाने का एक बढ़िया और आजमाया हुआ सिद्धांत है.
Subscription
- किसी उत्पाद और सेवा की एक निश्चित समय अंतराल में पुन: खरीदि सब्सक्रिपशन कहलाती है. यह तरीका अधिकतर सॉफ्टवेयर एज ए सर्विस (SAAS) वाले बिजनेस मॉडल पर आजमाया जाता है. इसके साथ ऑनलाईन मैगजिन, ई-पेपर, सदस्यता फॉर्म्स आदि प्लैटफॉर्म्स इस बिजनेस मॉडल का इस्तेमाल करते है.
Physical Products
- कोई भी सामान जिसका फिजिकल अस्तित्व होता है उसे बेचना इसमें शामिल है. इस दौरान प्रोडक्ट का ऑर्डर लिया जाता है फिर सामान उसे डिलिवर किया जाता है.
Digital Products
- डाउनलोड किया जा सकने वाला गुड्स, टेम्प्लेट्स, कोर्स, ग्राफिक्स, फोटों, पैटिंग्स, ई-बुक आदि का उपयोग करने के खरिदना या फिर लाईसेंस खरीदना इस बिजनेस में शामिल होता है. कई पेशेवर इस बिजनेस मॉडल का खूब उपयोग कर रहे है.
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