पारिस्थितिक संवेदनशील क्षेत्र | Eco-sensitive area in Hindi
पारिस्थितिक संवेदनशील
क्षेत्र Eco-sensitive area in Hindi
संरक्षित क्षेत्र (जैसे
राष्ट्रीय पार्क, वन्य जीव
अभ्यारण्य) के चारों ओर 10 किमी तक का
अधिसूचित क्षेत्र पारिस्थितिक क्षेत्र के रूप में जाना जाता है।
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत
पारिस्थितिक संवेदनशील घोषित किये जाते हैं।
नवीनतम अधिसूचना में
पार्क के इको-सेंसिटिव ज़ोन को घटाकर 169 वर्ग किमी. कर दिया गया है।
इको-सेंसिटिव ज़ोन
इको-सेंसिटिव ज़ोन या
पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार
द्वारा किसी संरक्षित क्षेत्र, राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य के आसपास के अधिसूचित
क्षेत्र हैं।
इको-सेंसिटिव ज़ोन में
होने वाली गतिविधियाँ 1986 के पर्यावरण
(संरक्षण अधिनियम) के तहत विनियमित होती हैं और ऐसे क्षेत्रों में प्रदूषणकारी
उद्योग लगाने या खनन करने की अनुमति नहीं होती है।
सामान्य सिद्धांतों के
अनुसार, इको-सेंसिटिव ज़ोन
का विस्तार किसी संरक्षित क्षेत्र के आसपास 10 किमी. तक के दायरे में हो सकता है। लेकिन संवेदनशील
गलियारे, कनेक्टिविटी और
पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण खंडों एवं प्राकृतिक संयोजन के लिये महत्त्वपूर्ण
क्षेत्र होने की स्थिति में 10 किमी. से भी अधिक क्षेत्र को इको-सेंसिटिव ज़ोन में शामिल
किया जा सकता है।
राष्ट्रीय उद्यानों और
वन्यजीव अभयारण्यों के आस-पास इको-सेंसिटिव ज़ोन के लिये घोषित दिशा-निर्देशों के
तहत निषिद्ध उद्योगों को इन क्षेत्रों में काम करने की अनुमति नहीं है।
कुछ गतिविधियों जैसे कि पेड़ गिराना, भूजल दोहन, होटल और रिसॉर्ट्स की स्थापना सहित प्राकृतिक जल संसाधनों का वाणिज्यिक उपयोग आदि को इन क्षेत्रों में नियंत्रित किया जाता है।
मूल उद्देश्य राष्ट्रीय
उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आसपास कुछ गतिविधियों को नियंत्रित करना है
ताकि संरक्षित क्षेत्रों की निकटवर्ती संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्र पर ऐसी
गतिविधियों के नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सके।
बन्नेरघट्टा नेशनल पार्क इको-सेंसिटिव ज़ोन (Eco-Sensitive Zones- ESZs)
बंगलूरू, कर्नाटक के पास
बन्नेरघट्टा राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना 1970 में की गई थी और 1974 में इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था।
2002 में उद्यान का एक हिस्सा, जैविक रिज़र्व बन गया जिसे बन्नेरघट्टा जैविक उद्यान कहा जाता है।
बन्नेरघट्टा नेशनल पार्क
के 268.96 वर्ग किलोमीटर
के क्षेत्र को पर्यावरण संवेदी क्षेत्र या इको-सेंसिटिव ज़ोन (Eco-Sensitive Zones- ESZs) घोषित किया गया
था।
पारिस्थतिक संवेदनशील क्षेत्र का उद्देश्य
पारिस्थतिक संवेदनशील
क्षेत्र घोषित करने का उद्देश्य,सरंक्षित क्षेत्रों के आस-पास की गतिविधियों को विनियमित
करना तथा संभावित जोखिम को कम करना है।
पारिस्थितिक संवेदनशील
क्षेत्र संरक्षित क्षेत्र में शाॅक एब्जार्बर का कार्य करते हैं।
पारिस्थितिकी संवेदनशील
क्षेत्र को पर्यावरण, वन और जलवायु
परिवर्तन मंत्रलय द्वारा संरक्षित क्षेत्रों, राष्ट्रीय पार्कों और वन्यजीव अभयारण्यों के चारों ओर के
क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया जाता है। इन क्षेत्रों को घोषित करने का
उद्देश्य एक प्रकार के आघात अवशोषक की भूमिका का निर्माण करना है, जिससे संरक्षित
क्षेत्रों को नियमित करने और उनके मध्य गतिविधियों को प्रबंधित करने में आसानी हो।
ये क्षेत्र उच्च संरक्षित क्षेत्रों से निम्न संरक्षित क्षेत्रों के मध्य संक्रमण
क्षेत्र का निर्माण भी करते हैं।
पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र
एक लम्बी परिचर्चा के
पश्चात् सरकार ने 1600 कि.मी. लम्बे
पश्चिमी घाट में लगभग 56,825 वर्ग कि.मी.
क्षेत्र को पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया। ये अधिसूचित क्षेत्र 6 राज्यों में
विस्तृत हैं। साथ ही यूनेस्को के विश्व विरासत स्थलों में सम्मिलित हैं तथा विश्व
में जैव विविधता के आठ ‘हॉट स्पॉटों’ में भी सम्मिलित
हैं।
माधव गॉडगिल पैनल
इसी संदर्भ में सरकार ने
माधव गॉडगिल की अध्यक्षता में एक पैनल का गठन किया, जिसका कार्य पश्चिमी घाट के पारिस्थितिकी
संवेदनशील क्षेत्रों का वर्गीकरण करना था।
इस वर्गीकरण को
निम्नलिखित रूप से समझा जा सकता है-
समिति ने 142 तालुकाओं को ESZ 1, 2 और 3 के रूप में
वर्गीकृत किया।
गोवा में अवस्थित ESZ 1 और 2 में खनन कार्यों
के लिये पर्यावरणीय मंजूरी पर रोक लगा दी।
ESZ 1 क्षेत्र में
वृहद् बांधों के निर्माण पर रोक लगा दी गई।
ESZ 1 और 2 में प्रदूषण
फैलाने वाले उद्योग जैसे-कोयला आधारित विद्युत संयंत्र आदि की स्थापना नहीं की जा
सकती।
समिति ने ESZ के विकास के लिये
ग्राम सभाओं की सहमति को महत्त्वपूर्ण माना।
पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी
प्राधिकरण का निर्माण किया जाए और उसे जलवायु (संरक्षण) अधिनियम के तहत् अधिकार
दिये जाएँ।
गॉडगिल समिति ने
पश्चिमी घाट के पर्यावरण को संरक्षित करने के लिये महत्त्वपूर्ण उपाय सुझाए हैं, तथापि यह
वास्तविक परिस्थितियों का आकलन करने में असफल रही है। इसी कारण के. कस्तूरीरंगन की
अध्यक्षता में एक नए पैनल का गठन किया गया जिससे पर्यावरण और विकास के मध्य संतुलन
बनाया जा सके। कस्तूरीरंगन समिति ने पश्चिमी घाट के केवल 37% क्षेत्र को ESZ
घोषित करने की सिफारिश की है।
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