हिन्दी की विशेष संधियाँ | HIndi Ki Vishesh Sandhiyan
हिन्दी की विशेष संधियाँ
स्वर संधि , व्यंजन संधि, विसर्ग संधि के अलावा संस्कृत से हिन्दी में आई हैं। हिन्दी की निम्नलिखित छः प्रवृत्तियों वाली संधियाँ
होती हैं-
- महाप्राणीकरण
- घोषीकरण
- ह्रस्वीकरण
- आगम
- व्यंजन-लोपीकरण
- स्वर-व्यंजन लोपीकरण
पूर्व स्वर लोप
पूर्व स्वर लोप : दो स्वरों के मिलने पर पूर्व स्वर का
लोप हो जाता है। इसके भी दो प्रकार हैं-
(1) अविकारी पूर्वस्वर-लोप : जैसे- मिल + अन =मिलन
- छल + आवा =छलावा
(2) विकारी पूर्वस्वर-लोप :
जैसे-
- भूल + आवा =भुलावा
- लूट + एरा =लुटेरा
ह्रस्वकारी स्वर संधि
ह्रस्वकारी स्वर संधि : दो स्वरों के मिलने पर प्रथम खंड
का अंतिम स्वर ह्रस्व हो जाता है। इसकी भी दो स्थितियाँ होती हैं-
1. अविकारी ह्रस्वकारी :
जैसे-
- साधु + ओं= साधुओं
- डाकू + ओं= डाकुओं
2. विकारी ह्रस्वकारी :
जैसे-
- साधु + अक्कड़ी= सधुक्कड़ी
- बाबू + आ= बबुआ
आगम स्वर संधि
आगम स्वर संधि : इसकी भी दो स्थितियाँ हैं-
1. अविकारी आगम स्वर : इसमें अंतिम स्वर में कोई विकार नहीं
होता।
जैसे-
- तिथि + आँ= तिथियाँ
- शक्ति + ओं= शक्तियों
2. विकारी आगम स्वर: इसका अंतिम स्वर विकृत हो जाता है।
जैसे-
- नदी + आँ= नदियाँ
- लड़की + आँ= लड़कियाँ
पूर्वस्वर लोपी व्यंजन संधि
पूर्वस्वर लोपी व्यंजन संधि:- इसमें प्रथम खंड के अंतिम
स्वर का लोप हो जाया करता है।
जैसे-
- तुम + ही= तुम्हीं
- उन + ही= उन्हीं
स्वर व्यंजन लोपी व्यंजन संधि
स्वर व्यंजन लोपी व्यंजन संधि:- इसमें प्रथम खंड के स्वर
तथा अंतिम खंड के व्यंजन का लोप हो जाता है।
जैसे-
- कुछ + ही= कुछी
- इस + ही= इसी
मध्यवर्ण लोपी व्यंजन संधि
मध्यवर्ण लोपी व्यंजन संधि:- इसमें प्रथम खंड के अंतिम
वर्ण का लोप हो जाता है।
जैसे-
- वह + ही= वही
- यह + ही= यही
पूर्व स्वर ह्रस्वकारी व्यंजन संधि
पूर्व स्वर ह्रस्वकारी व्यंजन संधि:- इसमें प्रथम खंड का
प्रथम वर्ण ह्रस्व हो जाता है।
जैसे-
- कान + कटा= कनकटा
- पानी + घाट= पनघट या पनिघट
महाप्राणीकरण व्यंजन संधि
महाप्राणीकरण व्यंजन संधि:- यदि प्रथम खंड का अंतिम वर्ण
'ब' हो तथा द्वितीय
खंड का प्रथम वर्ण 'ह' हो तो 'ह' का 'भ' हो जाता है और 'ब' का लोप हो जाता
है।
जैसे-
- अब + ही= अभी
- कब + ही= कभी
- सब + ही= सभी
सानुनासिक मध्यवर्णलोपी व्यंजन संधि
सानुनासिक मध्यवर्णलोपी व्यंजन संधि:- इसमें प्रथम खंड
के अनुनासिक स्वरयुक्त व्यंजन का लोप हो जाता है, उसकी केवल अनुनासिकता बची रहती है।
जैसे-
- जहाँ + ही= जहीं
- कहाँ + ही= कहीं
- वहाँ + ही= वहीं
आकारागम व्यंजन संधि
आकारागम व्यंजन संधि:- इसमें संधि करने पर बीच में 'आकार' का आगम हो जाया
करता है।
जैसे-
- सत्य + नाश= सत्यानाश
- मूसल + धार= मूसलाधार
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