हिन्दी भाषा की प्रकृति | हिंदी भाषा के रूप

 

हिन्दी भाषा की प्रकृति


हिन्दी भाषा की प्रकृति /हिंदी भाषा के रूप

हिन्दी भाषा की प्रकृति


भाषा सागर की तरह सदा चलती-बहती रहती है। भाषा के अपने गुण या स्वभाव को भाषा की प्रकृति कहते हैं। हर भाषा की अपनी प्रकृति आंतरिक गुण-अवगुण होते हैं। भाषा एक सामाजिक शक्ति है, जो मनुष्य को प्राप्त होती है। मनुष्य अपने पूर्वजों से सीखता है और उसका विकास करता है। यह परम्परागत और अर्जित दोनों है। जीवंत भाषा बहते पानीकी तरह सदा प्रवाहित होती रहती है। भाषा के दो रूप हैं कथित और लिखित। हम इसका प्रयोग कथन के द्वारा, अर्थात बोलकर और लेखन के द्वारा लिखकर करते हैं। देश और काल के अनुसार भाषा अनेक रूपों में बंटी है।  यही कारण है कि संसार में अनेक भाषाएं प्रचलित हैं।

भाषा के रूप

भाषा विकास में भाषा के मुख्यतः तीन रूप मिलते हैं

  1. बोली
  2. परिनिष्ठित भाषा
  3. राजभाषा

बोली /बोली किसे कहते हैं

  • बोली भाषा का वह स्वरूप है, जिसका व्यवहार साधारण जनता अपने समूहों या घरों में करती है। बोली का क्षेत्र सीमित होता है। यही कारण है कि बोलियों की संख्या अधिक होती है। भारत में लगभग 600 से अधिक बोलियाॅ बोली जाती हैं। जैसे- भोजपुरी, निमाड़ी, मालवी आदि।

परिनिष्ठित भाषा / परिनिष्ठित भाषा किसे कहते हैं

  • व्याकरण से नियंत्रित भाषा को परिनिष्ठित भाषा कहते हैं। इसका प्रयोग शिक्षा, शासन और साहित्य में होता है। इसे मानक भाषा भी कहते हैं। कोई भी बोली अपने विकास क्रम में जब व्याकरण के नियमों से नियंत्रित होकर परिष्कृत रूप ग्रहण कर लेती है तो वह परिनिष्ठित भाषा बन जाती है।

राजभाषा/राजभाषा किसे कहते हैं

  • किसी राष्ट्र/राज्य की वह भाषा जो अधिक व्यापक और विस्तृत क्षेत्र में विचार विनिमय का साधन होती है उसे राजनीतिक और सामाजिक आधार पर राजभाषा का दर्जा प्रदान किया जाता है। प्रत्येक राष्ट्र की अपनी राष्ट्रभाषा होती है । जैसे हिन्दी राजभाषा
  • हिन्दी को भारत संघ की राजभाषा के रूप में 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा द्वारा स्वीकार किया गया। संविधान के अनुच्छेद 343 (i) के अनुसार संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी है।
  • इसके साथ ही उत्तर भारत के अनेक राज्यों ने भी हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया है जैसे मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, बिहार, झारखण्ड, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश आदि।
  • संक्षेप में किसी राष्ट्र/राज्य द्वारा प्रशासकीय कार्यों के लिए वैधानिक/संवैधानिक रूप से स्वीकृत भाषा को राजभाषा कहा जाता है।

राष्ट्रभाषा और राजभाषा में अंतर

  • राष्ट्रभाषा भाषा का वह व्यापक रूप होती है जिसका प्रयोग साधारण जनता अपने कार्य-व्यवहार में संपर्क भाषा के रूप में करती है। जबकि राजभाषा भाषा का वह रूप होता है जिसे वैधानिक रूप से राज्य/राष्ट्र के प्रशासनिक कामकाज की भाषा के रूप में स्वीकार किया जाता है।

भाषा और व्याकरण

  • सामान्यतः किसी भाषा की नियमावली को उसका व्याकरण कहते हैं। प्रत्येक भाषा के अपने नियम होते हैं। उसकी ध्वनियाँ, शब्द, पद, वाक्य-रचना के नियम भी पृथक होते हैं। किसी भाषा के सब नियमों को एकत्र करना , उन्हें पाठकों को समझाना तथा भाषा का मानक रूप स्थापित करना व्याकरण का कार्य है।

भाषा को मानक बनाने में व्याकरण की भूमिका

  • प्रारंभिक अवस्था में प्रत्येक भाषा में अनेकरूपता होती है। लोग अपनी सुविधा से शब्दों, पदों, ध्वनियों, वाक्यों को तोड़ते-मरोड़ते हैं। नियमों का विशेष ध्यान नहीं रखा जाता है। ऐसी स्थिति में भाषा में भ्रांतियां उपस्थित हो जाती है। जैसे प्रचलित देवनागरी में अ, , क्त, क्त, , ल आदि भिन्न रूप में प्रचलित रहे। व्याकरण इन अनेक रूपों में से उस रूप को मान्यता देता है, जिसे अधिकांश शिक्षित लोग प्रयोग करते हैं। इस प्रकार भाषा में शुद्धता, स्थिरता और मानकता आ जाती है।

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.