उपन्यास विधा का विकास । उपन्यास के तत्व। Upanyas Vidha Ka Vikas

 उपन्यास विधा का विकास,  उपन्यास के तत्व

उपन्यास विधा का विकास । उपन्यास के तत्व। Upanyas Vidha Ka Vikas


उपन्यास क्या होता है 

 

  • उपन्यास साहित्य की सबसे लोकप्रिय विधा है। आपमें से कुछ लोगों ने अवश्य ही कोई-न-कोई उपन्यास पढ़ा होगा । उपन्यास पढ़ते समय ऐसा महसूस किया होगा कि जैसे आपकी अपनी ही बात कथा के माध्यम से कही जा रही हो । आपने यह भी अनुभव किया होगा कि उपन्यास की कथा एवं पात्र आपके परिवेश के ही हैं। यही नहीं, आप उपन्यास के पात्रों के सुख-दुःख से प्रभावित भी होते हैं । ऐसा क्यों हैं ? वास्तव में उपन्यास के माध्यम से लेखक मानव जीवन की तस्वीर को इस निपुणता से प्रस्तुत करता है कि हम उसमें डूब जाते हैं और उसमें वर्णित कथा हमें अपनी-सी लगने लगती है । 
  • उपन्याय सम्राट प्रेमचंद ने उपन्यास के बारे में अपना यह मत प्रकट किया है "मैं उपन्यास को मानव चरित्र का चित्र मात्र समझता हूँ। मानव चरित्र पर प्रकाश डालना और उसके रहस्य को खोलना ही उपन्यास का मूलतत्व है।" उपन्यास में जीवन का व्यापक चित्रण किया जा सकता है, अतः उसका आकार प्रायः बड़ा हो जाता है ।

 

  • आपको पता है कि हिन्दी में उपन्यास विधा का आरंभ भारतेंदु युग में हुआ । आपने यह भी जाना कि आरंभ में हिन्दी उपन्यास की शुरूआत अनुवादों के द्वारा हुई । बंगला, मराठी, अंग्रेज़ी आदि से अनूदित उपन्यास हिन्दी पाठकों के सामने आए फिर हिन्दी में मौलिक उपन्यास लिखे जाने लगे । समय एवं परिस्थिति का प्रभाव लेखकों पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है । काल विशेष की परिस्थितियाँ लेखक को भी प्रभावित करती हैं। 
  • हिन्दी उपन्याय भी समय एवं परिस्थिति से प्रभावित होता रहा है और उपन्यास का वर्तमान रूप भी काल एवं परिस्थिति से प्रभावित है। हम उपन्यास के तत्वों के सभी देखते चलेगें कि किस प्रकार इस विधा में परिवर्तन आया है ।

 

  • हिन्दी में आरंभ में तिलस्मी एवं ऐय्यारी उपन्यास लिखे गये। तिलस्मी उपन्यासों में घटनाएँ तिलस्म से पूर्ण रहती थींअर्थात्, ऐसे उपन्यासों में इन्द्रजाल, जादू, अद्भुत कारनामें; अलौकिक व्यापार एवं चमत्कार से पूर्ण घटनाएँ होती थीं। इस प्रकार के उपन्यासों में नायक वेश बदल कर विकट और विलक्षण कार्य करता था। जासूसी उपन्यास भी उसी प्रकार की घटनाओं से पूर्ण होते थे। जासूसी उपन्यास की खास बात यह होती है कि इसमें नायक गुप्त रूप से किसी भेद या बात का पता लगाने के लिए चलता है। वह अद्भुत कारनामे करता है। बाद में हिन्दी में ऐतिहासिक, सामाजिक, राजनैतिक एवं मनोवैज्ञानिक उपन्यास भी लिखे गये ।

 

उपन्यास के तत्व

 

वह कसौटी जिसके आधार पर किसी उपन्यास के गुण-दोषों की परीक्षा की जाती है तत्व कहलाता है। उपन्यास के निम्नलिखित तत्व हैं :

 

1) कथावस्तु 

2) चरित्र चित्रण 

3) परिवेश 

4) संरचना- शिल्प 

5) प्रतिपाद्य

 

उपन्यास में कथावस्तु 

  • कथावस्तु उपन्यास का मेरुदण्ड है। विभिन्न महत्वपूर्ण घटनाओं का क्रमबद्ध कलात्मक व किसी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति हेतु किया गया "संयोजन" कथानक कहलाता है ।

 

  • प्रत्येक प्रकार के उपन्यास में कथावस्तु अनिवार्य रूप से होती है, इसके बिना रचना की कल्पना ही नहीं की जा सकती। प्रमुख कथावस्तु अकेले नहीं आती। इसके साथ कुछ सहयोगी कथाएँ भी चलती है रचना की मुख्य कथावस्तु के साथ कुछ अन्य प्रासंगिक कथाओं का संयोजन भी रहता है। मुख्य कथा को 'आधिकारिक कथा तथा सहायक कथा को "प्रासंगिक कथा" कहते हैं ।

 

  • उपन्यास की कथा ठोस एवं श्रृंखलाबद्ध होनी चाहिए, अनावश्यक प्रसंगों से बचना चाहिए। उपन्यास के मूलभाव या चरित्र के विकास के लिए कथावस्तु का आयोजन जरूरी है। कथावस्तु जीवन की वास्तविकता से जुड़ी होनी चाहिए। पहले के उपन्यासों में कल्पना का अधिक स्थान होता था, किन्तु आज यथार्थ जीवन की घटनाओं को ही महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है। 

 

  • उपन्यास की कथावस्तु का विकास पहले वर्णन द्वारा होता था किन्तु आज उपन्यास की कथा किसी भी रूप में आरंभ हो सकती है। आज के उपन्यासों में जीवन संदर्भों से कथावस्तु का आरंभ होता है और जीवन के विभिन्न पहलुओं के द्वारा कथा का विकास होता है।

 

  • उदाहरण के लिए आप 'गोदान' को लें। इसमें कथा होरी के जीवन से आरंभ होती है। उपन्यासकार ने होरी के सम्पूर्ण जीवन को कृथा का अधार बनाया है। होरी और धनिया की कथा मुख्य कथा है। प्रासंगिक कथा के रूप में मेहता और मालती, गोबर और सुनिया, मातादीन और सिलिया आदि की कथाएँ मुख्य कथा को प्रभावशाली बनाने के लिए ली गयी है।

 

उपन्यास में चरित्र चित्रण 

  • जिन व्यक्तियों के जीवन की घटना को लेकर कथा का आयोजन किया जाता है, वे उपन्यास के पात्र कहलाते हैं। उदाहरण के तौर पर होरी के जीवन में भिन्न-भिन्न प्रकार की जो घटनाएँ घटीं, प्रेमचंद ने उनके आधार पर 'गोदान' की कथावस्तु का विकास किया, अतः हीरो इस उपन्यास का एक पात्र है। सामान्यतः उपन्यास में एक या दो मुख्य पात्र होते हैं। अन्य महत्वपूर्ण पात्र मुख्य पात्र के चरित्र को सशक्त बनाने के लिए रचे जाते हैं। उदाहरण के लिए 'गोदान' में धनिया, गोबर, सिलिया, सुनिया आदि पात्र होरी के चरित्र को सम्पूर्ण रूप से विकसित एवं सशक्त बनाने के लिए रचे गये हैं। मनोवैज्ञानिक उपन्यासों में चरित्र के विकास का अक्सर अधिक होता है, क्योंकि इसमें चरित्र या पात्र ही उपन्यास का विषय होता है। उदाहरण के लिए जैनेन्द्र के "त्याग पत्र" में बुआ का तथा अज्ञेय के 'शेखर एक जीवनी' में शेखर का चित्रण मनोवैज्ञानिक धरातल पर हुआ है ।

 

  • उपन्यासकार पात्रों के कार्यों एवं वार्तालाप से तो उनके चरित्र को प्रकाशित करता ही है, कभी-कभी प्रत्यक्ष रूप से भी उनका चरित्र चित्रण कर देता है। प्रेमचन्द ने अपने उपन्यासों में चरित्र चित्रण की इस विधि को अपनाया है ।

 

उपन्यास में परिवेश

  •  परिवेश के अन्तर्गत देशकाल अर्थात वह स्थान और समय आता है जहाँ कहानी की घटना घटित हुई । उपन्यासकार के लिए यह आवश्यक है कि वह देश एवं काल का यथार्थ रूप प्रस्तुत करे। यदि ग्राम की कथा है तो पूरा परिवेश ग्रामीण होना चाहिए। मिट्टी के घर तालाब, खेत, पगडंडी, पशुधन, ग्रामीण वेशभूषा, रीति-रिवाज, गैंवई भाषा आदि ग्रामीण परिवेश की उपस्थिति में सहायक हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, "गोदान" में गाँव की कथा कही गयी है । उपन्यास के आरंभ में ही गाँव का रूप सामने आ जाता है होरीराम ने दोनो बैलों को सानी-पानी देकर अपनी धनिया से कहा— "गोबर को ऊँख गोड़ने भेज देना ।" उपन्यास में परिवेश को यथार्थ रूप में प्रस्तुत करने का पर्याप्त अक्सर रहता है- उपन्यासकार विस्तृत ब्यौरे से परिवेश का जीवंत चित्रण कर सकता है परिवेश के वास्तविक चित्रण के लिए लेखक को उस स्थान और काल की ठीक-ठीक जानकारी होनी चाहिए, अन्यथा वह अस्वाभाविक चित्रण कर बैठेगा। प्रेमचन्द को ग्रामीण परिवेश की सही जानकारी थी। वे स्वयं उस परिवेश में पले-बढ़े थे, अतः 'गोदान' में उन्होंने ग्रामीण परिवेश का यथार्थ चित्रण किया है।

 

उपन्यास में संरचना शिल्प

 

शैली 

  • उपन्यासकार चाहे किसी भी विषय पर उपन्यास लिखे, उसके लिखने का ढंग अपना होता है । प्रत्येक उपन्यासकार अपने तरीके से कथा को प्रस्तुत करता है। इसी तरीके को शैली कहते हैं । आपने अनुभव किया होगा कि प्रत्येक उपन्यासकार की अपनी अलग शैली होती है। एक उपन्यासकार की कई रचनाओं में भी विषयवस्तु के अनुसार शैली बदल जाती है । उपन्यासकार प्रत्यक्ष परोक्ष, पत्र, डायरी, पूर्वदीप्ति आदि शैलियों का प्रयोग कर सकता है ।

 

  • लेखक की व्यक्तिगत रुचि और विषयवस्तु के अनुसार शैली में परिवर्तन होता है। उदाहरण के लिए आप प्रेमचंद के 'गोदान', 'रंगभूमि', 'सेवासदन' आदि उपन्यासों में शैली की विभिन्नता देख सकते हैं । व्यक्तिगत रुचि के अनुसार प्रेमचंद ने बाहय घटनाओं पर और जैनेन्द्र ने मनोविलेषण पर अधिक जोर दिया है, जिससे उनकी शैलियौं भिन्न-भिन्न हो गयी हैं ।

 

संवाद 
  • उपन्यास के पात्र आपस में जो वार्तालाप करते हैं। उन्हें हम संवाद कहते हैं। संवादों से उपन्यास की कथा आगे बढ़ती है तथा पात्रों के चरित्र पर प्रकाश भी पड़ता है। वार्तालाप के द्वारा पात्रों के विचार जाने जा सकते हैं। उपन्यास में पात्रों के अनुकूल संवादों का होना आवश्यक है, अन्यथा कथा में अस्वाभाविकता आ जायेगी 'गोदान' में मेहता शिक्षित पात्र हैं। उसका यह संवाद उसके शिक्षित होने का प्रमाण प्रस्तुत करता है: "आप मुझे लज्जित कर रही हैं देवी जी ।"

 

भाषा

  • उपन्यासकार भाषा के माध्यम से रचना में सजीवता लाता है । सही भाषा के प्रयोग से पात्र सजीव एवं स्वाभाविक लगते हैं। यदि उपन्यासकार अपना विचार रख रहा हो तो उसकी अपनी भाषी होनी चाहिए, किन्तु पात्रों की संवादों की भाषा पात्रों के मनःस्थिति के अनुरूप होनी चाहिए। सफल उपन्यासकार प्रायः सरल एवं बोलचाल की भाषा का प्रयोग करता है। 'गोदान' के पात्र अक्सर अपने चरित्र के अनुकूल भाषा बोलते हैं, फलतः इसमें स्वाभाविकता की रक्षा हुई है ।

 

उपन्यास में प्रतिपाद्य

  • किसी भी रचना के पीछे कोई-न-कोई उद्देश्य होता है । सफल उपन्यासकार वही है जो अपना उद्देश्य सहजता से पाटकों तक पहुँचा दे। 'गोदान' उपन्यास लिखने के पीछे प्रेमचंद का क्या उद्देश्य था ? वे गाँव में पले थे। गाँव में किसानों की आर्थिक दुर्दशा उन्होंने देखी थी। किसानों का शोषण कैसे होता है, यह उन्होंने देखा था । कृषक जीवन के यथार्थ रूप को प्रस्तुत करना तथा उनके शोषण को दिखाना उनका उद्देश्य था, जिसमें उन्हें पूर्ण सफलता मिली है ।

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