हंगुल परियोजना Project Hangul
हंगुल परियोजना Project Hangul
हंगुल यूरोपीय रेंडियर
प्रजाति का हिरण है। यह अब कश्मीर स्थित दाजीग्राम राष्ट्रीय उद्यान में ही पाया
जाता है। इसे कश्मीरी स्टैग के नाम से भी जाना जाता है। यह जम्मू कश्मीर का राजकीय पशु है।
यह संकटापन्न प्राणी है। 20वीं शताब्दी के
प्रारंभ में इनकी संख्या लगभग 5 हजार थी जो वर्ष 1970 में घटकर मात्र 150 रह गई अतः इसके संरक्षित करने एवं इसकी संख्या में वृद्धि
हेतु वर्ष 1970 में आईयूसीएन
तथा वैश्विक कल्याण कोष के सहयोग से जम्मू कश्मीर में हंगुल परियोजना का शुभारंभ किया गया।
कश्मीरी हंगुल
कश्मीरी बारहसिंगे को
कश्मीर में स्थानीय रूप से हंगुल भी कहा जाता है जो भारत में यूरोपीय लाल हिरणों
की एकमात्र उप-प्रजाति है। हंगुल जम्मू-कश्मीर का राजकीय पशु भी है।
पहली बार 1844 में अल्फ्रेड
वैगनर द्वारा चिह्नित इस प्रजाति के बारे में कहा जाता है कि इसने मध्य एशिया के
बुखारा से कश्मीर तक यात्रा की है। पहले यह प्रजाति कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के
चंबा ज़िले के कुछ हिस्सों,
झेलम और चेनाब
नदियों के उत्तर एवं पूर्व में 65 किलोमीटर के दायरे में पाई जाती थी।
वर्तमान में हंगुल की
आबादी श्रीनगर के पास दाचीगाम वन्यजीव अभयारण्य (Dachigam Wildlife Sanctuary) तक सीमित है, जो 141 वर्ग किलोमीटर
में फैला हुआ है।
अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति
संरक्षण संघ (International
Union for Conservation of Nature-IUCN) ने इसे गंभीर रूप से
विलुप्तप्राय पशु घोषित किया है।
श्रीनगर के पास दाचीगाम
राष्ट्रीय उद्यान (Dachigam
National Park) को हंगुल का आखिरी अविवादित आवास माना जाता है।
जंगलों में आधिपत्य, चारागाहों की कमी और इनकी खाल और सींगों के लिए इनके शिकार से इनकी संख्या काफी कम हो गई ।
कश्मीर में इस हिरण का
इतना शिकार हुआ कि इस प्रजाति को संरक्षित करना मुश्किल हो गया ।
रेड डाटा बुक ऑफ इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर एंड नेचुरल रिर्सोसेज (आइयूसीएन) ने वर्ष 1947 के बाद से ही इस हिरण को लुप्तप्राय घोषित किया था ।
वर्ष 1970 में
जम्मू-कश्मीर सरकार ने आइयूसीएन और वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड से एक संयुक्त परियोजना
शुरू की ताकि हंगुल प्रजाति को संरक्षित रखने के लिए एक ठोस प्रबंधन में
किया जाए ।
हंगुल हिरण की प्रमुख विशेषताएँ
- हंगुल 3 से 18 के झुंड में रहते हैं।
- इन हिरणों के लिए घने जंगल, जलवायु और ठंडा तापमान की जरूरत होती है।
- उत्तर भारत में यह कश्मीर, हिमाचल प्रदेश के चंबा के जंगलों में मिलते हैं।
हंगुल के संरक्षण हेतु प्रयास
- अब यह प्रजाति केवल डाचीगाम नेशनल पार्क तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि इसके संरक्षण और प्रजनन के लिए सेंट्रल जू अथॉरिटी की ओर से वित्तीय सहायता मिलेगी।
- यह ब्रीडिंग सेंटर घाटी के तराल और शिकारगाह इलाके में बनाए जाएंगे।
- भारतीय डाक विभाग ने इसे संरक्षित करने के लिए एक डाक टिकट भी शुरू किया है ।
- वन्य जीव सरंक्षण विभाग
ने पर्यावरण, वन एवं वातावरण
परिवर्तन विभाग की भी सहायता ली जाएगी |
- बर्फीले क्षेत्रों में
रहने वाले इस प्रजाति के हिरणों को गर्मियों के दौरान प्रजनन में कोई बाधा न आए, इसके लिए जंगलों
के दायरे को भी बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है |
- हंगुल सहित अन्य वन्य जीव प्रजातियों की सुरक्षा हेतु गश्त लगाई जाएगी ।
- इसके लिए विभाग की ओर से अधिकारियों और सुरक्षा गार्ड सहित विशेषज्ञों की टीमें बनाई गई हैं ।
- रोटेशन में ये टीमें एक हजार से अधिक किलोमीटर वर्ग वाले पार्क की हर रोज गश्त करेंगी, ताकि वन्य प्राणियों के शिकार पर रोक लगाई जा सके ।
- हन्गुल की संख्या के आकलन
का यह प्रयास दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान और कश्मीर घाटी में आसपास स्थित क्षेत्र मे
किया गया |
- सरकार ने एक ‘हंगुल संरक्षण
कार्य योजना’ (Hangul
conservation action plan) तैयार की है जिसमें हिरण, इसके संरक्षण और सुरक्षा के मामले में सर्वोच्च प्राथमिकता
दी गई है |
- दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान, जिसे पहले
प्रशासनिक रूप से दो वन्यजीव डिवीजनों के बीच विभाजित किया गया था, बेहतर प्रबंधन
सुनिश्चित करने के लिए अब एक केन्द्रीय वन्यजीव प्रभाग के अंतर्गत एकल प्रशासनिक
इकाई बना दिया गया है |
- हंगुल के अंतिम ज्ञात निवास स्थान में बेहतर प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए, "दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान और आसन्न संरक्षण की सीमाओं के सीमांकन केंद्रीय वन्यजीव प्रभाग के तहत भी अभ्यारण्य शुरू किया गया है जो प्रवर्तन और सुरक्षा को मजबूत करेगा।
- हंगुल नस्ल के संरक्षण के
लिए शिकारगाह तराल ( Shikargah
Tral ) में प्रजनन केंद्र की स्थापना की जा रही है |
- गर्मियों में ऊपरी दाचीगम
क्षेत्रों में चराई को प्रतिबंधित करने के प्रयास किए जा रहे हैं |
- स्थायी कैबिनेट के फैसले के अनुसार दाचीगम से भेड़ प्रजनन फार्म स्थानांतरित करने के लिए भी प्रयास चल रहा है जिससे अप्रत्यक्ष रूप से हंगुल सम्बन्धी रोगजनक गतिविधियों की रोकथाम में मदद मिलेगी
- राष्ट्रीय उद्यान में पर्यटकों; पार्क के अंदर अनावश्यक और अपरिहार्य वाहनों की आवाजाही पर पूर्ण प्रतिबंध के विनियमन को लागू किया जा रहा है
- संवेदनशील क्षेत्रों में उपलब्ध सीमावर्ती कर्मचारियों द्वारा नियमित गश्त और अवैध शिकार को विफल करने हेतु निगरानी को सुनिश्चित किया जा रहा है।
- देहरादून स्थित वाइल्ड लाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया (डब्लूआईआई) के विशेषज्ञों के सहयोग से हंगुल की संख्या की नियमित रूप से निगरानी की जा रही है।
- हंगुल के व्यवहार और
पारिस्थितिकी से सम्बंधित अध्ययन और अनुसन्धान को भी प्राथमिकता दी जा रही है |
- डब्ल्यूआईआई एवं
शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (Sher-e-Kashmir University of
Agriculture Sciences and Technology-SKUAST) में इस सम्बन्ध
में शोध किए जा रहे हैं |
जैव विविधताः संपूर्णअध्ययन सामग्री
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