मियावाकी पद्धति | Miyawaki method
मियावाकी पद्धति (Miyawaki method)
जापानी पर्यावरण विशेषज्ञ डी. अकीरा मियावाकी ने वृक्षारोपण की इस तकनीक की खोज की थी। इस पद्धति में पौधों को एक-दूसरे से बहुत कम दूरी पर लगाया जाता है जिससे पौधे केवल ऊपर से सूर्य का प्रकाश प्राप्त करते है और बग़ल की तुलना में ऊपर की ओर वृद्धि करते हैं। इस पद्धति द्वारा सीमित संसाधनों में तीव्रता से वृक्षारोपण द्वारा हरियाली सुनिश्चित की जा सकती है।
प्रयागराज नगर निगम द्वारा पहली बार जापान की मियावाकी पद्धति से पौधरोपण का कार्य किये जाने की घोषणा की गयी है। इस पद्धति से कई देशों में सफलता पूर्वक पौधरोपण का कार्य किया जा चुका है तथा वर्तमान में भारत वर्ष के कई शहरों में इसका प्रयोग किया जा रहा है। केरल सरकार द्वारा भी वन रोपण के लिए 'मियावाकी वनीकरण विधि' को अपनाया गया है।
मियावाकी सिद्धान्त के मुख्य बिन्दु
- पेड़ पौधों के बीच कोई निश्चित दूरी नहीं रखनी चाहिए।
- वनीकरण से पहले जमीन को उपजाऊ बनाने के प्रयास करने चाहिए।
- बंजर जमीन में पेड़ पौधों, वनस्पतियों, झांड़ियों और वृक्षों का सघन रोपण किया जाना चाहिए। एक हेक्टेयर में 10,000 पौधे लगाये जा सकते हैं।
- स्थानीय प्रजातियों के बीज को रोपकर वनों को और घना बनाया जा सकता है।
- पौधों को रोपने के बाद कम से कम अगला बरसाती मौसम आने तक उनकी सिंचाई की जानी चाहिए।
- खरपतवार की रोकथाम और मिट्टी में वाष्पन से नमी की कमी को दूर करने के लिए पलवार बिछानी चाहिए।
- नालियों में पानी बहाकर सिंचाई के स्थान पर स्प्रिंकलर विधि अपनाई जानी चाहिए।
- बरगद जैसे पेड़ जिनका वितान बहुत बड़ा होता है उन्हें नहीं लगाना चाहिए।
- 2 से 3 वर्ष तक इस वन की देखभाल करनी होगी इसके बाद यह आत्म निर्भर हो जायेगा।
- इस तकनीक के माध्यम से मानव निर्मित वन लगाने के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।
मियावाकी वनीकरण सिद्धान्त के लाभ
- इस सिद्धान्त के द्वारा 2 फीट चौड़ी और 30 फीट पट्टी में 100 से भी अधिक पौधे लगाये जा सकते हैं।
- इसमें कम खर्च में पौधे को 10 गुना तेजी से उगाया जा सकता है जिससे वृक्ष शीघ्र ही घने हो जाते हैं।
- पौधों को पास-पास लगाने से इन पर खराब मौसम का असर नहीं होता, न ही गर्मी में नमी का अभाव होता है जिससे ये हरे-भरे रहते हैं।
- इससे पौधों में दुगनी तेजी से वृद्धि होती है। और तीन वर्ष बाद उनकी देखभाल नहीं करनी पड़ती है।
- कम क्षेत्र में घने वृक्ष ऑक्सीजन बैंक का काम करते हैं। इस तकनीक का प्रयोग न केवल वनों के लिए बल्कि आवासीय परिसर में भी किया जा सकता है।
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