प्रौढ़ शिक्षा | मूल्य शिक्षा | Adult and Value Education in Hindi
प्रौढ़ शिक्षा Adult Education
जागरूकता और विकास के दौर में समाज का सभ्य और
साक्षर होना उसकी मजबूती हो दोगुना कर देता है। भारत के स्वतंत्र होने के पश्चात्
से ही सरकार की यह प्रमुख चिंता रही है। सरकार ने निरक्षरता की गंभीर समस्या से
निजात पाने के लिए सन 1948 में श्री मोहन लाल सक्सेना की अध्यक्षता
मे गठित समित ने प्रौढ़ शिक्षा को समाज शिक्षा की संज्ञा देने का निर्णय लिया।
केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड का 15वाॅ अधिवेशन जनवरी 1949 ई. में इलाहबाद में हुआ। इस अधिवेशन में तत्कालीन शिक्षा मंत्री श्री मौलाना अब्दुल कलाम ने प्रौढ़ शिक्षा की नवीन अवधारणा देते हुए कहा कि
‘प्रौढ़ शिक्षा‘ को केवल व्यक्तियों को साक्षर बनाने तक सीमित नहीं होना चाहिए इसमें उस शिक्षा को भी सम्मिलत किया जाए जो प्रत्येक नागरिक को लोकतांत्रिक सामाजिक व्यवस्था में ढलने में सहायता करे।"
ब्राइसन के अनुसार प्रौढ़ शिक्षा
‘ये
शिक्षा सभी अवसरों तथा परिस्थितियों में शिक्षा है।
मारगन होम्स एंव बण्डी के अनुसार
‘ये
शिक्षा प्रौढ़ व्यक्ति का वह प्रयास है जिससे वह नयी शिक्षा ले सके।‘‘
रीन्स, फ्रेन्सर एवं हाउले के अनुसार
‘‘इस
शिक्षा का संबंध तीनों पक्षों से होता है व्यवसायिक, व्यक्तिगत या नागरिक के रूप में।
सन् 1991 की
जनगणना के अनुसार जहां साक्षर व्यक्तियों की संख्या में वृद्धि वहीं 1951 में जहां साक्षर व्यक्तियों की संख्या
लगभग 60 मिलियन थी वहीं 1991 में बढ़कर 359 मिलियन हो गई थी।
मूल्य शिक्षा Value Education in Hindi
मूल्य शिक्षा क्या है
मूल्य शिक्षा का अर्थ
मूल्य शिक्षा का अंग्रेजी
शब्द वेल्यू (Value) है। जो लेटिन भाषा के शब्द ‘वैलियर‘ (Valere) से बना है। जिसका अर्थ -योग्यता, उपयोगिता, उत्तमता, कीमत तथा महत्व आदि है। दर्शनशास्त्र में मूल्य एक शुद्ध तत्व हैं
अर्थात् वह शिक्षा जो उत्तम, उपयोगी
तथा महत्वपूर्ण हो मूल्य शिक्षा कहलाती है।
आज का युग भौतिकावादी युग है। आध्यात्मिक तथा
मानवीय मूल्यों की जगह आज संसार में भौतिक प्रगति को विशेष महत्व दिया जाता है।
परिणामस्वरूप आज का मानव अपनी भौतिक प्रगति हेतु अच्छे-बुरे सभी प्रकार के साधन
अपनाता है। इस प्रवृत्ति ने संसार में असंतोष और मानसिक तनाव को जन्म दिया है। आज
का व्यक्ति मुख्यतया इस कारण दुःखी है क्योंकि वह नैतिक मूल्यों की उपेक्षा करने
लगा है। अतः ऐसी दशा में मूल्य शिक्षा का महत्व स्वतः ही बढ़ जाता है।
मूल्य शिक्षा की परिभाषाएं
हरबर्ट के अनुसार मूल्य शिक्षा
‘‘निम्न
स्तर प्रवृत्तियों का दमन एवं उच्चतर विचारों का सृजन ही मूल्य शिक्षा है।‘‘
महात्मा गांधी के अनुसार मूल्य शिक्षा
‘‘मूल्य
शिक्षा में सदा सार्वजनिक कल्याण की भावना विद्यमान रहती है। उसका लाभ उसको या
उसके परिवार को नहीं मिलता वरन् उसमें प्रत्येक मानव हेतु दया भाव निहित होता है।
कार्य अच्छा हो, यह पर्याप्त नहीं है, उसके करने के पीछे अच्छे इरादे का होना
भी जरूरी है। कोइ्र दया से द्रवित होकर दरिद्र को भोजन करा देता है और काई यश
प्राप्ति हेतु भोजन कराये तो पहले का कार्य नैतिक हुआ दूसरे का कदापि नहीं।‘‘
मूल्यपरक शिक्षा की आवश्यकता
शिक्षा एक प्रक्रिया है इसके द्वारा बालक का बौद्धिक विकास होता है। शिक्षा व्यक्ति के सामाजिक विकास में उसकी सहायता करती है। लेकिन मूल्य शिक्षा व्यक्ति के व्यवहार में बदलाव लाती है। व्यक्ति के व्यवहार में यह बदलाव देश और समाज हेतु जरूरी है। अगर मूल्य शिक्षा की उपेक्षा की जाती है तो व्यक्ति का विकास सीमित हो जाता है लेकिन बालक की शिक्षा सर्वांगीण विकास की और केन्द्रित होनी चाहिए क्योंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।
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