भक्ति आंदोलन सामान्य ज्ञान | Bhakti aandolan Samanya Gyan
- भक्ति आंदोलन के प्रतिपादक रामानुजाचार्य का जन्म 1017 ई. में दक्षिण भारत में हुआ। इन्होंने श्रीरंगम में आचार्य के पद पर रहते हुए वैष्णव धर्म का प्रचार-प्रसार किया। रामानुजाचार्य ने शंकर के अद्वैतवाद का खंडन किया और विशिष्टाद्वैत के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। इन्होंने ब्रह्म को निर्गुण न मानकर सगुण माना और मोक्ष प्राप्ति के लिये भक्ति को श्रेष्ठ साधन माना।
- निम्बार्काचार्य ने द्वैताद्वैत के सिद्धांत का प्रतिपादन किया, जिसे भेदाभेद सिद्धांत के नाम से भी जाना जाता है। इनका सम्प्रदाय ‘सनक सम्प्रदाय’ था। इन्होंने ‘वेदांत परिजात सौरभ’ की रचना की। साथ ही आत्मसमर्पण का मत प्रतिपादित कर राधा-कृष्ण को आराध्य देव माना।
- महाराष्ट्र में भक्ति आंदोलन को लोकप्रिय बनाने में नामदेव ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। इनका जन्म 1270 ई. में पंढरपुर में हुआ तथा ये ‘बरकरी सम्प्रदाय’ से संबंधित थे। बरकरी सम्प्रदाय के प्रमुख देवता विट्ठल अथवा बिठोवा जी हैं। इनके प्रमुख संत तुकाराम, ज्ञानेश्वर और नामदेव हैं। महाराष्ट्र में सामाजिक और धार्मिक क्रांति लाने का श्रेय ज्ञानेश्वर, नामदेव, तुकाराम और रामदास जैसे भक्ति सुधारकों को दिया जाता है। रामदास महाराष्ट्र में धरकरी सम्प्रदाय के संस्थापक थे जो कि एक चिंतन प्रधान सम्प्रदाय है और इसके अनुयायी राम की पूजा करते हैं।
प्रमुख सम्प्रदाय और उनके संस्थापक
- विशिष्टाद्वैतवाद 12 वीं शताब्दी संस्थापक रामानुजाचार्य
- द्वैतवाद 13 वीं शताब्दी संस्थापक मध्वाचार्य
- शुद्धाद्वैतवाद 14 वीं शताब्दी संस्थापक विष्णुस्वामी
- द्वैताद्वैतवाद 15 वीं शताब्दी संस्थापक निम्बार्काचार्य
- श्री सम्प्रदाय- निम्बार्काचार्य
- सनक सम्प्रदाय- तुकाराम
- वारकरी सम्प्रदाय-. तुकाराम
- रुद्र सम्प्रदाय-वल्लभाचार्य
प्रसिद्ध एकेश्वरवादी संत कबीर
- कबीर अकबर के नहीं बल्कि सुल्तान सिकंदर लोदी के समकालीन थे।
- कबीर संत के साथ-साथ एक समाज सुधारक भी थे। उन्होंने तत्कालीन समाज में व्याप्त बाह्य आडंबरों का पुरज़ोर विरोध किया और एकेश्वरवाद पर बल दिया।
- कबीर ने ईश्वर की निर्गुण भक्ति पर बल दिया तथा मूर्तिपूजा,अवतारवाद आदि का विरोध किया।
- कबीर का जन्म 15वीं शताब्दी में वाराणसी में हुआ था और इनकी मृत्यु मगहर में हुई थी।
मध्यकालीन संत तुलसीदास
- रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की है,जबकि तुलसीदास ने अवधी भाषा में रामचरितमानस की रचना की है। इसके अतिरिक्त तुलसीदास ने ‘वैराग्य संदीपनी’, ‘कवितावली’, ‘श्रीकृष्ण गीतावली’ व ‘विनयपत्रिका’ आदि प्रमुख ग्रंथों की रचना की है। अतः कथन 1 असत्य है।
- तुलसीदास मुगल सम्राट अकबर के समकालीन थे। अतः कथन 2 सत्य है।
- तुलसीदास ने सगुण भक्ति पर बल दिया और अवतारवाद का समर्थन किया।
प्रसिद्ध संत सूरदास
- सूरदास संत वल्लभाचार्य के शिष्य थे जो ‘पुष्टिमार्ग’ के संस्थापक और प्रवर्तक थे।
- अष्टछाप की स्थापना वल्लभाचार्य के पुत्र विट्ठल नाथ ने की थी। यह आठ भक्त कवियों की मंडली थी। इसके अंतर्गत वल्लभाचार्य के चार शिष्य- कुंभनदास, सूरदास, परमानंददास और कृष्णदास तथा अन्य चार विट्ठलनाथ शिष्य-गोविंदस्वामी, नंददास, छीतस्वामी और चतुर्भुजदास थे। ये आठों भक्त कवि श्रीनाथ जी के मंदिर में श्रीकृष्ण लीला में सदैव उनके साथ रहते है। इस कारण इन्हें ‘अष्टसखा’ भी कहा जाता है। है।
- सूरदास संत तुलसीदास के समकालीन थे।
- उल्लेखनीय है कि सूरदास ने ‘सूरसागर’, ‘सूरसारावली’ और ‘साहित्य लहरी’ की रचना ब्रजभाषा में की है।
भारत के प्रसिद्ध संत शंकरदेव
- शंकरदेव एक वैष्णव संत थे, अतः इन्होंने विष्णु की उपासना पर केंद्रित वैष्णव धर्म प्रसार किया न कि शैवधर्म का। अतः कथन (b) असत्य है।
- एकशरण सम्प्रदाय की स्थापना की तथा असम में व्यापक धार्मिक सुधार का कार्य किया
- शंकरदेव एक मात्र ऐसे वैष्णव संत थे जिन्होंने मूर्ति के रूप में कृष्ण की पूजा का विरोध किया।
सिक्ख धर्म के प्रवर्तक गुरु नानक
- सिक्ख धर्म के प्रवर्तक गुरु नानक का जन्म सन् 1469 ई. में रावी नदी के किनारे तलवंडी (पाकिस्तान) नामक स्थान पर हुआ था। इनकी मृत्यु सन् 1539 ई. में करतारपुर में हुई।
- सिक्खों के पवित्र ग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ को प्रथम बार गुरु अर्जुन देव (पाँचवें गुरु) द्वारा संकलित किया और गुरु गोबिंद सिंह ने पूर्णता प्रदान की। अतः कथन 1 असत्य है।
- गुरु नानक का जीवनकाल 1469-1539 है और मुगल सम्राट बाबर का जीवनकाल 1483-1530 है। अतः स्पष्ट है कि कथन 2 सत्य है।
- पंजाबी संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित भाषाओं में एक है इसकी लिपि गुरुमुखी है। ‘गुरुमुखी लिपि’ के जनक सिक्खों के दूसरे गुरु ‘अंगद’ है। अतः कथन 3 असत्य है।
- उल्लेखनीय है कि गुरु नानक की रचना ‘जपुजी’ सिक्खों के लिये काफी महत्त्वपूर्ण है।
- अमृतसर के संस्थापक सिक्खों के चौथे गुरु रामदास थे।
- स्वर्ण मंदिर की स्थापना सिक्खों के पाँचवें गुरु अर्जनदेव ने की। इस मंदिर का निर्माण कार्य लगभग 1589-1604 ई. तक चला, इसे हरमिंदर साहिब के नाम से भी जाना जाता है।
- गुरु रामदास का जन्म 1534 ई. में हुआ था और ये 1581 ई. तक गुरु के पद पर बने रहे थे। इस तरह ये अकबर के समकालीन थे।
- अकाल तख्त अर्थात् कालातीत सिंहासन सिक्खों की धार्मिक सत्ता का प्रमुख केन्द्र है। यह स्वर्णमंदिर के सामने स्थित है। इसकी स्थापना सिक्खों के छठें गुरु हरगोविंद सिंह ने की थी।
खालसा पंथ
- खालसा पंथ की स्थापना सिक्खों के दसवें गुरु गोविंद सिंह ने 1699 ई. में आनंदपुर, पंजाब में की थी।
- खालसा पंथ में सिक्ख लड़कों व लड़कियों को दीक्षित करने के लिये ‘पाहुलु समारोह’ का आयोजन किया जाता है। इस कार्यक्रम के तहत दीक्षा प्राप्त करने वाले को एक ही प्याले से एक पेय पिलाया जाता है जो जाति भेद की समाप्ति को दर्शाता है।
- खालसा पंथ में दीक्षित होने वाले पुरुष दीक्षितों को पाँच ककार करने को शपथ लेनी पड़ती है जो खालसा पंथ के प्रतीक हैं। ये हैं- केश, कंघा, कच्छा, कड़ा और कृपाण।
- खालसा संगत खालसा पंथ से भिन्न है। खालसा संगत का अभिप्राय ‘सिक्खों की सभा’ से है। इसे सामान्यतः साध-संगत अर्थात् पवित्र लोगों की सभा कहा जाता है।
‘ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या
- दार्शनिक ज्ञानमार्गियों में सबसे अधिक ख्याति शंकराचार्य को ही प्राप्त हुई। इन्होंने अद्वैतवाद के सिद्धांत पर ज़ोर दिया जिसका आधार ‘ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या’ है। इन्होंने कहा आत्मा परमात्मा ही है। वह उससे भिन्न या पृथक् नहीं है। सांसारिक माया के कारण मानव आत्मा-परमात्मा की एकता को पहचानने की भूल करता है।
- उल्लेखनीय है कि शंकर ने ज्ञान के साथ-साथ निर्गुण ब्रह्म की उपासना का भी प्रचार किया। साथ ही साथ ईश्वर को शिव का स्वरूप देकर जनसाधारण के लिये शैव उपासना और पंडितों के लिये ज्ञान मार्ग द्वारा एकेश्वरवाद का मार्ग प्रशस्त किया।
धार्मिक आंदोलन महत्वपूर्ण तथ्य
- अचिंत्य भेदाभेदवाद का संबंध मध्यगौड़ीय सम्प्रदाय के प्रवर्तक चैतन्य महाप्रभु से है।
- निपख संप्रदाय के प्रवर्तक दादू दयाल थे, जबकि हितहरी वंश ने राधा वल्लभ संम्प्रदाय की स्थापना की थी।
- भावार्थदीपिका (ज्ञानेश्वरी) के रचनाकार संत ज्ञानेश्वर थे। इसके अतिरिक्त इन्होंने ‘अमृतानुभव’ नामक ग्रंथ भी लिखा है।
- एकेश्वरवाद से तात्पर्य एक ईश्वर की सत्ता को मानने से है। उत्तर भारत में कबीर, नानक, रैदास, धन्ना आदि ऐसे संत हुए जो एकेश्वरवाद के पोषक थे, जबकि तुलसीदास एकेश्वरवादी नहीं है। यद्यपि उन्होंने सगुण भक्ति के माध्यम से ‘राम की उपासना’ पर सर्वाधिक बल दिया।
- संत कवि दादू दयाल ने निपक्ष (निपख) मार्ग का अनुमोदन किया एवं परमब्रह्म सम्प्रदाय की स्थापना कर गुजरात एवं राजस्थान में भक्ति का प्रचार प्रसार किया।
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