भारत में आपातकाल महत्वपूर्ण तथ्य | Emergency in India Fact in Hindi
भारत में आपातकाल महत्वपूर्ण तथ्य
भारत में आपातकाल संबंधी प्रावधान
संविधान के भाग-18 में आपातकाल संबंधी प्रावधान किया गया है।
संविधान में तीन प्रकार के आपातकाल का प्रावधान हैः-
राष्ट्रपति शासन/ संवैधानिक आपातकाल ➤ अनुच्छेद -356
वित्तीय आपातकाल ➤ अनुच्छेद-360
- 44वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 के द्वारा आंतरिक अशांति को ‘सशस्त्र विद्रोह’ शब्द से अन्तःस्थापित किया गया है। 1975 में ‘आंतरिक अशांति’ के आधार पर राष्ट्रीय आपात लगाया गया था।
- राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा के तीन आधार हैः युद्ध, बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह (आंतरिक अशांति के स्थान पर)।
- राष्ट्रपति राष्ट्रीय-आपात की घोषणा तभी कर सकता है, जब मंत्रिमंडल लिखित रूप से सिफारिश करे।
- सम्पूर्ण संविधान में केवल अनुच्छेद-352 में ही ‘मंत्रिमंडल’/‘कैबिनेट’ शब्द का उपयोग किया गया है, अन्यथा सभी जगह ‘मंत्रिपरिषद’ शब्द का प्रयोग किया गया है.
- राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा जारी होने के एक महीने के अन्दर संसद के दोनों सदनों द्वारा अनुमोदित होना आवश्यक है अन्यथा आपातकाल की उद्घोषणा समाप्त हो जाएगी।
- एक माह का प्रावधान 44वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 के द्वारा किया गया है। इससे पूर्व दो माह का प्रावधान था।
- यदि दोनों सदनों द्वारा अनुमोदन हो गया है तो राष्ट्रीय आपातकाल छः माह तक जारी रहेगा। इसके बाद प्रत्येक छः माह पर संसद इसे अनंतकाल तक बढ़ा सकती है।
- यदि लोकसभा का विघटन एक माह के अदंर बिना अनुमोदित किये हो जाता है तो लोकसभा के पुनर्गठन के पश्चात् पहली बैठक से 30 दिनों तक जारी रहेगा। इसकी प्रकार लोकसभा द्वारा छः माह के अन्दर बिना अनुमोदित किये विघटन हो जाता है तो लोकसभा के पुनर्गठन के पश्चात पहली बैठक से 30 दिनों तक जारी रहेगा।
- राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा अथवा इसे जारी रखने का प्रत्येक प्रस्ताव संसद के प्रत्येक सदन द्वारा विशेष बहुमत (प्रत्येक सदन की कुल सदस्य संख्या का बहुमत तथा उपस्थित एवं मत देने वाले सदस्यों का 2/3 बहुमत द्वारा पारित) से पारित होना आवश्यक है।
- राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा सम्पूर्ण भारत में अथवा उसके किसी भाग के लिये की जा सकती है।
- राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा के समय संसद का कार्यकाल एक बार में एक वर्ष के लिये बढ़ाया जा सकता है। संसद का कार्यकाल एक-एक वर्ष के लिये कितनी भी बार बढ़ाया जा सकता है,अर्थात बढ़ाने की कोई सीमा निर्धारित नहीं है, किन्तु आपात की उद्घोषणा की समाप्ति के पश्चात् इसका विस्तार छः माह से ज्यादा नहीं हो सकता। इसी तरह संसद राज्य विधानसभा का कार्यकाल एक बार में एक वर्ष के लिये (कितनी भी बार) बढ़ा सकती है, किन्तु आपातकाल की समाप्ति के पश्चात् इसका विस्तार छः माह से अधिक नहीं हो सकता।
- राष्ट्रपति राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा को किसी भी समय एक दूसरी उद्घोषणा द्वारा समाप्त कर सकता है। ऐसी उद्घोषणा को संसदीय अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होती।
- राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा से संबंधित 44वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 के द्वारा राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा राष्ट्रपति तभी करेगा, जब मंत्रिमंडल/कैबिनेट लिखित रूप से सलाह देता है। अनुच्छेद 352 में ‘मंत्रिमंडल’ को परिभाषित किया गया है।
- राष्ट्रीय आपातकाल के समय केन्द्र की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार राज्य की कार्यपालिका शक्ति पर हो जाता है। केन्द्र, राज्य को किसी भी विषय पर कार्यकारी निर्देश दे सकता है। अर्थात राज्य केन्द्र के पूर्ण नियंत्रण में हो जाता है किन्तु राज्य मंत्रिपरिषद निलंबित/विघटित नहीं होती।
- राष्ट्रीय आपातकाल के समय केन्द्र-राज्य शक्ति विभाजन का वितरण निलंबित हो जाता है। संसद राज्य सूची पर विधि बना सकती है, किन्तु राज्य की विधायिका शक्ति निलंबित नहीं होती और न ही राज्य की विधायिका निलंबित/विघटित होती है।
- संसद द्वारा राष्ट्रीय आपातकाल में राज्यसूची में बनाई गई विधि आपातकाल की समाप्ति के पश्चात् छः माह तक प्रभावी रहती है। राष्ट्रीय आपातकाल के समय यदि संसद का सत्र नहीं चल रहा होता है तो राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर राज्य सूची के विषय में कानून बना सकता है।
- राष्ट्रीय आपात के समय राष्ट्रपति केन्द्र द्वारा राज्यों को दिये जाने वाले धन/वित्त को कम अथवा समाप्त कर सकता है। राष्ट्रपति के ऐसे प्रत्येक आदेश को संसद के दोनों के समक्ष रखा जाता है।
- जब राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा प्रवर्तन में रहती है, तब संविधान के अनुच्छेद-358 के तहत अनुच्छेद-19 के तहत प्राप्त छः मूल अधिकारों का स्वतः ही निलंबन हो जाता है। इसके निलबंन के लिये अलग से आदेश नहीं निकालना पड़ता है। जब आपातकाल की उद्घोषणा प्रवर्तन में नहीं रहती है तो अनुच्छेद 19 स्वतः ही पुनर्जीवित हो जाता है।
- 44वें संविधान संशोधन अधिनियम 1978 के द्वारा अनुच्छेद-358 पर प्रतिबंध लगाया गया कि अनुच्छेद-19 के तहत मूल अधिकारों का निलंबन केवल युद्ध या बाह्य आक्रमण के आधार पर ही निलंबित किया जा सकता है। इसका निलंबन सशस्त्र विद्रोह के आधार पर नहीं किया जा सकता।
- अनुच्छेद-19 द्वारा प्रदत्त मूल अधिकार राष्ट्रीय आपातकाल में सम्पूर्ण अवधि के लिये निलंबित किये जाते हैं।
- राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा के समय संविधान के अनुच्छेद-359 के तहत केवल उन्हीं मौलिक अधिकारों का निलंबन हो सकता है, जिनका उल्लेख राष्ट्रपति के आदेश में होता है और उतनी ही अवधि के लिये निलंबित होते हैं, जितनी अवधि का उल्लेख राष्ट्रपति के आदेश में होता है।
- अनुच्छेद-359 युद्ध, बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह (आंतरिक आपातकाल) तीनों परिस्थितियों में लागू किया जा सकता है। यह सम्पूर्ण अवधि या अल्प अवधि के लिये हो सकता है।
- अनुच्छेद-358 संपूर्ण देश में तथा अनुच्छेद-359 संम्पूर्ण देश या देश के किसी भाग पर लागू किया जा सकता है।
- अनुच्छेद-359 के तहत अनुच्छेद-20 और 21 का निलंबन नहीं किया जा सकता है, जबकि अनुच्छेद-358 के तहत अनुच्छेद-19 के तहत प्राप्त सभी मूल अधिकारों का निलंबन हो जाता है। 44वें संविधान संशोधन से पूर्व अनुच्छेद- 20 एवं 21 का निलंबन किया जा सकता था, किंतु 44वें संविधान संशोधन अधिनियम के बाद राष्ट्रीय आपातकाल के समय अनुच्छेद-20 और 21 का निलंबन नहीं हो सकता अर्थात इस संशोधन के द्वारा अनुच्छेद -359 यह पर प्रतिबंध लगाया गया।
राज्यों में राष्ट्रपति शासन
- राज्यों में राष्ट्रपति शासन को संवैधानिक आपातकाल अथवा राज्य आपात के नाम से भी जानते हैं। वहाँ की शासन व्यवस्था को राज्य का राज्यपाल राष्ट्रपति के नाम पर राज्य सचिव की सहायता से या राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किसी सलाहकार की सहायता से चलाता है।
- अनुच्छेद - 356
- अनुच्छेद - 365
- अनुच्छेद-365 में प्रावधान है कि यदि कोई राज्य केन्द्र के निर्देशों का पालन करने या उसे प्रभावी करने में असफल रहता है तो राष्ट्रपति द्वारा यह माना जाएगा कि वहाँ की शासन व्यवस्था संविधान के उपबंधों के अनुसार नहीं चलाई जा सकती और वहाँ राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है।
- अनुच्छेद-356 में उपबंध है कि राष्ट्रपति को राज्य के राज्यपाल से प्रतिवेदन मिलने पर या यह समाधान हो जाता है कि ऐसी स्थितियाँ उत्पन्न हो गई हैं, जिससे उस राज्य का शासन संविधान के उपबंधों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता, तो राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है।
- संविधान के अनुच्छेद-356 के तहत भारत में राष्ट्रपति शासन सर्वप्रथम पेप्सू (PEPSU), अर्थात पटियाला एण्ड ईस्ट पंजाब स्टेट यूनियन में वर्ष 1951 में लगाया गया था।
- राष्ट्रपति शासन की उद्घोषणा जारी होने के 2 माह के अन्दर इसका अनुमोदन संसद के दोनों सदनों द्वारा होना आवश्यक है। यदि लोकसभा 2 माह के अन्दर बिना अनुमोदन किये विघटित हो जाती है तो लोकसभा के पुनर्गठन के पश्चात पहली बैठक से 30 दिन के अन्दर अनुमोदन करना आवश्यक है, अन्यथा राष्ट्रपति शासन प्रवर्तन में नहीं रहेगा। उसी तरह संसद द्वारा राष्ट्रपति की स्वीकृति के पश्चात् 6 माह के अन्दर संसद द्वारा इसका अनुमोदन किया जाना आवश्यक है। यदि लोकसभा बिना अनुमोदन किए छः माह के अन्दर विघटित हो जाती है तो लोकसभा के पुनर्गठन होने एवं पहली बैठक से 30 दिनों के अन्दर अनुमोदन किया जाना आवश्यक है। यह अनुमोदन संसद के प्रत्येक सदन द्वारा उपस्थित एवं मत देने वाले सदस्यों के बहुमत (सामान्य बहुमत) द्वारा किया जाता है।
- संसद प्रत्येक छः माह पर प्रस्ताव पारित कर इसे अगले छः माह के लिये बढ़ा सकती है, किन्तु अधिकतम तीन वर्ष से अधिक नहीं बढ़ा सकती है।
- 44वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1970 के द्वारा संसद द्वारा राष्ट्रपति शासन को एक वर्ष के पश्चात् भी जारी रखने के लिये दो प्रतिबंध लगाता है।
- राष्ट्रपति द्वारा, राष्ट्रपति शासन को किसी भी समय परवर्ती घोषणा द्वारा वापस लिया जा सकता है। ऐसी घोषणा की लिये संसद की अनुमति आवश्यक नहीं होती।
- राष्ट्रपति शासन की उद्घोषणा के दौरान राष्ट्रपति संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय की स्थिति, स्तर, शक्तियां एवं कार्यों में कमी नहीं कर सकता है। उच्च न्यायालय की सभी स्थितियां प्रभावी रहेंगी।
- राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रिपरिषद को भंग कर देता है।
- राष्ट्रपति, राज्य विधानसभा को विघटित या निलंबित कर सकता है। राज्य विधानसभा के विघटन व निलंबन की स्थिति में संसद, राज्य के लिये विधि बनाने की शक्ति राष्ट्रपति या उसके द्वारा उल्लेखित किसी अधिकारी को दे सकती है। लोकसभा के सत्र में नहीं रहने पर राष्ट्रपति राज्य की संचित निधि के उपयोग को प्राधिकृत कर सकता है। संसद के सत्र में नहीं रहने पर राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर सकता है।
- राष्ट्रपति घोषणा कर सकता है कि संसद, राज्य विधायिका की शक्तियों का प्रयोग करेगी।
- राष्ट्रपति अथवा संसद या अन्य किसी विशेष अधिकारी द्वारा बनाई गई विधि राष्ट्रपति शासन के पश्चात् भी प्रभावी रहेगी, किन्तु राज्य विधायिका द्वारा ऐसी विधि को वापस, परिवर्तित या पुनः लागू किया जा सकता है।
एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ
- एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ, 1994 वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि राष्ट्रपति शासन की उद्घोषणा के साथ ही राज्य विधानसभा को विघटित नहीं किया जा सकता है, जब तक ऐसी उद्घोषणा को संसद के दोनों सदनों द्वारा दो माह के अंदर अनुमोदित नहीं कर दिया जाता। राष्ट्रपति केवल राज्य विधानसभा को निलंबित कर सकता है। इस वाद में प्रावधान किया गया कि संवैधानिक तंत्र की विफलता यर्थाथ में होनी चाहिये न कि कल्पित आधार पर।
- 44वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 में प्रावधान किया गया कि राष्ट्रपति शासन की उद्घोषणा न्यायिक समीक्षा से परे नहीं है। एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ, 1994 वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि राष्ट्रपति शासन लागू करने की राष्ट्रपति की उद्घोषणा असंवैधानिक एवं अवैध है तो न्यायालय को विघटित सरकार तथा विघटित अथवा निलंबित विधानसभा को पुनः बहाल करने की शक्ति है। इस वाद में कहा गया कि अनुच्छेद-356 के अधीन विशिष्ट शक्तियां हैं । इनका प्रयोग विशेष परिस्थितियों में यदा-कदा ही करना चाहिये।
- संविधान के अनुच्छेद-355 में उपबंध है कि संघ का यह कर्त्तव्य होगा कि वह बाह्य आक्रमण और आंतरिक अशांति से प्रत्येक राज्य की संरक्षा करे और प्रत्येक राज्य की सरकार का इस संविधान के उपबंधों के अनुसार चलाया जाना सुनिश्चित करें।
अनुच्छेद-360 भारत में वित्तीय आपातकाल
- भारत के राष्ट्रपति के द्वारा वित्तीय आपातकाल की उद्घोषणा को दो माह के अन्दर संसद के दोनों सदनों से स्वीकृति मिलना अनिवार्य है। यदि लोकसभा का विघटन दो माह के अन्दर बिना स्वीकृति दिये हो जाता है तो लोकसभा का पुनर्गठन होने एवं इसकी पहली बैठक से 30 दिनों के अंदर स्वीकृति देना आवश्यक है, अन्यथा इसके पश्चात् उद्घोषणा प्रवर्तन में नहीं रहेगी। संसद द्वारा एक बार अनुमोदन करने के पश्चात् वित्तीय आपातकाल अनिश्चित काल के लिये प्रवृत्त रहेगा, जब तक राष्ट्रपति द्वारा इसे वापस न ले लिया जाता।
- संविधान में वित्तीय आपात की अधिकतम समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है। संसद द्वारा एक बार स्वीकृत हो जाने के पश्चात् पुनःस्वीकृति की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
- राष्ट्रपति वित्तीय आपात को किसी पश्चातवर्ती उद्घोषणा द्वारा वापस ले सकता है या परिवर्तित कर सकता है। ऐसी उद्घोषणा के लिये संसदीय स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती है।
- वित्तीय आपातकाल की उद्घोषणा को मंज़ूरी देने वाला प्रस्ताव संसद के प्रत्येक सदन द्वारा उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदस्यों के बहुमत (सामान्य बहुमत) द्वारा पारित किया जाता है, जबकि अनुच्छेद-352 के तहत प्रस्ताव को संसद के सदनों के विशेष बहुमत की आवश्यकता पड़ती है।
- वित्तीय आपात की स्थिति में राष्ट्रपति केन्द्र की सेवा में लगे सभी अथवा किसी भी श्रेणी के सेवकों के वेतन एवं भत्ते में कटौती हेतु निर्देश जारी कर सकता है तथा सर्वोच्च एवं उच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीशों के वेतन एवं भत्तों में कटौती हेतु निर्देश जारी कर सकता है।
- राज्य की सेवा में किसी भी अथवा सभी वर्गों के सेवकों के वेतन व भत्तों में कटौती हेतु निर्देश जारी कर सकता है।
- राज्य विधायिका द्वारा पारित सभी धन विधेयक अथवा अन्य वित्त विधेयक को राष्ट्रपति के लिये आरिक्षत रखना।
- केन्द्र किसी राज्य को वित्तीय औचित्य संबंधी सिद्धांतों के पालन का निर्देश दे सकता है।
भारत में आपातकाल कितनी बार लगा
- संविधान के अनुच्छेद-352 के तहत भारत में राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा अब तक तीन बार हो चुकी है।
- पहली उद्घोषणा वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के समय हुई। यह उद्घोषणा जनवरी 1968 तक जारी रही। इसलिये वर्ष 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय इसकी आवश्यकता नहीं पड़ी।
- दूसरी उद्घोषणा वर्ष 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय हुई। यह आपातकाल प्रभावी ही था कि वर्ष 1975 में ‘आंतरिक अशांति ’ के नाम पर तीसरी उद्घोषणा कर दी गई। दूसरी एवं तीसरी उद्घोषणा दोनों एक साथ मार्च 1977 में समाप्त हुई।
- जनता पार्टी की सरकार ने वर्ष 1977 में तीसरी आपातकाल की घोषणा की जाँच के लिये ‘शाह आयोग’ का गठन किया। आयोग ने वर्ष 1975 के आपातकाल को तर्कसंगत नहीं बताया।
- संविधान के अनुच्छेद-360 के तहत वित्तीय आपात की उद्घोषणा अभी तक एक बार भी नहीं की गई है।
- संविधान सभा के सदस्य-हृदयनाथ कुंजरू ने वित्तीय आपातकाल को राज्य की वित्तीय संप्रभुता के लिये गंभीर खतरा कहा है।
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