एकीकृत इलेक्ट्राॅनिक युद्ध कार्यक्रम | Integrated Electronics War Programme - IEWP
एकीकृत इलेक्ट्राॅनिक युद्ध कार्यक्रमIntegrated Electronics War Programme - IEWP
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) द्वारा युद्ध संबंधी भावी परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए 1995 में एकीकृत इलेक्ट्राॅनिक युद्ध कार्यक्रम IEWP नामके परियोजना की शुरूआत की गई थी। इस परियोजना को 2011 में पूरा करने का लक्ष्य था। हालांकि यह इलेक्ट्रानिक तथा संचार प्रौद्योगिकी में होने वाले विकास के साथ सतत चलने वाली पक्रिया है। इस परियोजना में देहरादून स्थित रक्षा इलेक्ट्रानिक एवं अनुसंधान प्रयोगशाला की मुख्य भूमिका है।
एकीकृत इलेक्ट्राॅनिक युद्ध परियोजना क प्रमुख बातें
1- युद्ध
क्षेत्र का सैन्य मुख्यालय से निरंतर संपर्क हेतु उपग्रह संचार के साथ-साथ टेलीफोन
और दूरसंचार के अन्य माध्यमों से जोड़ना।
2- दुशमन
क्षेत्र के आकलन हेतु उपग्रह टीईएस तथा दूरसंवेदी उपग्रहों (आईआरएस प्रणाली) की
सेवाओं का अधिकतम उपयोग करना।
3- भावी
इलेक्ट्रानिक युद्ध की परिस्थितियों का आंकलन कर थल सेना को संचार एवं गैर-संचार
उपकरण उपलब्ध कराना।
4- आवश्यक
होने पर उपकरण एवं तकनीकों का आयात करना तथा स्वदेशी तकनीक से देश में ही उनका
विकास एवं निर्माण करना।
5- परियोजना
में निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र की भागीदारी को सुनिश्चत करने हेतु त्रिस्तरीय
प्रबंधन बोर्ड का गठन करना।
इस परियोजना के अंतर्गत पिछले एक दशक में काफी
काम हुआ है। थल सेना के लिए संयुक्त तथा नौसेना के लिए संग्रह नामक इलेक्ट्रानिक
युद्ध प्रणालियों का लगभग विकास कर लिया गया है। वायुसेना के लिए ‘टेम्पेस्ट‘ नामक प्रणाली का विकास पहले ही किया जा
चुका है। इसके अतिरक्त शत्रु की इलेक्ट्रानिक युद्ध क्षमताओं एवं गतिविधियों पर
नजर रखने के लिए एक टोही प्रणालियों तथा निर्देशित शस्त्र प्रणालियों के
इलेक्ट्रानिक उपकरणों को जाम करने के लिए सक्रिय अवरोधक प्रणाली तथा स्थित
इलेक्ट्रानिक प्रणाली का विकास भी किया जा रहा है।
प्रमुख इलेक्ट्रानिक रक्षा प्रणाली
हवाई सुरक्षा भू-माहौल प्रणाली
इस प्रणाली को सामान्यतः ‘एडेजेस‘ के रूप में जाना जाता है। इसमें ‘एयर
कम्बैट सिमुलेटर‘ का प्रयोग किया जाता है जिसके द्वारा
एक बंद कमरे में हवाई युद्ध का प्रशिक्षण ‘पुस्तक
शैली‘ में प्रदान किया जाना संभव है। अतः इस
प्रणाली के द्वारा पुर्णरूपेण हवाई समाधान की परिस्थितियां कम्प्यूटरीकृत एवं
सुरक्षित वातावरण में विकसित की जा सकती हैं।
कम्पोजिट कम्युनिकेशन सिस्टम मार्क-2
यह एक संचार प्रणाली है जो भारत
इलेक्ट्राॅनिक्स लिमिटेड द्वारा विकसित की गई है। इसका उपयोग बीच समुद्र में स्थित
किसी युद्धपोत और नौसेनिक अड्डे के मध्य त्वरित संचार सुविधा प्रदान करने के लिए
किया जाता है। इसे भारतीय नौसेनो के ‘फ्रिगटों‘ और विध्वंसक पोतों में लगाया जाता है।
लिको वीसेट LICOVSAT ( Low Intensify Conflict Operations Very Small Aperture Terminal)
यह भी उपग्रह आधारित संचार प्रणाली है जिसका
विकास आईटीआई लि. द्वारा किया गया है। इसके द्वारा अभी कारगिल प्रतापपुर (सियाचिन
बेस कैम्प) तथा भुज सहित 20 अग्रिम केन्द्रों को सेना मुख्यालय से
जोड़ा गया है।
आर्मी रेड़ियो इंजीनयर्ड नेटवर्क Army Radio Engineered Network
यह डी.आर.डी.ओ. द्वारा विकसित युद्ध क्षेत्र
में विभिन्न टुकड़ियों के बीच तत्काल संचार संपर्क हेतु प्रतिरक्षा प्रणाली है।
अवाक्स AWACS- Airborne Surveillance Warning and Control System)
‘जर्मन
एयरोस्पेस‘ के सहयोग से विकसित इस प्रणाली से देश
की सीमा में रहकर दुशमन की सीमा के अंदर हजारों किमी तक की सैन्य गतिविधियों पर
स्पष्ट रूप से नजर रखी जा सकती है। इजरायल से फाल्कन अवाक्स प्राप्त करने हेतु 2004 में समझौता हुआ था।
टीडीयू Threshold Detector Unit - TDU
इलेक्ट्रानिक प्रतिरक्षा प्रणाली में डी.आर.डी.ओ. की लेजर साइंस एंड टेक्नोलाजी सेंटर दिल्ली द्वारा विकसित थ्रेशहोल्ड डिटेक्टर यूनिट TDU विशेष रूप से उल्लेखनीय है। यह उपकरण दुशमन के घातक इलेक्ट्रानिक उपकरणों की गतिविधियों को न केवल समय से पकड़ लेता है अपितु उन्हें आपरेट होने के पूर्व ही जाम और नष्ट कर देता है। आमतौर पर देश् की सीमाओं पर अनेक स्थानों पर घुसपैठियों की पकड़ के लिए इलेक्ट्रानिक उपकरण यथा रडार,सेंसर आदि लगाए जाते हैं। ये उपकरण 10 किमी पीछे बने नियंत्रण कक्ष को सीमा की जानकारी देते रहते हैं। लेकिन ‘टीडीयू‘ TDU दुशमन देश की सीमाओं पर उन स्थानों का पता लगा लेता है जहां कोई इलेक्ट्रानिक उपकरण लगा हो तथा यह भी पता गा लेता है कि उक्त उपकरण कितना शक्तिशाली है और उसकी रेंज कितनी है। ‘टीडीयू‘ उक्त डिटेक्टरों को पकड़ने के साथ ही उनकी फ्रीक्वेंसी का जाम कर देता है। टीडीयू की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह सभी तरह के मौसम में क्रियाशील रह कर दुशमन क्षेत्र की हर गतिविधि की सूचना नियंत्रण कक्ष को भेजता रहता है।
मोनोलिथिक माइक्रोवेव इंटीग्रेड सर्किट Monolithic Microwave Integrated Circuit
डी.आर.डी.ओ. के वैज्ञानिकों ने भारत में पहली
बार मोनोलिथिक माइक्रोवेव इंटीग्रेटेड सर्किट चिप का विकास किया है जो
प्रक्षेपास्त्र तथा वैमानिकी की लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। अभी तक यह विदेशों से
आयात की जाती थी। इसके अतिरिक्त डी.आर.डी.ओ. के वैज्ञानिकों ने माइक्रोप्रोसेसर
चिप ‘अनुपमा‘ तथा पेस फ्लश पैरेलल प्रोसेसर का विकास भी किया है। उल्लेखनीय है पेस
फ्लश पैरेलल प्रोसेसर के्रे एक्स एम.पी. सुपर कम्प्यूटर से 20 गुणा अधिक तीव्र होता है। 1980 के दशक में अमेरिका ने इस
प्रौद्योगिकी को भारत को देने से इंकार कर दिया था। डी.आर.डी.ओ. के वैज्ञानिकों ने
हथियारों के लिए अति संवेदनशील साफ्टवेयर शतरंज भी विकसित किया है।
होलोग्राॅफिक्स साइट इक्विपमेंट Holographic Sight Equipment
वर्तमान में न सिर्फ सीमा की रखवाली हेतु अपितु
आतंकवाद आदि के बढ़ते खतरों के दृष्टिगत सुरक्षा बलों के सामने नई-नई चुनौतियां खड़ी
हो जाती हैं इन चुनौतियों में रात के अंधेरे में दुश्मन से निकट की लड़ाई सबसे
चुनौतिपूर्ण इसलिए होती है कि दुश्मन स्पष्ट दिखाई नहीं देता है। भारतीय सुरक्षा
बलों को इस चुनौती से उबारने के लिए ‘रक्षा
अनुसंधान एवं विकास संगठन‘
ने ‘होलोग्राफिक साइट इक्विपमेंट‘ का
निर्माण किया है। इस उपकरण की सहायता से रात्रि के स्याह अंधेरे में भी 50 से 300 मीटर दूर खड़े दुश्मन पर अचूक निशाना
साधा जा सकता है। इस उपकरण के सफल परीक्षण के पश्चात भारत इलेक्ट्रानिक
लिमिटेड (मछलीपट्टम) को इसके उत्पादन का काम सौंप दिया गया। भारतीय थल सेना को
पहले चरण में यह उपकरण 20
हजार की संख्या में दिये जाएंगे ।
राइफल के साथ संयुक्त होने वाला यह उपकरण ‘होलोग्राम लेजर बीम‘ के
माध्यम से दूर खड़े दुश्मन को अंधेरे में भी त्रिकोणीय प्रतिबिम्ब तैयार
करता है। भारत अमेरिका के पश्चात दूसरा देश है जिसने यह यंत्र निर्मित किया है।
Also Read...
Post a Comment