विजयराघवगढ़ के राजा सरयू प्रसाद

 

मध्यप्रदेश स्वाधीनता संग्राम के सेनानी

आजादी की लड़ाई में विजयराघवगढ़ का योगदान

आजादी की लड़ाई में विजयराघवगढ़ का योगदान


विजयराघवगढ़ के राजा सरजू प्रसाद (सरयू प्रसाद )

कटनी जिले में स्थित विजयराघवगढ़ के राजा प्रयागदास की 1845 में मृत्यु हो गयी और उनका पाॅच वर्षीय पुत्र उत्तराधिकारी बना। अंग्रेजों ने अपनी विलय नीति के अंतर्गत विजयराघवगढ़ रियासत को अंग्रेजों ने कोर्ट आफ वार्डस के प्रबंध के अधीन रख दिया। अपना प्रशासक बैठाकर अल्प वयस्क शासक की देखरेख का भार अपने ऊपर ले लिया।

1857 की क्रांति के समय मैहर जागीरदार विष्णुसिंह का बेटा नेपालसिंह विजयराघवगढ़ गया और अपने चचेरे भाई सरजूप्रसाद से मिला। उस समय सरजूप्रसाद की उम्र 17 वर्ष थी। नेपालसिंह ने सरजूप्रसाद, उनके सरदारों तथा जनता को क्रांति में शामिल होने के लिए पे्ररित किया।

नेपाल सिंह, मुकुंद सिंह  तथा नेपालसिंह के भाईयों के सहयोग से अक्टूबर 1857 में सरजूप्रसाद ने तहसीलदार साबिल अली  तथा उसके सईस को मारकर तहसील तथा पुलिस थाने पर कब्जा कर लिया। जबलपुर के कमिशनर ने इसे अंग्रेज सत्ता के प्रति विद्रोह माना और राजा के ऊपर कड़ी कार्यवाही शुरू कर दी। सरजूप्रसाद के साथ तीन हजार क्रांतिकारी थे। शाहगढ़ के राजा बखतबली, मानगढ़ के राजा महीपालसिंह औरा नारायणपुर के ठाकुरोें के सहयोग से उनकी संख्या में और वृद्धि हो गयी। विजयराघवगढ़ की घटना से सबंधित अन्य क्रांतिकारी थे- लाला छतरसिंह, दीवान शारदा प्रसार, गणेशजू, बुद्धसिंह, मुकुन्दसिंह, दीवान दलगंजनसिंह, वीरू मिस्त्री, शिवलाल बारी, किलेदार तथा खिलवाड़ा का थानेदार रामप्रसाद।

विजयराघवगढ़ के क्रांतिकारियों का नेतृत्व राज सरजूप्रसाद कर रहे थे और मैहर का नेपालसिंह तथा सनोटी के मुकुन्दसिंह का सहयोग दे रहे थे जिसमें नेपालसिंह के भाई भी शामिल थे। रीवा और नागौद राज्य की सेना अंगे्रेजो के साथ मिल गई। विजयराघवगढ़ पर चारों और से आक्रमण किये गये। रीवा की सेनाओं के पास,विजयराघवगढ़ की सेना से अधिक सैनिक और शस्त्र थे। युद्ध करते-करते विजयराघवगढ़ का सेनाधिकारी रामबोल और उसका भाई कृपाबोल शहीद हो गये।

वस्तु स्थिति देख सरजूप्रसाद तथा नेपालसिंह किले से बाहर चले गये। सरजूप्रसाद शाहगढ़ के क्रांतिकारी राजा बखतबली के पास गये। शाहगढ़ के राजा तथा बानपुर के राजा पश्चिम बुंदेलखंड में अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे। अतः बानपुर तथा शाहगढ़ के इन क्रांतिकार राजाओं के साथ सरजूप्रसाद भी जंगलों में चले गए।

सरजूप्रसाद के जाने के बाद विजयराघवगढ़ रियासत, मैहर तथा सोहावल सहित पालिटिकल एजेंट आसबोर्न को दे दी गयी।  सरजूप्रसाद को पकड़ने के लिए अंग्रेज सरकार ने तीन हजार रूपये के इनाम की घोषणा की थी। 1864 में सरजूप्रसाद को बंदी बना लिया गया और आजीवन कारावास की सजा दी गई। आजीवन कारावास के लिए जब उन्हें रंगून भेजा जा रहा था, तब स्वभिमानी राजा सरजूप्रसाद ने स्वयं को समाप्त कर परतंत्र जीवस को मुक्त कर दिया।


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