मानव शरीर की संरचना | Human Body General Knowledge

 

मानव शरीर की संरचना

Human Body General Knowledge


इस आर्टिकल में मानव शरीर की संरचना का बारे परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण तथ्यों का अध्यन करेंगे। आशा करते हैं की  मानव शरीर की सामग्री प्रतियोगियों के लिए लाभदायक सिद्ध होगी ।


पाचनतंत्र (Digestive System) 
  • मानव शरीर के अंदर आहार नाल एवं पाचन ग्रन्थियाँ मिलकर जिस तंत्र का निर्माण  करती है, उस पाचनतंत्र कहते हैं। 
  • लार ग्रन्थियों, यकृत एवं अग्न्याशय पाचनग्रन्थियों के प्रमुख अंग हैं। 
  • मानव के मुख में स्थित ग्रन्थियाँ जिनसे लार का स्राव होता है लार ग्रन्थिया (Salivary glands) कहलाती है। लार (Saliva) में टाइलिन नामक इन्जाइम होता है। 
  • टाइलिन नामक इन्जाइम का कार्य ग्रंथियाँ भोजन के कार्बोहाइड्रेट को पचाकर उन्हें माल्टोज में बदल देना है। 
  • आमाशय (Stomach) में जठर ग्रन्थि (Gastric gland) पाया जाता है। 
  • जठर रस में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल तथा इन्जाइम मौजूद होता है। 
  • आमाशय में भोजन का पाचन अम्लीय माध्यम में होता है। 
  • छोटी आँत में भोजन का पाचन क्षारीय माध्यम में होता है। 
  • मनुष्य का पाचनतंत्र यकृत (Liver) मानवशरीर में पाया जाने वाला सबसे बड़ा गन्थि है। 
  • यकृत (Liver) पित्तरस (Bile Juice) को स्रावित करता है। 
  • अग्न्याशय (Pancreas) द्वारा स्रावित रस को अग्न्याशयिक रस Pancreatic Juice) कहा जाता है। 
  • Pancreatic Juice क्षारीय माध्यम में कार्य करता है। 
  • इन्सुलिन के कम स्राव (secretion) से मधुमेह (डायबीटिज) नामक रोग हो जाता है। 

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श्वसनतंत्र (Respiratory System)

  •  साँस (श्वसन) लेने में जो अंग भाग लेते हैं उन्हें श्वसनतंत्र (Respiratory System) कहा जाता है।
  • फेफड़े (Lungs) का मुख्य कार्य. रक्त को शुद्ध करना है।
  • श्वसन के लिए एक संतुलित समीकरण इस प्रकार है।
  • C6H12O6 + 6O26CO2 + 6H2O + ऊर्जा

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परिसंचरणतंत्र (Circulatory System)

  • रक्त परिसंचरण (Blood circulation) में भाग लेने वाले सभी अंग परिसंचरणतंत्र (CirculatorySystein) कहलाते हैं। 
  • रक्त परिसंचरण में भाग लेने वाले मुख्य अंग हृदय (Heart) तथा रक्त वाहिनियाँ (Blood vessels) है। 
  • हृदय का मुख्य कार्य सम्पूर्ण शरीर में रक्त का परिसंचरण करना है। 
  • जो रक्तवाहिनियाँ हृदय से ऑक्सीजनयुक्त रक्त शरीर के विभिन्न अंगों तक ले जाती हैं उन्हें धमनियाँ कहते हैं। 
  • जो रक्त वाहिनियाँ शरीर के विभिन्न अंगों से अशुद्ध रक्त को हृदय की ओर वापस लौटाती हैं उसे शिराएँ कहते हैं। 
  • एक समान्य मनुष्य के शरीर में लगभग 6 लिटर रक्त रहता है। 

रक्त की संरचना (Structure of Blood)

प्लाजमा (Plasma)

रक्त कोशिकाएँ (Corpuscles)

  • लाल रूधिर कोशिकाएँ (R. B. C) or Erythrocytis
  • श्वेत रूधिर कोशिकाएँ (W. B. C) or Thrombocytes)
  • पट्टिकाणु (Platelets) or Leucocytes

  • प्लाज्मा एक रंगहीन द्रव है और रक्त का 55 प्रतिशत भाग प्लाज्मा होता है शेष भाग रक्त कोशिकाएँ होती है। 
  • मनुष्य के शरीर में रक्त की मात्रा शरीर के भार का लगभग 7% होता है। 
  • मनुष्य में लाल रूधिर कोशिकाओं (R.B.C.) का आकार उभयताल (Biconcave) होता है। 
  • लाल रूधिर कोशिकाओं (R.B.C.) का निर्माण लाल अस्थिमज्जा (Red bone marrow) में होता है। 
  • लाल रुधिर कोशिकाओं का जीवनकाल 20 से 120 दिन होता है। 
  • लाल रूधिर कोशिकाओं (R. B.C) में हीमोग्लोबिन (Haemoglobin) नामक लाल वर्णक (Red pigments) मौजूद होने के कारण रक्त का रंग लाल होता है। 
  • लाल रूधिर कोशिकाओं का मुख्य कार्य शरीर की हर कोशिका में ऑक्सीजन पहुँचाना और कार्बन डाइऑक्साइड को वापस लाना है। 
  • श्वेत रूधिर कोशिकाओं (W. B. C) का आकार निश्चित नहीं होता ।। 
  • श्वेत रूधिर कोशिकाओं में हीमोग्लोबिन अनुपस्थित होने के कारण यह रगहीन होता है। 
  • प्रति घन मिलीमीटर में श्वेत रूधिर कोशिकाओं की संख्या 8000 होती है 
  • श्वेत रूधिर कोशिकाओं (W. B.C) का जीवनकाल 24 से 30 घंटे तक होता है श्वेत रूधिर कोशिकाओं (W. B.C) का निर्माण लाल अस्थि मज्जा (Red Marrow) में लगातार होता रहता है। 
  • पट्टिकाणु (Thrombocytes) केवल स्तनधारियों के रक्त में पाया जाता। 
  • पट्टिकाणुओं में बोकाइनेस नामक एक पदार्थ पाया जाता है जो रक्त जमने blood clotting में सहायता करता है। 

रक्त समूह (Blood Group) 

  • सन 1902 ई० में नोबेल पुरस्कार विजेता कार्ल लैन्डस्टीनर ने रक्त समूह की खोज की। 
  • मनुष्य में चार रक्त समूह होते हैंसमूह A, समूह B, समूह AB तथा समूह O | 
  • सैद्धान्तिक रूप से O समूह का रक्त किसी भी मनुष्य को दिया जा सकता है, इसे सर्वदाता रक्त समूह (Universal blood doner) कहा जाता है। 
  • समूह AB सामान्य प्राप्तकर्ता (Universal blood recipient) समूह है। यह सभी रक्त समूहों से रक्त ग्रहण कर सकता है। 
  • कछ मनुष्यों में रक्त का स्कंदन (Blood clotting) नहीं होता । यह एक प्रकार का अनुवांशिक रोग है। इसे ‘‘हीमोफीलिया’’ कहा जाता है। 
  • रक्त का PH मान् 74 होता है, अतः यह क्षारीय है। 
  • Rh एक प्रकार का एंटीजन होता है जो लाल रक्त कण (R. B. C) में पाया जाता है। जिस मनुष्य के शरीर में यह पाया जाता है वह Rh+ (आर. एच. पोज़ीटिव) एवं जिसके शरीर में नहीं पाया जाता है वह Rh (आर. एच. निगेटिव) कहलाता है। 
  • मनुष्य के हृदय की धड़कने 1 मिनट में 70-72 बार होती है। 
  • एक स्वस्थ वयस्क मनुष्य का रक्त दाब पारे पर 120/80 mm (मिलीमीटर) होता है। 

रक्ताधान (Blood Transfusion) 

  • एक मनुष्य के रक्त को दूसरे मनुष्य के रक्त में प्रवेश कराना रक्ताधान कहलाता है। रक्ताधान (Blood Transfusion) 

रक्त समूह   रक्त प्राप्तकर्ता वर्ग (Recipient) —  रक्तदाता वर्ग (Donor)

A                 A,AB                                              A,O

B                 B,AB                                               B,O

AB                AB                                               A,B,AB,O

O             A,B,AB,O                                               O

 

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उत्सर्जनतंत्र (Excretory System) 

  • जीवों के शरीर में उपापचयी क्रियाओं के फलस्वरूप बने विषैले अपशिष्ट पदार्थों (Waste products) के निष्कासन को उत्सर्जन (Excretion) कहा जाता है। इस प्रक्रिया में भाग लेने वाले अंग उत्सर्जी अंग कहलाते हैं। 
  • नाक, फेफड़ा, त्वचा, यकृत, बड़ी आँत एव वृक्क (Kidney) मनुष्य के उत्सर्जी अंग हैं। 
  • पाचन क्रिया के दौरान भोजन का कुछ हिस्सा अनपचा रह जाता है, जो बुरी आँत में पहुँचा दिया जाता है। यहाँ से वह ठोस मल के रूप में शरीर के बाहर गुदा (Anus) द्वारा निकाल दिया जाता है। 
  • मनुष्य में वृक्क की संख्या दो होती है। 
  • प्रत्येक वृक्क (Kidney) का भार लगभग 140 ग्राम होता है। 
  • वृक्क का निर्माण लगभग 1,30,000 सूक्ष्म नलिकाओं (Tubulates) द्वारा होता है जिसे नेफ्रॉन (Nephrons) कहा जाता है । 
  • नेफ्रॉन को वृक्क की कार्यात्मक इकाई (Functional unit of the कहा जाता है । 
  • वृक्क के काम में करने के कारण मनुष्य को जीवित रखने के लिए (Dialysis) नामक आपात सेवा प्रदान की जाती है। 
  • 24 घंटे में लगभग 2 लीटर मुत्र का उत्सर्जन होता है ।

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कंकालतंत्र (Skeleton System)

  • कंकालतन्त्र में अस्थियाँ तथा उनसे सम्बंधित संरचनाएँ सम्मिलित हैं जो शरीर का ढाँचा बनाती हैं और उसे निश्चित आकार प्रदान करती हैं। अस्थियों को तंत्र का अंग (Organs) कहा जाता है । 
  • मानव शरीर में कुल अस्थियाँ 206 हैं । 
  • मानव शरीर की अस्थियों को पाँच वर्गों में विभाजित किया गया है 
  • खोपड़ी (Skull) खोपड़ी की अस्थियों की संख्या 8 होती है। यह एक सुदृढ़ रचना है जिसे मस्तिष्क कोष (Brain Box) याक्रेनियम (Cranium) कहा जाता है। 
  •  चेहरे की अस्थियाँ (Bones of the Face)—खोपड़ी से नीचे का भाग चेहरा होता है इसमें अस्थियों की संख्या 14 होती है। 
  •  धड़ की अस्थियाँ (Bones of the Trunk) धड़ की अस्थियों में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण कशेरूक दण्ड (Verteberal Column) होता है जिसे गुल्फिका कंकाल का मध्य आधार (Central part of the skelton) कहा जाता है। मनुष्य का सम्पूर्ण कंकाल पदांगुलियाँ कशेरूक दण्ड में अस्थियों की संख्या 33 होती है। इसी कशेरूक दण्ड के अन्दर एक नली होती है जिसमें मेरूरज्जू (Spinal cord) रहता है। छाती की अस्थियों में 24 पसलियाँ होती है। 
  •  हाथ की अस्थियाँ (Bones of the Hand)—हाथ की प्रमुख अस्थिया में स्केपुला, रेडियस, अलना है। 
  • पैरों की अस्थियाँ (Bones of the Leg)पैरों की प्रमुख अस्थिया पटेला, टार्सस, फीमर, टिबिया, फिबुला है। 
  • शरीर की सबसे लम्बी अस्थि फीमर (Femur) होती है। 
  • कान की स्टेपीस नामक अस्थि शरीर की सबसे छोटी अस्थि है। 

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तंत्रिकातंत्र (Nervous System)

  •  मानव के शरीर में होने वाली क्रियाओं का नियमन एवं नियंत्रण जिस तंत्र द्वारा होता है उसे तंत्रिकातंत्र (Nervous System) कहा जाता है । 
  • मस्तिष्क, मेरूरज्जु तथा तंत्रिकाएँ (Nervous) तंत्रिका तंत्र (Nervous System) के अंग हैं । 
  • मस्तिष्क (Brain) तत्रिका तंत्र का सर्वप्रमुख अंग है । 
  • मस्तिष्क को तीन भागों में बाँटा गया है । (i) वृहत मस्तिष्क (Cerebrum), (ii) लघु मस्तिष्क (Cerebellum), (iii) सुषुम्ना मस्तिष्क (Miedulla Oblongata) 
  • वृहत अस्तिष्क (Cerebrum)—मस्तिष्क का सबसे बड़ा भाग है। यह इच्छा शक्ति, स्मरण, अनुभव, सुनना, देखना, सूंघना, बोलने तथा शरीर में चेतना के कार्यों को नियंत्रित करता है। 
  • लघु अस्तिष्क (Cerebellum)—शरीर को संतुलित तथा मांसपेशियों के कार्यों को नियंत्रित करता है। 
  • सुषुम्ना (Medulla Oblongata)—सुषुम्ना ही कशेरूक दण्ड के न्यूरल के नाल में प्रवेश करने के बाद मेरूरज्जु (Spinal cord) कहलाता है। तथा यह हृदय की धड़कन, पाचन अंगों एवं श्वसन अंगों के कार्यों को नियंत्रित करता है । 
  • जिन अंगों से पर्यावरण एवं बाहरी परिवेश का ज्ञान होता है, ज्ञानेन्द्रियाँ कहलाती हैं।
  • नेत्र (Eye), त्वचा (Skin), जिह्वा (Tongue), कर्ण (Ear) तथा नाक (Nose) ज्ञानेन्द्रिया हैं।

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पेशीतंत्र (Muscular System) 

  • शरीर के अंगों को गति प्रदान करने वाली माँसपेशियों के समूह को पेशीतंत्र (Muscular System) कहा जाता है । 
  • शरीर के अस्थियों से जुड़े गद्देदार एवं मांसल भाग को माँसपेशियाँ कहा जाता है। 
  • माँसपेशियों का मुख्य कार्य शरीर के अंगों को गति प्रदान करना है।

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जनतंत्र (Reproductive System)

  • जनन या प्रजनन अंग से मिलकर जिस तंत्र का निर्माण होता है उसे प्रजनन (Reproductive System) कहते हैं ।
  • वृषण (Testes), अधिवृषण (Epididymis), शुक्राशय (Seminal vesicle) शुक्रवाहिका (Vasdeferens) तथा शिश्न (Penis) नरजनन अंग (Male Reproductive Organs) हैं।
  • नर में एक जोड़ा अंडाकार वृषण (Testes) पाया जाता है इसमें शुक्राणु (Sperms) तथा नर हार्मोन का निर्माण होता है । 
  • योनि (Vagina), अंडाशय (Ovary), अंडवाहिनी (Fallopic), गर्भाशय (Uterus) मादा जननतंत्र है। 
  • प्रजनन दो प्रकार का होता हैअलैगिक (Asexual Reproduct), लैंगिक प्रजनन (Sexual Reproduction) 
  • अलैंगिक प्रजनन वह प्रक्रिया है जिसमें कोई जीव अकेले नया जीवन को उत्पन्न करता है। जैसेअमीबा, बैक्टीरिया । 
  • लैंगिक प्रजनन वह प्रक्रिया है जिसमें नर एवं मादा के सहयोग से नया उत्पन्न होता है । जैसेमनुष्य, गाय इत्यादि । 
  • अण्डाणु (Ova) मादा के अण्डाशय (Ovary) नामक जननांगों में निर्मित होता है तथा गर्भाशय में इसका मुक्त होना अण्डोत्सर्ग (Ovulation) कहलाता है।  
  • शुक्राणु (Sperm) नर के वृषण (Testes) नामक जननांग में निर्मित होता है शुक्राणु बनने की क्रिया को शुक्राणु जनन (Spermatogenesis) कहते हैं। 
  • शुक्राणु और अण्डाणु के मिलने की क्रिया को निषेचण (Fertilization) कहा जाता है।  
  • मानव शरीर की  में गुणसूत्रों की संख्या 46 होती है। 

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अध्यावरणतंत्र (Integumentry System) 

  • शरीर के अंगों को बाहरी रूप से सुरक्षा देने वाले अंग के समूह को अध्यावरणतंत्र (Integumentry System) कहा जाता है । 
  • त्वचा (Skin) तथा बाल (Hair) अध्यावरणतंत्र का मुख्य अंग है ।। त्वचा शरीर का सबसे बाहरी अंग होने के कारण सम्पूर्ण शरीर को ढंके रहता है। 
  • अध्यावरणतंत्र का मुख्य कार्य शरीर में रोगाणुओं के प्रवेश को रोकना तथा बाहरी आघात से बचाना है  

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अन्तः स्रावी ग्रन्थि तंत्र (Endocrine Gland System) 

शरीर के विभिन्न भागों में उपस्थित नलिकाविहीन ग्रन्थि जो हार्मोन को अन्तः स्रावित करता है अन्तः स्रावी ग्रन्थि (Endocrine or Ductless Gland) कहलाता है। 

हार्मोन (Harmone) का कार्य सभी रासायनिक क्रियाओं को नियंत्रित करना है। 

शरीर में निम्नलिखित अन्तः स्रावी ग्रन्थियाँ हैं :

(i) पीयूष ग्रन्थि (Pituitary gland)

(ii) थायराइड ग्रन्थि (Thyroid gland) |

(iii) पाराथायराइड ग्रन्थि (Parathyroid gland)

(iv) अधिवृक्क ग्रन्थि (Adernal gland)

  •  पीयुष ग्रन्थि को ‘‘मास्टर ग्रन्थि (Master gland)” कहा जाता है । 
  • पीयूष ग्रंथि वृद्धि, एन्टीड़ाइयूरेटिक (ADH) फोलीकलस्टी मुलेटिंग (FSH), ल्यूटिनाइजिंग नामक हार्मोन स्रावित करता है। 
  • थायरॉइड ग्रंथि थायरॉक्सिन ट्राइओडोटिरोनिन नामक हार्मोन को स्रावित है तथा शारीरिव वृद्धि तथा उपापचय (Metabolism) की गति को प्रभावित करता है । 
  • अधिवृक्क ग्रन्यि (Adernal gland) कोर्टिसोन नामक हार्मोन को स्रावित है तथा ग्लूकोज निर्माण में वृद्धि, कार्बोहाइड्रेट के उपापचय में सहायता करता है 
  • अग्न्याशय ग्रन्थि (पाराइराइड ग्रन्थि) इन्सुलिन नामक हार्मोन को स्रावित करता है तथा शरीर में कार्बोहाइड्रेट की उपापचय क्रिया को प्रभावित करता है 
  • भोजन में आयोडिन (Iodine) की कमी होने पर थायराइड ग्रन्थि निष्क्रिय हो जाती है जिसके कारण इसका आकार बढ़ जाता है जिसे घेघा(Goiter) कहा जाता है। 
  • ग्रन्थि (Glandular) काशिकाओं का एक समूह है जो शरीर की वृद्धि और की रक्षा के लिए आवश्यक विभिन्न प्रकार के हार्मोन (Harmones) को स्रावित करता है

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