निर्वाचन आयोग एवं वित्त आयोग महत्वपूर्ण तथ्य | Nirvachan Ayog GK In Hindi
निर्वाचन आयोग एवं वित्त आयोग महत्वपूर्ण तथ्य
भारत के निर्वाचन आयोग
- संविधान के अनुच्छेद-324 (2) में प्रावधान है कि भारत का निर्वाचन आयोग मुख्य निर्वाचन आयुक्त और उतने अन्य निर्वाचन आयुक्तों से, जितने राष्ट्रपति समय-समय पर नियत करे, मिलकर बनेगा।
- वर्ष 1950 से 15 अक्टूबर 1989 तक भारत का निर्वाचन आयोग एक सदस्यीय था, जिसमें केवल मुख्य निर्वाचन आयुक्त होता था, किंतु 16 अक्टूबर 1989 में राष्ट्रपति द्वारा दो अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति कर इसे बहुसदस्यीय बना दिया गया। 1990 में पुनः इसे एक सदस्यीय बना दिया गया। अक्तूबर, 1993 में पुनः दो आयुक्तों की नियुक्ति कर इसे बहुसदस्यीय बना दिया गया। वर्तमान में इसमें एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं दो अन्य निर्वाचन आयुक्त हैं।
- भारत की निर्वाचन प्रणाली में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों तरीके अपनाए गए हैं।
- लोकसभा एवं राज्यों की विधानसभाओं का चुनाव प्रत्यक्ष यानी फर्स्ट-पास्ट द-पोस्ट सिस्टम तथा राज्यसभा, राज्य की विधान परिषद, राष्ट्रपति एवं उप-राष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष एवं आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर एकल संक्रमणीय मत द्वारा किया जाता है।
- भारत के चुनाव में सूची प्रणाली तथा संचयी मतदान प्रणाली को नहीं अपनाया गया है।
- मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं अन्य निर्वाचन आयुक्तों की शक्तियाँ तथा वेतन व भत्ते समान होते हैं। उन्हें भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के समान वेतन मिलता है। वर्तमान में र्स्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का वेतन ₹ 90,000 प्रतिमाह है।
- संविधान में इस बात का उल्लेख नहीं है कि निर्वाचन आयोग के सदस्यों की पदावधि कितनी होगी। इसकी पदावधि राष्ट्रपति नियम द्वारा अवधारित करता है। इनका कार्यकाल छः वर्ष या आयु 65 वर्ष जो भी पहले हो, होता है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं अन्य निर्वाचन आयुक्तों की पदावधि समान होती है।
- संविधान के अनुच्छेद-324(5) के परन्तु में प्रावधान किया गया है कि भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त को उसी आधार पर हटाया जा सकता है, जिस आधार पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाते हैं। अर्थात् साबित कदाचार या अक्षमता के आधार पर संसद के दोनों सदनों द्वारा विशेष बहुमत (संसद के प्रत्येक सदन की कुल सदस्य संख्या का बहुमत और उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदस्यों का दो-तिहाई बहुमत से संकल्प पारित) से संकल्प पारित करके राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है।
- भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा तो की जाती है, किन्तु वह राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त पद धारण नहीं करता।
- संविधान में उपंबध है कि अन्य निर्वाचन आयुक्तों या प्रादेशिक आयुक्तों को उसके पद से मुख्य निर्वाचन आयुक्त की सिफारिश पर ही राष्ट्रपति हटा सकता है, अन्यथा नहीं।
- संविधान में भारत के निर्वाचन आयुक्त के संबंध में सेवानिवृत्ति के पश्चात् भारत सरकार की किसी अन्य नियुक्ति पर रोक नहीं लगाई गई।
- संविधान में भारत के निर्वाचन आयुक्तों की योग्यता के संबंध में प्रावधान नहीं किया गया।
- संविधान में निर्वाचन आयोग के सदस्यों की पदावधि का उल्लेख नहीं किया गया है।
- भारत में निर्वाचन की अधिसूचना (Notification) निर्वाचन आयोग की सिफारिश पर राष्ट्रपति या राज्यपाल के द्वारा जारी की जाती है। इसके पश्चात् निर्वाचन आयोग निर्वाचन की तिथि एवं समय-सारणी का निर्धारण करता है। लोकसभा एवं राज्यसभा के लिये राष्ट्रपति तथा विधानसभा एवं विधान परिषद के लिये राज्यपाल निर्वाचन की अधिसूचना जारी करता है।
- लोकसभा के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष तथा राज्यसभा के सभापति एवं उप-सभापति का चुनाव सदन के सदस्यों द्वारा किया जाता है।
- पंचायतों, नगरपालिकाओं एवं नगर-निगमों का चुनाव राज्य निर्वाचन आयोग करवाता है।
- भारत के राष्ट्रपति एवं उप-राष्ट्रपति तथा संसद एवं राज्य के विधानमंडलों के निर्वाचनों के लिये निर्वाचक-नामावली तैयार करने, सभी निर्वाचनों के संचालनों का अधीक्षण, निर्देशन एवं नियंत्रण करने की ज़िम्मेदारी भारत के निर्वाचन आयोग के ऊपर होती है।
- चुनाव से उत्पन्न सभी विवादों का निर्णय न्यायालय द्वारा किया जाता है।
- संसद सदस्यों की अयोग्यता के संबंध में कोई विवाद है तो उसका निर्णय राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है और राष्ट्रपति का निर्णय अन्तिम होता है, किन्तु राष्ट्रपति ऐसा निर्णय भारत के निर्वाचन आयोग के परामर्श से करेगा। राज्य विधानमंडलों के संदर्भ में राज्यपाल निर्णय करता है और उसका निर्णय अन्तिम होता है, किंतु राज्यपाल ऐसा निर्णय भारत के निर्वाचन आयोग से परामर्श के पश्चात् करेगा।
- दल-बदल से संबंधित संसद सदस्यों की अयोग्यता से संबंधित विवाद का निर्णय अध्यक्ष/सभापति एवं राज्य विधानमंडल के अध्यक्ष/सभापति द्वारा किया जाता है।
- किसी चुनाव में प्रत्येक प्रत्याशी को एक निश्चित ज़मानत/निक्षिप्त राशि रखनी पड़ती है। उसे चुनाव में कुल वैध पड़े मतों का 1/6 भाग लाना पड़ता है। यदि कोई प्रत्याशी कुल वैध पड़े मतों का 1/6 मत नहीं प्राप्त कर पाता तो वह अपनी ज़मानत राशि खो देता है।
भारत के निर्वाचन आयोग के कार्य
- राजनीतिक दलों को मान्यता देना और उन्हें चुनाव चिह्न आवंटित करना।
- निर्वाचन-नामावली तैयार करना और सभी योग्य मतदाताओं को पंजीकृत करना।
- सर्वप्रथम चुनाव की अधिसूचना राष्ट्रपति (राज्यों में राज्यपाल) द्वारा जारी की जाती है। इसके पश्चात् निर्वाचन आयोग के द्वारा नामांकन प्रक्रिया शुरू करने की तिथि, मतदान की तिथि, मतगणना की तिथि और चुनाव परिणामों की घोषणा की जाती है।
- राजनीतिक दलों एवं उनके उम्मीदवारों के लिये आचार संहिता का निर्माण करना तथा उसे लागू करना।
- चुनाव स्थगित करना, रद्द करना, दोबारा चुनाव कराना, दोबारा मतगणना कराना आदि।
- राजनीतिक दलों को पंजीकृत करना तथा उन्हें राष्ट्रीय या राज्यस्तरीय पार्टियों का दर्ज़ा देना।
- राष्ट्रपति को सलाह देना कि राष्ट्रपति-शासन वाले राज्यों में एक वर्ष समाप्त होने के पश्चात् निर्वाचन कराया जाए या नहीं।
- मतदान का अधिकार संवैधानिक अधिकार के साथ-साथ वैधानिक अधिकार है। मतदान के अधिकार का उल्लेख संविधान के अनुच्छेद-326 एवं जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 में किया गया है, किन्तु निर्वाचित होने का अधिकार एक वैधानिक अधिकार है, जिसकी चर्चा संसद द्वारा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में की गई है। इसलिये दोनों साथ होने की स्थिति में इसे वैधानिक अधिकार माना जाएगा, किन्तु केवल मतदान के अधिकार की बात हो तो इसे संवैधानिक अधिकार माना जाएगा।
- चुनाव क्षेत्र के निर्वाचन अधिकारी को इस बात का अधिकार होता है कि वह मतों की पुनर्गणना करा सके।
- संविधान के अनुच्छेद-324(6) में उपबंध है कि जब निर्वाचन आयोग ऐसा अनुरोध करे, तब राष्ट्रपति या किसी राज्य का राज्यपाल निर्वाचन आयोग या प्रादेशिक आयुक्त को उतने कर्मचारी उपलब्ध कराए, जितने उसके कार्यों के लिये आवश्यक हो।
- भारत का राष्ट्रपति निर्वाचन आयोग को सौंपे गए कार्यों के पालन में उसकी सहायता के लिये उतने प्रादेशिक आयुक्तों की नियुक्ति कर सकेगा, जितने वह आवश्यक समझे।
आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली
- आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली का उद्देश्य समाज के प्रत्येक समूह को समुचित अनुपात में शासन में प्रतिनिधित्व दिलाना है। इस प्रणाली में अल्पसंख्ययक समूहों को उनकी संख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व प्राप्त होता है।
- इस प्रणाली में विभिन्न समूहों का प्रतिनिधित्व करने वाले राजनीतिक दलों को उसके प्राप्त मत के अनुपात में सत्ता में हिस्सेदारी मिलती है। यह प्रणाली वहाँ महत्त्वहीन हो जाती है, जहाँ द्वि-दलीय प्रणाली विकसित हुई है।
भारत के परिसीमन आयोग
- संसद अब तक चार परिसीमन आयोग अधिनियम बना चुकी हैः- 1952, 1962, 1972, एवं 2002
- राष्ट्रपति द्वारा वर्ष 1952, 1963, 1973 एवं 2002 में परिसीमन आयोग का गठन किया गया।
- परिसीमन आयोग के आदेश जब लोकसभा या राज्य विधान सभा में रखे जाते हैं, तब उन आदेशों में कोई संशोधन नहीं किया जा सकता।
- इसके आदेशों को किसी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।
- परिसीमन आयोग एक स्वतंत्र संस्था है, जो निर्वाचन आयोग के साथ मिलकर कार्य करती है।
- इसका गठन पूरे देश में निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा खींचने के उद्देश्य से किया जाता है।
- परिसीमन के बाद परिसीमन आयोग प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में जनसंख्या की संरचना देखता है। 87वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 के द्वारा निर्वाचन क्षेत्र के परिसीमन का आधार जनगणना-2001 को बनाया गया है।
वित्त आयोग
- संविधान के अनुच्छेद-280 में वित्त आयोग के संबंध में प्रावधान है।
- संविधान के अनुच्छेद-280(1) में प्रावधान है कि राष्ट्रपति (न कि संसद) इस संविधान के प्रारंभ से दो वर्ष के भीतर और उसके बाद प्रत्येक पाँच वर्ष पर या आवश्यकतानुसार उससे पहले वित्त आयोग का गठन करेगा।
- वित्त आयोग कुल पाँच सदस्यों से मिलकर बनेगा, जिसमें एक अध्यक्ष और चार सदस्य होंगे।
- संविधान के अनुच्छेद-281 में प्रावधान है कि वित्त आयोग की सिफारिश को राष्ट्रपति संसद के प्रत्येक सदन में रखवाएगा।
- संसद को वित्त आयोग के सदस्यों की योग्यता एवं चयन विधि निर्धारित करने की शक्ति है।
संविधान के अनुच्छेद-280(3) में वित्त आयोग के
कर्त्तव्यों/कार्यों के संबंध में प्रावधान हैं, जो निम्नलिखित हैं -
- करों के शुद्ध आगमन का संघ व राज्यों के बीच विभाजन तथा राज्यों के भागों में बँटवारे के संबंध में।
- भारत की संचित निधि में से राज्यों को सहायता अनुदान देने के संबंध में।
- राज्य के वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर राज्य की संचित निधि के संवर्द्धन के लिये आवश्यक उपाय के संबंध में।
- सुदृढ़ वित्त के हित में राष्ट्रपति द्वारा आयोग को निर्दिष्ट किये गए किसी अन्य विषय के बारे में।
- वित्त आयोग की सिफारिशों की प्रकृति सलाहकारी होती है। इसे मानने के लिये सरकार बाध्य नहीं है।
- भारत की संचित निधि से धन निकालने की अनुमति देना संसद का कार्य है, न कि वित्त आयोग का।
- संविधान के अनुच्छेद-280(3) में वित्त आयोग के कर्त्तव्यों के संबंध में उपबंध है। इसके तहत केन्द्रीय वित्त आयोग भारत की संचित निधि से राज्यों को राजस्व की सहायता हेतु अनुदान देने वाले सिद्धान्तों की अनुशंसा करता है।
- संविधान के अनुच्छेद-280(3) में उपबंध है कि केन्द्रीय वित्त आयोग, राज्य वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर राज्यों में पंचायतों के संसाधनों की आपूर्ति के लिये आवश्यक उपायों का सुझाव दे सकेगी।
- 14वें वित्त आयोग का गठन राष्ट्रपति के द्वारा 2 जनवरी, 2013 को किया गया। इसकी अवधि 1 अप्रैल, 2015 से 31 मार्च, 2020 तक है। वाई.वी. रेड्डी (भारतीय रिज़र्व बैंक के सेवानिवृत गवर्नर) को इसका अध्यक्ष बनाया गया है। इसने अपनी रिपोर्ट 15 दिसम्बर, 2014 को राष्ट्रपति को सौंपी। इसकी सिफारिशों के आधार पर केन्द्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी 32% से बढ़ाकर 42% कर दी गई है।
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