परिधीय तंत्रिका तंत्र | Peripheral nervous system
परिधीय तंत्रिका तंत्र
Peripheral nervous system
परिधीय तंत्रिका तंत्र में वे सभी तंत्रिकाएँ
आती है। जो मस्तिष्क तथा मेरुरज्जु से निकलती है। परिधीय तंत्रिका तंत्र को दो
भागों में बांटा जाता हैं-
1. कायिक
तंत्रिका तंत्र (Somatic
Nervous System)
2. स्वायत्त
तंत्रिका तंत्र (Autonomous
Nervous System)
कायिक तंत्रिका तंत्र (Somatic Nervous System)
इस में
शरीर के विभिन्न अंगों के कार्य को नियंत्रित करने वाली तंत्रिकाएँ आती है।
इसके अंतर्गत दो प्रकार की तंत्रिकाएँ सम्मिलित
हैं-
1. संवेदी
तंत्रिका (Sensory
Nervous System)
2. प्रेरक
तंत्रिका (Motor Nervous
System)
प्रेरक/ चालक तंत्रिका (Motor Nervous System)-यह तंत्रिकाएँ मस्तिष्क तथा मेरुरज्जु से उत्पन्न संदेश अथवा अनुक्रियाओं (Respons) को अंगो तक पहुंचाती है।
स्वायत्त तंत्रिका तंत्र (Autonomous Nervous System)
इसके अंतर्गत वे सभी तंत्रिका सम्मिलित है। जो अनैक्छिक क्रियाओं तथा ग्रंथियों की क्रियाओं को नियंत्रित करती है।
इसमें पाए जाने वाली तंत्रिका है। सामान्यतः
प्रेरक प्रकार की होती है। इसके दो भाग होते हैं-
1. अनुकम्पी
तंत्रिका तंत्र (Sympathetic
Nervous System)
2. परानुकम्पी
तंत्रिका तंत्र (Parasympathetic
Nervous System)
अनुकम्पी तंत्रिका तंत्र (Sympathetic Nervous System)
अनुकम्पी तंत्रिका आपातकाल (The Fight-or-Flight Response) की स्थिति के लिए तैयार करता है।
यह निम्न कार्य करता हैं-
- हृदय और फेफड़ों की क्रिया वृद्धि।
- हृदय धडकन में वृद्धि।
- एड्रिनल ग्रंथि के स्राव बढ़ाना।
- शरीर की विभिन्न अवरोधिनी जैसे गुदा की अवरोधिनी (anal spincter) को सिकोड़ना।
- मूत्राशय को फैलना।
- रक्त वाहिकाओं सिकोड़ना जिससे रक्त दाब अधिक हो जाता है।
- आसू ग्रंथि/ लैक्राइमल ग्रंथि के स्राव को बढ़ाना।
- बालो की जड़ो में पायी जाने वाली एरेक्टर पिलाई पेशियों को उत्तेजित करना।
परानुकम्पी तंत्रिका तंत्र (Parasympathetic Nervous System)
परानुकम्पी तंत्रिका शरीर को आराम की स्थिति में लाता है। यह निम्न
कार्य करता हैं-
- हृदय और फेफड़ों की क्रिया में करना।
- हृदय धडकन को कम करना।
- एड्रिनल ग्रंथि के स्राव कम करना।
- शरीर की विभिन्न अवरोधिनी जैसे गुदा की अवरोधिनी (anal spincter) को फैलाना।
- मूत्राशय को सिकोड़ना।
- रक्त वाहिकाओं फैलाना जिससे रक्त दाब कम हो जाता है।
- आसू ग्रंथि/ लैक्राइमल ग्रंथि के स्राव को कम करना।
- शिश्न के उथान को बढ़ाना।
- बालो की जड़ो में पायी जाने वाली एरेक्टर पिलाई पेशियों को शिथिल करना।
कपाली तंत्रिका (Cranial Nerves)
मस्तिष्क से निकलने वाली परिधीय तंत्रिकाओं को
कपाल तंत्रिकाएँ कहते है। मनुष्य में 12 जोड़ी कपाल तंत्रिकाएँ पाई जाती है। जो
निम्न हैं-
- घ्राण तंत्रिका (Olfactory Nerve)
- द्रिक तंत्रिका (Optic Nerve)
- ऑक्यूलोमोटर तंत्रिका (Occulomotor Nerve)
- ट्रोक्लियर तंत्रिका (Trochlear Nerve)
- ट्राईजेमिनल तंत्रिका (Trigeminal Nerve)
- एब्ड्यूसेन्स तंत्रिका (Abducens Nerve)
- फेशियल तंत्रिका (Facial Nerve)
- ऑडिटरी तंत्रिका (Auditory Nerve)
- ग्लोसोफैरिंजीयल तंत्रिका (Glossopharyngeal Nerve)
- वेगस तंत्रिका (Vagus Nerve)
- स्पाइनल एसेसरी तंत्रिका (Spinal Accessory Nerve)
- हाइपोग्लॉसल तंत्रिका (Hypoglossal Nerve)
मेरु तंत्रिका (Spinal Nerve)
मेरूरज्जु से निकलने वाली परिधीय तंत्रिकाओं को
मेरु तंत्रिका कहते है। मानव में 31 जोड़ी परिधीय तंत्रिका पाई जाती है। जिनको
पांच भागों में विभाजित किया जाता है। जो निम्न प्रकार हैं-
1. ग्रीवा
मेरु तंत्रिकाएँ (Cervical
nerves)
2. वक्षीय
मेरु तंत्रिकाएँ (Thoracic
nerve)
3. कटि
मेरु तंत्रिकाएँ (Lumbar
nerve)
4. त्रिक
मेरु तंत्रिकाएँ (Sacral
nerve)
5. अनुत्रिक
मेरु तंत्रिकाएँ (Coccygeal
nerve)
ग्रीवा मेरु तंत्रिकाएँ (Cervical nerves)
- ये प्रथम कशेरुक से ग्रीवा कशेरुक के नीचे तक पायी जाती है। ग्रीवा मेरु तंत्रिकाओं की कुल संख्या 8 जोड़ी होती है। ग्रीवा मेरु तंत्रिकाएँ C1, C2, C3, C4, C5, C6 ,C7, C8 कहलाती है।
वक्षीय मेरु तंत्रिकाएँ (Thoracic nerve)
- प्रत्येक वक्षीय कशेरुक के नीचे की तरफ से निकलती है। वक्षीय मेरु तंत्रिकाओं (Thoracic nerve) की कुल संख्या 12 जोड़ी होती है। वक्षीय मेरु तंत्रिकाएँ (Thoracic nerve) T1, T2, T3, T4, T5, T6, T7, T8, T9, T10, T11, T12, कहलाती है।
कटि मेरु तंत्रिकाएँ (Lumbar nerve)
- यह मेरु तंत्रिकाएँ प्रत्येक कटि नीचे से शरीर के दोनों तरफ निकलती है। इनकी कुल संख्या 5 जोड़ी होती है। कटि मेरु तंत्रिकाओं (Lumbar nerve) को L1, L2, L3, L4, L5 कहते है।
त्रिक मेरु तंत्रिकाएँ (Sacral nerve)
- ये त्रिक कशेरुक के पास से निकलती है। इनकी कुल संख्या 5 जोड़ी होती है। त्रिक मेरु तंत्रिकाएँ (Sacral nerve) को S1, S2, S3, S4, S5 कहते है।
अनुत्रिक मेरु तंत्रिकाएँ (Coccygeal nerve)
- यह अनुत्रिक मेरु तंत्रिका कोकिस तथा सेंक्रल के बीच में से निकलती है। इस की संख्या एक जोड़ा है। जिसको CO1 कहते है।
प्रतिवर्ती क्रिया
किसी उद्दीपन (Stimulation) के कारण स्वतः होने वाली शरीर की अनैच्छिक (Involuntary action) क्रियाओं को प्रतिवर्ती क्रिया कहते
है। जैसे-
- अचानक ही किसी गर्म वस्तु के हाथ छूते ही तुरंत अपना हाथ हटा लेते है।
- इसी प्रकार स्वादिष्ट भोजन को देखते वक्त लार आना
प्रतिवर्ती प्रक्रिया दो प्रकार की होती है।
- सरल प्रतिवर्ती क्रिया
- उपार्जित प्रतिवर्ती क्रिया
सरल प्रतिवर्ती क्रिया (Simple/Unconditional Reflex action)
इस प्रकार की प्रतिक्रिया जन्मजात तथा
प्राकृतिक होती है। अर्थात यह जन्म के साथ ही मानव को प्राप्त हो जाती है। इनका
नियंत्रण पूर्णतया मेरुरज्जु के द्वारा होता है। इनको अप्रतिबंधित प्रतिवर्ती
क्रिया भी कहते है। जैसे-
- किसी वस्तु को आंखों की तरफ आता देख कर पलके बंद कर लेना
- निगले हुए भोजन का श्वास नली में जाने पर खांसी आना
- तेज प्रकाश में पुतली का सिकुड़ जाना
- सोते हुए व्यक्ति के पैर को गुदगुदाने पर पैर को झटका मारना
उपार्जित प्रतिवर्ती क्रिया (Conditional/ Acquired Reflex action)
इस प्रकार की प्रतिवर्ती क्रिया जन्मजात नहीं
होती अथार्त यह जन्म के पश्चात परीक्षण के माध्यम से सीखी जाती है। जैसे-
- किसी व्यक्ति को कार अथवा मोटरसाइकिल के आगे आते हुए देखने पर अचानक ब्रेक लगा लेना
- व्यक्ति को झुका हुआ देखने पर कुत्ते का डर कर भाग जाना
- अध्यापक का क्लास में प्रवेश करने पर बच्चों का खड़ा हो जाना
प्रतिवर्ती क्रिया की क्रियाविधि (Mechanism of Reflex action)
बाहरी उद्दीपन (External Stimulation) को संवेदी ग्राही (Sensory receptor) द्वारा ग्रहण किया जाता है। जिसे
संवेदी तंत्रिका (Sensory
nerve) द्वारा
विद्युत आवेग (Potential)
के रूप में
मेरुरज्जु (Spinal cord) के केंद्रीय भाग में पहुंचा दिया जाता
है। मेरुरज्जु के केंद्रीय भाग में संवेदी तंत्रिकाओं से निकलने वाले आवेग प्रेरक
तंत्रिका (Motor nerve) में आवेग उत्पन्न कर देते हैं यह आवेग
प्ररेक/ चालक तंत्रिका के माध्यम से उस अंग की पेशियों (muscle) तक जाता है। जिससे उस अंग की पेशियाँ
गति करती है। जैसे-
यदि किसी को पिन चुभाई जाती है। तो उत्पन्न
संवेदनाएं संवेदी तंतु के माध्यम से विद्युत आवेश के रूप में मेरूरज्जू में जाते
हैं जहां ये आवेग प्रेरक तंत्रिकाओं में भी विद्युत आवेग उत्पन्न कर देते है। जो
प्रेरक तंत्रिका के माध्यम से हाथ की पेशियों तक पहुंचता है। जिसे हाथ की पेशियाँ
सिकुड़ती है। और हाथ उस पिन से दूर हट जाता है। यह संपूर्ण प्रक्रिया अत्यधिक तीव्र
गति से होती है।
प्रतिवर्ती चाप (Reflex Arc)
प्रतिवर्ती क्रिया में संवेदी अंग से लेकर
प्रेरक तक बने पथ को प्रतिवर्ती चाप (Reflex Arc) कहते है। प्रतिवर्ती चाप में निम्न अंग सम्मिलित होते हैं-
- संवेदी अंग (Sense organ)
- संवेदी तंत्रिका (Sensory nerve)
- मेरुरज्जु (Spinal cord)
- चालक/प्रेरक तंत्रिका (Motor nerve)
- प्रभावी अंग (Effective organ)
संवेदी अंग (Sense organ)-इससे संवेदनाओं को ग्रहण किया जाता है। जैसे आँख, नाक, कान, त्वचा तथा जीभ
संवेदी तंत्रिका (Sensory nerve)-यह संवेदी अंगों से उद्दीपन को मेरुरज्जु तक पहुंचाती है।
मेरुरज्जु (Spinal cord)-यहां पर उद्दीपन के विपरीत प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है।
चालक/प्रेरक तंत्रिका (Motor nerve)-इसके माध्यम से मेरुरज्जु में उत्पन्न अनुक्रिया को प्रभावी अंग तक पहुंचाया जाता है।
प्रभावी अंग (Effective organ)प्रेरक/चालक तंत्रिका से प्राप्त उद्दीपन के कारण इस अंग में क्रिया होती है।
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