संचार के माध्यम | Sanchar Ke Madhyam
संचार के माध्यम
सूचना या संदेश का एक
स्थान तक भेजने के लिए माध्यम की जरूरत होती है जिसके सहारे सूचना का संप्रेषण
किया जाता है। सामान्यतः संचार माध्यमों को दो भागों में बांटा जाता है-
1. तार माध्यम Line Communication - इसमें
भौतिक तार का प्रयोग किया जाता है जैसे युग्म तार, को-एक्सियल
केबल, प्रकाशीय तंतु
2. बिना तार के संचार Wireless Communication-
इसमें पृथ्वी के चारों ओर स्थित अंतरिक्ष को माध्यम के रूप में प्रयोग किया जाता
है जैसे- भू-तरंग, अंतरिक्ष
या माइक्रोवेव, आकाशीय
तरंग, उपग्रह संचार
युग्म तार Twisted Pair Cable
- इसमें तांबे के दो तार होते हैं, जिन पर कुचालकोें की परत चढ़ी रहती है। ये तार आपस में लिपटे रहते हैं तथा संचारण के लिए संतुलित माध्यम बनाते हैं। इससे तार में शोर में कमी आती है। यह संकेतों को बिना रिपीटर के कुछ किलोमीटर तक ही ले जा सकते हैं। इसके बाद रिपीटर का प्रयोग आवश्यक हो जाता है। इनका प्रयोग मुख्यतः टेलीफोन सेवा में किया जाता है।
- जब तार और इससे जोडे गए उपकरण का लोड समान होता है तो तार से उपकरण में संकेतों का महत्तम स्थानांतरण होता है। इसे इम्पीडेंस मैचिंग Impedance Matching कहा जाता है।
- परन्तु, उच्च आवृत्ति पर युग्मतार एंटीना की तरह तरंगों का संप्रेषण शुरू कर देता है तथा इसमें ह्रास अधिक होता है। अतः इसे उच्च आवृत्ति के लिये प्रयोग नहीं किया जाता।
आवृत्ति सीमा Frequency Range
कोएक्सियल केबल Co-axial Cable
- युग्म तारों के दोषों को दूर करने के लिए को-एक्सियल केबल का प्रयोग किया जाता है। इसके केन्द्र में तांबे का ठोस चालक होता है। ठोस चालक के चारों तार की जाली रहती है जिसे शील्ड कहते हैं। दोनों के बीच टेफ्लाॅन या पालीथीन का कुचालक रहता है। तार की जाली भी कुचालक से ढकी रहती है।
- संकेतों का सचंारण केंन्द्रीय ठोस तार से होता है जबकि शील्ड अर्थ से जुड़ा रहता है। इसमें संकेतों की हानि अपेक्षाकृत कम होती है, बैंडविड्थ अधिक होता है तथा संकेत बाहरी तत्वों से अप्रभावित रहता है। इसका प्रयोग केबल टीवी नेटवर्क तथा 20 मेगा हट्र्ज से कम आवृत्ति के लिए किया जाता है।
प्रकाशीय तंतु Optical Fibre
- इसमें ग्लास या प्लास्टिक या सिलिका का बना अत्यंत पतला तंतु (10 से 100 माइक्रो मीटर व्यास) होता है जिसे कोर कहते हैं। यह कोर चारों ओर से कम अपवर्तनांक के ग्लास या प्लास्टिक माध्यम के द्वारा घिरा रहता है जिसे क्लैडिंग कहते हैं। सुरक्षा की दृष्टि से क्लैडिंग पर भी कुचालकों की परत चढ़ी रहती है जिसे बफर कहते हैं। एलईडी या लेजर डायोग द्वारा उत्पन्न संकेत युक्त प्रकाश के इन तंतुओं के माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जाता है। प्रकाश को पुनः संकेत में बदलने के लिए अर्द्धचालक से बने फोटो डायोड का प्रयोग किया जाता है।
- प्रकाशीय तंतु प्रकाश के पूर्ण आंतरिक परावर्ततन के आधार परकार्य करता है। प्रकाशीय सूचना केंद्रीय कोर के सहारे गमन करती है, इसी कारण इसे प्रकाशीय वेवगाइड भी कहा जाता है।
- प्रकाशीय तंतु में संकेतों के संचरण में ऊर्जा की खपत अत्यंत कम होती है तथा यह रेडियो आवृत्ति अवरोधों से मुक्त होता है। इसमें शोर अत्यंत कम, गति तीव्र तथा संकेतों की हानि निम्नतम होती है। उच्च आवृत्ति वाली तरंगों (10 Power 12 से 10 Power 16 हर्ट्ज) के प्रयोग से इसकी बैंडविड्थ तथा चैनल क्षमता अधिक होती है। यह लंबी दूरी के संचार तथा गुप्त संकेतों के प्रसारण के लिए उपयुक्त है। पर इसको आरंभ करने तथा रख-रखाव का खर्च अधिक होता है। वर्तमान संचार में इसका उपयोग अत्याधिक हो रहा है।
- भारत में प्रकाशीय तंतु का निर्माण हिन्दुस्तान केबल्स लिमिटेड, नैनी (इलाहबाद) तथा ओ.टी.एल. रायसेन द्वारा किया जाता है।
भू-तरंगे Ground Wave
- इस माध्यम का प्रयोग तब किया जाता है जब प्रेषक तथा प्राप्तकर्ता का एंटीना पृथ्वी के सतह पर होता है। प्रेषित तरंगे पृथ्वी की सतह के सहारे धारा के रूप में आगे बढ़ती हैं परन्तु ये तरंगें अधिक दूरी तय नहीं कर पाती क्योंकि ये पृथ्वी की सतह द्वारा अवशोषित कर लिए जाने के कारण कमजोर पड़ जाती हैं। अवशोषण द्वारा हानि आवृत्ति बढ़ने पर बढ़ती है। अतः भू-तरंगों का प्रयोग निम्न आवृत्ति (500 हर्ट्ज से 1500 किलो Hz) तथा लंबे तरंगदैध्र्य वाले प्रसारण में किया जाता है। इसमें एंटीना का आकार बड़ा होता है। प्रारंभ में रेड़ियो प्रसारण के एि इसका उपयोग किया जाता था।
अंतरिक्ष तरंगें Space Wave
- ऐसी तरंगे प्रेषित होने के बाद सीधी रेखा में आकाशीय माध्यम द्वारा प्राप्तकर्ता के एंटीना तक पहुंचती हैं। इसमें अति उच्च आवृत्ति (2 से 40 गीगा Hz) वाले विद्युत चुम्बकीय तरंगों के माध्यम से संचार स्थापित किया जाता है। चूंकि उच्च आवृत्ति की तरंगे किसी बाधा को पार नहीं कर पाती हैं अतः प्रेषक तथा प्राप्तकर्ता दोनों के एंटीना का सीधी रेखा में होना आवश्यक है। इसलिए इसे लाइन आॅफ साइट संचार भी कहा जाता है।
- पृथ्वी की सतह की वक्रता के कारण ये तरंगें अधिक दूरी तक उपलब्ध नहीं हो पाती हंै। एंटीना की उंचाई बढ़ाकर या निश्चिित दूरी पर रिपीटर लगाकर इस प्रकार के संचार की प्रभावी दूरी को बढ़ाया जा सकता है। बिना रिपीटर के इससे अधिकतत 40 से 60 कि.मी. तक संचार स्थापित किया जा सकता है। इसमें उच्च आवृत्ति तरंगों तथा अति उच्च आवृत्ति तरंगों का प्रयोग किया जाता है। उच्च आवृत्ति के कारण कम लंबाई के पैराबोलिक एंटीना का प्रयोग किया जाता है। टेलीविजन प्रसारण, माइक्रोवेव संचार तथा उपग्रह संचार में अंतरिक्ष तरंगों का प्रयोग किया जाता है।
आकाशीय तरंगे Sky Waves
- इन तरंगों को प्रेषित कर अंतरिक्ष की ओर भेजा जाता है। ये तरंगे पृथ्वी के वायुमंडल में पाये जाने वाले आयनमंडल से टकराकर पृथ्वी पर वापस लौट जाती हैं। आयन मंडल में तरंगों का परावर्तन उनकी आवृत्ति पर निर्भर करता है। भिन्न-भिन्न आवृत्ति की तरंगे आयन मंडल के विभिन्न सतहों द्वारा परावर्तित होती हैं। तथा पृथ्वी की सतह पर भिन्न-भिन्न स्थानों पर उपलब्ध हो पाती हैं।
- इस माध्यम के द्वारा 5 से 40 मेगा Hz तक की तरंगों का प्रयोग किया जाता है। इससे उच्च आवृत्ति वाली तरंगे आयन मंडल को भेदकर बाहर निकल जाती हैं तथा उनका परावर्तन नहीं होता है। आकाशीय तरंगों का उपयोग निम्न तरंग दैध्र्य या उच्च आवृत्ति तरंगों के ब्राडकास्ट सेवा में किया जाता है।
आयनमंडल Ionosphere
पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल में सूर्य की पराबैंगनी किरणें तथा अन्य उच्च क्षमता वाली तरंगे वायु कणों द्वारा अवशोषित कर ली जाती हैं तथा आयन में बदल जाती हैं इस प्रकार , पृथ्वी के चारों ओर आयनीकृत कणों की एक परत बन जाती है, जिसे आयनमंडल नाम दिया जाता है। ये आयनीकृत कण पूर्ण आंतरिक परावर्तन के कारण आकाशीय तरंगों को वापस पृथ्वी की ओर परावर्तित कर देती हैं। विभिन्न आवृत्ति की तरंगे आयनमंडल की भिन्न-भिन्न परतों के द्वारा परावर्तित की जाती हैं। क्योंकि इनका घनत्व अलग-अलग होता है। आयन मंडल की ऊंचाई पृथ्वी की सतह से 65 किमी से 400 किमी तक हो सकती है।
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