भारत के 16 महाजनपद | छठी सदी ई.पू. महाजनपदों का उदय
भारत के 16 महाजनपद
छठी सदी ई.पू. महाजनपदों का उदय
छठी सदी ई.पू. प्राचीन भारतीय इतिहास का एक
अत्यंत ही महत्वपूर्ण समय माना जाता है। इस भारतीय इतिहास के संक्रान्ति काल से भी
संबोधित किया जाता है। इस समय भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के विभिन्न क्षेत्रों
में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए। राजनीतिक क्षेत्र में उत्तर वैदिक काल से बड़े
राज्यों की स्थापना की जो प्रवृत्ति प्रारंभ हुई थी वह इस समय तक काफी विकसित हो
चुकी थी।
बौद्ध ग्रंथ अंगुत्तर निकाय के अनुसार उत्तर
भारत में सोलह महाजनपद स्थापित हो चुके थे। इनमें अधिकतर राजतंत्रात्मक थे, परन्तु कुछ गणतंत्र राज्यों की भी चर्चा
है।
अंगुत्तर निकाय एवं जैन ग्रंथ भगवती सूत्र से
इन गणतंत्रीय राज्यों की प्रशासनिक प्रणाली की जानकारी प्राप्त होती है।
भारत के सांस्कृतिक इतिहास का प्रारंभ अति
प्राचीन काल से हुआ किन्तु उसके राजनैतिक इतिहास का प्रारंभ अपेक्षाकृत बहुत बाद
में हुआ। राजनैतिक इतिहास का मुख्य आधार सुनिश्चत तिथिक्रम (650 ई.पू.) के पहले नहीं मान सकते।
उत्तर वैदिक काल में हमें विभिन्न जनपदों का
अस्तित्व दिखाई देता है। इस काल तक पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा पश्चिमी बिहार में
लोहे का व्यापक रूप से प्रयोग किया जाने लगा था।
लौह तकनीक ने लोगों के भौतिक जीवन में बड़ा परिवर्तन उत्पन्न कर दिया तथा
इसमें स्थाई जीवन-यापन की प्रवृत्ति सुदृढ़ हो गयी।
कृषि, उद्योग, व्यापार-वाणिज्य आदि के विकास ने
प्राचीन जनजातीय व्यवस्था को जर्जर बना दिया तथा छोटे-छोटे जनों का स्थान जनपदों
ने ग्रहण कर लिया। ईसा पूर्व छठी शताब्दी तक आते-आते जनपद, महाजनपदों के रूप में विकसित हो गये।
सोलह महाजनपदों के सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक स्थिति
छठी शताब्दी ईसा पूर्व के प्रारंभ में उत्तर
भारत में सार्वभौम सत्ता का पूर्णतया अभाव था। संपूर्ण प्रदेश अनेक स्वतंत्र
राज्यों में विभक्त था। ये राज्य यद्यपि उत्त्र वैदिक कालीन राज्यों की अपेक्षा
अधिक विस्तृत तथा शक्तिशाली थे। तथापि इनमें से कोई भी देश राजनैतिक एकता के सूत्र
में संगठित करने में समर्थ नहीं था तथापित बौद्ध ग्रंथ अंगुत्तरनिकाय से ज्ञात
होता है कि महात्मा गौतम बुद्ध के उदय के कुछ पूर्व समस्त उत्तरी भारत 16 बड़े राज्यों में विभाजित था। इन्हें
सोलह महाजनपद कहा गया है।
अंगुत्तरनिकाय व भगवती सूत्र दोनों की सूचियों
की तुलना करने पर ऐसा स्पष्ट होता है कि कुछ राज्यों के नाम जैसे- अंग, मगध काशी, कोशल, वत्स, वज्जि आदि दोनों में ही समान हैं। छठी
ईसा पूर्व के पूर्वाद्ध में भारत की राजनैतिक स्थिति के ज्ञान के लिए हमें बौद्ध
ग्रंथ की सूची को ही प्रमाणिक माना गया
है।
अंगुत्तर निकाय में जिन 16 महाजनपदों का उल्लेख हुआ है वे बुद्ध
के पहले विद्यमान थे, क्योंकि बुद्धकाल में काशी का राज्य
कोशल में तथा अंग का राज्य मगध में मिला लिया गया था। संभवतः उसी समय अश्मक भी
अवंति द्वारा जीत लिया गया था।
अंगुत्तर निकाय में जिन 16 महाजनपदों का उल्लेख हुआ है इनमें दो
प्रकार के राज्य थे-
1-राजतंत्र
2- गणतंत्र
राजतंत्र- 16 महाजनपद
राजतंत्र में राज्य का अध्यक्ष राजा होता था।
इस प्रकार के राज्य थे अंग,
मगध, काशी, कोशल, चेदि, वत्स, कुरू, पांचाल, मतस्य, शूरसेन, अश्मक, अवंति, गंधार तथा कंबोज।
भारत के 16 महाजनपद |
1- अंग महाजनपद
उत्तरी बिहार के वर्तमान भागलपुर तथा मुंगेर के
जिले अंग महाजनपद के अतर्गत थे। इसकी राजधानी चंपा थी। महाभारत तथा पुराणों में
चंपा का प्राचीन नाम ‘मालिनी‘ प्राप्त होता है। बुद्ध के समय तक चंपा की गणना भारत के छः महानगरों
में की जाती थी। दोहा निकाय के अनुसार इस नगर के निर्माण की योजना सुप्रसिद्ध
वास्तुकार महागोविन्द ने प्रस्तुत की थी।
महापरिनिर्वाण सूत्र चंपा के अतिरिक्त अन्य
पांच महानगरियों के नाम राजगृह, श्रावस्ती, साकेत, कौशाम्बी तथा बनारस दिये गये हैं। प्राचीन काल में चम्पा नगर वैभव
तथा व्यापार वाणिज्य के लिए प्रसिद्ध था।
अंग मगध का पड़ोसी राज्य था। जिस प्रकार काशी
तथा कोशल में प्रभुसत्ता के लिए संघर्ष चल रहा था उसी प्रकार अंग तथा मगध के बीच
भी दीर्घकालीन संघर्ष चला। अंग के शासक ब्रहम्दत्त ने मगध के राज भट्टिय को पहले
पराजित कर मगध राज्य के कुछ भाग को जीत लिया था किन्तु बाद में अंग का राज्य मगध
में मिला लिया गया।
2- मगध महाजनपद
यह दक्षिणी बिहार में स्थित था वर्तमान में पटना
और गया जिले इसमें सम्मिलत थे। कालांतर में यह उत्तर भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली
महाजनपद बन गया । मगध तथा अंग एक दूसरे के पड़ोसी राज्य थे तथा दोनों को पृथक करती
चम्पा नदी बहती थी। इस महाजनपद की सीमा उत्तर में गंगा से दक्षिण में
विन्ध्यापर्वत तक तथा पूर्व में चम्पा से पश्चिम में सोन नदी तक विस्तृत थी। मगध
की प्राचीन राजधानी राजगृह अथवा गिरिब्रज थी। यह नगर पॉच पहाडि़यों के बीच में
स्थित था। नगर के चारों ओर पत्थर की सुदृढ़ प्राचीन बनवायी गयी थी। कालान्तर में
मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में स्थापित हुई।
3-वज्जि महाजनपद
यह आठ राज्यों का एक संघ था। इसमें वज्जि के
अतिरिक्त वैशाली के लिच्छवि, मिथिला, के विदेह तथा कुण्डग्राम के ज्ञातृक
विशेष रूप से प्रसिद्ध थे। वैशाली उत्तरी बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में स्थित
आधुनिक बसाढ़ है। मिथिला की पहचान नेपाल सीमा में स्थित जनकपुर नामक नगर से की
जाती है। यहां पहले रातंत्र था परंतु बाद में गणतंत्र स्थापित हो गया । कुंडग्राम
वैशाली के समीप स्थित था। यदु के समय में यह शक्तिशाली संघ था।
4-काशी महाजनपद
वर्तमान वाराणासी तथा उसका सीमावर्ती क्षेत्र ही प्राचीन काल में काशी महाजनपद था। उत्तर में वरूणा तथा दक्षिण में असी नदियों से घिरी हुई वाराणसी नगरी इस महाजनपद की राजधानी था। सोनन्द जातक से ज्ञात होता है कि मगध, कोशल तथा अंग के ऊपर काशी का अधिकार था। जातक ग्रंथों से पता चलता है कि इस राज्य का विस्तार तीन सौ लीग (लीग से तात्पर्य उस दूरी से था जो कोई व्यक्ति या घोड़ा एक घंटे मे तय कर सकता था।) था और यह महान समृद्धिशाली तथा साधन सम्पन्न राज्य था। काशी तथा कोशल के बीच दीर्घकालीन संघर्ष का विवरण बौद्ध ग्रंथों में प्राप्त होता है। यहाँ का सबसे शक्तिशाली राजा ब्रम्हदत्त था जिसने कोशल के ऊपर विजय प्राप्त की थी। किन्तु अन्तोगत्वा कोशल के राजा कंस ने काशी को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया ।
5-कोशल महाजनपद
वर्तमान अवध का क्षेत्र प्राचीन काल में कोशल
महाजनपद का निर्माण करता था। यह उत्तर में नेपाल से लेकर दक्षिण में सई नदी तथा
पश्चिम में पांचाल से लेकर पूर्व में गंडक नदी तक फैला हुआ था। कोशल की राजधानी
श्रावस्ती थी। इसके अन्य प्रमुख नगर अयोध्या तथा साकेत थे। रामायण कालीन कोशल
राज्य की राजधानी अयोध्या थी। बुद्ध काल में कोशल राज्य के दो भाग हो गये। उत्तरी
भाग की राजधानी साकेत तथा दक्षिणी भाग की राजधानी श्रावस्ती में स्थापित हुई।
साकेत का ही दूसरा नाम अयोध्या था।
6-मल्ल महाजनपद
पूर्वी उत्तरप्रदेश के देवरिया जिले में मल्ल
महाजनपद स्थित था। वज्जि संघ के समान यह भी एक संघ गण राज्य था जिसमें पावा
(पडरौना) तथा कुशीनारा (कसया) के मल्लों की शाखाएं सम्मिलित थी। ऐसा प्रतीत होता
है कि विदेह राज्य की ही भांति मल्ल राज्य भी प्रारंभ में एक राजतंत्र के रूप में
संगठित था। कुस जातक मे ओक्काक कोवहीं का राजा बताया गया है। कालान्तर में उनका एक
संघ बन गया । बुद्ध के समय तक उनका स्वतंत्र अस्तित्व बना रहा ।
7-वत्स महाजनपद
आधुनिक इलाहबाद तथा बांदा के जिले प्राचीन काल
में वत्स महाजनपद का निर्माण करते थे। इसकी राजधाीन यमुना नदी के किनारे स्थित है।
विष्णु पुराण से पता चलता है कि हस्तिनापुर के राज निचक्षु ने हस्तिनापुर के गंगा
प्रवाह में बह जाने के बाद कौशाम्बी को अपनी राजधानी बनाया था। बुद्धकाल में यहाँ
पौरवंश का शासन था जिसका शासक उदयन था। पुराणों के अनुसार उसके पिता परंतप ने अंग
की राजधानी चम्पा को जीता था। इलाहबाद विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग
द्वारा कौशाम्बी में विस्तृत खुदाइयां की गयी हैं जिनसे पता चलता है कि ई.पू. बारहवीं
सद के मध्य से लेकर छठी शताब्दी तक यहाँ बस्ती बनी हुई थी। श्रेष्ठि घोषित द्वारा
निर्मित बिहार तथा उदयन के राजप्रसाद के अवशेष भी प्राप्त होते हैं।
8-चेदि या चेति महाजनपद
आधुनिक बुंदेलखण्ड के पूर्वी तथा उसके
समीपवर्ती भागों में प्राचीन काल का चेदि महाजनपद स्थित था। इसकी राजधानी
श्रावस्ती थी जिसकी पहचान महाभारत के शुक्तिमती से की जाती है। महाभारत काल में
यहाँ का शासक शिशुपाल था जिसका वध कृष्ण के द्वारा किया गया । चेतिय जातक में यहाँ
के एक राजा का नाम उपचर मिलता है।
9-कुरू महाजनपद
मेरठ, दिल्ली तथा थानेश्वर के भू-भागों में कुरू महाजनपद स्थित था। इसकी
राजधानी इन्द्रप्रस्थ थी। महाभारतकालीन हस्तिनापुर का नगर भी इसी राज्य में स्थित
था। जातक, ग्रंथों को अनुसार इस नगर की परिधि दो
हजार मील के लगभग थी। बुद्ध के समय यहां का राज कोख्य था। कुरू के लोग प्राचीन समय
से ही अपनी बुद्धि एवं बल के लिए प्रसिद्ध थे। पहले कुरू एक राजतंत्रात्मक राज्य
था किन्तु कालान्तर में यहां गणतंत्र की स्थापना हुई।
10 - पांचाल महाजनपद
आधुनिक रूहेलखण्ड के बरेली बदायूँ तथा फरूखाबाद
के जिले से मिलकर प्राचीन पांचाल महाजनपद बनता था प्रारंभ में इसके दो भाग थे।
पहला उत्तरी पांचाल, जिसकी राजधानी अहिच्छत्र थी तथा
दक्षिणी पांचाल जिसकी राजधानी काम्पिल्य थी। कान्यकुब्ज का प्रसिद्ध नगर इसी राज्य
में स्थित था। छठी शताब्दी ई.पू. कुरू तथा पांचाल का एक संघ राज्य था।
11-मतस्य (मच्छ) महाजनपद
आधुनिक ब्रजमंडल क्षेत्र में यह महाजनपद स्थित
था। इसकी राजधानी मथुरा थी। प्राचीन यूनानी लेखक इस राज्य को शूरसेनाई तथा इसकी
राजधानी को मथुरा कहते थे। महाभारत तथा पुराणों के अनुसार यहां यदु (यादव) वंश का
शासन था। कृष्ण यहां के राजा थे। बुद्धकाल में यहां का राजा अवंतिपुत्र था जो
बुद्ध का सर्वप्रथम शिष्य था। उसी की सहायता से मथुरा में बौद्ध धर्म का प्रचार
संभव हुआ। मज्झिम निकाय से पता चलता है कि अवंतिपुत्र का जन्म अवंति नरेश प्रद्योत
की कन्या से हुआ था।
12-अश्मक महाजनपद (अस्मक या अश्वक)
गोदावरी नदी (आंध्रप्रदेश) के तट पर अश्मक
महाजनपद स्थित था। इसकी राजधानी पोतन या पोटिल थी। महाजनपद में केवल अश्मक ही
दक्षिण भारत में स्थित था। पुराणों से पता चलता है कि अश्मक के राजतंत्र की
स्थापना ईक्ष्वाकु वंशी शासकों ने किया था। चुल्लकलिंग जातक से पता चलता है कि
अस्मक के राज आरूण ने कलिंग के राजा को जीता था। महात्मा बुद्ध के पूर्व अश्मक का
अवंति के साथ निरंतर संघर्ष चल रहा था तथा बुद्ध काल में अवंति ने इसे जीतकर अपनी
सीमा के अंतर्गत समाहित कर लिया था।
13-अवंति महाजनपद
पश्चिमी तथा मध्य मालवा के क्षेत्र से पता चलता
है कि यहां अवंति महाजनपद बसा हुआ था। इसके दो भाग थे, उत्तरी अवंति जिसकी राजधानी उज्जयनी थी
तथा दक्षिणी अवंति जिसकी राजधानी महिष्मती थी। जहां का राजा प्रद्योत था।
उज्जयिनी की पहचान मध्यप्रदेश के आधुनिक उज्जैन नगर से की जाती है। राजनैतिक तथा
आर्थिक दोनों ही दृष्टियों से उज्जयिनी प्राचीन भारत का एक अत्यंत महत्वपूर्ण नगर
था। जहां लोहे की खानें थी तथा लुहार इस्पात के उत्कृष्ट अस्त्र-शस्त्र निर्मित कर
लेते थे। इस कारण यह राज्य सैनिक दृष्टि से अत्यंत सबल हो गया। यह बौद्ध धर्म का
भी केन्द्र था। जहां कुछ प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु निवास करते थे।
14- गंधार महाजनपद
वर्तमान
पाकिस्तान के पेशावर तथा रावलपिंडी जिलों की भूमि पर गंधार महाजनपद स्थित
था। इसकी राजधानी तक्षशिला में थी। रामायण से पतला चलता है कि इस नगर की स्थापना
भरत के पुत्र तक्ष ने की थी। इस जनपद का दूसरा प्रमुख नगर पुढ़कलावती था। तक्षशिला
प्रमुख व्यापारिक नगर होने के साथ-साथ शिक्षा का भी प्रसिद्ध केन्द्र था। छठी
शताब्दी ई.पू. के मध्य में यहाँ पुकुसाति अथवा पुढ़करसारित नामक राजा राज्य कर रहा
था। उसने मगधराज बिम्बिसार के दरबार में अपना एक दूतमंडल भेजा था। और इस प्रकार
गंधार तथा मगथ राज्यों के बीच मैत्री संबंध स्थापित हुआ। पुकुसाति ने अवंति के ऊपर
आक्रमण कर वहां के राजा प्रद्योत को पराजित किया था।
15- शूरसेन महाजनपद
आधुनिक ब्रजमण्डल क्षेत्र में यह महाजनपद स्थित था। इसकी राजधानी मथुरा थी। प्राचीन यूनानी लेखक इस राज्य को शूरसेनोई तथा इसकी राजधानी को मथुरा कहते थे। महभारत तथा पुराणो के अनुसार यहाँ युद (यादव) वंश का शासन था। कृष्ण यहां के राजा थे। बुद्धकाल में यहां का राज अवंतिपुत्र था जो बुद्ध का प्रथम शिष्य था। उसी की सहायता से मथुरा में बौद्ध धर्म का प्रचार संभव हुआ। मज्झिम निकाय से पता चलता है कि अवंतिपुत्र का जन्म आवंति नरेश प्रद्योत की कन्या से हुआ था।
16- कंबोज महाजनपद
दक्षिणी-पश्चिमी कश्मीर तथा काफिरिस्तान के भाग
को मिलाकर प्राचीन काल में कंबोज महाजनपद बना था। इसकी राजधानी राजपुर अथवा हाटक
थी। यह गंधार का पड़ोसी राज्य था। कालान्तर में यहां राजतंत्र के स्थान पर संघ
स्थापित हो गया। कौटिल्य ने कंबोजों को वार्ता शास्त्रोपजीवी संघ अर्थात कृषि, पशुपालक, वाणिज्य तथा शस्त्र द्वारा जीविका चलाने वाला कहा है।
प्राचीन समय में कंबोज अपने श्रेष्ठ घोड़ों के
लिए विख्यात था। इस प्रकार छठी शताब्दी ई.ूपू.
के प्रारंभ में उत्तर-भारत विकेन्द्रीकरण एवं विभाजन के दृश्य उपस्थित कर
रहा था सभी सोलह महाजनपदों में पारस्परिक संघर्ष, विद्वेष एवं घृणा का वातावरण व्याप्त था।
काशी और कोशल के राज्य एक दूसरे के शत्रु थे।
प्रारंभ में काशी विजयी रहा परन्तु अन्ततोगत्वा वह कोशल की विस्तारवादी नीति का
शिकार बना। इसी प्रकार अंग,
मगध, तथा अवंति और अश्मक भी परस्पर संघर्ष
में उलझे हुए थे।
गणराज्यों का अस्तित्व राजतंत्रों के लिए
असाध्य हो रहा था। प्रत्येक राज्य अपने पड़ोसी की स्वतंत्र सत्ता को समाप्त करने
पर तुला हुआ था।
प्रश्न- प्राचीन भारत के गणराज्यों के पूर्व के
राजतंत्रों का विस्तृत वर्णन कीजिए ? UPSC Mains
यह भी पढें
आर्यों की उत्पत्ति एवं मूल निवास स्थान
प्राचीन भारतीय इतिहास के स्त्रोत
Post a Comment