भारत की वाणिज्यिक नीति | भारत की विदेश व्यापार नीति

 

भारत की वाणिज्यिक नीति| भारत की विदेश व्यापार नीति 

भारत की विदेश व्यापार नीति


भारत में वाणिज्यिक नीति को दो भागों में बांटा गया है-

1-स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व की नीति

भारत की व्यापार नीति के संबंध में 1923 का वर्ष एक विभाजन रेखा है। सन् 1923 से पूर्व भारत में मुक्त अर्थात् स्वतंत्र व्यापार नीति अपनायी गयी थी। उस समय ब्रिटिश शासकों से ऐसी व्यापार नीति की आशा भी नहीं थी। जो भारत के औद्योगिक विकास से सहयोग दे सके। सन् 1923 में स्वतंत्र व्यापार नीति का त्याग कर विभेदात्मक संरक्षण की नीति अपनायी गई। यह नीति भारतीय हितों की तुलना में ब्रिटिश हितों की अधिक संरक्षक थी। सन् 1929 की विश्वव्यापी मंदी का भारतीय विदेशी व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। सन् 1932 में ब्रिटिश सरकार ने साम्राज्य अधिमान की नीति अपनाई, जिसमें ब्रिटिश हितों का ध्यान रखा गया। इसलिए भारतीयों ने इसका विरोध किया। लेकिन वायसराय ने अपने विशेषाधिकारों केक माध्यम से इसे 1939 तक जारी रखा। द्वितीय विश्व युद्ध में भारतीय व्यापार नीति में आयात-नियात पर कड़े प्रतिबंध लगाये गये तथा विनिमय नियंत्रण कानून लगा दिया गया।

2- स्वतंत्र भारत की व्यापार नीति

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद राष्ट्रीय सरकार की स्थापना हुई। इसके साथ ही देश की व्यापार नीति में महत्वपूर्ण परिवर्तन आये। अब व्यापर नीति का उद्देश्य योजनाबद्ध विकास, तीव्र औद्योगीकरण एवं आर्थिक विकास की  प्रक्रिया को प्रोत्साहित करना हो गया। इसके साथ ही व्यापार का भारतीयकरण की प्रक्रिया शुरू हुई। सरकार ने स्वदेशी उद्योगों को संरक्षण प्रदान करने के लक्ष्य से प्रेरित होकर आयात नीति बनायी। इस नीति में अयात पर नियंत्रण, सीमा शुल्क, सरकार द्वारा खरीद में स्वदेशी माल को प्राथमिकता देने जैसे अनेक कदम उठाये गये। सरकार विदेशों से अनेक द्विपक्षीय एवं बहुपक्षी समझौते किये गये। इस संबंध में 1974 का अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक समझौते विशेष रूप से उल्लेखनीय है। सन् 1948 से 1952 तक सरकार ने अमेरिका व अन्य नरम मुद्रा क्षेत्रों में आयात में उदारता की नीति अपनायी।

सन् 1956 के बाद विदेशी मुद्रा नियंत्रण लागू किये गये। तीसरी योजना काल से पूंजीगत माल तथा महत्वपूर्ण कच्चे माल में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के उद्देश्य से आयात प्रतिस्थापना पर बल दिया गया। द्वितीय योजना के बाद ऋण दायित्व बढ़ने से सरकार ने निर्यात-प्रोत्साहन पर भी ध्यान देना प्रारंभ किया। हमारे देश में प्रतिवर्ष आयात-निर्यात नीति घोषित की जाती वही है। इसमें आयात-निर्यात संबंधी महत्वपूर्ण घोषणाएं की जाती हैं, किन्तु सन् 1985 से सरकार ने तीन वर्षीय आयात-निर्यात नीति घोषित की।

आयात निर्यात नीति 1992-97

India's foreign trade policy

31 मार्च 1992 को सरकार न एक नयी निर्यात-आयात नीति घोषित की। यह नीति अप्रैल, 1992 से मार्च 1997 तक के पांच वर्षों के लिए घोषित की गई। इससे पूर्व निर्यात-आयात नीति तीन वर्ष के लिए बनायी जाती थी। यह नीति प्रतिबंधों को न्यूनतम करने वाली, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अधिक स्वतंत्रता प्रदान करने वाली तथा प्रशासनिक नियंत्रणों को न्यूनतम करने की दिशा में एक प्रयास था। इस नीति का मुख्य उद्देश्य  निर्यातों में भारी वृद्धि करना था। ताकि भारतीय अर्थव्यवस्था स्वतः विकास कर सके। मार्च 1993 एवं 1995 में इस नीति में व्यापक संशोधन कर इसके ओर अधिक उदार बनाया गया है।

निर्यात आयात नीति 1992-97 के मुख्य उद्देश्य

  • भारतीय विदेशी व्यापार को विश्व स्तर का करने का ढांचा तैयार करना।
  • भारतीय उद्योगों में उत्पादकता, आधुनिकरण तथा प्रतिस्पर्द्धा क्षमता में वृद्धि करना ताकि उनकी निर्यात क्षमताओं मे वृद्धि हो सके।
  • भारतीय उद्योगों द्वारा उत्पादित माल की गुणवत्ता को अंतर्राष्ट्रीय मापदंडों के अनुरूप बनाना ताकि विदेशों में भारतीय माल की साख बढ़े।
  • भारत के निर्यातों में वृद्धि करने के उद्देश्य से निर्यातकों के लिए अंतर्राष्ट्रीय बाजार से कच्चा माल, उपकरण, उपभोग योग्य वस्तुएं, पूंजीगत वस्तुएं तथा मध्यवर्ती माल आदि के आयात की व्यवस्था करना।
  • निर्यात-आयात की संचालन प्रक्रिया का सरलीकरण करना।
  • भारत की अनुसंधान एवं विकास तथा तकनीकी क्षमताओं में तेजी से वृद्धि करना।

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