भारत की विदेश व्यापार नीति | India's Foreign Trade Policy

 

भारत की विदेश व्यापार नीति 

India's Foreign Trade Policy 

India's Foreign Trade Policy IN HINDI


किसी भी देश की विदेश व्यापार नीति को तकनीकी रूप से उस देश की वाणिज्यक नीति कहा जाता है। इस आर्टिकल में विदेश नीति तथा वाणिज्यिक नीति को एक ही अर्थ में लिया गया है।

वाणिज्यिक नीति का अर्थ / विदेश व्यापार नीति का अर्थ

Meaning of Commercial Policy

सामान्यतः किसी देश की आयात निर्यात नीति को ही उस देश की वाणिज्यिक नीति कहा जाता है। प्रो. हेबरलर ने वाणिज्यिक नीति को इस प्रकार पारिभाषित किया है-

‘‘व्यावसायिक या वाणिज्यिक नीति से आशय उन सब उपायों से है, जो कि किसी देश के बाह्य आर्थिक संबंधों का नियमन करते हैं। ये उपाय एक ऐसी क्षेत्रीय सरकार या प्रादेशिक सरकार, जिसमें वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात व आयात में बाधा डालने या सहायता पहुंचाने की शक्ति होती हैं, द्वारा किये जाते हैं।‘‘ इन उपायों में आयात-निर्यात पर प्रतिबंध अथवा सहयोग सम्मिलत है। इसके अतिरिक्त किराया-भाड़ा दरों में अंतर, माल की पैकिंग विधि में फेरबदल आदि भी इसमें सम्मिलत किए जाते हैं।

व्यापारिक नीति एवं वाणिज्यिक नीति अंतर

  • सैद्धान्तिक दृष्टि से व्यापारिक नीति एवं वाणिज्यिक नीति में भेद किया जा सकता है । लेकिन व्यवहारिक दृष्टि से इन दोनों को एक ही मान लिया जाता है।  वास्तव में व्यापारिक नीति का क्षेत्र वाणिज्यिक नीति की तुलना में अधिक व्यापक है।
  • वाणिज्यक नीति में केवल आयात-निर्यात के मामले ही सम्मिलत होते हैं जबकि व्यापारिक नीति में आयात-निर्यात के अतिरिक्त अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से संबंधित अन्य समस्याएं भी सम्मिलत होती हैं।
  • व्यापारिक नीति देश की आर्थिक नीति का ही एक भाग है, अतः यह आर्थिक नीति के मूल उद्देश्यों के अनुकूल ही होती है।

वाणिज्यिक नीति का महत्व Importance of Commercial Policy

किसी भी देश के लिए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार एक अनिवार्यता है। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, सहायता, समझौते, पूंजी का आवागमन आदि देश के आर्थिक विकास को प्रभावित करते हैं। विकासशील देशों के लिए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का विशेष महत्व है। इसको नियमित करने एवं सही दिशा देने के लिए व्यापारिकनीति की आवश्यकता पड़ती है।

अधिकांश विकासशील देशों का व्यापार शेष घाटे में रहता है। अतः ये आयात कम करने व निर्यात बढ़ाने के लिए सदैव प्रयत्नशील रहते हैं आयात पर प्रतिबंध लगाकार ये स्वदेशी उद्योगों को प्रोत्साहित करना चाहते हैं।

विकासशील देशों को अपने उद्योगों का विकास करने लिए सरंक्षित बाजार उपलब्ध कराना होता है क्योंकि प्रारंभिक अवस्था में यहां के उद्योग विकसित देशों की प्रतिस्पर्धा में टिक नहीं पाते हैं। यहां न तो उत्पादन की किस्म अच्छी होती है और न ही लागत कम। अतः व्यापारिक नीति स्वदेशी उद्योगों  को संरक्षण देने का महत्वपूर्ण माध्यम है।

निर्यात वृद्धि की दृष्टि से भी व्यापारिक नीति का विशेष महत्व है। सरकार निर्यातकों को वित्त प्रदान कर, विदेशी व्यापारिक सूचनाएं देकर विदेशो में माल का प्रचार कर, मेले लगाकार निर्यातों को बढ़ावा देती है।

विकासशील देशों के पास विदेशी मुद्रा के सीमित भंडार होते हैं अतः इन्हें आयात एवं निर्यातों को इन कोषों के रूप में समायोजित करना होता है क्योंकि विकास के लिए आयात भी आवश्यक है।

यद्यपि व्यापारिक नीति अंतर्राष्ट्रीरय आर्थिक संबंधों तक ही समित होती है, किंतु इसका देश के समग्र आर्थिक विकास पर प्रभाव पड़ता है। वास्तव में यह समग्र विकास का ही एक भाग है।

वाणिज्यिक नीति के प्रकार Type of Commercial Policy 

वाणिज्यिक नीति मोटे तौर पर दो प्रकार की होती है-

  1. स्वतंत्र व्यापार नीति
  2. संरक्षणवादी व्यापार नीति

स्वतंत्र व्यापार नीति

  • जब सरकार आयात-निर्यात पर किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं लगाती है तो इसे स्वतंत्र या मुक्त व्यापार नीति कहते हैं इस नीति के अनुसार यदि सरकार तटकर लगाती है तो उसका उद्देश्य आयात-निर्यात को प्रतिबंधित करना न होकर सरकारी आय बढ़ाना होता है।

संरक्षणवादी व्यापार नीति

  • संरक्षण की नीति का तात्पर्य सरकार की उस नीति से है जिसमें देश के नये शिशु उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्द्धा से बचाने के लिए आयात पर प्रतिबंध लगाया जाता है। इस नीति में दो देशों के मध्य वस्तुओं का स्वतंत्र आदान प्रदान नहीं होता है। विकासशील देशों के लिए यह नीति सर्वाधिक उपयुक्त है क्योंकि इसके बिना वे स्वदेशी उद्योगों का विकास नहीं कर पाते हैं। इससे विकासशील देशों में पूंजी निर्माण व विनियोग का अनुकूल वातावरण बनता है और भुगतान संतुलन की असाम्यता को कम करने में मदद मिलती है।

 यह भी पढें......

भारत की वाणिज्यिक नीति

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.