इसरो सामान्य ज्ञान | ISRO General Knowledge in Hindi
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ISRO GK
- इसरो (ISRO) का पूरा नाम है भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन।
- डॉ.विक्रम ए. साराभाई को भारत में अंतरिक्ष कार्यक्रमों का संस्थापक जनक माना जाता है
- इसरो का गठन 15 अगस्त, 1969 को हुआ था।
- अंतरिक्ष विभाग (अं.वि.) और अंतरिक्ष आयोग को सन् 1972 में स्थापित किया गया। 01 जून, 1972 में इसरो को अंतरिक्ष विभाग के अंदर शामिल किया गया।
- इसरो का प्रमुख उद्देश्य अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का विकास तथा विभिन्न राष्ट्रीय आवश्यकताओं में उनका उपयोग करना है।
- इसरो ने दो प्रमुख अंतरिक्ष प्रणालियों की स्थापना की है, संचार, दूरदर्शन प्रसारण तथा मौसम-विज्ञान सेवाओं के लिए इन्सैट, और संसाधन मॉनिटर और प्रबंधन के लिए भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह (आईआरएस) प्रणाली।
- इसरो ने अभीष्ट कक्ष में इन्सैट और आईआरएस की स्थापना के लिए दो उपग्रह प्रमोचन यान, पीएसएलवी और जीएसएलवी विकसित किए हैं।
- उपग्रहों को इसरो उपग्रह केंद्र (आईजैक) में बनाया जाता है।
- राकेट/ प्रमोचन यान विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी), तिरुवनंतपुरम में बनाए जाते हैं।
- इसरो की प्रमोचन सुविधा एसडीएससी शार में स्थित है, जहाँ से प्रमोचन यानों और परिज्ञापी राकेटों का प्रमोचन किया जाता है। तिरुवनंतपुरम स्थित टर्ल्स से भी परिज्ञापी राकेटों का प्रमोचन किया जाता है।
- राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (एनआरएससी), हैदराबाद से आँकड़े प्राप्त कर सकते हैं।
- भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का प्रारंभ तिरुवनंतपुरम के निकट थुम्बा भूमध्यरेखीय राकेट प्रमोचन केंद्र (टर्ल्स) में हुआ।
- पृथ्वी की भू-चुंबकीय भूमध्यरेखा थुम्बा से हो कर गुज़रती है।
परिज्ञापी राकेट क्या है?
- परिज्ञापी का तात्पर्य, ऊपरी वायुमंडल के भौतिक प्राचलों के मूल्यांकन के लिए प्रयुक्त रोकेट है।
- RH परिज्ञापी राकेट 'रोहिणी' का द्योतक है और अगले अंक राकेट के व्यास को सूचित करते हैं।
- पहला रॉकेट, नैकी-अपाची, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका से प्राप्त किया गया था, जिसे 21 नवंबर, 1963 को प्रमोचित किया गया।
- भारत का पहला स्वदेशी परिज्ञापी राकेट, आरएच-75, 20 नवंबर, 1967 में प्रमोचित किया गया।
- अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी केंद्र (एसएसटीसी) का पुनर्नामकरण विक्रम साराभाई के सम्मान में किया गया विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) के रूप में किया गया। डॉ. विक्रम साराभाई का 30 दिसंबर, 1971 को असामयिक निधन हो गया था।
- देश भर में इसरो छह प्रमुख केंद्र तथा कई अन्य इकाइयाँ, एजेंसी, सुविधाएँ और प्रयोगशालाएँ स्थापित हैं।
- विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) तिरुवनंतपुरम में;
- इसरो उपग्रह केंद्र (आईएसएसी) बेंगलूर में
- ;सतीशधवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी-शार) श्रीहरिकोटा में;
- द्रव नोदन प्रणाली केंद्र (एलपीएससी) तिरुवनंतपुरम, बेंगलूर और महेंद्रगिरी में,
- अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (सैक), अहमदाबाद में और
- राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (एनआरएससी), हैदराबाद में स्थित हैं।
- वीएसएससी, तिरुवनंतपुरम में प्रमोचन यान का निर्माण किया जाता है; आइजैक, बेंगलूर में उपग्रहों को अभिकल्पित और विकसित किया जाता है;एसडीएससी, श्रीहरिकोटा में उपग्रहों और प्रमोचन यानों का एकीकरण और प्रमोचन किया जाता है; एलपीएससी में निम्नतापीय चरण सहित द्रव चरणों का विकास किया जाता है, सैक, अहमदाबाद में संचार और सुदूर संवेदन उपग्रहों के लिए संवेदकों तथा अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के उपयोग संवंधित का कार्य किए जाते हैं तथा; एनआरएससी, हैदराबाद द्वारा सुदूर संवेदन आँकड़ा अभिग्रहण, संसाधन और वितरण का कार्य सँभाला जाता है।
- भारत का पहला प्रमोचन यान का नाम उपग्रह प्रमोचन यान-3 (एसएलवी-3) था।
- एसएलवी-3 का प्रथम सफल प्रमोचन एसडीएससी, शार से 18 जुलाई, 1980 को संपन्न हुआ।
- एसएलवी-3 के अलावा, भारत ने संवर्धित उपग्रह प्रमोचन यान (एएसएलवी), ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचन यान (पीएसएलवी) और भू-तुल्यकाली उपग्रह प्रमोचन यान (जीएसएलवी) का विकास किया।
- उपग्रहों को मोटे तौर पर दो वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है, यथा संचार उपग्रह और सुदूर संवेदन उपग्रह।
- संचार उपग्रह आम तौर पर संचार, दूरदर्शन प्रसारण, मौसम-विज्ञान, आपदा चेतावनी आदि की ज़रूरतों के लिए भू-तुल्यकाली कक्षा में कार्य करते हैं।
- सुदूर संवेदन उपग्रह प्राकृतिक संसाधन मॉनिटरन और प्रबंधन के लिए अभिप्रेत है और यह सूर्य-तुल्यकाली ध्रुवीय कक्षा (एसएसपीओ) से परिचालित होता है।
- एनएनआरएमएस राष्ट्रीय प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन प्रणाली के लिए परिवर्णी शब्द है। एनएनआरएमएस एकीकृत संसाधन प्रबंधन प्रणाली है जिसका लक्ष्य परंपरागत प्रौद्योगिकी के साथ सुदूर संवेदन आंकड़ों के प्रयोग द्वारा देश के प्राकृतिक संसाधनों का इष्टतम उपयोग तथा उपलब्ध संसाधनों का सुव्यवस्थित सूचीकरण करना है।
- पहले भारतीय उपग्रह का नाम आर्यभट्ट था।
- इसका प्रमोचन 19 अप्रैल, 1975 को पूर्व सोवियत संघ से किया गया।
- दिनांक 2 सितंबर, 2007 को जीएसएलवी-एफ़04 द्वारा प्रमोचित 2130 कि.ग्रा. भार वाला उपग्रह इन्सैट-4सी.आर. भारत द्वारा प्रमोचित सर्वाधिक भारी उपग्रह है।
- पीएसएलवी भारत का पहला प्रचालित प्रमोचक राकेट है। अब तक इसकी तीन विकासात्मक उड़ानें और आठ कार्यकारी उड़ानें संपन्न हुई हैं।
- चंद्रयान-1 अंतरिक्ष-यान द्वारा-चंद्रमा का वैज्ञानिक अन्वेषण है। भारतीय भाषाओं (संस्कृत और हिन्दी) में- चंद्रयान का तात्पर्य है “चंद्र अर्थात चंद्रमा, यान अर्थात वाहन” अर्थात, चंद्रमा अंतरिक्ष-यान। चंद्रयान-1 प्रथम भारतीय ग्रहीय विज्ञान और अन्वेषण मिशन है।
- चंद्रयान-1, श्रीहरिकोटा (शार), भारत में स्थित सतीशधवन अंतरिक्ष केंद्र से 22 अक्तूबर, 2008 को प्रमोचित किया गया।
- चंद्रयान-1 28 अगस्तट 2009 तक 312 दिनों के लिए प्रचालन में रहा।
चंद्रयान के वैज्ञानिक उद्देश्य क्या हैं?
- चंद्रयान-1 मिशन का उद्देश्य दृश्य, निकट अवरक्त, न्यून ऊर्जा एक्स-किरण और उच्च ऊर्जा एक्स-किरण क्षेत्रों में चंद्रमा की सतह का उच्च विभेदन सुदूर संवेदन करना है। इसके विशेष वैज्ञानिक लक्ष्य हैं : चंद्रमा के निकटस्थ और दूरस्थ (5-10 मी. उच्च स्थानिक और तुंगता विभेदन सहित) दोनों ओर के त्रि-आयामी एटलस तैयार करना। मैग्नीशियम, एल्यूमीनियम, सिलिकॉन, कैल्शियम, आइरन तथा टाइटेनियम जैसे खनिजों और रासायनिक तत्वों तथा उच्च परमाणु संख्या के रेडॉन, यूरेनियम और थोरियम जैसे उच्च स्थानिक विभेदन वाले तत्वों का चंद्रमा की संपूर्ण सतह पर उपस्थिति का रासायनिक और खनिजीय मानचित्रण करना। हम समकालिक प्रकाशीय भूवैज्ञानिक और रासायनिक मानचित्रण से विभिन्न भूवैज्ञानिक इकाइयों की पहचान और चंद्रमा के उद्भव व प्रारंभिक विकास के इतिहास से संबंधित परिकल्पना की जांच करने में समर्थ होंगे जिससे चंद्रमा की सतह की प्रकृति को समझने करने में मदद मिलेगी।
- अंतरिक्षयान चंद्रयान-1 पर ग्यारह वैज्ञानिक उपकरण लगे हैं। इनमें पाँच भारतीय और छह विदेशी नामतः, ईएसए के तीन, नासा के दो तथा बल्गेरियाई विज्ञान अकादमी का एक वैज्ञानिक उपकरण शामिल है। इनका चयन इसरो के अवसर की घोषणा (एओ) के माध्यम से किया गया। दो ईएसए उपकरणों में भारतीय सहयोग शामिल है।
- चंद्रमा पर तापमान चरम सीमाओं पर पहुँच जाता है – सूरज की रोशनी में प्रकाशित चंद्रमा का पहलू लगभग 130 ºसें तक झुलसाने जितना गरम हो जाता है, और रात में यही पहलू -180 ºसें. पर अत्यधिक ठंडा हो जाता है।
- अभी तक किसी भी चंद्र मिशन ने चंद्रमा पर जीवन की उपस्थिति का कोई संकेत नहीं दिया है।
- परिक्रमा करते हुए चंद्रमा पृथ्वी को हमेशा अपना एक पहलू ही दर्शाता है। यह इसलिए है कि पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण ने चंद्रमा के नियमित प्रचक्रण की गति इतनी कम कर दी कि वह उसके पृथ्वी की परिक्रमा के समय के बराबर हो गया। अतः चंद्रमा को पृथ्वी के चारों ओर घूमने में उतना ही समय लगता है जितना कि उसे अपने अक्ष पर घूमने में लगता है।
एंट्रिक्स क्या है?
- एंट्रिक्स इसरो का वाणिज्यिक स्कंध है। यह विश्व भर में भारतीय अंतरिक्ष उत्पाद और सेवा क्षमताओं के विपणन हेतु एकल खिड़की एजेंसी है।
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