मौर्य वंश सामान्य ज्ञान | Maruya Vansh One Liner GK
मौर्य वंश सामान्य ज्ञान
- मौर्य वंश का संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य था। उसने कौटिल्य नाम से विदित चाणक्य की सहायता से नंद वंश का तख़्ता पलट कर मौर्य वंश का शासन कायम किया।
- नौवीं सदी में विशाखदत्त ने मुद्राराक्षस नामक नाटक की रचना की, जिसमें चन्द्रगुप्त द्वारा मगध के सिंहासन पर अधिकार करने का वर्णन किया गया है।
- ‘जस्टिन’ नामक यूनानी लेखक के अनुसार चन्द्रगुप्त ने पश्चिमोत्तर भारत को सेल्यूकस की गुलामी से मुक्त किया। यह प्रदेश सिन्धु के पश्चिम में पड़ता था।
- अशोक’ के नाम का उल्लेख केवल प्रथम लघु शिलालेख में किया गया है।
- मास्की, गुर्जरा एवं उदेगोलम के लेखों में भी अशोक का व्यक्तिगत नाम मिलता है।
- किसान अपनी उपज का चौथे हिस्से से लेकर छठे हिस्से तक कर के रूप में देते थे।
- जिन किसानों को सिंचाई सुविधा दी गई थी, उनसे सिंचाई कर लिया जाता था।
- मौर्यों का शासन भारत में केवल तमिलनाडु तथा पूर्वोत्तर भारत के भाग को छोड़कर समस्त भारतीय उपमहाद्वीप में फैला हुआ था।
- अशोक पहला भारतीय राजा हुआ जिसने अपने अभिलेखों के सहारे सीधे अपनी प्रजा को संबोधित किया। इन अभिलेखों में राजा के आदेश सूचित किये गए हैं।
- अशोक के अभिलेखों को पाँच श्रेणियों में बाँटा गया हैः दीर्घ शिलालेख, लघु शिलालेख, पृथक शिलालेख, दीर्घ स्तंभलेख और लघु स्तंभलेख।
- प्रथम लघु शिलालेख को छोड़कर अन्य सभी अभिलेखों में अशोक के नाम के स्थान पर केवल देवानांपिय पियदसि (देवों का प्यारा) उसकी उपाधि के रूप में मिलता है।
- अशोक के प्रस्तर-स्तंभ स्थापत्य संरचना के भाग नहीं है बल्कि ये पृथक रचनाएँ हैं।
- अशोक के अभिलेखों की भाषा और लिपि क्रमशः आरामाइक और यूनानी दोनों हैं।
- ये अभिलेख भारत में ब्राह्मी लिपि में लिखित है। किंतु पश्चिमोत्तर भाग में ये खरोष्ठी और आरामाइक लिपियों में हैं।
- कलिंग युद्ध का वर्णन तेरहवें मुख्य शिलालेख में किया गया है।
- राजसिंहासन पर बैठने के पश्चात् सम्राट अशोक ने केवल एक युद्ध किया, जो कलिंग युद्ध के नाम से प्रसिद्ध है।
- अशोक की गृह और विदेश नीति बौद्ध धर्म के आदर्श से प्रेरित है।
- कलिंग युद्ध के पश्चात् उसने दूसरे राज्यों पर भौतिक विजय पाने की नीति छोड़ कर सांस्कृतिक विजय पाने की नीति अपनाई, दूसरे शब्दों में भेरी घोष के स्थान पर धम्म-घोष होने लगा।
- अशोक के तेरहवें शिलालेख में बताया गया है कि कलिंग युद्ध राज्याभिषेक के आठ वर्ष के बाद हुआ था।
- अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद नितांत शांति की नीति नहीं अपनाई, प्रत्युत वह अपने साम्राज्य को सुदृढ़ करने की व्यावहारिक नीति पर चला। उसने विजय के बाद कलिंग को अपने कब्जे में रखा और न ही अपनी सेना का विघटन किया।
- अशोक ने बौद्ध धर्म को ग्रहण किया और बौद्ध-धर्म स्थानों की यात्राएँ कीं। उसकी इस यात्रा के लिये धम्मयात्रा शब्द का उल्लेख मिलता है।
- अशोक ने बौद्धों का तीसरे सम्मेलन (संगीति) का आयोजन करवाया था|
- तीसरा बौद्ध सम्मेलन का आयोजन पाटलिपुत्र में मोग्गलिपुत्ततिस्स की
अध्यक्षता में हुआ था |
- अशोक ने ‘धम्ममहामात्र’ की नियुक्ति समाज के विभिन्न वर्गों के बीच धर्म का प्रचार करने के लिये की थी।
- ‘राजूक’ अधिकारियों को पुरस्कार देने और दंड देने का अधिकार दिया गया था।
- अशोक कर्मकांडों का विरोधी था, विशेषकर स्त्रियों में प्रचलित अनुष्ठानों का विरोधी था। उसने कई तरह के पशु-पक्षियों की हिंसा पर रोक लगा दी थी।
- उसने ऐसे तड़क-भड़क वाले सामाजिक समारोहों पर रोक लगा दी जिनमें लोग रंगरेलियाँ मनाते थे, जो सामाजिक कुरीतियों के प्रतीक थे।
- अशोक ने देश में राजनीतिक एकता स्थापित करने का प्रयास किया । उसने एक धर्म, एक भाषा और प्रायः एक लिपि के सूत्र में सारे देश को बाँध दिया।
- उसने सहनशील धार्मिक नीति चलाई। उसने प्रजा पर बौद्ध धर्म लादने की चेष्टा नहीं की, प्रत्युत उसने हर संप्रदाय के लिये दान दिये।
- उसके पास पर्याप्त साधन-संपदा होने के बाद भी कलिंग विजय के बाद और कोई युद्ध नहीं किया। इस अर्थ में वह अपने समय और अपनी पीढ़ी से बहुत आगे था।
- मौर्य शासन समितियों की सहायता से किया जाता था। ग्रामांचल और नगरांचल दोनों में प्रशासन की व्यवस्था थी। पाटलिपुत्र का प्रशासन छः समितियाँ करती थी
- मौर्य प्रशासन में जन्म और मृत्यु का पंजीकरण किया जाता था।
- प्रशासन के कार्य हेतु बनाई गई समितियाँ सफाई, विदेशियों की रक्षा, बाटों और मापों का नियमन आदि कार्य करती थीं।
- ईसा-पूर्व चौदहवीं सदी में मिश्र के शासक अखनातून ने शांतिवादी नीति को अपनाया था।
- कौटिल्य ने राजा को ‘धर्म-प्रवर्तक’ अर्थात् सामाजिक व्यवस्था का संचालक कहा है।
- अशोक ने धर्म का प्रवर्तन किया और उसके मूलतत्त्वों को सारे देश में समझाने और स्थापित करने के लिये अधिकारियों की नियुक्ति की।
- मौर्य शासन काल में शीर्षस्थ अधिकारी ‘तीर्थ’ कहलाते थे।
- ‘पण’ तीन/चार तोले के बराबर चांदी का सिक्का होता था। यह मुद्रा का प्रकार था।
- ‘समाहर्ता’ कर-निर्धारण का सर्वोच्च अधिकारी होता था।
- ‘सन्निधाता’ राजकीय कोषागार और भंडागार का संरक्षक होता था।
- राज्य में समाहर्ता के कर-निर्धारण के चलते लाभ-हानि होती थी, इसलिये उसे अधिक महत्त्व दिया जाता था।
- मौर्य काल में अधिकारी ज़मीन को मापता और उन नहरों का निरीक्षण करता था जिनसे होकर पानी छोटी नहरों में पहुँचता था।
- कौटिल्य के अर्थशास्त्र में कृषि कार्यों में दासों के लगाए जाने की व्यवस्था का वर्णन मिलता है, जो महत्त्वपूर्ण सामाजिक विकास का परिचायक था। मौर्य काल में ही दासों को कृषि कार्यों में बड़े पैमाने पर लगाया गया।
- राज्य कृषकों की भलाई के लिये सिंचाई और जल वितरण की व्यवस्था करता था।
- इस काल में कर-निर्धारण की सुगठित प्रणाली का विकास किया गया।
- केंद्रीय नियंत्रण पाटलिपुत्र की अनुकूल अवस्थिति के कारण संभव हुआ।
- साम्राज्य पूरे में सड़कों का जाल बिछा हुआ था, इस सुगठित सड़क मार्ग प्रणाली में पाटलिपुत्र से एक राजमार्ग वैशाली और चम्पारण होते हुए नेपाल तक जाता था।
- पत्थर के स्तम्भ वाराणसी के पास चुनार में तैयार किये जाते थे और यहीं से उत्तरी और दक्षिणी भारत में पहुँचाए जाते थे।
- इस काल में पत्थर की इमारत बनाने का काम भारी पैमाने पर शुरू हुआ।
- मौर्य शिल्पियों ने बौद्ध भिक्षुओं के निवास के लिये चट्टानों को काट कर गुफाएँ बनाने की परंपरा भी शुरू की। इसका सबसे पुराना उदाहरण बराबर की गुफाएँ हैं।
- इस काल में पाण्डु रंग वाले बलुआ पत्थर के एक ही टुकड़े से बना स्तम्भ उन्नत तकनीकी ज्ञान का उदाहरण है।
- गंगा के मैदान की इस नई भौतिक संस्कृति के आधार थे- लोहे का प्रचुर प्रयोग, आहत मुद्राओं की बहुतायत, लेखन कला का प्रयोग, उत्तरी काला पॉलिशदार मृदभांड नाम से प्रसिद्ध मिट्टी के बरतनों की भरमार, पकी ईंटों और छल्लेदार कुओं का प्रचलन और सबसे ऊपर पूर्वोत्तर भारत में नगरों का उदय।
- अंतिम मौर्य शासक वृहद्रथ था। वृहद्रथ की हत्या पुष्यमित्र शुंग के द्वारा की गई और शुंग वंश की नींव रखी।
- अशोक ने मगध के राजसिंहासन पर बैठने के पश्चात देवानांपिय पियदसि की उपाधि धारण की। यह प्रथम लघु शिलालेख को छोड़कर अन्य सब अभिलेखों में मिलता है,जो उसकी हिंदू धर्म में आस्था का प्रतीक है।
- ‘देवानांपिय पियदसि’ उपाधि तमिल में अनूदित संगम में उल्लिखित राजाओं ने धारण की।
- अशोक की धार्मिक नीति ब्राह्मणों के विरुद्ध थी। उसने पशु-पक्षियों के वध को निषिद्ध कर दिया और कर्मकांडीय अनुष्ठानों पर रोक लगाई जिसके परिणामस्वरूप ब्राह्मणों की आय में कमी आई, और ब्राह्मणों में उसके प्रति विद्वेष की भावना जागी। मौर्य साम्राज्य के खंडहर पर खड़े हुए नए राज्यों के शासक ब्राह्मण हुए।
- सेना और प्रशासनिक अधिकारियों पर होने वाले भारी खर्च के बोझ से मौर्य साम्राज्य के सामने वित्तीय संकट उत्पन्न हो गया था।
- अशोक ने बौद्ध भिक्षुओं को इतना दान दिया कि राजकोष ही खाली हो गया। अंतिम अवस्था में अपने खर्च को पूरा करने के लिये मौर्यों शासकों को सोने की देवप्रतिमाएँ तक गलानी पड़ी
- साम्राज्य के टूटने का एक महत्त्वपूर्ण कारण था प्रांतों में दमनकारी शासन। अशोक के कलिंग अभिलेख में बताया गया है कि प्रांतों में हो रहे अत्याचारों से वह बड़ा चिंतित था।
- मौर्य शासन में मयूर, पर्वत और अर्ध-चंद्र की छापवाले आहत रजत-मुद्राएँ मान्य थी। ये मुद्राएँ कर की वसूली और अधिकारियों के वेतन भुगतान में सुविधाप्रद हुई होगी और अपनी शुद्ध समरूपता के कारण व्यापक क्षेत्र में बाजार की लेन-देन में सुविधा के साथ चलती थी।
- प्रांतों में हो रहे अत्याचारों को दूर करने के लिये अशोक ने तोसली, उज्जैन और तक्षशिला के अधिकारियों के स्थानांतरण की परिपाटी चलाई।
- मौर्य काल में ही पूर्वोत्तर भारत में सर्वप्रथम पकाई हुई ईंट का प्रयोग हुआ। मकान ईंटों के भी बनते थे और लकड़ी के भी।
- प्रायद्वीपीय भारत में राज्य स्थापित करने की प्रेरणा न केवल चेदियों और सातवाहनों को बल्कि चेरों (केरलपुत्रों), चोलों और पाण्ड्यों को भी मौर्यों से ही मिली है।
- चीन की दीवार का निर्माण राजा शीह हुआँग ती ने सीथियन शकों के हमले से अपने साम्राज्य की सुरक्षा के और लिये करवाया।
- यूनानियों ने उत्तर अफगानिस्तान में बैक्ट्रिया नामक राज्य स्थापित किया था। यूनानियों ने सर्वप्रथम 206 ई. पू. में भारत पर आक्रमण किया था।
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