आर्यों की उत्पत्ति एवं मूल निवास स्थान | Origin and Origin of the Aryans in Hindi
आर्यों की उत्पत्ति एवं मूल निवास स्थान
वैदिक सभ्यता समान्य परिचय
सिंधु सभ्यता के पतन के बाद भारत में जिस
सभ्यता का उदय हुआ उसे आर्य सभ्यता या वैदिक कहते हैं। चूकिं इस काल के निर्माता
थे इसलिए इसे आर्य सभ्यता भी कहते हैं। इस सभ्यता की जानकारी हमें वेदों से
प्राप्त होती है अतः इसे वैदिक सभ्यता के नाम से पुकारते हैं।
आर्यों की उत्पत्ति एवं मूल निवास स्थान
आर्य शब्द का अर्थ होता है- ‘‘पवित्र वंश या जन्म वाला।‘‘ दूसरे शब्दों में आर्य शब्द श्रेष्ठता
का घोत्तक है। आर्य शब्द दस जन-समूह या प्रजाति को संबोधित करता है, जिसका शारीरिक गठन एक विशेष प्रकार का
होता है। आर्य लोग लंबे कद और अच्छे डील-डाल के होते हैं।
सर्वप्रथम
‘आर्य‘ शब्द का प्रयोग वेदों के लिखने वालों
ने किया। उन्होंने अपने को आर्य (श्रेष्ठ) तथा विरोधियों को दस्यु या दास कहा है।
वे अपने को अनार्यों से अधिक श्रेष्ठ या कुलीन समझते थे।
आर्यों की उत्पत्ति एवं मूल निवास स्थान के
विषय में आज भी विद्धानों में मतभेद बना हुआ है। कुछ विद्धान उन्हें विदेशी मानते
हुए भारत के मूल निवासी सिद्ध करने का प्रयास करते हैं। इस संबंध में अनेक तर्क
दिये जाते हे। इतिहास, भाषा-विज्ञान, पुरातत्व, शरीर रचना-शास्त्र और शब्दार्थ विकास
शास्त्र के आधार पर विद्वान आर्यों के मूल निवास के संबंध में मतों का प्रतिपादन
करते हैं।
आर्यों का मूल निवास स्थान क्या था इस संबंध में मत
- यूरोप- आर्यों का मूल निवास
- मध्य एशिया- आर्यों का मूल निवास
- आर्कटिक प्रदेश- आर्यों का मूल निवास
- भारत- आर्यों का मूल निवास
आर्यों का आदि देश यूरोप के समर्थन में मत
बहुत से विद्वानों का मत है कि आर्यों का मूल
निवास स्थान यूरोप था। सर्वप्रथम इस विचार को व्यक्त करने वाला फ्लोरेंस फिलिप्पी
निवासी सेसेटी था। उसने आर्यों की भाषा संस्कृत और विभिन्न यूरोपीय भाषाओं में
साम्यता दिखलाने की कोशिश की।
विलियम जोन्स ने भी इस तर्क का समर्थन किया , उन्होंने ग्रीक, गोथिक, संस्कृत, फारसी आदि भाषाओं में समानता दिखलाने
का प्रयास किया। उदाहरण स्वरूप संस्कृत पितृ, लैटिन में पटेर, अंग्रेजी
में फादर, जर्मन में वटर कहा जाता है। यही समानता
माता शब्द में भी देखने में भी मिलती है।
भाषा संबंध इस साम्यता के आधार पर विद्वान
आर्यों का मूल निवास स्थान यूरोप मानने
लगे।
एक अन्य विद्वान पेन्का का विचार है कि जर्मनी
मुख्यतया स्केण्डिनेविया ही आर्यों का मूल निवास
स्थान था। उन्होंने नस्ल एवं शारीरिक गठन की समानता के आधार पर इस मत को बल
दिया है।
आर्यों का आदि निवास मध्य एशिया का समर्थक
यूरोपीय मत के विपरीत अनेक विद्वान यह मत
प्रतिपादित करते हैं कि आर्यों का भारत में आगमन मध्य एशिया से हुआ, अतः
मध्य एशिया ही आर्यों का मूल निवास स्थल हो सकता है। यह मत काफी प्रचलित
है।
इस मत के समर्थक धार्मिक ग्रंथों के आधार पर यह
सिद्ध करने का प्रयास करते हैं कि आर्य मध्य एशिया से ही भारत में आकर बसे। इस मत
के प्रमुख प्रतिपादक मैक्समूलन हैं।
मैक्समूलर के अनुसार भारतीय आर्यों के आदि
ग्रंथ ऋग्वेद और ईरानी आर्यों के प्रथम ग्रंथ जेन्द अवेस्ता में अद्भुत समानता है।
यह समानता सिद्ध करती है कि प्रारंभ में ईरानी और भारतीय आर्य किसी एक जगह रहे
होंगे, परन्तु कालान्तर में अलग-अलग आकर बस
गये होंगे। वह स्थान भारत और ईरान के मध्य कहीं स्थित था। यहीं से आर्यों की एक
शाखा भारत और दूसरी ईरान और तीसरी शाखा यूरोप जाकर बस गई।
प्रारंभ में आर्य अपने वर्ष की गणना ‘हिम‘ से करते थे जो इंगित करता कि वे किसी शीतप्रधान देश में रहते थे।
परन्तु आगे चलकर आर्य वर्ष की गणना ‘शरद‘ से करने लकरने लगे। जिससे प्रमाणित
होता है कि वे दक्षिण की तरफ बढ़े जहां अपेक्षाकृत कम ठंडक पड़ती थी।
आर्य घोड़े, नाव के प्रयोग से परिचित थे, उन्हें पीपल के पेड़ की भी जानकारी थी। ऐसी स्थिति मध्य एशिया में ही
संभव है। यहीं से आर्य विभिन्न दिशाओं में गये।
मध्य एशिया के सिद्वांत के समर्थकों का यही भी
कहना है कि आर्यों के प्राचीनतम लेख एशिया में मिले हैं। एशिया माइनर में बोगजकोई
से प्राप्त अभिलेख जो लगभग 1400
ई.पू. का है, में कतिपय वैदिक देवतओं जैसे मित्र, वरूण, इन्द्र आदि देवतओं का उल्लेख मिलता है।
इन प्रमाणों के आधारपर अनेक विद्वानों का मत है
कि आर्य मध्य एशिया में ही कहीं रहते थे और वहीं से भारत आगमन हुआ था।
आर्यों का आदि निवास आर्कटिक प्रदेश या उत्तरी ध्रुव था इस मत का समर्थन
इस मत का समर्थन करने वाले प्रसिद्ध भारतीय
विद्वान लोकमान्य बालगंगाधर तिलक हैं। उन्होंने ऋग्वेद और अवेस्ता का गहन अध्ययन
किया तथा इस निष्कर्ष पर पहुंचे की आर्यों का मूल निवास या आदि देश उत्तरी ध्रुव
था। वेद में जो भौगोलिक वर्णन है उससे ऐसा प्रतीत होता है कि आर्य उत्तरी ध्रुव से
आये।
जैसे कि ऋग्वेद से पता चलता है कि आर्यों को
ज्ञात था कि एक लंबे दिन और एक लंबी रात एक वर्ष का होता है तथा कई दिनों तक
प्रातःकाल होता है। कई दिनों तक प्रातःकाल यह दर्शाता है कि वहां हिमपात बहुत अधिक
होता था। हम यह भी जानते हैं कि उत्तरी धु्रव में बहुत बर्फ पड़ती है। ऐसे हिमपात
का वर्णन अवेस्ता में भी मिलता है। संभवतः इसी हिमपात के चलते आर्य उत्तरी ध्रुव
से निकल कर मध्य एशिया पहुंचे।
परन्तु आलोचक तिलक के मत को नहीं मानते हैं।
उनका कहना है कि यदि आर्य उत्तरी ध्रुव प्रदेश के निवासी रहे होते तो वे सप्त
सिंधु प्रदेश को ‘देवकृत योनि‘ कहकर नहीं पुकारते। ऋग्वेद में उत्तरी
ध्रुव का स्पष्ट जिक्र नहीं मिलता है। आलोचकों का यह भी तर्क है कि साहित्यक
प्रमाण बहुत ठीक एवं प्रमाणिक नहीं हैं उनमें अतिशयोक्तियां हैं। इस प्रकार बहुत
से विद्वान लोक मान्य तिलक के मत को नहीं मानते हैं।
आर्यों का आदि निवास भारत के समर्थन में मत
अनेक विद्वानों का मत है कि आर्या भारत में
कहीं बाहर से नहीं आए बल्कि वे यहां के निवासी थे। इस मत के प्रसिद्ध समर्थकों में
श्री अविनाश चंद्र दास, श्री गंगानाथ झा, श्री डी.ए. व्रिवेद , डां राजबली पाण्डेय आदि प्रमुख थे।
इन विद्वानों का तर्क है कि वेद में सप्त सिंधु
का गुणगान किया गया है। अतः यही आर्यों का निवास स्थान रहा होगा। इनका यह भी कहना
है कि आर्यों का कहीं अन्यत्र निवास स्थान न होने का सबसे बड़ा प्रमाण है कि आर्य
परिवार की भाषाओं में अन्य भाषाओं की अपेक्षा संस्कृत शब्दों की संख्या अधिक है।
परन्तु यूरोपीय भाषाओं में उन शब्दों की संख्या काफी कम है।
ऋग्वेद में जिन भौगोलिक परिस्थितियों तथा
प्राकृतिक वातावरण का वर्णन है वह सब भारत के सप्त सिंधु प्रदेश का है। अतः भातर
आर्यों का मूल निवास स्थान होगा।
बहुत से आधुनिक विद्वान इस मत को स्वीकार नहीं
करते। उनक कहना है कि यदि भारत आर्यों का देश रहा होता तो आर्यों के भारत से बाहर
जाने के पहले संपूर्ण भारत का आर्यीकरण हो चुका रहता, परन्तु ऐसी बात नहीं। पुनः यह कैसे
संभव है कि हड़प्पा सभ्यता के निवासी आर्य नहीं थे।
आर्यों के मूल निवास के संबंध में प्रश्न काफी
पेचीदा एवं विवादास्पद है। अभी तक जिन भी मतों का अध्ययन किया गया उन सभी मतों की
अपनी कुछ विशेषताएं एवं कमजोरियां हैं , परन्तु कोई मत शंका से परे नहीं है।
विद्वानों का अधिकांश समुदाय यह स्वीकार करता है कि आर्य मध्य एशिया से आकर लगभग 1500 ई. पू. के आस पास भारत में बस गए। अतः हम स्वीकार कर सकते हैं कि आर्यों का आदि निवास स्थान मध्य एशिया में ही कहीं था।
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आर्य विदेशी थे और है,
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