आहार एवं पोषक तत्व |पोषण सुपोषण कुपोषण

 आहार एवं पोषक तत्व |पोषण सुपोषण कुपोषण

Aahar Evam Poshak Tatv


आहार :अर्थ एवं परिभाषा

 

  • आहार अथवा भोजन मानव जीवन को बनाए रखने के लिए अति आवश्यक है।
  • मनुष्य जो भी भोजन ग्रहण करता है उसमें विभिन्‍न पोषक तत्व पाए जाते हैं जो मानव शरीर को पोषित करते हैं।
  • शारीरिक वृद्धि, विकास, उत्तम स्वास्थ्य एवं दैनिक क्रियाशीलता के लिए मानव को पर्याप्त आहार एवं पोषण की आवश्यकता होती है।
  • मानव अपने आहार को दो प्रमुख प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त करता है- वनस्पति स्रोत एवं प्राणिज स्रोत। 
  • वनस्पतियाँ प्रकाश संश्छेषण की प्रक्रिया के माध्यम से अपना भोजन स्वयं निर्मित कर लेती हैं। प्राणी अपने आहार के लिए वनस्पतियों अथवा अन्य जीवों पर निर्भर होते हैं।
  •  मानव अपने आहार में कई खाद्य पदार्थों को सम्मिलित करता है। 
  • भिन्न-भिन्न खाद्य पदार्थों में पोषक तत्वों की मात्रा भी भिन्न होती है। 
  • अपने आहार को सन्तुलित बनाने के लिए एवं उसमें विविधता लाने के लिए मनुष्य कई खाद्य पदार्थों का चुनाव करता है। 
  • भोजन के लिए खाद्य वस्तुओं का चुनाव कई कारकों द्वारा प्रभावित होता है जैसे, भौगोलिक क्षेत्र विशेष में उगने वाली वनस्पतियाँवातावरणीय कारक, संस्कृति, आहार सम्बन्धी आदतें, रोग की स्थिति, खाद्य पदार्थों की उपलब्धता आदि।

 

आहार क्या है?

मानव द्वारा ग्रहण किया गया खाद्य पदार्थ जो मानव शरीर का पोषण करता हैआहार कहलाता है। दूसरे शब्दों में वह पदार्थ जो खाया गया हो, शरीर द्वारा अवशोषित किया गया हो, जो शरीर की वृद्धि एवं निर्माण करे तथा शरीर की विभिन्‍न क्रियाओं को नियंत्रित करे”, आहार के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।

चैम्बर्स शब्दकोश के अनुसार भोजन/आहार वह पदार्थ है जो खाया जा सके, पचाया जा सके तथा जो शरीर की वृद्धि एवं निर्माण करे” 


मरियम वैबस्टर शब्दकोश के अनुसार

भोज्य पदार्थों में आवश्यक रूप से प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट एवं वसा उपस्थित होते हैं जो शरीर की वृद्धि एवं मरम्मत करते हैं, आवश्यक क्रियाओं को सुचारु रखते हैं तथा शरीर को कार्य हेतु ऊर्जा प्रदान करते हैं।

 

किसी भी भोज्य पदार्थ में निम्नलिखित गुण पाए जाते हैं:

  • भोज्य पदार्थों में पोषक तत्व उपस्थित होते हैं।
  • भोज्य पदार्थों के पोषक तत्व पाचन क्रिया के उपरान्त शरीर द्वारा अवशोषित कर लिए जाते हैं
  • तथा रक्त प्रवाह में मिल जाते हैं।
  • पोषक तत्व मुख्य रूप से शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हैं, शरीर की वृद्धि एवं निर्माण करते हैं तथा शरीर की विभिन्‍न क्रियाओं को नियंत्रित करते हैं
  • चयापचय की प्रक्रिया में पोषक तत्व शारीरिक एन्जाइमों द्वारा विखण्डित कर दिये जाते हैं।

 पोषक तत्वों का अर्थ

  • पोषक तत्वों द्वारा जीवन संचालन एवं वृद्धि के लिए आवश्यक पोषण प्राप्त होता है। 
  • पोषक तत्व वह पदार्थ होते हैं जो शारीरिक वृद्धि एवं चयापचय हेतु आवश्यक हैं।
  • हमारा आहार कई प्रकार के पोषक तत्वों से मिलकर बनता है।  पोषक तत्व शरीर को पोषित करते हैं।भोजन में विभिन्‍न पोषक तत्व पाएजाते हैं।
  • पोषक तत्व जैसे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन, खनिज लवण, जल वह रासायनिकयौगिक एवं तत्व होते हैं जो कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, सल्फर, कैल्शियममैग्नीशियम आदि तत्वों द्वारा निर्मित होते हैं। 

हमारे आहार से हमें मुख्य रूप से छ: प्रकार के पोषक तत्व पाए जाते हैं, जो निम्न हैं; 

।) प्रोटीन 

(2) कार्बोहाइड्रेट 

(3) वसा 

(4) विटामिन

(5) खनिज लवण

(6) जल

इन पोषक तत्वों के अलावा आहारीय रेशा भी बहुत महत्वपूर्ण है जिसे आहार में सम्मिलित करना आवश्यक है। 

  • इन पोषक तत्वों में प्रोटीन, वसा एवं कार्बोहाइड्रेट को हम स्थूल पोषक तत्वों के अंतर्गत सम्मिलित करते हैं।
  • इन स्थूल पोषक तत्वों के सम्पूर्ण शरीर में कुछ विशिष्ट कार्य होते हैं तथा ये शरीर को आवश्यक कैलोरी अथवा ऊर्जा भी देते हैं। इस कारण शरीर की वृद्धि, विकासनिर्माण के लिए ये पोषक तत्व अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में आवश्यक होते हैं। 
  • सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे विटामिन तथा खनिज लवण स्थूल पोषक तत्वों की तुलना में कम मात्रा में आवश्यक होते हैं परन्तु शरीर के उत्तम स्वास्थ्य हेतु ये पोषक तत्व भी समान रूप से आवश्यक हैं। 
  • ये स्थूल पोषक तत्वों के साथ मिलकर शरीर की सामान्य कार्यप्रणाली जैसे ऊर्जा स्तर, चयापचयकोशिकीय कार्य तथा उत्तम शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करते हैं।


पोषण: अर्थ एवं परिभाषा

  • पोषण शरीर को पोषित करने की प्रक्रिया है। मानव पोषण प्राप्त करने के लिए मुख्य रूप से भोज्य पदार्थों पर निर्भर रहता है। 
  • मानव शरीर को पोषित करने के लिए तीन महत्त्वपूर्ण प्रक्रियाएँ पाचनअवशोषण एवं चयापचय निरन्तर चलती रहती हैं। 
  • पोषणएक विस्तृत शब्दावली है। पोषण के अंतर्गत कई प्रक्रियाएँ सम्मिलित हैं जैसे आहार ग्रहण करना, उसका पाचन, अवशोषण, चयापचयउत्सर्जन एवं पोषक तत्वों का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव आदि।

 

काउन्सिल ऑफ फूड्स एण्ड न्यूट्रीशन ऑफ द अमेरिकन मेडिकल ऐसोसिएशनने पोषण को

निम्न प्रकार परिभाषित किया है:

 

पोषण आहार, उसमें उपस्थित पोषक तत्वों अन्य तत्वों, इनकी पारस्परिक क्रिया, इनकी स्वास्थ्य तथा रोग की स्थिति में क्रिया एवं सन्तुलन तथा वह सभी प्रक्रियाएँ जिसके द्वारा जीव आहार ग्रहण करते हैं तथा उस आहार का पाचन, अवशोषण, परिवहन, उपयोग एवं उत्सर्जन करते हैं, का विज्ञान है। 

पोषण की स्थितियाँ 

मनुष्य जिस प्रकार का भोजन ग्रहण करता है वह उसके स्वास्थ्य को सीधे तौर पर प्रभावित करता है। सामान्यतः: पोषण की दो मुख्य स्थितियाँ देखी जा सकती हैं:

(]) सुपोषण

(2) कुपोषण


 सुपोषण क्या होता है  

  • सुपोषण अथवा उत्तम पोषण वह स्थिति है जब व्यक्ति पूर्ण रूप से स्वस्थ हो, उसमें कोई रोग के लक्षण न हों एवं वह अपनी आयु के अनुरूप क्रियाशील हो। जब व्यक्ति को उचित मात्रा में सन्तुलित आहार प्राप्त होता है तब वह सुपोषण की स्थिति में रहता है। 
  • इस स्थिति में व्यक्ति को आहार द्वारा सभी प्रकार के आवश्यक पोषक तत्व उचित एवं वांछित मात्रा में प्राप्त होते हैं।
  • सुपोषित व्यक्ति के शरीर में सभी पोषक तत्वों का उपयोग भली प्रकार से होता है। यह स्थिति व्यक्ति के उत्तम स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए आवश्यक है। 
  • पारम्परिक तौर पर यदि व्यक्ति किसी भी रोग से ग्रस्त नहीं है तो यह माना जाता है कि वह स्वस्थ है।  उत्तम स्वास्थ्य सुखी मानव जीवन की नींव है। 

ऑक्सफोर्ड इंगलिश डिक्शनरी के अनुसार- 

उत्तम स्वास्थ्य वह स्थिति है जब शरीर एवं मस्तिष्क दोनों स्वस्थ हों एवं उनके कार्य सुचारु रूप से सम्पादित हो रहे हों।

 

स्वास्थ्य की सबसे अधिक प्रचलित परिभाषा विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा दी गई है जिसके अनुसार 

उत्तम स्वास्थ्य शरीर में केवल रोगों की अनुपस्थिति ही नहीं बल्कि यह पूर्ण रूप से शारीरिकमानसिक एवं समाजिक रूप से उत्तम स्थिति को प्राप्त करना है।" 


एक स्वस्थ एवं सुपोषित व्यक्ति के शरीर में निम्नलिखित लक्षण पाए जाते हैं:

 

  •  शरीर का सुविकसित होना।
  •  आयु के अनुसार उचित लम्बाई एवं भार प्राप्त करना।
  • साफ एवं कान्तिमान त्वचा।
  • स्वच्छ एवं कान्तिमान नेत्र।
  • सुगठित शरीर जो मोटापे से ग्रसित न हो।
  • चमकीले बाल।
  •  व्यक्ति को पर्याप्त भूख लगती है एवं पाचन संस्थान भली प्रकार कार्य करता है।
  •  व्यक्ति को नित्य समय पर गहरी निद्रा आती हो।
  •  मल एवं अन्य व्यर्थ पदार्थों का उचित निष्कासन एवं उत्सर्जन।
  •  शरीर आसानी से गति करता हो।
  •  शरीर के सभी अंग सामान्य रूप से कार्य करते हों।
  •  सभी ज्ञानेन्द्रियाँ भली प्रकार अपना कार्य करती हों।
  •  व्यक्ति की नाड़ी एवं रक्त चाप व्यक्ति की आयु एवं लिंग के अनुरूप सामान्य हो।
  •  शरीर उत्साहित एवं कार्य क्षमता युक्त हो।
  •  व्यक्ति के शरीर में पर्याप्त रोग प्रतिरोधक क्षमता हो।

कुपोषण क्या है 

  • सुपोषण की विपरीत स्थिति को कुपोषण कहा जाता है। कुपोषण की स्थिति में व्यक्ति का शरीर कमजोर एवं रोग ग्रस्त हो जाता है। 
  • व्यक्ति के आहार में यदि पोषक तत्वों की कमी हो अथवा पोषक तत्व आवश्यकता से अधिक मात्रा में उपस्थित हों तो वे शरीर में कुपोषण की स्थिति उत्पन्न कर सकते हैं।
  •  कुपोषण की स्थिति में व्यक्ति को असंतुलित मात्रा में पोषक तत्व प्राप्त होते हैं।

कुपोषण की दो स्थितियाँ होती हैं: 

  • अल्प पोषण Under Nutrition
  • अति पोषण Over Nutrition 


अल्प पोषण का अर्थ

  • अल्प पोषण का अर्थ है शरीर में एक या एक से अधिक पोषक तत्वों की कमी। 
  • अल्प पोषण की स्थिति में शरीर को पर्याप्त एवं आवश्यक मात्रा में पोषक तत्व प्राप्त नहीं हो पाते हैं। 
  • बच्चों में प्रोटीन ऊर्जा कुपोषण, विटामिन ''एकी कमी द्वारा उत्पन्न स्थिति रतौंधी, लौह लवण की कमी से उत्पन्न एनीमिया अल्प पोषण द्वारा उत्पन्न कुपोषण के उदाहरण हैं। 

अल्प पोषण मुख्य रूप से निम्न दो कारणों द्वारा उत्पन्न होता है:

  1. व्यक्ति को पर्याप्त मात्रा में भरपेट भोजन उपलब्ध न हो।
  2. व्यक्ति को भरपेट भोजन तो उपलब्ध हो परन्तु उपलब्ध भोजन में पौष्टिक तत्वों का अभाव हो। 

अल्प पोषण  का प्रभाव 

  • अल्प पोषण की दशा में व्यक्ति शारीरिक रूप से कमजोर हो जाता है।
  • उसकी कार्य क्षमता कम हो जाती है।
  • व्यक्ति को विभिन्‍न रोग एवं संक्रमण शीघ्र घेर लेते हैं। 
  • हमारा राष्ट्र आज उन्नति के मार्ग पर अग्रसर है परन्तु विभिन्‍न सर्वेक्षणों से यह ज्ञात होता है कि भारत में निम्न आय वर्ग के बच्चे एवं महिलाएँ कुपोषण से ग्रसित हैं। 
  • बड़ी संख्या में बच्चे प्रोटीन ऊर्जा कुपोषण, विटामिन "एकी कमीएनीमिया जैसे रोगों द्वारा ग्रसित हैं, किशोरियों तथा महिलाओं में भी लौह लवण की कमी द्वारा उत्पन्न एनीमिया रोग बहुतायत में दिखाई देता है।

 अति पोषण

पोषक तत्वों की अधिकता भी कुपोषण का कारण हो सकता है। इसको हम अति पोषण द्वारा उत्पन्न कुपोषण की संज्ञा दे सकते हैं। मोटापा (Obesity) इसका उदाहरण है। इस स्थिति में व्यक्ति आवश्यकता से अधिक ऊर्जा/कैलोरी अपने आहार में सम्मिलित करता है। यह अतिरिक्त ऊर्जा शरीर में वसा के रूप में संग्रहित कर ली जाती है। 

कुपोषण के सम्भावित कारण

कुपोषण कई कारणों से हो सकता है परन्तु कुपोषण की स्थिति के लिए मुख्य रूप से निम्न कारण उत्तरदायी हैं:

1-व्यक्ति को पर्याप्त  मात्रा में आहार प्राप्त न होना:

  • यदि व्यक्ति को किसी कारणवश पर्याप्त मात्रा में भरपेट भोजन उपलब्ध नहीं हो तो स्वतः ही उसके शरीर में पौष्टिक तत्वों की कमी हो एगी एवं वह कुपोषण से शीघ्र ग्रसित हो जाएगा। 

2- पोषक तत्वों की मांग की पूर्ति न होना:

  • यदि व्यक्ति अपने आहार में विविध खाद्य पदार्थों को सम्मिलित नहीं करता तथा सन्तुलित आहार ग्रहण नहीं करता है तो उसके शरीर में कई पौष्टिक तत्वों की कमी हो सकती है। 
  • ऐसी स्थिति में व्यक्ति के आहार में प्राय: विविधता नहीं होती है जिससे उसे भरपेट भोजन तो प्राप्त होता है परन्तु सभी पौष्टिक तत्वों की शारीरिक आवश्यकता की पूर्ति नहीं हो पाती है। फलत: वह कुपोषण का शिकार हो सकता है।

 

3- आयु लिंग, क्रियाशीलता एवं शारीरिक अवस्था के अनुरूप भोजन की अनुपलब्धता:

  • अलग-अलग आयु, लिंग, क्रियाशीलता एवं शारीरिक अवस्था में लोगों की पौष्टिक तत्वों की माँग भिन्न-भिन्न होती है। उदाहरण के लिए किशोरावस्था एक वृद्धि काल है जिसमें वृद्धिकारक पोषक तत्वों की शरीर में अधिक आवश्यकता होती है। अधिक शारीरिक श्रम करने वाले व्यक्ति को अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। 
  • विशेष शारीरिक अवस्थाओं में भी पौष्टिक तत्वों की आवश्यकता में परिवर्तन आता है। यदि इन परिस्थितियों में शारीरिक आवश्यकता के अनुरूप पौष्टिक तत्वों की पूर्ति न हो तो व्यक्ति कुपोषण से ग्रस्त हो सकता है।

 

4- आर्थिक कारक: 

  • व्यक्ति की आर्थिक स्थिति खाद्य पदार्थों की उपलब्धता एवं चुनाव को प्रभावित करती है। निम्न आय वर्ग के व्यक्ति अपने दैनिक आहार में महँगी खाद्य वस्तुओं को सम्मिलित नहीं कर पाते हैं। इनकी क्रय शक्ति कम होती है। 
  • इनके द्वारा ग्रहण किए जाने वाला आहार मात्रा एवं गुणवत्ता दोनों ही दृष्टि से अपूर्ण हो सकता है एवं व्यक्ति कुपोषण से ग्रसित हो सकता है। 

5- सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारक: 

  • सामाजिक कारक जैसे रीति-रिवाज, विशेष अवस्थाओं में प्रतिबन्धित खाद्य पदार्थ, उपवास आदि प्रथाएँ भी व्यक्ति के शरीर में कुपोषण उत्पन्न करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 

6-अज्ञानता: 

  • अज्ञानता भी कुपोषण को जन्म देने वाला एक महत्वपूर्ण कारक है। कई बार व्यक्ति
  • अज्ञानतावश पौष्टिक तत्वों से युक्त भोज्य पदार्थों को अपने आहार में सम्मिलित नहीं करते हैं।
  • यह धारणा भी गलत है कि केवल महँगे खाद्य पदार्थों के सेवन से ही उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त किया जा सकता है।
  • सस्ते मौसमी फल एवं सब्जियों से भी पोषक तत्वों जैसे विटामिन एवं खनिज लवणों की आवश्यकता की पूर्ति की जा सकती है। शोध द्वारा यह सिद्ध हो चुका है की मोटे अनाज को आहार में स्थान देना स्वास्थ्य की दृष्टि से श्रेष्ठकर है।
  • यदि खाद्य पदार्थों को पकाने के दौरान अज्ञानतावश उचित विधि का प्रयोग न किया जाए तो पौष्टिक तत्वों की हानि हो सकती है।

7 अस्वास्थ्यकर वातावरण: 

  • यदि व्यक्ति स्वयं एवं भोजन की साफ-सफाई पर विशेष ध्यान नहीं देते तो अतिसार, संक्रमण आदि से ग्रस्त हो सकते हैं। यदि यह लम्बे समय तक चलता है तो यह कुपोषण का कारण बन सकता है। इसके साथ ही यदि व्यक्ति दृषित वातावरण में निवास करता है, ऐसी स्थिति में उसे पर्याप्त सूर्य का प्रकाश एवं शुद्ध वायु नहीं मिल पाती है। ऐसी परिस्थितियाँ भी व्यक्ति में कुपोषण का कारण बन सकती हैं।
 

8. दोषपूर्ण पाचन एवं अवशोषण

  • यदि व्यक्ति का पाचन संस्थान रोग ग्रस्त है तो उसके द्वारा ग्रहण किए गए आहार का पाचन एवं पौष्टिक तत्वों का अवशोषण प्रभावित होगा। यह स्थिति कुपोषण उत्पन्न कर सकती है।


9. दोषपूर्ण भोजन सम्बन्धी आदतें

  • दोषपूर्ण भोजन सम्बन्धी आदतें जैसे केवल स्वाद की दृष्टि से भोजन ग्रहण करना, उचित समय पर भोजन न ग्रहण करना, अधिक तला एवं मसालेयुक्त भोजन ग्रहण करना आदि भोजन सम्बन्धी दोषपूर्ण आदतें भी कुपोषण का सम्भावित कारण बन सकती है।

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