हड़प्पा संस्कृति सामान्य ज्ञान | Hadappa Sanskrit GK One liner

 

हड़प्पा संस्कृति सामान्य ज्ञान

Hadappa Sanskrit GK One liner


  • हड़प्पा संस्कृति संस्कृति कांस्ययुगीन थी। इस काल के लोग कांस्य निर्माण पद्धति से परिचित थे। ये धातु की खूबसूरत मूर्तियाँ बनाते थे, परंतु इनके औज़ार ज्यादातर पत्थर के बने होते थे।लोथल गुजरात में खंभात की खाड़ी पर स्थित बंदरगाह नगर था।
  • हड़प्पा संस्कृति के अंतर्गत पंजाब, सिंध और बलूचिस्तान के भाग के साथ गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सीमांत भाग थे।
  • इसका पूरा क्षेत्रफल लगभग 12,99,600 वर्ग किलोमीटर है। इसका क्षेत्र ईसा-पूर्व तीसरी और दूसरी सहस्राब्दि में संसार की सभी संस्कृतियों से बड़ा था।
  • हड़प्पा संस्कृति का नाम सिंधु नदी के क्षेत्र में विकसित होने के कारण सिंधु सभ्यता भी कहा जाता है। यह सिंधु व उसकी सहायक नदियों के क्षेत्र में विकसित हुई थी।
  • मिस्र सभ्यता नील नदी के किनारे विकसित हुई थी। मिस्र के लोग नील नदी को आइसिस् देवी मानकर पूजा करते थे।
  • मेसोपोटामिया सभ्यता का विकास दज़ला-फरात नदियों के क्षेत्र में हुआ था।
  • हड़प्पा संस्कृति के सुव्यवस्थित नगर-निवेश, व्यापक ईंट-संरचनाएँ, लिखने की कला, मानक बाट-माप, दुर्गनगर, कांसे के औज़ारों का इस्तेमाल और काले रंग के मृदभांड से लेकर चित्रित लाल मृदभांड के निर्माण तक। इसमें शैलीगत एकरूपता समाप्त हो गई और शैली में विविधता आ गई।
  • उत्तर-हड़प्पा संस्कृतियाँ मूलतः ताम्रपाषाणिक हैं, जिनमें पत्थर और तांबे के औज़ारों का उपयोग होता था। इनमें धातु के ऐसे उपकरण बनते थे, जिनकी ढलाई आसान है।
  • उल्लेखनीय है कि इस संस्कृति के लोग गांवों में बस गए और खेती, पशुपालन, शिकार और मछली पकड़ने का व्यवसाय करने लगे थे।
  • हड़प्पा संस्कृति के परिपक्व अवस्था वाले नगरों में सुतकागेंडोर और सुरकोटदा समुद्रतटीय नगर थे।
  • इस संस्कृति के सात नगरों को ही परिपक्व अवस्था वाले नगर कहा जा सकता है। उनमें हड़प्पा, पंजाब में और मोहनजोदड़ो (अर्थात् प्रेतों का टीला) सिंध में (पाकिस्तान) हैं।
  • हड़प्पा संस्कृति में समाज, शासक और सामान्य वर्ग में बँटा हुआ था। शासक वर्ग के लोग नगर दुर्ग में रहते थे। प्रत्येक नगर में दुर्ग के बाहर एक-एक निम्न स्तर का शहर था, जहाँ ईंटों के मकानों में सामान्य लोग रहते थे।
  • इस काल में लिंग पूजा का प्रचलन पाया जाता है, जो कालान्तर में शिव की पूजा से गहन रूप से जुड़ गया। हड़प्पा में पत्थर से बने लिंग के अनेक प्रतीक मिले हैं।
  • उत्तर हड़प्पा काल में गुजरात के लोथल में अग्नि-पूजा की परम्परा चली थी, किंतु इसके लिये मंदिरों का उपयोग नहीं होता था। मिस्र और मेसोपोटामिया के नितांत विपरीत किसी भी हड़प्पाई स्थल पर मंदिर नहीं पाया गया है।
  • मेलुहा सिंधु संस्कृति का प्राचीन नाम है। 2350 ई.पू. के आसपास मेसोपोटामियाई अभिलेखों में मेलुहा के साथ व्यापारिक संबंधों की चर्चा है। 
  • मेसोपोटामिया के पुरालेखों में दो मध्यवर्ती व्यापार केन्द्रों का उल्लेख मिलता है- दिलमन और माकन। ये दोनों मेसोपोटामिया और मेलुहा के बीच में हैं।
  • कालीबंगा राजस्थान के गंगानगर ज़िले में घग्घर नदी के किनारे स्थित है। कालीबंगा का अर्थ है "काले रंग की चूड़ियाँ"। यहाँ पर हड़प्पा पूर्व और हड़प्पाकालीन अवस्थाएँ देखने को मिलती हैं।
  • विशाल स्नानागार मोहनजोदड़ो का सबसे महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्थल है, जिसका जलाशय दुर्ग के टीले में है। यह ईंटों के स्थापत्य का सुंदर उदाहरण है।
  • हड़प्पा संस्कृति मिस्रवासियों की तरह मातृ-सत्तात्मक नहीं थी। मिस्र में सम्पत्ति/राज्य का उत्तराधिकार कन्या को मिलता था।
  • इस संस्कृति में यूनीकॉर्न सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तथा उसके बाद कूबड़ वाले सांड़ का महत्त्व था।
  • सिंधु प्रदेश में टेराकोटा (आग में पकी मिट्टी) की बनी मूर्तिकाएँ फिगरिन कहलाती थीं।
  • हड़प्पा संस्कृति एक नगरीय संस्कृति थी। इन नगरों में भवन ग्रीड पद्धति पर व्यवस्थित होते थे। उसके अनुसार सड़कें एक दूसरे को समकोण बनाती हुई काटती और नगर अनेक खंडों में विभक्त थे।
  • इन लोगों ने लेखन कला का आविष्कार किया था। इनकी लिपि चित्रलेखात्मक थी और चित्र के रूप में लिखा हर अक्षर किसी ध्वनि, भाव या वस्तु का सूचक है।
  • इस संस्कृति में व्यापार, आदान-प्रदान तथा माप-तौल में 16 या उसके आवर्तकों का व्यवहार होता था, जैसे 16, 64, 160, 320 और 640 आदि। 16 के अनुपात की यह परंपरा भारत के आधुनिक काल तक चलती रही।
  • हड़प्पा संस्कृति के लोग पत्थर और कांसे के बने औज़ारों का उपयोग करते थे। 
  • उल्लेखनीय है कि सिंधु सभ्यता के लोग गेहूँ, जौ, राई, मटर आदि अनाज पैदा करते थे। बनावली में जौ का पुरावशेष मिला है।
  • सबसे पहले कपास पैदा करने का श्रेय सिंधु सभ्यता के लोगों को है। कपास का उत्पादन सबसे पहले सिंधु क्षेत्र में होने के कारण यूनान के लोग इसे सिन्डन कहने लगे थे, जो सिंधु शब्द से निकला है। इस काल के लोग तिल और सरसों का उत्पादन करते थे।
  • कालीबंगा में जुते हुए खेत के अवशेष पाए गए हैं.  
  • हड़प्पा संस्कृति में पशुपति महत्त्वपूर्ण देवता था। एक मुहर पर एक योगी को ध्यान मुद्रा में एक टांग पर दूसरी टांग डाले (पद्मासन) बैठा दिखाया गया है। इसके चारों ओर एक हाथी, एक बाघ और एक गैंडा मुहर पर चित्रित हैं। इस देवता को पशुपति महादेव बताया जाता है।
  • इस काल के लोग कांस्य के निर्माण और प्रयोग से भी भली-भाँति परिचित थे। सामान्यतः धातु शिल्पियों द्वारा काँसा निर्माण तांबे में टिन मिलाकर किया जाता था। 
  • हड़प्पा संस्कृति अश्व केन्द्रित नहीं थी। वैदिक काल में आर्यों द्वारा घोड़े का प्रयोग मुख्य रूप से किया जाता था।
  • हड़प्पा संस्कृति के लोगों के जीवन में व्यापार का बड़ा महत्त्व था। इसकी पुष्टि हड़प्पा, मोहनजोदड़ो और लोथल में अनाज के बड़े-बड़े कोठारों से नहीं बल्कि एक बड़े भू-भाग में ढेर सारी मिट्टी की मुहरें और मानकीकृत माप-तौलों के अस्तित्व से भी होती है। 
  • इस काल के लोग व्यापार के लिये धातु के सिक्कों का प्रयोग नहीं करते थे। वे आदान-प्रदान वस्तु विनिमय द्वारा करते थे। वे मिट्टी की मुहरों का उपयोग करते थे।
  • हड़प्पा संस्कृति के लोग वृक्ष, पशु और मानव के स्वरूप में देवताओं की पूजा करते थे, परंतु ये अपने देवताओं के लिये मंदिर निर्माण नहीं करते थे। उस काल में मंदिर मिस्र और मेसोपोटामिया में बनाए जाते थे।
  • हड़प्पा संस्कृति के लोग पृथ्वी को उर्वरता की देवी समझते थे और उसकी पूजा उसी तरह से करते थे। उल्लेखनीय है कि हड़प्पा में पकी मिट्टी की मूर्तिका में स्त्री के गर्भ से निकलता पौधा दिखाया गया है। यह संभवतः पृथ्वी देवी की प्रतिमा है।
  • सिंधु क्षेत्र के लोग वृक्ष व पशु पूजा करते थे। इनमें सबसे महत्त्व का पशु एक सींग वाला यूनीकॉर्न (जो गैंडा हो सकता है), कूबड़ वाले साँड़ की भी पूजा की जाती थी।
  • हड़प्पा संस्कृति के लोग भूत-प्रेत में विश्वास करते थे। उनके अनिष्ट से बचने के लिये तावीज़ पहनते थे. 
  • हड़प्पा संस्कृति का नाम सबसे पहले 1921 में पाकिस्तान के प्रांत में अवस्थित हड़प्पा नामक आधुनिक स्थल का पता चलने के कारण पड़ा है। यह सिंधु और उसकी सहायक नदियों के क्षेत्र में है।
  • संस्कृति पश्चिमोत्तर भारतीय उपमहादेश में उदित होकर दक्षिण और पूर्व की ओर फैली। इसका विस्तार कश्मीर से लेकर दक्षिण में नर्मदा के मुहाने तक और पश्चिम में बलूचिस्तान के मकरान समुद्र तट से लेकर दक्षिण में नर्मदा के मुहाने तक फैली है। 
  • इस संस्कृति के परिपक्व अवस्था वाले नगरों में से धोलावीरा गुजरात के कच्छ क्षेत्र में अवस्थित है तथा राखीगढ़ी हरियाणा में घग्घर नदी पर स्थित है। दोनों नगरों में प्राक् हड़प्पा, हड़प्पाकालीन तथा उत्तर हड़प्पाकालीन की अवस्थाएँ मिलती हैं।
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सिन्धु घाटी सभ्यता | Sindhu Ghati MP Psc Gk in Hindi


  • इस संस्कृति की सर्वोत्तम कलाकृतियाँ उनकी मुहरेंहैं। अब तक लगभग 2000 सीलें प्राप्त हुई हैं। इनमें से अधिकांश मुहरों पर लघु लेखों के साथ-साथ एक सिंगी जानवर, भैंस, बाघ, बकरी आदि की आकृतियाँ उकेरी गई हैं। 
  • सिंधु सभ्यता के लोगों के जीवन में व्यापार का बहुत महत्त्व था। शासकों का ध्यान क्षेत्र विजय की ओर नहीं था। सिंधु सभ्यता में अस्त्र-शस्त्रों का अभाव था। 
  • इस संस्कृति में शिल्पी धातु की खूबसूरत मूर्तियाँ बनाते थे। काँसे की नर्तकी उनकी मूर्तिकला का श्रेष्ठ नमूना है। परंतु यह लोग प्रस्तर शिल्प में पिछड़े हुए थे। प्राचीन मिस्र और मेसोपोटामिया की तरह यहाँ कोई महान प्रस्तर-प्रतिमा नहीं मिलती है।
  • हड़प्पा संस्कृति कई तत्त्वों के आधार पर पश्चिमी एशिया की संस्कृति से अलग है।
  • इनकी विकसित नगर योजना प्रणाली के विपरीत मिस्र और मेसोपोटामिया में नगर बेतरतीब बढ़ते जाने की प्रवृत्ति थी। इन देशों में नगर योजना नहीं पाई जाती थी।
  • हड़प्पा की चित्रात्मक लिपि का मिस्र और मेसोपोटामिया की लिपियों से कोई समानता नहीं है।
  • उल्लेखनीय है कि हड़प्पाइयों की मुहरें व मृदभांड पर अंकित पशु-मंडल स्थानीय हैं।
  • हड़प्पा संस्कृति के सभी नगरों में सभी मकान आयताकार हैं, जिनमें पक्का स्नानागार और सीढ़ीदार कुआँ संलग्न है। पश्चिमी एशिया के नगरों में इस तरह की प्रणाली नहीं पाई जाती थी।
  • इस काल में नालों को बाँधों से घेरकर जलाशय बनाने की परिपाटी बलूचिस्तान और अफगानिस्तान में पाई जाती थी, परंतु नहर/नालों से सिंचाई का चलन नहीं था। 
  • इस काल में लकड़ी के हलों का प्रयोग किया जाता था। राजस्थान के कालीबंगा में हल से जोते हुए खेत के निशान पाए गए हैं। 
  • हड़प्पा संस्कृति के नगरों में पक्की ईंटों का इस्तेमाल विशेष बात है। क्योंकि मिस्र के समकालीन भवनों में धूप से सुखार्ई गई ईंटों का ही प्रयोग हुआ था। 

 

हड़प्पीय स्थल : स्थिति (भारत)

  • रंगपुर : गुजरात
  • कालीबंगा : राजस्थान
  • राखीगढ़ी : हरियाणा
  • मोहनजोदड़ो : सिंध
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