खुली अर्थव्यवस्था सामान्य ज्ञान
खुली अर्थव्यवस्था सामान्य ज्ञान
आर्थिक इकाई अथवा आर्थिक एजेंट
- आर्थिक इकाई अथवा आर्थिक एजेंट से हमारा तात्पर्य उन व्यक्तियों अथवा संस्थाओं से है जो आर्थिक निर्णय लेते हैं। वे उपभोक्ता हो सकते हैं जो यह निर्णय लेते हैं कि क्या और कितना उपभोग करना है। वे वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादक भी हो सकते हैं जो यह निर्णय लेते हैं कि क्या उत्पादन करना है और कितना करना है।
- वे सरकार, निगम व बैंक जैसी संस्थाएँ भी हो सकती हैं जो विभिन्न प्रकार के आर्थिक निर्णय लेते हैं, जैसे कितना खर्च करना है, साख पर कितना ब्याज दर लेना है, कितना कर लगाना है।
- अर्थशास्त्र की पुस्तक ‘द जनरल थ्योरी ऑफ इम्प्लॉयमेन्ट, इन्टरेस्ट एंड मनी’ जॉन मेनार्ड कीन्स द्वारा लिखी गई है। 1936 ई. में प्रकाशित इस पुस्तक के बाद ही समष्टि अर्थशास्त्र का एक अलग शाखा के रूप में विकास हुआ।
- उद्यमियों द्वारा उत्पादन क्षमता में वृद्धि लाने के लिये जो व्यय किया जाता है, उसे निवेश व्यय कहते हैं, जैसे- नई मशीनें खरीदना, नई उत्पादन इकाइयाँ स्थापित करना आदि।
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था
वह अर्थव्यवस्था जिसमें अधिकांश आर्थिक
क्रियाकलापों के निम्नलिखित अभिलक्षण होते हैं उसे पूंजीवादी अर्थव्यवस्था कहते
हैं।
- उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व होता है।
- बाजार में निर्गत (वस्तुओं एवं सेवाओं) को बेचने के लिये ही उत्पादन किया जाता है।
- श्रमिकों की सेवाओं का क्रय-विक्रय एक निश्चित कीमत पर होता है, जिसे मज़दूरी की दर कहते हैं। (श्रम का क्रय-विक्रय जिस दर पर किया जाता है उसे श्रमिक की मज़दूरी दर कहते हैं।)
बंद अर्थव्यवस्था
- बंद अर्थव्यवस्था’ के अंतर्गत विदेशों से व्यापार नहीं होता है अर्थात्बंद अर्थव्यवस्था वाले देश न तो किसी अन्य देश के साथ वस्तुओं एवं सेवाओं का आयात करते हैं और न ही निर्यात करते हैं।
- वहीं खुली अर्थव्यवस्था एक ऐसी अर्थव्यवस्था है, जिसमें अन्य राष्ट्रों के साथ वस्तुओं और सेवाओं तथा बहुधा वित्तीय परिसंपत्तियों का भी व्यापार किया जाता है।
अदायगी संतुलन (भुगतान-संतुलन)
- अदायगी संतुलन (भुगतान-संतुलन) किसी देश के निवासियों और शेष विश्व के बीच, एक निश्चित समयावधि में वस्तुओं, सेवाओं और परिसंपत्तियों के लेन-देन का विवरण है।
- भुगतान संतुलन में दो मुख्य खाते होते हैं– चालू खाता (Current Account) व पूंजी खाता (Capital Account)।
- भुगतान संतुलन के अंतर्गत चालू खाते में वस्तुओं एवं सेवाओं के आयात-निर्यात और अंतरण अदायगी (Transfer Payments) संबंधी विवरण को दर्ज़ किये जाते हैं।
- अंतरण अदायगी ऐसी प्राप्तियाँ होती हैं जो किसी देश के निवासियों को ‘नि:शुल्क’ प्राप्त होती हैं और उनके बदले में उन्हें वर्तमान में या भविष्य में कोई अदायगी नहीं करनी पड़ती है। इनमें प्रेषित धन, उपहार और अनुदान (Grants) शामिल हैं।
- जब किसी देश का निर्यात, आयात से अधिक होता है तो व्यापार आधिक्य होता है और जब आयात, निर्यात से अधिक होता है तो ‘व्यापार घाटा’ होता है।
- भुगतान संतुलन के अंतर्गत सेवाओं के व्यापार को अदृश्य व्यापार कहा जाता है क्योंकि उसे सीमाओं को पार करते देखा नहीं जा सकता है। अदृश्य व्यापार के अंतर्गत उपदान आय (Factor Income) और गैर-उपदान आय (Non-Factor Income) आते हैं।
- उपदान आय के अंतर्गत विदेशों में हमारी परिसंत्तियों पर ब्याज, लाभ और लाभांश में से भारत में विदेशियों की परिसंपत्तियों से उनकी आय घटाने पर प्राप्त होती है तथा गैर-उपदान आय के अंतर्गत जहाजरानी, बैंकिंग, बीमा, पर्यटन, सॉफ्टवेयर इत्यादि सेवाएँ आती हैं।
भुगतान संतुलन में दो मुख्य खाते होते हैं– चालू खाता और पूंजी खाता। पूंजी खातों
में परिसंपत्तियों, जैसे– मुद्रा, स्टॉक, बंधपत्र (Bonds)
आदि सभी प्रकार
के अंतर्राष्ट्रीय क्रय-विक्रयों का विवरण होता है। जैसे–
1. विदेशी निवेशकों द्वारा भारत में निवेश
करना।
2. भारतीयों द्वारा विदेशों में
परिसंपत्तियों का क्रय करना।
3. भारत द्वारा विदेशियों से ऋण ग्रहण
करना।
विदेशियों को जिस किसी भी प्रकार के अंतरण
द्वारा अदायगी की जाती है,
उसे ‘डेबिट’ में दर्ज़ करते हैं और उसे ऋणात्मक चिह्न दिया जाता है। कोई भी अंतरण
जो विदेशियों से प्राप्ति के रूप में प्रविष्ट करते हैं, उसे क्रेडिट में दर्ज़ करते हैं और उसे
धनात्मक चिह्न दिया जाता है।
विनिमय दर
- दूसरे देश की मुद्रा के रूप में प्रथम देश की मुद्रा की कीमत को विनिमय दर कहा जाता है। चूँकि दो करेंसियों के बीच एक प्रतिसाम्य की स्थिति होती है, इसलिये विनिमय दर को दो में से किसी भी प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है।
- पहला, घरेलू मुद्रा के रूप में किसी विदेशी मुद्रा की एक इकाई क्रय में घरेलू मुद्रा की जितनी इकाइयों की आवश्यकता होती है, जैसे- रुपया और डॉलर की विनिमय दर 75 रु॰ है, इसका अर्थ यह है कि 1 डॉलर का क्रय करने के लिए 75 रु॰ की लागत आती है।
- दूसरे, घरेलू मुद्रा की एक इकाई का क्रय करने के लिये विदेशी करेंसी की लागत के रूप में। उपर्युक्त मामले में हम कहेंगे कि 1 रुपया खरीदने की लागत 2 सेंट होगी।
- यद्यपि अर्थशास्त्र में पहली परिभाषा ही अधिक प्रचलित व व्यावहारिक है। यह द्विपक्षीय सांकेतिक विनिमय दर है। द्वि-पक्षीय इस अर्थ में है कि यह विनिमय दर किसी एक मुद्रा के लिये दूसरी मुद्रा के रूप में कीमत होती है तथा सांकेतिक इसलिये क्योंकि ये मुद्रा के रूप में विनिमय दर अंकित करती है।
- देशी कीमत स्तर और विदेशी कीमत स्तर के बीच के अनुपात को वास्तविक विनिमय दर कहते हैं जिसकी माप एक ही मुद्रा में की जाती है। उदाहरण के लिये यदि कोई व्यक्ति घूमने के लिये विदेश जाता है, तो उसे यह जानना आवश्यक है कि उस जगह पर वस्तुएँ अपने देश की तुलना में कितनी महँगी हैं। इसकी माप वास्तविक विनिमय दर से हो पाती है।
- वास्तविक विनिमय दर का प्रयोग अक्सर किसी देश की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा की माप के लिये किया जाता है।
मुद्रा का अवमूल्यन (Devaluation)
- अवमूल्यन का अर्थ है विदेशी मुद्रा की तुलना में देशी मुद्रा के मूल्य में ह्रास होना। उदाहरण के लिये यदि रुपया-डॉलर विनिमय दर 45 रुपए पर साम्य की स्थिति में थी और अब वह 50 रु. प्रति डॉलर हो गई है तो डॉलर के विरुद्ध रुपए के मूल्य में ह्रास हुआ है।
- रुपए के अवमूल्यन से आयात में कमी आएगी, क्योंकि आयातित वस्तुओं की रुपयों में कीमत अधिक होगी साथ ही विदेशों में वही वस्तुएँ सस्ती होंगी। अत: निर्यात में वृद्धि होगी।
रुपए की परिवर्तनीयता
- प्रशासनिक हस्तक्षेप से मुक्त परिवेश में देशी-विदेशी मुद्राओं के परिवर्तन अर्थात् विनिमय की सुविधा एवं स्वतंत्रता को परिवर्तनीयता कहते हैं।
- रुपए की परिवर्तनीयता का तात्पर्य है रुपए को विदेशी मुद्राओं तथा विदेशी मुद्रा को रुपए में निर्बाध रूप से परिवर्तित किया जा सकता है।
- यह भुगतान संतुलन (BOP) से जुड़ी हुई अवधारणा है। वर्तमान में भारतीय रुपया BOP के चालू खाते पर पूर्ण रूप से परिवर्तनीय है। यह परिवर्तनीयता 1994 से लागू है। पूंजी खाते के संदर्भ में भारतीय रुपया चयनात्मक रूप से परिवर्तनीय है।
1994 में ब्रेटनवुड्स सम्मेलन में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और विश्व बैंक की स्थापना हुई तथा स्थिर विनिमय दर प्रणाली की भी पुनर्स्थापना की गई।
अंतर्राष्ट्रीय करेंसी के रूप में ‘कागजी स्वर्ण’
- 1967 में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के नियंत्रण में सोने को अंतर्राष्ट्रीय करेंसी के रूप में विस्थापित करने के लिये विशेष आहरण अधिकार (SDRS) का सृजन किया गया।
- विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंकों के आरक्षित स्टॉक में वृद्धि करने के आशय से विशेष आहरण अधिकार को अंतर्राष्ट्रीय करेंसी के रूप में ‘कागजी स्वर्ण’ के रूप में जाना जाता है।
- सोने के रूप में परिभाषा में 35 (SDRS) को एक आउंस सोना (ब्रेटनवुड्स पद्धति की डॉलर-सोना की दर) के समान माना गया।
- 1974 से इसे कई बार पुनर्परिभाषित किया गया है। वर्तमान में प्रतिदिन इसकी गणना पाँच देशों (फ्राँस, जर्मनी, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका) की चार करेंसियों (यूरो, डॉलर, जापानी येन, पौंड, स्टर्लिंग) की डॉलर में मूल्य के भारित योग के रूप में होती है। इसमें अब चीन की मुद्रा रॅन्मिन्बी (Renminbi) को भी शामिल कर लिया गया है।
- जब किसी भी अर्थव्यवस्था में व्यापार घाटा और राजकोषीय घाटा दोनों हों तो उसे दोहरा घाटा (Twin Deficits) कहा जाता है।
- भारत में 1 जुलाई, 1991 और 3 जुलाई, 1991 (वित्तीय वर्ष 1991-92) को रुपए में दो चरणों में 18-19 प्रतिशत का अवमूल्यन किया गया तथा मार्च 1992 में दुहरे विनिमय दरों वाली उदारवादी विनिमय दर प्रबंधन व्यवस्था को अपनाया गया।
Post a Comment