मुगलों के अधीन मध्यप्रदेश | Madhya Pradesh Under Mugal Empire
मुगलों के अधीन मध्यप्रदेश
- मुगल संस्थापक बाबर ने चंदेरी के राजा मेदिनीराय को 1528 ई. में हराकर उसकी पुत्रियों का विवाह हमायू और कामरान के साथ-कर दिया । कालिंजर का दृढ़ दुर्ग मुगलों के आधिपत्य में आ गया। इसके पूर्व राणा सांगा को खानवा युद्ध (1527) में परास्त कर उसने मालवा पर भी नियन्त्रण कर लिया था।
- शेरशाह सूरी (1540-1545) ने हुमायू को परास्त कर सूरवंश की स्थापना की तथा मालवा, रायसेन ग्वालियर को अपने "अधीन किया । रायसेन में पूरणमल को झांसा देकर मारा गया जो शहंशाह पर एक कलंक माना जाता है। कालिंजर दुर्ग के घेरे के समय यद्यपि शेरशाह अंतिम दिन विजय हुआ लेकिन विस्फोट में मारा गया.
- अकबर (1555-1606) के समय मालवा के शासक बाजबहादुर पर आक्रमण किया गया। उसकी राजधानी मांडू ऐश्वर्य के साथ रानी रुपमतिं और बाजबहादुर के प्रणंय-स्थल के रूप में भी विख्यात हो गयी थी । बाजबहादुर परास्त हुआ, रुपमति ने आत्मदाह किया और 'बाजबहादुर को अकबर ने अपने नवरत्नों में स्थान दिया ।
- अकबर के समय की महत्वपूर्ण विजय थी- गोंडवाना । वर्तमान -'मण्डला और जबलपुर तक व्याप्त गोण्डवाना राज्य की कीर्ती रानी दुर्गावती के समय चरम पर थी ।
- अकबर के सेनापति आसफखां ने हमला बोला, दुर्गावती ने परास्त होने के पश्चात कटार घोपकर आत्म-हत्या की ।
- दुर्गावती की समाधि बरेला में बनी है। उल्लेखनीय है कि गढ़कटंगा (गढ़-मण्डला) के इस राज्य की स्थापना यादव राय ने खिलजी पतन के समय की थी। इसका उत्थान संग्रामशाह के अधीन हुआ था; जिसने 52 गढ़ों तक राज्य विस्तार किया था| उसने स्वर्ण, रजत मुद्राए चलायी थी | उसके पुत्र दलपतशाह का विवाह रानी दुर्गावती से हुआ था, जो चंदेल राजकुमारी थी ।
- दलपत शाह की मृत्यु 1541 के बाद रानी दुर्गावती अल्पायु पुत्र वीरनारायण की संरक्षिका बनकर शासन, संभाल रही थी । अकबर ने विजय उपरान्त गोण्डवाना गोंड़वंश के ही चन्द्रशाह को अपनी अधिनता में सौंप दिया था |
- उज्जैन के समीप धरमत युद्ध (1658 ई.) में औरंगजेब ने शाहजादा दारा को पराजित कर बादशाहत प्राप्त की
थी |
खानदेश :
- वर्तमान निमाड़, दक्षिण मालवा में विस्तृत दक्षिण का प्रवेश द्वारा था । यहाँ फारूकी वंश (दाउद, मीरन बहादूर) ने शासन किया। अकबर की अंतिम विजय खानदेश मानी जाती है (1600 ई.) | दाउद खानदेश सम्राज्य का स्थापक माना जाता है।
बुदेलखण्ड एवं मुगल शासन
- बुंदेला से रक्तसिंग सम्राट ने बुंदेलखड 'छीना और खंभार वंश की स्थापना की | उन्होंने गढकुडर (उ.प्र.) राजधानी बनाया। इस समय बुदेलखंड क्षेत्र का नाम “जुझौटी” हुआ करता था । बुंदेलावंश के नाम पर इस क्षेत्र का नाम बुंदेलखंड हुआ |
- बुंदेला शासक सोहनपान ने खंगारों की शक्ति का दमन कर बुंदेला राज्य की नींव डालीं । इनकी राजधानी ओरछा थी। जब रामचन्द्र शासक बना तब मुगलों का ध्यान बुदेलखण्ड तरफ गया, उसके छोटे भाई वीरसिह देव का दोस्ताना संबंध मुगल राजकुमार सलीम (अकबर का पुत्र जहाँगीर) से था।
- सलीम के कहने पर ही-वीर सिंह ने अबुल फजल की
हत्या कर
दी थी। सलीम जब जहाँगीर के नाम से मुगल सम्राट
बना तो
उसने वीरसिंह॑ देव को ओरछा नरेश बनाया। इसके बाद जुझार सिंह ओरछा नरेश हुआ; जिसने शाहजहाँ के समय विद्रोह किया |
- चंपतराय का विद्रोह : औरंगजेब की नीति से
असंतुष्ट चंपतराय ने विद्रोह किया । औरंगजेब की सेना से धीरे चंपतराय ने आत्महत्या कर ली (1661)
छत्रसाल का विद्रोह और स्वतन्त्र बुन्देला राज्य की स्थापना 1664-1707)
- चपंतराय के पुत्र छत्रसाल ने औरंगजेब के विरूद्ध विद्रोह जारी रखा | 1675 में पन्ना जीत कर उसे राजधानी बनाया | छत्र साल ने मराठों से संधि की |अंततः औरंगजेब ने 1707 में छत्रसाल से संधि की और उसे “राजा” की उपाधि दी | इस प्रकार छत्रसाल स्वतन्त्र शासक बना | बाद में उसने ओरछा को राजधानी बनाया |
बघेलवंश एवं मुगल संबंध
- बघेल राज्य क्षेत्र का नाम भथा था, जो वर्तमान रीवा है।
- बघेलखण्ड के क्षेत्र में बघेल राजपूतों ने अपनी सत्ता उस समय स्थापित की, जब अलाउदीन खिलजी के गुजरात आक्रमण के समय कर्ण बघेल के साथ कुछ राजपूत कांलिजर क्षेत्र भाग कर आए।
- यहाँ का प्रथम सोलंकी राजा व्याघ्रदेव (गुजरात) था।
- बघेलवंश के शासन के कारण ही क्षेत्र का नाम बघेलखण्ड पड़ा ।
- इस राज्य के एक शासक वीर सिंह देव की मित्रता सिकन्दर लोदी से थी। इसके पुत्र वीरभान ने हुमायूं की चौसा पराजय के बाद सहायता की थी |
- राजा रामचन्द्र के समय भथा राज्य के दरबार में तानसेन (मूल नाम-नन्ना मिश्र या रामतनु पाण्डे) रहता था |अकबर के दूत जलालखां ने तानसेन को रामचन्द्र से लेकर अकबर के दरबार में पहुचाया था।
- इसके अधीन कालिंजर दुर्ग भी था जो 1569 में मुगलों ने ले लिया।
- भथा राज्य (विंध्य प्रदेश) के अंतिम शासक मार्तण्ड सिंह थे। जिन्होने इसका विलय 1947 में भारतीय संघ में किया । मार्तण्ड सिंह रीवा से सांसद भी चुन गये । रीवा के जंगलों से सफेद शेर पकड़ने का पहला श्रेय मार्तण्ड सिंह को है।
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