मगध राज्य का उत्कर्ष -05 | नन्द वंश | महापदम नन्द
मगध राज्य का उत्कर्ष -05
नन्द वंश के बारे में जानकारी
नन्द वंश
- जिस व्यक्ति ने शिशुनाग वंश का अन्त कर नन्दवंश की स्थापना की वह निम्न वर्ग से सम्बन्धित था। उसका नाम विभिन्न ग्रन्थों में भिन्न-भिन्न दिया गया है।
- पुराण उसे महापदमानन्द कहते है जबकि महाबोधि वंश में उसे उग्रसेन कहता है।
- भारतीय तथा विदेशी दोनों ही साक्ष्य नन्दों की शूद्र अथवा निम्न जातीय उत्पत्ति का स्पष्ट संकेत करते है।
- पुराणों के अनुसार महापदमानन्द शिशुनाग वंश के अन्तिम राजा महानन्दिन की शूद्रा स्त्री के गर्भ से उत्पन्न हुआ था।
- विष्णु पुराण में कहा गया है कि महानन्दी की शूद्रा से उत्पन्न महापदमानन्द अत्यन्त लोभी तथा बलवान एवं दूसरे परशुराम के समान सभी क्षत्रियों का विनाश करने वाला होगा।
- जैन ग्रन्थ परिशिष्ट पर्वन के अनुसार वह नापित पिता और वेश्या माता का पुत्र था। आवश्यक सूत्र उसे नापितदास (नाई का दास) कहता है ।
- महावंश टीका में नन्दों को अज्ञात कुल का बताया गया है जो डाकुओं के गिरोह का मुखिया था उसने अवसर पाकर मगध पर बलपूर्वक अधिकार जमा लिया।
- जैन मत की पुष्टि विदेशी विवरणों से भी हो जाती है ।
यूनानी लेखक कर्टियस का मत
- यूनानी लेखक कर्टियस सिकन्दर के समकालीन मगध के नन्द सम्राट अग्रमीज यह संस्कृत के औग्रसेन अर्थात उग्रसेन का पुत्र का रूपान्तर है, के विषय में लिखते हुए बताता है कि उसका पिता जाति का नाई था। वह अपनी सुन्दरता के कारण रानी का प्रेम पात्र बन गया तथा उसके प्रभाव से राजा का विश्वास प्राप्त कर उसके अत्यन्त निकट पहुंच गया। उसने छल से राजा की हत्या कर दी तथा राजकुमारों के संरक्षण के बहाने कार्य करते हुए उसने राजगढ़ी हथिया ली।
- अन्ततः उसने राजकुमारी की भी हत्या कर दी तथा वर्तमान राजा का पिता हुआ यहाँ कार्टियस ने जिस राजा की चर्चा की है वह नन्दवंश का संस्थापक महापदम नन्द ही था महाबोधि वंश में कालाशोक के 10 पुत्रों का उल्लेख हुआ है। सम्भव है कि सभी अल्पवयस्यक रहे हो तथा महापदम नन्द उसका संरक्षक रहा हो।
डियोडोरस का मत
- डियोडोरस इससे कुछ भिन्न विवरण देता है। उसके अनुसार धनानन्द का नाई पिता सुन्दर स्वरूप का होने के कारण रानी का प्रेम पात्र बन गया ।
- रानी ने अपने वृद्ध पति की हत्या कर दी तथा अपने प्रेमी को राजा बनाया वर्तमान शासक उसी का उत्तराधिकारी था।
- इस प्रकार जहाँ कार्टियस अन्तिम शिशुनाग राजा का हत्यारा प्रथम नन्द शासक को बताता हैं वही डियोडोरस उसकी रानी पर हत्या का लांछन लगाता है।
- महाबोधिवंश में महापदम नन्द का नाम उग्रसेन मिलता है। उसका पुत्र धनानन्द सिकन्दर का समकालीन था इस प्रकार नन्द वंश शुद्र अथवा निम्न वर्ण से सम्बन्धित था।
पुराणों में विवरण से स्पष्ट है कि इस वंश का संस्थापक क्षत्रिय पिता (महानन्दी) तथा शूद्र माता की सन्तान था। मनुस्मृति में इस प्रकार से उत्पन्न सन्तान को 'अपसद' अर्थात निकृष्ट बताया गया है।
नन्दवंश के राजा
नन्दवंश में कुल 9 राजा हुए और इसी कारण उसे नवनन्द कहा जाता है।
महाबोधिवंश में उनके नाम इस प्रकार मिलते है-
- (1) उग्रसेन
- 2 ) पण्डुक
- (3) पण्डुगति
- (4) भूतपाल
- (5 ) राष्ट्रपाल
- (6) गोविषाणक
- (7) दरशसिद्धक
- (8) कैवत
- 9) सोंग ।
महापदम नन्द
- इसमें प्रथम अर्थात उग्रसेन को ही पुराणों में महापद्म कहा गया है। शेष आठ उसी के पुत्र थे। महापदम नन्द अभी तक मगध के सिंहासन पर बैठने वाले राजाओं में सर्वाधिक शक्तिशाली सिद्ध हुआ उसकी विजयों के विषय में हमें पुराणों से विस्तृत सूचना प्राप्त होती है। उसके पास अतुल सम्पत्ति तथा असंख्य सेना थी।
- वह कलि का अंश सभी क्षत्रियों का नाश करने वाला दूसरे परशुराम का अवतार था जिसने अपने समय के सभी प्रमुख राजवंशों पर विजय की उसने एकछत्र शासन की स्थापना किया तथा एकराष्ट्र की उपाधि ग्रहण की।
महापदम नन्द द्वारा उन्मूलित कुछ राजवंशों के नाम
इक्ष्वाकु
- इस वंश के लोग कोशल में शासन करते थे। वर्तमान अवध का क्षेत्र इस राज्य के अन्तर्गत था। महापदमा नन्द द्वारा कोशल विजय की पुष्टि सोमदेवकृत कथा सरितसागर से भी होती है। तद्नुसार अयोध्या के समीप नन्दों का एक सैनिक शिविर था।
पांचाल
- इस राजवंश के लोग वर्तमान रूहेलखण्ड (बरेली-बदायूं- फरूर्खाबाद क्षेत्र) में शासन करते थे। ऐसा लगता है कि महापदम के पहले उनका मगध से कोई संघर्ष नहीं हुआ था ।
काशेय
- इससे तात्पर्य काशी के वंशजों से है। बिम्बिसार के समय से ही काशी मगध का एक प्रान्त था। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि जिस समय शिशुनाग ने गिरिव्रज को अपनी राजधानी बनायी उसने अपने पुत्र को बनारस का उपराजा नियुक्त किया था। ऐसा लगता है कि इसी वंश के उत्तराधिकारी की हत्या कर महापदमनन्द ने काशी को प्राप्त किया।
हैहय
- इस राजवंश के लोग नर्मदा नदी के एक भाग पर शासन करते थे उसकी राजधानी माहिष्मति थी।
कलिंग
- यह राजवंश उड़ीसा प्रान्त में शासन करता था। खारवेल के हाथी गुम्फा अभिलेख से पता चलता है कि किसी नन्द राजा ने कलिंग के एक भाग को जीता था।
अश्मक
- इस वंश के लोग आन्ध्र प्रदेश की गोदावरी सरिता के तटपर शासन करते थे। आन्ध्र प्रदेश के निजामाबाद के समीप 'नवनन्द देहरा” नामक एक नगर स्थित है। कुछ विद्वानों के अनुसार वह इस प्रदेश में नन्दों के आधिपत्य का सूचक है। परन्तु इस विषय में हम निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कर सकते।
कुरू
- मेरठ, दिल्ली तथा थानेश्वर के भूभाग पर कुरू राजवंश का शासन था इसकी राजधानी इन्द्रप्रस्थ में थी।
मैथिल
- मैथिल लोग मिथिला के निवासी थे मिथिला की पहचान नेपाल की सीमा में स्थित वर्तमान जनकपुर से की गयी है।
शूरसेन
वीतिहोत्र
- पुराणों के अनुसार वीतिहोत्र लोग अवन्ति के प्रद्योतों तथा नर्मदा तटवर्ती हैहयों से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित थे। सम्भवतः उनका राज्य इन्हीं दोनों के बीच स्थित रहा होगा ।
पुराणों में उपर्युक्त सभी राज्यों के शासकों को समकालीन बताया गया है तथा विभिन्न राजवशों के शासन काल के विषय में भी सूचना मिलती है ।
तदनुसार इक्ष्वाकु ने चौबीस वर्ष, पांचाल ने सत्ताइस वर्ष, काशी ने चौबीस वर्ष, हैहय ने 28 वर्ष, कलिंग ने 32 वर्ष, अश्मक ने 25 वर्ष, कुरन ने 36 वर्ष, मैथिल ने 28 वर्ष, शूरसेन ने 23 वर्ष तथा वीतिहोत्र ने 20 वर्ष तक शासन किया।
भारतीय इतिहास में पहली बार एक ऐसे साम्राज्य की स्थापना हुई जिसकी सीमायें गंगाघाटी के मैदानों का अतिक्रमण कर गई।
विन्ध्यापर्वत के दक्षिण में विजय वैजयन्ती फहराने वाला पहला मगध
का शासक था। खारवेल के हाथी गुम्फा अभिलेख से भी उसकी कलिंग विजय की पुष्टि होती
है।
महापदमा नन्द के उत्तराधिकारी तथा नन्द सत्ता का विनाश |
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