मध्य प्रदेश के जनजाति नृत्य | MP Janjati Dance in Hindi

 मध्य प्रदेश के  जनजाति नृत्य 

मध्य पदेश की जंजातियों के पमुख नृत्य 

MP  Janjati Dance in Hindi



गौर नृत्य : 

सिंग मारिया जनजाति (बस्तर) से सम्बन्धित इस नृत्य को खुशी के अवसर पर, विशेषकर नयी फसल के समय किया जाता है। इसमें माड़िया युवक गौर नामक पशु के सींग कौड़ियों से सजाकर सिर पर सखते हैं और अत्यन्त आकर्षक ढंग से नाचते हैं । इसे वारियर ऐल्विन ने देश का सर्वश्रेष्ठ नृत्य कहा था ।


गेंडी नृत्य : 

मुड़िया आदिवासी (बस्तर) युवक लकड़ी की ऊँची गेंडी (लकड़ी की बनी) पर चढ़कर तेज गति से नृत्य करते हैं । इसमें शारीरिक कौशल और संतुलन महत्व रखता है । घोटुल नामक युवागृह के अन्दर तथा बाहर इस नृत्य को विशेष रूप से किया जाता है, जिसे डिटोंग कहते हैं यह गीत रहित नृत्य है |


मांडरी नृत्य :

घोटुल समाज में मुरिया युवक और युवतियों द्वारा पृथक-पृथक गीत रहित नृत्य किया जाता है।


राउत नृत्य : 

अंचल का महत्वपूर्ण लोक नृत्य है जिसमें अहीर जाति के लोग बड़े उत्साह से भाग लेते है । यह देवउठनी एकादशी के पश्चात आयोजित होते हैं |


ककसार :

मुड़िया आदिवासियों (बस्तर) द्वारा अपने देवता लिंगादेवको प्रसन्न करने हेतु यह गीत नृत्य किया जाता है। इस अवसर पर जो गीत गाये जाते हैं उसे ककसार पाटा कहते हैं ।


पंथी नृत्य :

सतनामी जाति का नृत्य है। माघ-पूर्णिमा. को जैतखम्भ की स्थापना कर उसके चारों ओर किया जाता है । जिसमें गुरू घासीदास की चरित्र गाथा को राग से गाया जाता है |


करमा :
  • कर्मा नृत्यगीत कर्म देवता को रिझाने के लिए किया जाता है | विजयादशमी से शुरू होकर वर्षा के आगमन तक चलता है।
  • कर्मा नृत्य स्त्री-पुरूष का सामूहिक नृत्य है, जिसमें लय, तालपद:- संचालन का विशेष महत्व है।
  • लय और ताल के अंतर में यहं नृत्य चार प्रकार है- कर्मा खरी, कर्मा खाय, कर्मा झुन्नी और कर्मा लहकी । 
  • मंडला के बैगा और गोंडों का तो यह प्रमुख नृत्य है। 
  • बैगा जनजाति का कर्मा नृत्य बैगानी कर्मा कहलाता है। 
  • इसका केन्दीय वाद्ययंत्र मांदरहै। गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में शामिल देश का पहला नृत्य करमा है।


दशहरा और ददरिया : 

बैगा आदिवासियों के त्यौहार दशहरा और ददरिया क्रमश: सामाजिक व्यवहार की कलात्मक और प्रेम संबंधों की भावना प्रधान अभिव्यक्ति हैं ।

विजयालक्ष्मी से शुरू होने के कारण इस नृत्य का नाम दशहरा पड़ा ।  ददरिया नृत्य दशहरा नृत्य की कड़ी है। जो लोक जीवन में प्रेम कविता के रूप में स्वीकृत हैं।


भगोरिया : 

  • सम्पूर्ण भील क्षेत्र में मनाया जाने वाला भगोरिया. फागुन में होलिका दहन से 7 दिन पूर्व प्रारंभ होता है ।
  • झाबुआ. का भगोरिया विशेष आकर्षण का केन्द्र होता है। भगोरिया में तीन मुख्य दिन होते है- प्रथम दिन गुगलिया हाट लगता है, जिसमें महिला और पुरूष अपने उपयोग की वस्तु खरीदते है इसी भगोरिया हाट के समय बाजार में गांव के सम्मानित व वयोवृद्ध व्यक्ति द्वारा भगौरा' देवता की पूजा की जाती है। फिर सामूहिक नृत्य गौल-गधघेड़ो का  आयोजन होता है'और प्रसाद वितरित किया जाता है|
  • तीसरे दिन मेला वीरान हो जाता है, जिसे उजड़िया भी कहते है। इसके माध्यम से अविवाहित युवक-युवतियाँ अपने जीवन साथी का चयन करते है।


तरताली :

कमार जनजाति का यह नृत्य 2 या 3 स्त्रियों के द्वारा किया जाता है | दांतों में तलवार पकड़े स्त्रियाँ नाचते हुए सिर पर बर्तन के संतुलन को बनाये रखती है। 


गोल-गघेडो नृत्य : भील जनजाति का नृत्य है।


 अहरी नृत्य : ग्वालियर की यादव, ग्वाला; रावत, राउत, बरेडीजाति द्वारा किया जाता है।


परघौनी : परधौनी नृत्य बैगा जनजाति का एक कला प्रधान नृत्य है, जो विवाह के अवसर पर किया जाता हैं।


लहँगी नृत्य :

लहँगी श्रावण मास में किया जाने वाला सहरियाओं का समूह नृत्य है ।  भुजरिया के जुलुस के आगे-आगे सहरिया पुरूषों  द्वारा लहँगी नृत्य किया जाता है। 


हुलकी :

हुलकी पाटा नृत्य आदिवासियों में प्रचलित है । इस नृत्य में लड़के-लड़कियाँ दोनो ही भाग लेते है ।  इसमें यह गाया जाता.है कि राजा-रानी कैसे रहते है। '


थापटी नृत्य :

  • चैत्र-बैशाख में कोरकु स्त्री-पुरूष यह सामूहिक नृत्य करते है। युवतियों के हाथों मे चिरकोटा वाद्य होता है और युवकों के हाथ में एक पंछा और झांझ नामक वाद्य होता है वे  गोलाकार परिक्रमा करते हुए दाएँ-बाएँ झुक-झुक कर नृत्य करते है। 
  • थापटी के मुख्य वाद्य ढोल और ढोलक है। 
  • ग्राम मल्हारगढ़, खंडवा के श्री मोजीलाल कोरकू, थापटी के प्रतिष्ठित कलाकार है।


शैला नृत्य:

  • यह शुद्धतः जनजातियों का नृत्य है यह नृत्य आपसी प्रेम एवं भाइचारे का प्रतीक है ।
  • शैला का अर्थ शैला या ठंडा होता .है। 
  • यह नृत्य दशहरे में आरंभ होकर पूरे शरद ऋतु की रातों को चलता है।
  • आदिदेव को प्रसन्न करने हेतु शैला नृत्य का आयोजन। केवल पुरूष द्वारा किया जाता है।
  • इसमें नर्तक सादी वेशभूषा, हाथो मे डंडा लेकर एवं पैरों में घूंघरू बॉँधकर गोल घेरा बनाकर नाचते है । 
  • पहले एक गायक एक दोहा बोलता है फिर शेष उसे दोहराकर नाचते है । मांदर इसका प्रमुख वाद्य है।


ढॉढल नृत्य :

यह नृत्य कोरकू आदिवासियों द्वारा किया जाता है। नृत्य के साथ श्रृंगार गीत गाए जाते है और नृत्य करते समय एक दूसरे पर छोटे-छोटे डंडो से प्रहार किया जाता है यह नृत्य ज्येष्ठ आषाढ़ की रातों में किया जाता है। नृत्य के साथ ढोलक, टिमकी, बॉसुरी, मृदंग आदि का प्रयोग होता है।


दुल दुल घोड़ी :

दूल दुल घोड़ी राजस्थान का ग्वालियर, गुना, शिवपुरी का यह सहरिया संस्कृति राजस्थान से प्रभावित झीका तथा मसक वाद्य होते है।


भारिया भड़म-सैतम नृत्य :

भारिया आदिवासियों का यह  नृत्य समूह है । जिसमें अनेक नृत्य किया जाते हैं और 20 से लेकर 50 नर्तक तक भाग लेते हैं। सैतम महिलाएं करती हैं ।


सरहुल नृत्य : उरांव जनजाति द्वारा सरई वृक्ष (उनके देवता का | निवासं) के चारों और चैत्र मास- पूर्णिमा को किया जाता है।


बांस गीत : यह मूलतः: एक गाथा गायन है, इसमें नायक, रागी और वादक होते है | इसमें मोटे बांस के एक मीटर लम्बे वाद्य को बजाया . जाता है। इसी कारण इसे बांस गीत कहा जाता है  इसे प्रायः राऊत । जाति के लोग गाते है।


पौल-दहका नृत्य : बघेलखण्ड में कोल जनजाति का सामूहिक गीत प्रधान नृत्य है|


गरबा-डांडिया : दशहरे के अवसर पर निमाड़ की बंजारा जनजाति ये नृत्य करती है।


बिनकी : भोपाल के कृषक आदिवासी यह नृत्य करते है।


गौचो : वर्षा की प्राप्ति के लिये गौंड़ जनजाति ये नृत्य -करती है।


टीना : दीपावली के बाद होने वाला गौंड़ स्त्रियों का नृत्य |


गेंडी : पांव में धोंडियां फंसाकर गौंड जनजाति यह नृत्य करती है।


रागिनी : ग्वालियर की सभी जाति व जनजातियों का नृत्य |


डोहा नृत्य :

डोहा नृत्य - कार्तिक अमावस्या के दिन स्त्रियों द्वारा किया जाता है| इस नृत्य की प्रमुख विशेषता यह है कि, महिलाओं द्वारा किये गये नृत्य के विपरीत पुरुष अन्य प्रकार करते है । भील जनजाति में डोहा : नृत्य सभी नृत्यों का गजरा  कहलाता है।


गरबी नृत्य : भील जनजाति में पितृ एवं  प्रकृति पूजा के  रूप में किया जाता है|


पूजा नृत्य : धार्मिक आस्था से प्रेरित यह  जनजातिगोंड एवं उराव जनजाति का है । गोंड जनजाति (मंडला क्षेत्र )  द्वारा जेठ मास मे किया जाता है ।  बिदरी पूजा का उत्सव उराव जनजाति द्वारा चैत्र माह में साल पूजा सार्वजनिक उत्सव पर किया जाता है । 


यह भी पढ़ें 

मध्य प्रदेश के लोकगीत

मध्य प्रदेश की शिल्प कला 

मध्य प्रदेश की जन जातियाँ 

 

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.