राष्ट्रीय विज्ञान नीति | राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी नीति |National Science Policy in Hindi
राष्ट्रीय विज्ञान नीति | राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी नीति
राष्ट्रीय विज्ञान नीति, 1958 National Science Policy 1958
- 1947 में जब भारत को स्वनंत्रता मिली तब भारत के पास विजान एवं प्रौद्योगिकी से संबंधित कोई आधारभूत ढाँचा नहीं था।
- देश के विकास में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के महत्त्व को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भली भांति समझते थे। उन्हीं के प्रयास से बैज्ञानिक अनुसंधान एवं प्राकृतिक संसाधन मंत्रालय की स्थापना 1951 में की गयी।
- इस मंत्रालय के प्रयास से 4 मार्च, 1958 को देश की पहली विज्ञान नीति का प्रारूप संसद में प्रस्तुत किया गया।
पहली विज्ञान नीति के प्रमुख बिन्दु
- राष्ट्र के विकास के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का विकास अति आवश्यक है इसके लिए हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए।
- विज्ञान के प्रसार हेतु किए जाने वाले प्रयासों को प्रोत्साहन दिया जायेगा चाहे वह निजी क्षेत्र द्वारा ही क्यों न किया गया हो।
- शिक्षा, कृषि, उद्योग तथा रक्षा क्षेत्र की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु विज्ञान का विकास किया जायेगा।
- उच्च स्तर के वैज्ञानिक अनुसंधानों हेतु आधारभूत ढांचे का विकास किया जायेगा तथा इसे विश्व स्तर के वैज्ञानिक अनुसंधानों से जोड़ा जायेगा ताकि विश्व में हो रहे अनुसंधानों का त्वरित लाभ भारत को मिल सके।
- विज्ञान के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए इसे प्राथमिकता वाले क्षेत्र में रखा जायेगा।सृजनात्मक प्रतिभा तथा वैज्ञानिक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जायेगी।
- देश के वैज्ञानिकों को समुचिन सम्मान देते हुये उनके सलाह मशविरे को देश की विज्ञान संवंधी नीतियों में शामिल किया जायेगा।
- विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी विकास के लाभ को आम जन तक पहुंचाने हेतु उपाय किये जायेंगे।
- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पर्यावरण, महासागर विकास और परम्परात ऊर्जा एवं जैव प्रौद्योगिकी विभागों की स्थापना की जायेगी।
राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी नीति, 1983 National Technology Policy, 1983)
1983 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा देश के संसाधनों के समुचित उपयोग तथा राष्ट्र की प्राथमिकताओं के अनुरूप प्रौद्योगिकी विकास हेतु राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी नीति की घोषणा की गयी।
प्रौद्योगिकी नीति, 1983 नीति के मुख्य बिन्दु
- प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना तथा देशी प्रौद्योगिकी एवं आयातित प्रौद्योगिकी के मध्य समनव्य स्थापित करना।
- देश की प्राथमिकताओं एवं संसाधनों की उलब्धता को ध्यान में रखते हुए देशी प्रौद्योगिकी का अधिकतम उपयोग करना।
- देशी प्रौद्योगिकी तथा पारंपरिक निपुणता के व्यावसायिक उपयोग पर विशेष बल देना।
- रोजगार सृजन में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा देना ।
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उपयोगी देशी प्रौद्योगिकी के निर्यात तथा देशी प्रौद्योगिकी के आयात को प्रोत्साहन देना ।
- गैर परपरागत ऊर्जा स्त्रोत के विकास तथा पर्यावरण संरक्षण में प्रौद्योगिकी का भरपूर इस्तेमाल करना।
- राष्ट्रिय प्रौद्योगिकी नीति को लागू करने के लिए प्रौद्योगिकी नीति क्रियान्वयन समितियों का गटन करना।
राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी नीति, 1993 Natinnal Technology Poliey, 1993)
- 1991 में उदारीकरण तथा वैश्वीकरण की शुरुआत के साथ देश के आर्थिक और औद्योगिक परि में बदलाव की आवश्यकता महसूस होने लगी थी। इसी आवश्यकता की देखते हुए 1991 में नई औद्योगिक नीति की घोषणा की गयी। इस नीति को सीधा संबंध देश के प्रौद्योगिकी विकास से होने के कारण 1993 में नई राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी नीति की घोषणा की गयी ।
- देश की अर्थव्यवस्था को सुढ्रन करने तथा औधोगिक क्षेत्र में उदारीकरण के बढ़ते प्रभार को देखो नई प्रौद्योगिकी नीति में देश को विश्व स्तर की प्रौद्योगिकी के साथ प्रतिस्पर्धी बनाने पर बल दिया गया।
- देश के प्रौद्योगिकी विकास को विकसित राष्ट्रों के समकक्ष कराना।
- प्रौद्योगिकी के विकास और उसके लाभ को आ्ामण क्षेत्रों तक हुंचाने हेनु बिशेष रणनीति बनाना।
- प्रौद्योगिकी का विकास कठोर श्रम को कम करने हेनु बरना तथा नजीवन के स्तर गें सुधार करना।
- प्राकृतिक संसाधनों का हचि मात्र में दोहन तथा पर्यावरण संरक्षण में प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करना।
- स्वदेशी प्रौद्योगिकी को अंतर्राष्ट्रीय मानक ले अनुरूप करन तथ नव संसाधन का अधिकातन उपयोग करना।
- 21वीं शताब्दी की चुनौतियों को देखते हुए विशन एवं प्रौद्योगिकीके क्षेत्र में नए उआयाम स्थापित करने हेतु शोध एवं अनुसंधान को प्रोत्साहन देना।।
- प्रौधोगिकी के क्षेत्र में विशेष कार्य करने वाले वैज्ञानिकों को पुरस्कर एवं प्रोत्साहन देना।
- नई प्रोद्योगिकी के विकास हेतु उपयुक्त संसाधन उपल्ब्ध कवाना।
- प्राकृतिक संसाधनों का सर्वेक्षण करना तथा दोहन के उचित तरीकों का विकास करना। वैकल्पिक ऊर्जा तथा गैर परम्परगत ऊर्जा स्त्रोत की तलाश करना।
- स्वास्थ्य सेवाओं में आधुनिक नकनीक का उपयोग करना।
भारत की नई विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी नीति, 2003
(The New Science & Technology Policy, 2003)
वैश्वीकरण के दौर में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की चुनौतीपूर्ण भूमिका के महत्व को देखते हुए 3 जनवरी, 2003 को कर्नाटक की राजधानी बंग्लुरू में आयोजित 90वें राष्ट्रीय विज्ञान कांग्रेस के उद्घाटन के अवसर पर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी नीति की घोषणा की गयी इस नीति के अंतर्गत पहली बार विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को समाज के विकास एवं राष्ट्रीय सुरक्षा हेतु अपरिहार्य माना गया। इसके साथ ही पहली बार अनुसंधानों को बढ़ावा देने के लिए सरकारी एवं निजी क्षेत्रों के मध्य समन्वय की आवश्यकता को स्वीकार किया गया।
नई नीति में परम्परागत ज्ञान को संबोधित करते हुए देशी प्रौद्योगिकी के विकास तथा इसके वाणिज्यिक प्रयोग तथा बौद्धिक सम्पदा के संरक्षण में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के भरपूर प्रयोग की बात की गयी है। नई नीति में विकास के प्रमुख विषयों स्वास्थ्य, खाद्यान्न, कृषि, ऊर्जा, पर्यावरण इत्यादि से संबंधित अनुसंधानों हेतु सभी मेडिकल कालेजों, इंजीनियरिंग कालेजों में अनुसंधान संबंधी गतिविधियां में तेजी लाने तथा माध्यमिक एवं उच्च स्तरीय कालेजों एवं शैक्षणिक संस्थानों को प्रयोगशाला के विकास हेतु आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने की बात की गयी है। महाविद्यालय, विश्वविद्यालय तथा इंजीनियरिंग कालेजों के शिक्षण एवं शोध के स्तर को उच्चीकृत करने के लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराने का संकल्प भी नई नीति में व्यक्त किया गया है।
नई नीति में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महिलाओं के योगदान को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन देने, उनके लिए उचित परिस्थितियों का निर्माण करने की बात की गयी है। देश से अच्छी प्रतिभाओं के पलायन पर रोक लगाने तथा विदेश में रह रहे भारतीय वैज्ञानिकों को वापस बुलाने हेतु उचित माहौल का विकास करने का संकल्प नई नीति में व्यक्त किया गया है। भुखमरी, गरीबी उन्मूलन, कुपोषण प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के महत्व को स्वीकार करते हुए नई नीति में सभी सरकारी एवं निजी क्षेत्र की अनुसंधान शाखाओं से अपेक्षा की गयी है कि वे देश की आवश्यकता को समझते हुए अपनी प्राथमिकताएं तय करेंगे। इस नीति में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के समर्थन को उद्योग जगत के लिए महत्त्वपूर्ण बताते हुए कहा गया है कि अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के इस युग में उच्च स्तर के वैज्ञानिक अनुसंधान देश में ही करने तथा उसके लाभ को तीव्र गति से प्राप्त करने के लिए उद्योग जगत को इस दिशा में ठोस कदम होंगे।
नई विज्ञान नीति का सबसे अहम पहलू यह है कि इसमें विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से संबंधित सभी मंत्रालयों तथा अन्य विभागों के प्रमुख के पद हेतु वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों को ही चुनने का संकल्प व्यक्त किया गया है।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी नीति के प्रमुख बिन्दु
- देश में विज्ञान और प्रौद्योगिकीय गतिविधियों को बढ़ाने के लिए इस क्षेत्र के लिए बजट में इस प्रकार से प्रावधान किया जायेगा कि इस पर होने वाला कुल व्यय सकल घरेलू उत्पाद के दो प्रतिशत से अधिक हो जाय।
- स्वदेशी प्रौद्योगिकी के वाणिज्यिक प्रयोग पर विशेष बल दिया जायेगा।
- उद्योगों और अनुसंधानशालाओं को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने हेतु संसाधनों का विकास किया जायेगा।
- उच्च शैक्षणिक संस्थाओं, इंजीनियरिंग कालेजों तथा अनुसंधानशालाओं को आधारभूत ढांचा उपलब्ध कराया जायेगी। नौकरशाही के प्रभाव को कम करने हेतु विज्ञान संस्थाओं को स्वायत्तता प्रदान की जायेगी
- विज्ञान से संबंधित विभागों एवं उद्योगों के मध्य समन्वय स्थापित किया जायेगा।
- विदेशों में बसे भारतीय वैज्ञानिकों को वापस लाने हेतु प्रयास किया जायेगा
- गरीबी, भुखमरी, पेयजल समस्या, खाद्यान्न उत्पादन इत्यादि देश की मौलिक समस्याओं के निस्तारण में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का भरपूर इस्तेमाल किया जायेगा।
- किसी भी राष्ट्र के विकास में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की अहम भूमिका होती है। प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी की महत्व को स्वीकार करते हुए कहा था, 'इस समृद्ध देश के गरीब निवासियों की भूख, निरक्षरता, अंधविश्वास अस्वस्थता, रीति-रिवाजों की रूढ़ियस्तता तथा देश के विपुल संसाधनों की बरबादी की समस्या से विज्ञान और प्रौद्योगिकी की सहायता से ही निपटा जा सकता है। स्वतंत्रता के बाद विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में ठोस पहल की गयी। शुरुआत 1948 में आण्विक ऊर्जा अधिनियम के पारित होने के साथ हुई। कुछ वर्ष बाद ही राष्ट्रीय विज्ञान नीति 1958 की घोषणा की गयी और इसी के साथ मानव संसाधन परिषद् का गठन किया गया। इस परिषद के प्रयास से ही भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों का विकास संभव हुआ। ये संस्थान आज प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विश्व स्तरीय प्रशिक्षण देने के लिए विख्यात हैं। 1962 में लाल बहादुर शास्त्री की अध्यक्षता में एक भारतीय संसदीय एवं वैज्ञानिक समिति का गठन किया गया। डॉ. एस. एस. भटनागर के प्रयासों से सी. एस. आई. आर. की स्थापना की गयी डॉ. होमी भाभा के प्रयास से टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) की स्थापना हुई। नाभिकीय ऊर्जा तथा अन्य आधारित शोधों में इस संस्थान की अग्रणी भूमिका को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है।
- सातवें दशक में विक्रम साराभाई द्वारा शुरू किए गए अंतरिक्ष कार्यक्रम के कारण ही आज भारत अंतरिक्ष की अनंत ऊंचाइयों में छलांग लगाने में सफल हुआ है। इसी दौर में डॉ. डी. एस. कोठारी ने प्रतिरक्षा के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी के महत्व को नए सिरे से परिभाषित किया। प्रो. पी. सी. महालनोबिस ने आर्थिक योजनाओं में विज्ञान की भूमिका को रेखांकित किया। 1990 के दशक के शुरुआती वर्ष में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन के कार्यक्रम निदेशक डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा भारत के लिए प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम की शुरुआत की गयी। इसी कार्यक्रम के परिणामस्वरूप आज भारत संपूर्ण एशिया में एक महाशक्ति के रूप में जाना जाता है।
- भारतीय विज्ञान कांग्रेस के शताब्दी अधिवेशन में विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवोन्मेष नीति 2013 जारी की गई, जिसकी मुख्य बातें यहां बिन्दुवार दी जा रही हैं
- वर्ष 2020 तक भारत को विश्व के पांच सर्वोच्च वैज्ञानिकों की कतार में खड़ा किया जाए। समाज के हर वर्ग में वैज्ञानिक प्रवृत्ति पैदा करना है।
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