संविधान सभा की मांग | संविधान निर्माण की प्रक्रिया
संविधान सभा की मांग
- 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गठन के बाद भारतीयों में राजनीतिक चेतना जाग्रत हुई और धीरे-धीरे भारतीयों की यह धारणा बनने लगी कि भारत के लोग स्वयं अपने राजनीतिक भविष्य का निर्णय करें।
- इसकी अभिव्यक्ति बालगंगाधर तिलक की उस नारे से होती है कि "स्वराज्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है और इसे हम लेकर रहेंगे।" इसके पश्चात् महात्मा गाँधी ने 1922 में यह मांग की थी कि भारत का राजनैतिक भाग्य भारतीय स्वयं बनायेंगे।
- 1924 में मोतीलाल नेहरू द्वारा ब्रिटिश सरकार से यह मांग की गयी कि भारतीय संविधान के निर्माण के लिए संविधान सभा का गठन किया जाये.
- कानूनी आयोग और राउण्ड टेबल कान्फ्रेंस की असफलता के कारण भारतवासियों की आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए भारत शासन अधिनियम, 1935 अधिनियम किया गया। इससे भारत के लोगो की इस मांग ने जोर पकड़ा कि वे बाहरी हस्तक्षेप के बिना संविधान बनाना चाहते है, इस मांग को कांग्रेस ने 1935 में प्रस्तुत किया।
नेहरू द्वारा संविधान सभा की मांग
1938 में पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने संविधान सभा की मांग को स्पष्ट रखते हुए यह कहा -
"कांग्रेस स्वतंत्र और लोकतंत्रात्मक राज्य का समर्थन करती है। उसने यह प्रस्ताव किया कि स्वतंत्र भारत का संविधान बिना बाहरी हस्तक्षेप के ऐसी संविधान सभा द्वारा बनाया जाना चाहिए, जो वयस्क मतदान के आधार पर निर्वाचित हो।"
1939 में विश्व युद्ध छिड़ने के बाद, संविधान सभा की मांग को 14 सितंबर, 1939 को कांग्रेस कार्यकारिणी द्वारा जारी किए गये एक लंबे वक्तव्य में दोहराया गया।
संविधान सभा को लेकर गांधी
- गाँधी जी ने 19 नवम्बर, 1939 को 'हरिजन' में 'द ओनली वे" शीर्षक के अन्तर्गत एक लेख लिखा, जिसमें उन्होनें अपने विचार व्यक्त किया कि "संविधान सभा ही देश की देशज प्रकृति का और लोकेच्छा का सही अर्थों में तथा पूरी तरह से निरूपण करने वाला संविधान बना सकती है" उन्होंने घोषणा की कि साम्प्रदायिकता तथा अन्य समस्याओं के न्यायसंगत हल का एकमात्र तरीका भी संविधान सभा ही है।
1940 के 'अगस्त प्रस्ताव' में ब्रिटिश सरकार ने संविधान सभा की मांग को पहली बार आधिकारिक रूप से स्वीकार किया भले ही स्वीकृति अप्रत्यक्ष शर्तों के साथ थी।
संविधान सभा का निर्माण
ब्रिटिश सरकार ने द्वितीय विश्वयुद्ध के प्रारम्भ तक संविधान सभा की मांग का विरोध किया, विश्व युद्ध के प्रारम्भ हो जाने पर बाहरी परिस्थितियों के कारण उन्हें यह स्वीकार करने के लिए बाध्य होना पडा कि भारतीय संवैधानिक समस्या का हल निकालना अति आवश्यक है।
1940 में इंग्लैण्ड में बहुदलीय सरकार ने इस सिद्धान्त को स्वीकार किया कि भारत के लिए नया संविधान भारत के लोग ही बनाएँगे।
सर स्टेफर्ड क्रिप्स का प्रस्ताव
मार्च, 1942 में जब जापान भारत के द्वार पर आ गया। तब उन्होंने सर स्टेफर्ड क्रिप्स को जो मंत्रिमण्डल के एक सदस्य थे। ब्रिटिश सरकार के प्रस्ताव की घोषणा के प्रारूप के साथ भेजा ।
ये प्रस्ताव युद्ध की समाप्त पर अंगीकार किये जाने वाले थे यदि (कांग्रेस और मुस्लिम लीग)दो प्रमुख राजनीतिक दल उन्हें स्वीकार करने के लिए सहमत हो जायें।
मुख्य प्रस्ताव इस प्रकार थे
1. भारत के संविधान की रचना भारत के लोगो द्वारा निर्वाचित संविधान सभा करेगी।
2. संविधान भारत
को डोमिनियन प्रास्थिति और ब्रिटिश राष्ट्रकुल में बराबर की भागीदारी देगा।
3. सभी प्रान्तो और देशी रियासतों से मिलकर एक संघ बनेगा, किन्तु
4. कोई प्रान्त
या (देशी रियासत) जो संविधान को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हो तत्समय
विद्यमान अपनी संविधानिक स्थिति बनाए रखने के लिए स्वतंत्र होगा और इस प्रकार
सम्मिलित न होने वाले प्रान्तों से ब्रिटिश सरकार पृथक संवैधानिक व्यवस्था कर
सकेगी।
किन्तु दोनों
राजनीतिक दल इन प्रस्तावो को स्वीकार करने के लिए सहमत नहीं हो सके।
क्रिप्स के असफल होने के बाद की परिस्थिति
क्रिप्स के प्रस्तावों के अस्वीकार हो जाने के पश्चात् (और क्रांग्रेस द्वारा “भारत छोडो'' आन्दोलन प्रारम्भ करने के बाद) दोनों दलों को एकमत करने के लिए बहुत से प्रयत्न किए गए, जिनमे गवर्नर-जनरल, लार्ड वावेल की प्रेरणा से किया गया शिमला सम्मेलन भी है।
मंत्रिमण्डलीय प्रतिनिधि मण्डल
- इन सब के असफल हो जाने पर ब्रिटिश मंत्रिमण्डल ने अपने तीन सदस्यों को एक और गंभीर प्रयत्न करने के लिए भेजे। उनमें क्रिप्स भी था, किन्तु यह प्रतिनिधि मण्डल भी दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों के बीच सहमति लाने में असफल रहा।
- परिणामस्वरूप उसे अपने ही प्रस्ताव रखने पड़े। जिनकी भारत और इंग्लैण्ड में 6 मई, ।946 को एक साथ घोषणा की गई।
- मंत्रिमण्डलीय प्रतिनिधि मण्डल के प्रस्ताव में भारत का संघ बनाने और उसका विभाजन करने के बीच समझौता लाने का प्रयत्न किया गया।
- मंत्रिमण्डलीय प्रतिनिधिमण्डल ने पृथक संविधान सभा और मुसलमानों के लिए पृथक राज्य के दावे को स्पष्टतः नामंजूर कर दिया। जिस स्कीम की सिफारिश उन्होंने की उसमें मुस्लिम लीग के दावे के पीछे जो सिद्धान्त था उसको लगभग स्वीकार कर लिया गया।
मंत्रिमण्डलीय प्रतिनिधि मण्डल स्कीम के मुख्य लक्ष्य ये थे-
- एक भारत संघ होगा, जो ब्रिटिश भारत और देशी रियासतों से मिलकर बनेगा, जिसकी विदेश कार्य, प्रतिरक्षा और संचार के विषयों पर अधिकारिता होगी। शेष सभी शक्तियों प्रान्तो और राज्यों में निहित होंगी।
- संघ की एक कार्यपालिका और एक विधानमण्डल होगा जो प्रान्तों और राज्यों के प्रतिनिधियों से गठित होगा, किन्तु जब विधान मण्डल में कोई प्रमुख साम्प्रदायिक प्रश्न उठेगा तो उसका विनिश्चय दोनों प्रमुख समुदायों के उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के बहुमत से किया जायेगा।
- प्रान्त उस बात के लिए स्वतंत्र होंगे कि वे कार्यपालिका और विधानमण्डलों के गुट बना लें और प्रत्येक गुट उन प्रान्तीय विषयों को अवधारित करने के लिए सक्षम होगा जिन पर गुट संगठन की अधिकारिता होगी।
कैबिनेट मिशन
जुलाई, 1945 में इंग्लैण्ड में नई लेबर सरकार
जुलाई, 1945 में इंग्लैण्ड में नई लेबर सरकार सत्ता में आयी।
सितम्बर,1 945
को वायसराय लार्ड वेवल ने भारत के संबन्ध में सरकार की नीति की घोषणा की तथा 'यथाशीघ्र' संविधान-निर्माण निकाय का गठन करने के
लिए महामहिम की सरकार के इरादे की पुष्टि की।
- कैबिनेट मिशन ने अनुभव किया कि संविधान-निर्माण निकाय का गठन करने की सर्वाधिक संतोषजनक विधि यह होती कि उसका गठन वयस्क मताधिकार के आधार पर चुनाव के द्वारा किया जाता, किन्तु ऐसा करने पर नए संविधान के निर्माण में 'अवांछनीय विलम्ब' हो जाता।
- इसलिए उनके अनुसार एकमात्र व्यवहार्य तरीका यही था कि हाल में निर्वाचित प्रान्तीय सभाओं का उपयोग निर्वाचन निकायों के रूप में किया. जाए।
- तत्कालीन परिस्थितियों में मिशन ने इसे 'सर्वाधिक न्यायोचित तथा व्यवहार्य योजना” बताया और सिफारिश की कि संविधान-निर्माण-निकाय में प्रान्तों का प्रतिनिधित्व जनसंख्या के आधार पर हो।
- मोटे तौर पर दस लाख लोगों के पीछे एक सदस्य चुना जाए और विभिन्न प्रान्तों को आवंटित स्थान इस प्रयोजन के लिए वर्गीकृत मुख्य समुदायों यथा सिक्खों, मुसलमानों और सामान्य लोगों में (सिक्खों तथा मुसलमानों का छोड़कर) उनकी जनसंख्या के आधार पर विभाजित कर दिए जाए।
- प्रत्येक समुदाय के प्रतिनिधि प्रान्तीय विधान सभा में उस समुदाय के सदस्यों द्वारा चुने जाते थे। और मतदान एकल संक्रमणीय मत सहित अनुपाती प्रतिनिधित्व की विधि द्वारा कराया जाना था।
- भारतीय रियासतों के लिए आवंटित सदस्यों की संख्या भी जनसंख्या के उसी आधार पर निर्धारित की जानी थी, जो ब्रिटिश भारत के लिए अपनाया गया था, किन्तु उनके चयन की विधि बाद में परामर्श द्वारा तय की जानी थी।
- संविधान निर्माण-निकाय की सदस्य संख्या 389 निर्धारित की गई।
- जिनमें से 292 प्रतिनिधि ब्रिटिश भारत के गवर्नरों के अधीन ग्यारह प्रान्तों से, 4 चीफ कमिश्नरों के चार प्रान्तों अर्थात् दिल्लीक, अजमेर-मारवाड़, कुर्ग और ब्रिटिश बलूचिस्तान से एक-एक तथा 93 प्रतिनिधि भारतीय रियासतों से लिये जाने थे।
- कैबिनेट मिशन ने संविधान के लिए बुनियादी ढाँचे का प्रारूप पेश किया तथा संविधान -निर्माण-निकाय द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया का कुछ विस्तार के साथ निर्धारण किया।
- ब्रिटिश भारत के प्रान्तों को आवंटित (292+4) 296 स्थानों के लिए चुनाव जुलाई-अगस्त, ।946 तक पूरे कर लिए गये थे।
- कांग्रेस को 208 स्थानों पर ग 73 स्थानों पर विजय प्राप्त की । 9 पर अन्य ने ।
भारत की विधानसभाओं से चुने गये 296 सदस्य पार्टीवार -
- कांग्रेस 208
- मुस्लिम लीग 73
- युनियनिस्ट 1
- युनियनिस्ट मुस्लिम 1
- युनियनिस्ट अनुसूचित जातियां 1
- कृषक प्रजा 1
- अनुसूचित जाति परिसंघ 1
- सिक्ख (गैस कांग्रेसी) 1
- कम्युनिस्ट 1
- स्वतन्त्र 1
1947 के बाद संविधान सभा
संविधान सभा प्रभुत्तासम्पनन निकाय बनना
- 14-15 अगस्त, 1947 को देश के विभाजन तथा उसकी स्वतन्त्रा के साथ ही, भारत की संविधान सभा कैबिनेट मिशन योजना के बंधनो से मुक्त हो गई।
- संविधान सभा पूर्णतया प्रभुत्तासम्पनन निकाय तथा देश में ब्रिटिश संसद के पूर्ण अधिकार तथा उसकी सत्ता की पूर्ण उत्तराधिकारी बन गई।
- 3 जून की योजना की स्वीकृति के बाद, भारतीय डोमिनियम के मुस्लिम लीग पार्टी के सदस्यों ने भी विधानसभा में अपने स्थान ग्रहण कर लिये।
- कुछ भारतीय रियासतों के प्रतिनिधि पहले ही 28 अप्रैल, ।947 को विधान सभा में आ गए और शेष रियासतों ने भी यथासमय अपने प्रतिनिधि भेज दिए।
- इस प्रकार संविधान सभा भारत में सभी रियासतों तथा प्रान्तों की प्रतिनिधि तथा किसी भी बाहरी शक्ति के आधिपत्य से पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न निकाय बन गयी।
- संविधान सभा भारत में लागू ब्रिटिश संसद द्वारा बनाए गए किसी भी कानून को, यहाँ तक कि भारतीय स्वतंत्रता एक्ट को भी रद्द अथवा परिवर्तित कर सकती थी।
संविधान निर्माण की प्रक्रिया
संविधान सभा का उद्घाटन नियत दिन सोमवार, 09 दिसम्बर, 1946 को प्रातः ग्यारह बजे हुआ।
संविधान सभा उद्देश्य प्रस्ताव
- संविधान सभा का सत्र कुछ दिन चलने के बाद नेहरू जी ने 3 दिसम्बर, 946 ऐतिहासिक उद्देश्य प्रस्ताव पेश किया। सुन्दर शब्दों में तैयार किये गये उद्देश्य प्रस्ताव के प्रारूप में भारत के भावी प्रभुत्तासम्पन्न लोकतांत्रिक गणराज्य की रूपरेखा दी गई थी।
- इस प्रस्ताव में एक संघीय राज्य व्यवस्था की परिकल्पना की गई थी, जिसमें अवशिष्ट शक्तियां स्वायत्त इकाइयों के पास होती तथा प्रभुत्ता जनता के हाथों में।
- सभी नागरिको को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक, न्याय, परिस्थिति की, अवसर भी और कानून के समक्ष समानता, विचारधारा, अभिव्यक्ति, विश्वास, आस्था, पूजा, व्यवसाय, संगत और कार्य की स्वतन्त्रता, की गारंटी दी गई और इसके साथ ही अल्पसंख्यकों, पिछड़े तथा जनजातीय क्षेत्रों तथा दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए पर्याप्त "रक्षा उपाय' रखे गये।
- इस प्रकार, इस प्रस्ताव ने संविधान सभा को इसके मार्गदर्शी सिद्धान्त तथा दर्शन दिए, जिनके आधार पर इसे संविधान निर्माण का कार्य करना था।
- 22 जनवरी, 1947 को संविधान सभा ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।
- संविधान सभा ने संविधान रचना की समस्या के विभिन्नर पहलुओं से निपटने के लिए अनेक समितिया नियुक्त की। इनमें संघीय संविधान समितिया शामिल थी।
- इनमें से कुछ समितियों के अध्यक्ष नेहरू या पटेल थे, जिन्हें संविधान सभा के अध्यक्ष ने संविधान का मूल आधार तैयार करने का श्रेय दिया था।
- इन समितियों ने बड़े परिश्रम के साथ तथा सुनियोजित ढंग से कार्य किया और अनमोल रिपोर्ट पेश की।
- संविधान सभा ने तीसरे तथा छठें सत्रों के बीच, मूल अधिकारों, संघीय संविधान, संघीय शक्तियों, प्रान्तीय संविधान अल्पसंख्यकों तथा अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जातियों से सम्बन्धित समितियों की रिपोर्टो पर विचार किया।
- भारत के संविधान का पहला प्रारूप संविधान सभा कार्यालय की मंत्रणा शाखा ने अक्टूबर, 947 को तैयार किया।
- इस प्रारूप की तैयारी से पहले, बहुत सारी आधार सामग्री एकत्र की गई तथा संविधान सभा के सदस्यों को "संवैधानिक पूर्वदृ्शंत' के नाम से तीन संकलनों के रूप में उपलब्ध की गई।
- इस संकलनों में लगभग 60 देशों के संविधानों से मुख्य अंश उद्धृत किए गये थे।
- संविधान सभा ने संविधान सभा में किए गये निर्णयों पर अमल करते हुए संवैधानिक सलाहकार द्वारा तैयार किए गये भारत के संविधान के मूल पाठ के प्रारूप की छानबीन करने के लिए 29 अगस्त, 1947 को डा0 भीमराव अंबेडकर के सभापतित्व में प्रारूपण समिति नियुक्त की।
- प्रारूपण समिति द्वारा तैयार किया गया भारत के संविधान का प्रारूप 2। फरवरी, ।948 को संविधान सभा के अध्यक्ष को पेश किया गया।
संविधान के प्रारूप में संशोधन
संविधान के प्रारूप में संशोधन के लिए बहुत बड़ी संख्या में टिप्पणियां, आलोचनाए, और सुझाव प्राप्त हुए।
प्रारूपण समिति ने इन सभी पर विचार किया। इन सभी पर प्रारूपण समिति की सिफारिशों के साथ विचार करने के लिए एक विशेष समिति का गठन किया।
विशेष समिति द्वारा की गई सिफारिशों पर प्रारूपण समिति ने एक बार फिर विचार किया और कतिपय संशोधन समावेश के लिए छांट लिए गये।
इस प्रकार के संशोधनों के निरीक्षण की सुविधा के लिए प्रारूपण समिति ने संविधान के प्रारूप को दोबारा छपवाकर जारी करने का निर्णय किया। यह 26 अक्टूबर, 1948 को संविधान सभा के अध्यक्ष को पेश किया गया।
- संविधान के प्रारूप पर खंडवार विचार 5 नवम्बर, 948 से ।7 अक्टूबर 1 949 के दौरान पूरा किया गया।
- प्रस्तावना सबसे बाद में स्वीकार की गई। तत्पश्चातू, प्रारूपण समिति ने परिणामी या आवश्यक संशोधन किए, अंतिम प्रारूप तैयार किया और उसे संविधान सभा के सामने पेश किया।
- संविधान का दूसरा वाचन 6 नवम्बर, 1949 को पूरा हुआ तथा उससे अगले दिन संविधान सभा ने डॉ0 अम्बेडकर के इस प्रस्ताव के साथ कि विधानसभा द्वारा यथानिर्णीत संविधान पारित किया जाए, संविधान का तीसरा वाचन शुरू किया।
- प्रस्ताव 26 नवम्बर 1949 को स्वीकृत हुआ तथा इस प्रकार, उस दिन संविधान सभा में भारत की जनता ने भारत के प्रभुत्व सम्पन्न लोकतांत्रिक गणराज्य का संविधान स्वीकार किया, अधिनियमित किया और अपने आपको अर्पित किया।
- संविधान सभा ने संविधान बनाने का भारी काम दो वर्ष ग्यारह माह अठारह दिन में पूर्ण किया।
- संविधान पर संविधान सभा के सदस्यों द्वारा 24 जनवरी, 1950 को संविधान सभा के अन्तिम दिन अन्तिम रूप से हस्ताक्षर किए गए।
- संविधान निर्माताओं ने पुराने संस्थानों के आधार पर जो पहले से विकसित हो चुके थे और जिनके बारें में उन्हें जानकारी थी, जिनसे वे परिचित हो चुके थे और जिनके लिए उन्होंने सभी प्रकार की परिसीमाओं, बंधनों के बावजूद उद्यम किया था, नए संस्थानों का निर्माण करना पसंद किया।
- संविधान के द्वारा ब्रिटिश शासन को ठुकरा दिया गया किन्तु उन संस्थानों को नहीं जो ब्रिटिश शासनकाल में विकसित हुए थे। इस प्रकार, संविधान औपनिवेशिक अतीत से पूरी तरह से अलग नहीं हुआ।
- संविधान सभा ने और भी कई महत्वपूर्ण कार्य किए जैसे उसने संविधायी स्वरूप के कतिपय कानून पारित किए,राष्ट्रीय ध्वज को अंगीकार किया, राष्ट्रगान की घोषणा की, राष्ट्रमण्डल की सदस्यता से संबंधित निर्णय की पुष्टि की तथा गणराज्य के प्रथम राष्ट्रपति का चुनाव किया।
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