भारत की पंचवर्षीय योजनाएं |पंचवर्षीय योजना का उद्देश्य | Bharatr Ki Panch Varshiya Yojnayen
भारत की पंचवर्षीय योजनाएं
भारत की पंचवर्षीय योजना
पंचवर्षीय योजना का उद्देश्य
प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-1956)
1 अप्रैल, 1951 से 31 मार्च,1956
भारत की प्रथम पंचवर्षीय योजना 1 अप्रैल, 1951 से प्रारंभ हुई थी, जबकि इस योजना का अंतिम प्रारूप दिसंबर 1952 में प्रकाशित कि , गया था।
प्रथम पंचवर्षीय योजना पंचवर्षीय
योजना का उद्देश्य
1. द्वितीय विश्वयुद्ध तथा देश के विभाजन के फलस्वरूप हुई क्षतिग्रस्त अर्थव्यवस्था का पुनरुत्थान करना,
2. स्फीतिकारक प्रवृत्तियों को रोकना
3. देश की अर्थव्यवस्था को इस प्रकार से सबल बनाना कि भविष्य में द्रुत गति से आर्थिक विकास संभव हो सके, अर्थात् सड़कों का निम करना, परिवहन एवं संचार की सुविधाएँ उपलब्ध कराना, सिंचाई एवं जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण करना आदि।
4. उत्पादन क्षमता में वृद्धि तथा आर्थिक विषमता को यथासंभव कम करना,
5. खाद्यान्न संकट का समाधान करना तथा कच्चे मालों विशेषकर पटसन एवं रुई की स्थिति को पुकारना,
6. ऐसी प्रशासनिक एवं अन्य संस्थाओं का निर्माण करना, जो कि देश के विकास कार्यक्रमों को लागू करने के लिए आवश्यक हों।
प्रथम पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत पाँच वर्षों की अवधि में कुल 2378 करोड़ रुपए व्यय करने की व्यवस्था की गई थी, किन्तु योजनाव में केवल 1960 करोड़ रुपए ही व्यय किए गए, कुल व्यय का 44.6 प्रतिशत व्यय सार्वजनिक क्षेत्र के लिए निर्धारित किया गया था । इस योजन में कृषि को उच्चतम प्राथमिकता प्रदान की गई।
इस योजना की
प्राप्ति लक्ष्यों से अधिक थी। योजना अवधि में राष्ट्रीय आय में वार्षिक वृद्धि की
चक्रवृद्धि दर 1993-94 की कीमतों पर 3. प्रतिशत (लक्ष्य 2.1 प्रतिशत) थी, जबकि प्रतिव्यक्ति आय में 1.8 प्रतिशत
की वृद्धि हुई तथा वृद्धिमान पूँजी उत्पाद अनुपात 2.95:1 रहा। पूँज निवेश की दर
राष्ट्रीय आय के 5 प्रतिशत से बढ़ाकर 7 प्रतिशत करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया
।
द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956 -1961 )
1 अप्रैल, 1956 से 31 मार्च,1961
भारतीय सांख्यिकीय संगठन कोलकाता के निदेशक प्रो. पी.सी. महालनोबिस के मॉडल पर आधारित द्वितीय पंचवर्षीय योजना 1 अप्रैल, 1956 से लागू की गई तथा 31 मार्च, 1961 को समाप्त हुई।
इस योजना का मूलभूत उद्देश्य देश में औद्योगीकरण की प्रक्रिया प्रारंभ करना था, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था का सुदृढ़ आधार पर सर्वांगीण विकास किया जा सके। इसके अतिरिक्त 1956 में घोषित की गई औद्योगिक नीति में समावादी ढंग के समाज की स्थापना को स्वीकार किया गया।
द्वितीय पंचवर्षीय योजना का उद्देश्य
संक्षेप में द्वितीय योजना के निम्नलिखित लक्ष्य निर्धारित किये गये थे -
- 1. देश के जीवन स्तर को ऊँचा उठाने के लिए 5 वर्षों में राष्ट्रीय आय में 25 प्रतिशत की वृद्धि करना।
- 2. द्रुत गति से औद्योगीकरण करना जिसमें आधारभूत उद्योगों तथा भारी उद्योगों के विकास पर पर्याप्त बल दिया गया हो।
- 3. रोजगार के अवसरों में वृद्धि करना
- 4. आय व सम्पत्ति की असमानता को कम करना तथा आर्थिक शक्ति का अधिक समान वितरण करना ।
- 5. पूँजी निवेश की दर को 7 प्रतिशत से बढ़ाकर 1960-61 तक 11 प्रतिशत करना।
द्वितीय
पंचवर्षीय योजना में सरकारी क्षेत्र में वास्तविक व्यय लगभग 4672 करोड़ रुपए हुआ।
द्वितीय योजना में 1993-94 की कीमतों पर राष्ट्रीय आय में 4.1 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि हुई किन्तु प्रति व्यक्ति आय में 2.0 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि हुई। इस योजनावधि में राष्ट्रीय आय में 25 प्रतिशत वृद्धि के लक्ष्य की प्राप्ति न होने का आंशिक कारण योजना में परिकल्पित आशावादी पूँजी उत्पाद अनुपात था। महालनोबिस मॉडल में यह 2:1 कल्पित किया गया था किन्तु वास्तव में यह 1980-81 की कीमतों पर 3.40:1 का अनुमानित किया गया। द्वितीय योजना के कुल परिव्यय की राशि 4672 करोड़ रुपए में से 1049 करोड़ रुपए की विदेशी सहायता प्राप्त हुई जो कुल परिव्यय का 24 प्रतिशत थी। द्वितीय योजना काल में देश में मूल्य स्तर में 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि पहली योजना में इसमें 13 प्रतिशत की कमी आई।
तृतीय पंचवर्षीय योजना (1961-1966)
1 अप्रैल, 1961 से 31 मार्च, 1966 यह योजना 1 अप्रैल 1961 को प्रारंभ होकर 31 मार्च, 1966 को समाप्त हुई। इस योजना में अर्थव्यवस्था को आर्थिक गतिशीलता की अवस्था तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा गया था।
तृतीय पंचवर्षीय योजना के मुख्य उद्देश्य
तीसरी योजना के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित थे
- 1. राष्ट्रीय आय में 5 प्रतिशत से अधिक वार्षिक वृद्धि प्राप्त करना तथा पाँच वर्षों में 30 प्रतिशत वृद्धि करना। इसी प्रकार प्रति व्यक्ति आय में इसी अवधि में 17 प्रतिशत वृद्धि करना।
- 2. खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना तथा उद्योग एवं निर्यात की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कृषि उत्पादन को बढ़ाना।
- 3. आधारभूत उद्योगों, जैसे इस्पात रासायनिक उद्योग, ईंधन व शक्ति की स्थापना करना, जिससे आगामी लगभग 10 वर्षों में देश के स्वयं के साधनों से औद्योगीकरण की आवश्यकताएँ पूरी की जा सकें।
- 4. देश की श्रम शक्ति का अधिकतम उपयोग करना तथा रोजगार के अवसरों में वृद्धि करना।
- 5. अवसर की समानता को अधिकाधिक बढ़ाना तथा आय व धन के वितरण की असमानता को कम करना एवं आर्थिक शक्ति का समान वितरण करना।
पुन: तीसरी बार
योजना के अंतर्गत खाद्य उत्पादन में 6 प्रतिशत औसत वार्षिक वृद्धि तथा औद्योगिक
उत्पादन में 14 प्रतिशत वार्षिक वद्धि का लक्ष्य निर्धारित किया था, किंतु योजना अवधि में खाद्यान्न
उत्पादन में केवल 2 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि ही हो सकी, योजना के 5 वर्षों में राष्ट्रीय आय की
वृद्धि 5.0 प्रतिशत प्रतिवर्ष के लक्ष्य की तुलना में 1993-94 की कीमतों पर 2.5
प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर प्राप्त की गई तथा प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय में
वार्षिक वृद्धि दर 0.2 प्रतिशत की ही रही। इस योजना की असफलता का मुख्य कारण 1962
में चीन के साथ तथा 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध छिड़ना था। 1965-66 में देश में
सूखा पड़ा। अत: 1965 66 में तो राष्ट्रीय आय में वृद्धि की अपेक्षा वस्तुत: 4.7
प्रतिशत की कमी हुई।
तृतीय योजना के
दौरान सार्वजनिक क्षेत्र में परिव्यय की प्रस्तावित राशि 7500 करोड़ रुपए थी, जब कि वास्तविक व्यय 8577 करोड़ रुपए
था।
तीन वार्षिक योजनाएँ
1966-67 से
1968-69
तृतीय पंचवर्षीय
योजना 31 मार्च 1966 को समाप्त हो गई थी ततदनुसार चतुर्थ योजना को 1 अप्रैल 1966
से प्रारंभ होना चाहिए था। किंतु तृतीय योजना की दुर्भाग्यपूर्ण असफलता के
परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादन लगभग स्थिर सा हो गया
था। जून 1966 में भारत सरकार द्वारा भारतीय रुपए के अवमूल्यन की घोषणा की गई, ताकि देश के नि्यातों में वृद्धि की जा
सके, किन्तु
इसके अनुकूल परिणाम प्राप्त नहीं हो सके अतः चौथी योजना को कुछ समय के लिए स्थगित
कर दिया गया तथा उसके स्थान पर तीन वार्षिक योजनाएँ लागू की गई कुछ
अर्थशास्त्रियों ने तो 1966 से 1969 तक की अवधि को योजना अवकाश की संज्ञा तक दे दी, क्योंकि इस अवधि में कोई नियमित नियोजन
नहीं किया गया।
चतुर्थ वार्षिक योजना
1 अप्रैल, 1969 से 31 मार्च, 1974
चौथी योजना के मूल उद्देश्य थे - स्थिरता के साथ आर्थिक विकास तथा आत्मनिर्भरता की अधिकाधिक प्राप्ति इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए
चौथी योजना के लक्ष्य
- 2. कृषि तथा औद्योगिक उत्पादन क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना। कृषि उत्पादन में 5 प्रतिशत की वार्षिक दर से तथा औद्योगिक उत्पादन में 8 प्रतिशत से 10 प्रतिशत वार्षिक दर से वृद्धि।
- 3. मूल्य स्तर में स्थायित्व लाने के उद्देश्य से मुद्रा प्रसार संबंधी तत्वों को नियंत्रित करना।
- 4. सामान्य उपभोग की वस्तुओं, जिन पर उपभोक्ता अपनी आय का अधिकांश भाग व्यय करता है, के उत्पादन को प्रोत्साहित करना ।
- 5. कृषि उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ देश में बफर स्टॉक का निर्माण करना, ताकि कृषि पदार्थों की निरंतर पूर्ति सुनिश्चित की जा सके तथा मूल्यों को भी स्थिर रखा जा सके।
- 6. जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण लगाने तथा जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए परिवार नियोजन के कार्यक्रमों को लागू करना।
- 7. निर्यात में 7 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि करना।
- 8. रोजगार के अधिकाधिक अवसरों का सृजन करना।
- 9. पिछड़े क्षेत्रों का अधिकाधिक विकास करना तथा क्षेत्रीय विषमता को दूर करना।
- 10. सार्वजनिक क्षेत्र का विकास करना।
- 11. बैंकों पर सामाजिक नियंत्रण।
- 12. समाज में आर्थिक समानता एवं न्याय की स्थापना करना।
चौथी योजना में
1993-94 की कीमतों पर राष्ट्रीय आय में औसत वार्षिक वृद्धि दर 3.8 प्रतिशत प्रति
व्यक्ति आय की वार्षिकी वृद्धि दर 1.5 प्रतिशत रही, जो कि लक्ष्य से नीची थी। खाद्यान्नों
का औसत वार्षिक उत्पादन केवल 2.7 प्रतिशत की दर से बढ़ औद्योगिक उत्पादन में औसत
वार्षिक वृद्धि दर 4 प्रतिशत रही, जो लक्ष्य से बहुत कम थी थोक मूल्य सूचकांक 1969-70 में
(1961-62-100) 175.7 था, जो 1973-74 में बढ़कर 283.6 हो गया। अर्थात् चतुर्थ योजनाकाल में
कीमतों में वृद्धि लगभग 61 प्रतिशत की हुई थी। चौथी योजना के दौरान सार्वजनिक
क्षेत्र मेंपरिव्यय की प्रस्तावित राशि 15902 करोड़ रुपए थी, जबकि वास्तविक व्यय 15779 करोड़ रुपए
था।
पाँचवीं वार्षिक योजना
पाँचवी पंचवर्षीय योजना 1 अप्रैल 1974 को प्रारंभ हुई तथा 31 मार्च 1979 को समाप्त होनी थी। यह योजना जनता सरकार द्वारा एक वर्ष पूर्व ही समाप्त घोषित कर दी गई थी। इस योजना का मुख्य उद्देश्य गरीवी का उन्मूलन और आत्मनिर्भरता था।
पाँचवी पंचवर्षीय योजना के उद्देश्य
इस योजना के महत्वपूर्ण तत्व निम्नलिखित थे :-
- 1. राष्ट्रीय आय में 5.0 प्रतिशत (लक्ष्य 5.5 प्रतिशत) की सामान्य वार्षिक वृद्धि।
- 2. उत्पादक रोजगार के अवसरों का विस्तार करना।
- 3. न्यूनतम आवश्यकताओं का राष्ट्रीय कार्यक्रम जिनमें प्राथमिक शिक्षा, पीने का पानी, ग्राम क्षेत्रों में चिकित्सा, पौष्टिक भोजन, भूमिहीन है श्रमिकों के मकानों के लिए जमीन, ग्रामीण सड़कें, ग्रामों का विद्युतीकरण एवं गंदी बस्तियों की उन्नति एवं सफाई
- 4. सामाजिक कल्याण का विस्तृत कार्यक्रम।
- 5. कृषि एवं जनोपयोगी वस्तुओं को उत्पन्न करने वाले उद्योगों पर बल।
- 6. निर्धन वर्गों को उचित एवं स्थिर मूल्यों पर अनिवार्य उपभोग की वस्तुएँ उपलब्ध कराने के लिए पर्याप्त वसूली एवं वितरण प्रणाली।
- 7. निर्यात प्रोत्साहन एवं आयात प्रतिस्थापन पर बल।
- 8. अनावश्यक उपभोग पर कड़ा प्रतिबंध।
- 9. एक न्यायपूर्ण कीमत-मजदूरी नीति।
- 10. सामाजिक, आर्थिक एवं क्षेत्रीय असमानताओं को कम करने के संस्थानात्मक, राजकोषीय एवं अन्य उपाय ।
छठी पंचवर्षीय योजना
जनता सरकार ने पाँचवीं पंचवर्षीय योजना को उसकी अवधि के एक वर्ष पूर्व ही अर्थात् चार वर्षों (1974-78) में ही समाप्त करके अप्रैल, 1978 से एक नई योजना प्रारंभ कर दी थी। इस योजना को अनवरत योजना का नाम दिया गया।
इस अनवरत योजना के प्रथम चरण के रू में 1 अप्रैल, 1978 से पाँच वर्षों ( 1978-83) के लिए छठी योजना प्रारंभ की गई, किन्तु 1980 में. जनता सरकार द्वारा तैयार की गई छठी योजना (अनवरत योजना) को समाप्त कर दिया तथा एक नई छठी योजना प्रारंभ की जिसकी अवधि 1980-85 रखी गई।
छठी पंचवर्षीय योजना के उद्देश्य
इस छठी योजना ( 1980-85 के मुख्य उद्देश्य
निम्नलिखित थे
- 1. आर्थिक विकास की दर में पर्याप्त वृद्धि, संसाधनों के प्रयोग से संबंधित कार्यकुशलता में सुधार तथा उत्पादकता को बढ़ाना। 2. आर्थिक और प्रौद्योगिक आत्मनिर्भरता को प्राप्त करने के लिए आधुनिकीकरण को बढ़ावा देना।
- 3. गरीबी तथा बेरोजगारी की व्यापकता में लगातार कमी।
- 4. ऊर्जा के घरेलू स्रोतों का तेजी के साथ विकास तथा ऊर्जा के रक्षण एवं कार्यकुशल उपयोग पर बल देना।
- 5. न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के माध्यम से लोगों के जीवन में गुणात्मक सुधार करना।
- 6. सार्वजनिक नीतियों और सेवाओं को ऐसा रूप देना जिससे आय और संपत्ति की असमानताएँ कम हों। 7. विकास की गति और तकनीकी लाभों के प्रसार में क्षेत्रीय असमानताओं में कमी करना।
- 8. जनसंख्या में वृद्धि पर नियंत्रण के लिए विविध नीतियों को प्रोत्साहन देना।
- 9. विकास के अल्प और दीर्घकालीन लक्ष्यों में समन्वय स्थापित करना और इसके लिए वातावरण संबंधी परिसम्पत्तियों को संरक्षण देना तथा उनमें सुधार करना।
- 10. उपयुक्त शिक्षा, संचार और संस्थागत युक्तियों के द्वारा लाभों के सभी वर्गों के विकास की प्रक्रिया में भागीदारी को बढ़ाना।
छठी पंचवर्षीय योजना में 5.2 प्रतिशत वार्षिक विकास की दर प्राप्त करने का लक्ष्य था, किन्तु 1993- 94 की कीमतों पर वास्तविक वार्षिक वृद्धि दर 5.4 प्रतिशत रही। निर्धनता एवं बेरोजगारी के निवारण के लिए अनेक महत्वपूर्ण कार्यक्रम अपनाए गए । खाद्यात्र का लगभग 154 मि. टन का लक्ष्य प्राप्त कर लिया गया। इस योजना में औद्योगिक उत्पादन वृद्धि का लक्ष्य 7 प्रतिशत था। किन्तु वास्तविक वृद्धि 5.4 प्रतिशत की हुई। इस योजना में प्रति व्यक्ति आय में वार्षिक वृद्धि लगभग 3.2 प्रतिशत हुई। छठी योजना के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र में परिव्यय की प्रस्तावित राशि 97580 करोड़ रुपए थी, किन्तु वास्तविक व्यय 109292 करोड़ रुपए था ।
सातवीं पंचवर्षीय योजना
एक स्वतंत्र
आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था की स्थापना।
यह योजना 1 अप्रैल 1985 से प्रारंभ हो गई थी। इस योजना की अवधि 1 अप्रैल 1985 से 31 मार्च 1990 तक रही।
सातवीं पंचवर्षीय योजना (1985-1990) के उद्देश्य
- 1. साम्य एवं न्याय पर आधारित सामाजिक प्रणाली की स्थापना।
- 2. सामाजिक एवं आर्थिक असमानताओं को प्रभावी रूप से कम करना। 3. देशी तकनीकी विकास के लिए सुदृढ़ आधार तैयार करना।
- 4.5 प्रतिशत वार्षिक विकास की दर प्राप्त करना।
- 5. उत्पादक रोजगार का सृजन करना।
- 6. कृषि उत्पादन, विशेषतः खाद्यानों के उत्पादन में पर्याप्त वृद्धि।
- 7. निर्यात संवृद्धि तथा आयात प्रतिस्थापन द्वारा आत्मनिर्भरता को प्रोत्साहन देना।
- ৪. ऊर्जा संरक्षण और गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोतों का विकास ।
- 9. पारिस्थितिकीय एवं पर्यावरणीय संरक्षण।
- सातवीं योजना में 5 प्रतिशत वार्षिक विकास की दर का लक्ष्य रखा गया था, जब कि योजनाकाल में राष्ट्रीय आय की वास्तविक वार्षिक वृद्धि दर (1993-94 की कीमतों पर) 5.8 प्रतिशत की अनुमानित की गई। प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि दर 3.6 प्रतिशत की रही। कुछ क्षेत्रों में वृद्धि दरं लक्ष्य से कुछ कम रही। परंतु मुख्य क्षेत्रों में समग्र वृद्धि दर संतोषजनक रही।
आठवीं पंचवर्षीय योजना
आठवीं पंचवर्षीय योजना, जो 1 अप्रैल, 1990 को प्रारंभ होने को थी, केन्द्र में दो वर्षों में राजनीतिक परिवर्तनों के कारण समय पर प्रारंभ नहीं की जा सकी। राष्ट्रीय विकास परिषद् ने योजना के प्रारूप को 23 मई, 1992 की हुई अपनी बैठक में स्वीकृति दी थी। यह योजना 1 अप्रैल, 1992 से प्रारंभ हो गई थी तथा 31 मार्च 1997 को समाप्त हो गई।
आठवीं पंचवर्षीय योजना (1992-97) में वार्षिक विकास दर का लक्ष्य 5.6 प्रतिशत निर्धारित किया गया था। इस योजना में 7,98,000 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय का प्रावधान था , जिसमें से 4,34,100 करोड़ रुपए का परिव्यय सार्वजनिक क्षेत्र के लिए था।
सार्वजनिक क्षेत्र की इस राशि में से 3,61,000 करोड़ रुपए की राशि नए निवेश तथा 73.100 करोड़ रुपए चाल खर्च के लिए रखे गए थे। सार्वजनिक क्षेत्र का वास्तविक परिव्यय 495669 करोड़ रुपए रहा था।
आठवीं योजना की
प्राथमिकताएँ
इस मूलभूत उद्देश्य की प्राप्ति हेतु योजना में जिन उद्देश्यों को प्राथमिकता दी गई, वे निम्नलिखित थे -
- 2. प्रोत्साहन एवं हतोत्साहन की प्रभावी योजना द्वारा जन सहयोग के माध्यम से जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगाना। 3. प्रारंभिक शिक्षा को सर्वव्यापक बनाना तथा जन सहयोग के माध्यम से जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगाना
- 4. सभी गाँवों एवं समस्त जनसंख्या हेतु पेयजल तथा टीकाकरण सहित प्राथमिक चिकित्सा सुविधाओं का प्रावधान करना तथा मैला ढोने की प्रथा को पूर्णतः समाप्त करना।
- 5. खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता एवं निर्यात योग्य बचत प्राप्त करने हेतु कृषि का विकास एवं विस्तार करना।
- 6. विकास प्रक्रिया को स्थाई आधार पर समर्थन देने हेतु आधारभूत ढाँचे (ऊर्जा, परिवहन, संचार व सिंचाई ) को मजबूत करना।
- आठवीं पंचवर्षीय योजना में कारक लागत पर 1993-94 की कीमतों पर निबल राष्ट्रीय उत्पाद में औसत वार्षिक संवृद्धि दर 6.7 प्रतिशत अनुमानित की गई थी, जो योजना के 5.6 प्रतिशत के लक्ष्य से 1.1 प्रतित दु अधिक थी। उल्लेखनीय है कि सातवीं योजना में औसत संवृद्धि दर 5.8 प्रतिशत प्राप्त की गई थी। आठवीं योजना में प्रति व्यक्ति एनएनपी में औसत वार्षिक वृद्धि दर 4.6 प्रतिशत रही।
नौवीं पंचवर्षीय योजना
देश की नौवीं पंचवर्षीय योजना (1997-2002) के संशोधित मसौदे को केन्द्रीय मंत्रिमण्डल ने 9 जनवरी 1999 को अपनी मंजूरी प्रदान कर दी थी।
मूल नौवीं पंचवर्षीय योजना में सकल घरेलू उत्पाद में 7 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि का लक्ष्य तय किया गया था, किन्तु बाद में इसे घटाकर 6.5 प्रतिशत कर दिया गया था।
योजना में सार्वजनिक क्षेत्र का परिव्यय भी 8,75,000 करोड़ रुपए से घटाकर 1996 97 की कीमतों पर 8,59,200 करोड़ रुपए कर दिया गया था, जिसमें समग्र बजटीय एवं घरेलू तथा अतिरिक्त संसाधन क्रमशः 518791 करोड़ रुपए (कुल का 60.4 प्रतिशत ) तथा 340409 करोड़ रुपए (कुल का 39.6 प्रतिशत ) अनुमानित किए गए थे सार्वजनिक क्षेत्र के योजना परिव्यय में केन्द्र का योजना परिव्यय 489361 करोड़ रुपए था। केन्द्र के योजना व्यय में केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के योजना व्यय में केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा विनियोग 66 प्रतिशत के स्तर पर नौवीं योजना में प्रक्षेपित किया गया था योजना के तहत बचत, निवेश, निर्यात एवं आयातों के लक्ष्यों को पूर्व में निर्धारित लक्ष्यों से कुछ कम कर दिया गया।
नौवीं पंचवर्षीय योजना (1997-2002) के
उद्देश्य
नौवीं पंचवर्षीय
योजना के निम्नलिखित उद्देश्य स्वीकार किए गए -
- पर्याप्त उत्पादक रोजगार पैदा करना तथा निर्धनता उन्मूलन की दृष्टि से कृषि एवं ग्रामीण विकास को प्राथमिकता देना।
- मूल्यों में स्थायित्व रखते हुए आर्थिक विकास की गति को वैज करना।
- सभी के लिए विशेष रूप से समाज के कमजोर वर्गों के लिए भोजन एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना।
- स्वच्छ पेयजल, प्राथमिक स्वास्थ्य देखरेख सुविधा, सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा एवं आवास जैसी मूलभूत न्यूतनम सेवाएं प्रदान करना ।
दसवीं पंचवर्षीय योजना
21 दिसम्बर, 2002 को राष्ट्रीय विकास परिषद् द्वारा अनुमोदित दसवी पचवर्षीय योजना ( 2002-07) में 8 प्रतिशत की औसत बार्षिक वृद्धि दर निर्धारित की गई। इसे बाद में घटाकर 7 प्रतिशत कर दिया गया था।
दसवीं पंचवर्षीय योजना (2002-2007) की विशेषताएँ
दसवीं योजना की
महत्वपूर्ण विशेषताओं का उल्लेख निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है
- 2. योजना में गरीबी के मुद्दे और सामाजिक संकेतकों के अमान्य निम्न स्तर पर जोर दिया गया हालाँकि पिछली योजनाओं में भी ये उद्देश्य थे, लेकिन इस योजना में ऐसे विशिष्ट लक्ष्य रखे गए जिन पर निगरानी रखना तथा विकास के लक्ष्य को प्राप्त करना जरूरी समझा गया। 3. चूकि यह जरूरी नहीं होता कि राष्ट्रीय लक्ष्यों से संतुलित क्षेत्रीय विकास हो ही और फिर प्रत्येक राज्य की अपनी अलग क्षमताएँ और विशेषताएँ होती हैं, इसलिए दसवीं योजना में विभेदक विकास की रणनीति अपनाई गई ऐसा पहली बार हुआ जब राज्यवार विकास तथा अन्य निगरानी रखे जाने वाले लक्ष्य, राज्यों के साथ परामर्श के बाद तय किए गए। इससे राज्य अपनी विकास योजनाओं पर बेहतर ढंग से ध्यान दे सके।
- 4. बाजारोन्मुख अर्थव्यवस्था को ध्यान में रखते हुए दसवीं योजना में उन नीतियों पर विस्तृत रूप से विचार किया गया जो इस व्यवस्था के लिए आवश्यक थीं। दसवीं योजना में केन्द्र और राज्य दोनों के लिए न केवल ध्यानपूर्वक तैयार की गई मध्यावधि वृहद् आर्थिक नीति वाला दृष्टिकोण शामिल किया गया, बल्कि प्रत्येक क्षेत्र के लिए आवश्यक संस्थागत सुधारों तथा नीति का भी खुलासा किया गया।
- 5. अर्थव्यवस्था के वृद्धि कारक पूंजी उत्पादन अनुपात को घटाकर 3.6 तक आने का उद्देश्य रखा गया, जबकि नौवीं योजना के दौरान यह 4.5 था। यह कमी मौजूदा क्षमताओं के बेहतर उपयोग और पूँजी के समुचित क्षेत्रवार आवंटन और उपयोग से संभव हो पाएगी। इसलिए विकास लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सकल घरेलू उत्पाद की 28.4 प्रतिशत निवेश दर रखी गई। इस आवश्यकता को सकल घरेलू उत्पाद की 26 8 प्रतिशत की घरेलू बचत और 1.6 प्रतिशत बाहरी बचत से पूरा करने का निर्णय लिया गया अतिरिक्त घरेलू बचत का भारी हिस्सा सरकारी निर्वचन को सकल घरेलू उत्पाद के 4.5 (2001-02) से घटकर 0.5 (2006-07) तक लाकर प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया।
दसवीं योजना का मूल्यांकन
भारत की दसवीं पंचवर्षीय योजना 31 मार्च, 2007 को समाप्त हो गई है तथा 1 अप्रैल 2007 से ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना शुरू हो गई है, दसवीं पंचवर्षीय योजना की अवधि में अर्थव्यवस्था में कुछ समय लगेगा। किन्तु उपलब्ध अंतिम आँकड़ों के अनुसार यह योजना अब तक की सफलता योजना रही है। इस योजना में 7 s0 प्रतिशत की औसत सालाना वृद्धि दर प्राप्त होने का अनुमान लगाया गया है, जो अब तक किसी भी योजना में प्राप्त की गई सर्वोच्च वृद्धि दर है। अर्थव्यवस्था के तीनों प्रमुख क्षेत्रों -कृषि, उद्योग व सेवा, में दसवीं योजना के दौरान प्राप्त की गई वृद्धि दरें इनके लिए निर्धारित किए गए लक्ष्यों के काफी निकट रही हैं । कृषि में 4 प्रतिशत सालाना वृद्धि की योजना का लक्ष्य था इस क्षेत्र में 3.42 वार्षिक वृद्धि अंतिम आँकड़ों के अनुसार प्राप्त की गई है। उद्योगों व सेवाओं के क्षेत्रों में क्रमश: 8.90 प्रतिशत व 9.40 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि मसा पंचवर्षीय योजना में प्राप्त की गई है। अंतिम आँकड़ों के अनुसार इस योजना में निवेश की दर सकल घरेलू उत्पाद 28.10 प्रतिशत रही है, जबकि लक्ष्य 28.41 प्रतिशत का था। सकल घरेलू बचते जीडीपी के 23.31 प्रतिशत रखने का लक्ष्य था. जबकि वास्तविक उपलब्धि लक्ष्य से कहीं अधिक जीडीपी का 26.62 प्रतिशत रही है। योजना काल में मुद्रा स्फीति की दर औसतन 5.0 प्रतिशत रखने का लक्ष्य था, जबकि वास्तव में यह 5.02 प्रतिशत रही है।
10वीं पंचवर्षीय योजना के लक्ष्य
- 2. प्रतिवर्ष 7.5 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का लक्ष्य। 3. पाँच वर्ष में 78000 करोड़ रुपए विनिवेश का लक्ष्य ।
- 4. 10वीं पंचवर्षीय योजना में पाँच करोड़ रोजगार के अवसरों के सृजन का लक्ष्य।
- 5. सार्वजनिक क्षेत्र का परिव्यय 15,92,300 करोड़ रुपए। 15. कर जीडीपी अनुपात बढ़ाकर 2007 तक 8.6 प्रतिशत से बढ़ाकर 103 प्रतिशत करने का लक्ष्य ।
- 6. केन्द्रीय योजना परिव्यय 9,21,291 करोड़ रुपए ।। 7. राज्यों व केन्द्रशासित प्रदेशों का परिव्यय 6,71,009 करोड़ रुपए।
- 8. केन्द्रीय बजट प्रावधान 7,06,000 करोड़ रुपए। 9. 2007 तक साक्षरता दर 75 प्रतिशत करने का लक्ष्य ।
- 10. 2007 तक शिशु मृत्यु दर घटाकर 45 प्रति हजार करने का लक्ष्य । 11. 2007 तक वनाच्छादन बढ़ाकर 25 प्रतिशत करने का लक्ष्य।
- 12. निवेश दर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की 28.4 प्रतिशत। 13. घरेलू बचत दर जीडीपी की 26.8 प्रतिशत।
- 14. विदेशी पूँजी पर निर्भरता जीडीपी का 1.6 प्रतिशत।
- 16. केन्द्र तथा राज्यों का सामूहिक कर जीडीपी अनुपात 14.1 प्रतिशत से बढ़ाकर 16.5 प्रतिशत करने का लक्ष्य 17. केन्द्र को सकल कर संग्रहण को जीडीपी के 8.6 प्रतिशत 10.3 प्रतिशत करने का लक्ष्य।
- 18. गैर योजना व्यय को जीडीपी के 11.3 प्रतिशत से घटाकर 9 प्रतिशत करने का लक्ष्य
भारत सरकार ने दसवीं पंचवर्षीय योजना एवं आगे के वर्षों के लिए ऐसे लक्ष्य निर्धारित किए हैं जिनका समय-समय पर मुल्यांकन तथा अनुश्रवण किया जा सकता है। ये लक्ष्य निम्नलिखित हैं -
- 1. निर्धनता अनुपात में सन् 2007 तक 5 प्रतिशतांक तथा सन् 2012 तक 15 प्रतिशतांक की करमी लाना अर्थात् 2007 में 21 प्रतिशत तथा 2012 में 11 प्रतिशत
- 2. दसवीं योजना अवधि में श्रमवल में हुई अतिरिक्त वृद्धि को उच्च गुणवत्ता युक्त रोजगार उपलब्ध कराना।
- 3. सन् 2003 तक सभी बच्चों को विद्यालय में तथा सभी बच्चों को सन् 2007 तक पाँच वर्ष तक की स्कूली शिक्षा।
- 4. साक्षरता तथा मजदूरी में लिंगात्मक अंतर को सन् 2007 तक 50 प्रतिशत कम करना।
- 5. 2001-2010 के दशक में जनसंख्या संवृद्धि दर को 16.2 प्रतिशत के स्तर पर लाना।
- 6. दसवीं योजना में साक्षरता दर को 75 प्रतिशत तक बढ़ाना।
- 7. शिशु मृत्यु दर को सन् 2007 तक 45 तथा 2012 तक एक प्रति एक हजार जीवित जन्म तक कम करना।
- 8. मातृत्व मृत्यु दर को सन् 2007 तक 2 तथा सन् 2012 तक एक प्रति एक हजार जीवित जन्म तक कम करना।
- 9. वनों एवं वृक्षों के अंतर्गत क्षेत्रफल को बढ़ाकर सन् 2007 तक 25 प्रतिशत तथा सन् 2012 तक 33 प्रतिशत करना।
- 10. दसवीं योजना में सभी गाँवों में अविरत आधार पर पेयजल उपलब्ध कराना।
- 11. सन् 2007 तक सभी बड़ी नदियों के प्रदूषण की सफाई करना तथा सन् 2012 तक अन्य अधिसूचित प्रदूषित जल स्रोतों की सफाई
11वीं पंचवर्षीय योजना
( 2007-2012 )
प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह को अध्यक्षता में राष्ट्रीय विकास परिषद् की 19 दिसम्बर 2007 की बैठक में इस योजना के प्रारूप को अंतिम मंजूरी भी प्राप्त हो गई।
योजना में 9 प्रतिशत की औसत वृद्धि दर के साथ अंतिम वर्ष 2011 12 में 10 प्रतिशत वृद्धि का लक्ष्य रखा गया है । 9 प्रतिशत वार्षिक विकास के लिए 2007 12 के दौरान कृषि में 4 प्रतिशत तथा उद्योगों व सेवाओं में 9 से 11 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से वृद्धि का लक्ष्य इस योजना में है दसवीं पंचवर्षीय योजना में कृषि क्षेत्र में औसतन 2.13 प्रतिशत की दर से ही वार्षिक वृद्धि की जा सकी थी, जबकि उद्योगों में 8.74 प्रतिशत व सेवाओं में 9.28 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि रही थी।
निर्धनता निवारण, शिक्षा, महिलाओं एवं बच्चों के स्वास्थ्य की स्थिति, आधारिक संरचना व पर्यावरण आदि के मामलों में राष्ट्रीय स्तर पर 27 व राज्यों के लिए 13 विभिन्न लक्ष्य योजना में निर्धारित किए गए हैं।
योजनावधि में रोजगार के 7 करोड़ नए अवसर सृजित कर निर्धनता अनुपात में 10 प्रतिशत बिन्दु की कमी लाने का लक्ष्य इनमें शामिल है। देश के सभी ग्रामों के विद्युतीकरण का लक्ष्य इस योजना में निर्धारित किया गया है। शिक्षा पर व्यय में भारी वृद्धि 11वीं पंचवर्षीय योजना में प्रस्तावित है
योजना के संबंध में जानकारी देते हुए योजना आयोग के उपाध्यक्ष मॉटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा कि इस योजना का लक्ष्य विकास को सर्वहितकारी बनना है। उन्होंने बताया कि इस योजना में अल्पसंख्यकों के लिए प्रधानमंत्री की 15 सूत्रीय योजना क्रियान्वित कराने पर बल दिया गया है। साथ ही उन्होंने स्पष्ट किया कि अल्पसंख्यक बहुल जिलों में लागू कार्यक्रमों में अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक आधार पर कोई भेद नहीं किया जाएगा और लाभांवितों के लिए गरीबी की रेखा के नीचे की शर्त लागू रहेगी।
ग्यारहवीं योजना के दृष्टिकोण पत्र के प्रमुख बिन्दु
- 2. तीव्रतर विकास के साथ अधिक संहित संवृद्धि की दुतरफा रणनीति।
- 3. निर्धनता अनुपात में सन् 2007 तक 5 प्रतिशतांक की तथा सन् 2012 तक 15 प्रतिशतांक की कमी लाना।
- 4. कम-से-कम ग्यारहवीं योजना में होने वाली श्रम बल वृद्धि को उच्च गुणवत्ता युक्त रोजगार मुहैया कराना। 5. 2001 से 2011 तक के दशक में जनसंख्या संवृद्धि की दशकीय वृद्धि दर को घटाकर 16.2 प्रतिशत के स्तर पर लाना।
- 6. ग्यारहवीं योजना अवधि में साक्षरता दर को बढ़ाकर 75 प्रतिशत करना।
- 7. सन् 2012 तक देश के सभी गाँवों में स्वच्छ पेयजल की अविरत पहुँच सुनिश्चित करना। 8. योजनावधि में रोजगार के 7 करोड़ नए अवसर सृजन करना।
- 9. ग्यारहवीं योजना के दौरान सन् 2009 तक देश के सभी गाँवों एवं निर्धनता रेखा से नीचे रहने वाले सभी परिवारों/घरों में विद्युत संयोजन सुनिश्चित करना तथा सन् 2012 तक चौबीस घण्टे विद्युत आपूर्ति की व्यवस्था करना।
- 10. नवम्बर 2007 तक देश के प्रत्येक गाँव में टेलीफोन सुविधा तथा सन् 2012 तक प्रत्येक गाँव के ब्रॉडवैण्ड सुविधा से जोड़ना।
11वीं पंचवर्षीय
योजना के अनुश्रवणीय सामाजिक-आर्थिक लक्ष्य
आय एवं निर्धनता
12वीं पंचवर्षीय योजना
(2012-2017)
उद्देश्य - "तीव्र, अधिक समावेशी एवं सतत वृद्धि" 11वीं पंचवर्षीय योजना में आर्थिक विकास की दर 7.9 % रही, जो लक्ष्य 9 प्रतिशत से कम व 10वीं पंचवर्षीय योजना में प्राप्त 7 6 प्रतिशत थोड़ा सा ज्यादा रहीं।
12 वीं पंचवर्षीय योजना की शुरूआत दो सतत् ग्लोवल आर्थिक संकट पहले 2008 फिर 2011 की पृष्ठभूमि में हुई।
12वीं पंचवर्षीय योजना में 03 वैकल्पिक मार्ग चुने जायेगे पहला मजबूत समावेशी विकास दूसरा अधूरे कार्य व तीसरा पालिसी लोगजाम।
12 वीं योजना के
कोर संकेतन लक्ष्य
आर्थिक संवृद्धि
गरीबी और रोजगार
5. हेड-काउट-रेशियों आधारित गरीबी निर्धारण के प्रत्यागम के आधार पर गरीवी को कम से कम 10 प्रतिशत विन्दु की कमी करनी होगी।
6. 50 मिलियन
अतिरिक्त रोजगारी के नये अवसर सृजित होंगे कृषि से अलग कौशल आधारित होंगे।
शिक्षा
7. 12वीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक स्कूल के औसतन 7 वर्ष का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
8. लिंग व सामाजिक अंतराल पर आधारित भेद-भाव (बच्चों व लड़कियों के बीच और
अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति । अल्पसंख्यक के बीच) समाप्त करना।
स्वास्थ्य
9. आईएमआर (IMR) 25, एमएमआर (MMR) 1 प्रति 1000 तथा 0-6 वर्ष के मध्य 950 के बाल लिंगानुपात को 12वीं योजना के अंत तक प्राप्त करना।
10. 0-3 वर्ष के बच्चों में अल्पपोषण के स्तर को कम करना तथा प्रजनन को प्रतिस्थापन स्तर 2.1 तक लाना भी लक्षित है।
आधारभूत ढांचा एवं ग्रामीण अवसंरचना
11. आधारभूत
ढांचे में GDP के
9 प्रतिशत तक निवेश को बढ़ाना।
12. सिंचाई में सकल सिविल क्षेत्र में 90 मिलियन हेक्टेअर से बढ़ाकर 103 मिलियन हेक्टेअर तक लाना।
13. ग्रामीण भारत में टेली डेन्सिटी को 70 प्रतिशत तक बढ़ाने का लक्ष्य है।
14. ग्रामीण
भारत में 12वीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक 50 प्रतिशत ग्राम पंचायत को निर्मल
ग्राम का स्तर अवश्य प्राप्त करना होगा।
पर्यावरण एवं
सतत विकास
15. ग्रीन कवर को 1 मिलियन हेक्टेअर प्रतिवर्ष बढ़ाना भी लक्ष्य में शामिल 16. 30000 मेगावाट की अतिरिक्त पुर्नसंभरणीय ऊर्जा क्षमता को बढ़ाना।
17. उत्सर्जन
क्षमता को भी 2020 तक 25 प्रतिशत तक कम करना।
सेवाएं
18. 12वीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक 90 प्रतिशत भारतीय परिवारों में बैंकिंग सुविधाओं पहुँचाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य भी निर्धारित किया गया है।
19. सभी प्रमुख सब्सिडी व कल्याणकारी योजनाओं को प्रत्यक्ष लाभ हंस्तातंरण में शामिल करते हुए आधार प्लेटफार्म का प्रयोग भी शामिल है।
12वीं पंचवर्षीय योजना में सभी का स्वास्थ्य (Health for all) हेतु चुने गये प्राथमिकता क्षेत्र इस प्रकार हैं
1. प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा को सुदृढ़ करना
2. सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थाओं में मुफ्त जेनरिक औषधियां
3. स्वास्थ्य पर सार्वजनिक व्यय में बढ़ोत्तरी
4. स्वास्थ्य हेतु मानव संसाधनों का और विस्तार
5. सार्वजनिक क्षेत्र में नई तृतीयक स्वास्थ्य सेवा सुविधाओं की स्थापना के साथ वर्तमान सुविधाओं को सुदृढ़ करना। 6. उन्नत स्तर की द्वितीयक एवं तृतीयक सेवा उपलब्ध कराने के लिए जिला अस्पतालों को सशक्त करना ।
7. ड्रग रेगुलेटरी सिस्टम को सुदृढ़ बनाना।
तेहरवी पंचवर्षीय योजना 2017 – 2022
इस योजना को वर्ष 2017 से लेकर 2022 तक के लिए
शुरू किया जायेगा । इस योजना के अंतर्गत संसाधनों पुस्तकें, क्लास रूम आदि को दुरुस्त किया जाएगा
और रेमिडियल क्लासेज के तहत अनुसूचित जाति , अनुसूचित जन जाति व अन्य पिछड़े वर्ग के कमजोर विद्यार्थियों को अलग से पढ़ाया
जाएगा। राष्ट्रीय व राज्य स्तरीय पात्रता परीक्षा, सिविल सर्विसेज व अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले
विद्यार्थियों को गाइडेंस दी जाएगी। विषय-विशेषज्ञों को बुलाया जाएगा। कॅरियर
काउंसलिंग के लिए भी अलग से बजट मिलेगा।
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