भारतीय संस्कृति की विशेषताएँ |Characteristics of Indian culture

 भारतीय संस्कृति की विशेषताएँ

 

भारतीय संस्कृति की विशेषताएँ |Characteristics of Indian culture

भारतीय संस्कृति की प्राचीनता 

  • भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है ।
  • मध्यप्रदेश के भीमबेटका में पाये गये शैलचित्र, नर्मदा घाटी में की गई खुदाई तथा कुछ अन्य नुवंशीय एवं पुरातत्वीय प्रमाणों से यह सिद्ध हो चुका है कि भारत भूमि आदि मानव की प्राचीनतम कर्मभूमि रही है।
  • सिन्धु घाटी की सभ्यता के विवरणों से भी प्रमाणित होता है कि आज से लगभग पाँच हजार वर्ष पहले उत्तरी भारत के बहुत बड़े भाग में एक उच्च कोटि की संस्कृति का विकास हो चुका था । 
  • इसी प्रकार वेदों में परिलक्षित भारतीय संस्कृति न केवल प्राचीनता का प्रमाण है, अपितु वह भारतीय आध्यात्म और चिन्तन की भी श्रेष्ठ अभिव्यक्ति है उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर भारतीय संस्कृति को रोम और यूनानी संस्कृति से प्राचीन तथा मिस्र, असीरिया एवं बेबीलोनिया जैसी संस्कृतियों के समकालीन माना गया है ।

 

भारतीय संस्कृति की निरन्तरता

  • भारतीय संस्कृति की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि हजारों वर्षों के बाद भी यह संस्कृति आज भी अपने मूल स्वरूप में जीवित है, जबकि मिस्र, असीरिया, यूनान और रोम की संस्कृतियाँ अपने मूल स्वरूप को लगभग विस्मृत कर चुकी हैं। 
  • भारत में नदियों, वट, पीपल जैसे वृक्षों, सूर्य तथा अन्य प्राकृतिक देवी- देवीताओं की पूजा-अर्चना का क्रम शताब्दियों से चला आ रहा है। 
  • देवताओं की मान्यता, हवन और पूजा- पाठ की पद्धतियों की निरन्तरता भी आज तक अप्रभावित रही है । 
  • वेदों और वैदिक धर्म में करोड़ों भारतीयों की आस्था और विश्वास आज भी उतना ही है, जितना हजारों वर्ष पूर्व था। 
  • गीता और उपनिषदों के सन्देश हजारों साल से हमारी प्रेरणा और कर्म का आधार रहे हैं। किंचित परिवर्तनों के बावजूद भारतीय संस्कृति के आधारभूत तत्वों, जीवन-मूल्यों और चिन्तन-पद्धति में एक ऐसी निरन्तरता रही है कि आज भी करोड़ों भारतीय स्वयं को उन मूल्यों एवं चिन्तन-प्रणाली से जुड़ा हुआ अनुभव करते हैं और इससे प्रेरणा प्राप्त करते हैं। 


भारतीय संस्कृति का लचीलापन एवं सहिष्णुता

  • भारतीय संस्कृति की सहिष्णु प्रकृति ने उसे दीर्घ आयु और स्थायित्व प्रदान किया है। 
  • संसार की किसी भी संस्कृति में शायद ही इतनी सहनशीलता हो, जितनी भारतीय संस्कृति में पायी जाती है। 
  • भारतीय हिन्दू किसी देवी देवता की आराधना करें या न करें, पूजा-हवन करें या न करें आदि स्वतंत्रताओं पर धर्म या संस्कृति के नाम पर कभी कोई बंधन नहीं लगाये गये। इसीलिए प्राचीन भारतीय संस्कृति के प्रतीक हिन्दू धर्म को धर्म न कहकर कुछ मूल्यों पर आधारित एक जीवन- पद्धति की संज्ञा दी गयी और हिन्दू का अभिप्राय किसी धर्म विशेष के अनुयायी से न लगाकर भारतीय से लगाया गया भारतीय संस्कृति के इस लचीले स्वरूप में जब भी जड़ता की स्थिति निर्मित हुई तब किसी-न-किसी महापुरुष ने इसे गतिशीलता प्रदान कर इसकी सहिण्णुता को एक नयी आभा से मंडित कर दिया। 
  • इस दृष्टि से प्राचीन काल में बुद्ध और महावीर के द्वारा, मध्यकाल में शंकराचार्य, कबीर, गुरुनानक और चैतन्य महाप्रभु के माध्यम से तथा आधुनिक काल में स्वामी दयानंद स्वामी विवेकानंद महात्मा ज्योति बा फुले के द्वारा किये गये प्रयास इस संस्कृति की महत्वपूर्ण धरोहर बन गये । .

 

भारतीय संस्कृति की ग्रहणशीलता

  • भारतीय संस्कृति की सहिष्णुता एवं उदारता के कारण उसमें एक ग्रहणशील प्रवृत्ति को विकसित होने का अवसर मिला। 
  • वस्तुत: जिस संस्कृति में लोकतंत्र एवं स्थायित्व के आधार व्यापक हों, उस संस्कृति में ग्रहणशीलता की प्रवृत्ति स्वाभाविक रूप से ही उत्पन्न हो जाती है। 
  • हमारी संस्कृति में यहाँ के मूल निवासियों ने समन्वय की प्रक्रिया के साथ ही बाहर से आने वाले शक, हूण, यूनानी एवं कुषाण जैसी प्रजातियों के लोग भी घुलमिल कर अपनी पहचान खो बैठे। 
  • भारत में इस्लामी संस्कृति का आगमन भी अरबों, तुर्को और मुगलों के माध्यम से हुआ। इसके बावजूद भारतीय संस्कृति का पृथक अस्तित्व बना रहा और नवागत संस्कृतियों से कुछ अच्छी बातें ग्रहण करने में भारतीय संस्कृति ने संकोच नहीं किया। 
  • ठीक यही स्थिति यूरोपीय जातियों के आने तथा ब्रिटिश साम्राज्य के कारण भारत में विकसित हुई इसाई संस्कृति पर भी लागू होती है । 
  • यद्यपि ये संस्कृतियाँ अब भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग हैं, तथापि ' भारतीय ईसाई' संस्कृतियों का स्वरूप विश्व के अन्य इस्लामी और ईसाई धर्मावलम्बी देशों से कुछ भिन्न है।
  • इस भिन्नता का मूलभूत कारण यह है कि भारत के अधिकांश मुलसमान और ईसाई मूलत: भारत भूमि के ही निवासी हैं संभवत: इसीलिए उनके सामाजिक परिवेश और सांस्कृतिक आचरण में कोई बुनियादी परिवर्तन नहीं हो पाया और भारतीयता ही उनकी पहचान बन गई।


भारतीय संस्कृति में आध्यात्मिकता एवं भौतिकता का समन्वय

  • भारतीय संस्कृति में आश्रम-व्यवस्था के साथ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जैसे चार पुरुषार्थों का विशिष्ट स्थान रहा है वस्तुतः इन पुरुषार्थों ने ही भारतीय संस्कृति में आध्यात्मिकता के साथ भौतिकता का एक अद्भूत समन्वय कर दिया। 
  • हमारी संस्कृति में जीवन के ऐहिक और पारलौकिक दोनों पहलुओं से धर्म सम्बद्ध किया गया था धर्म उन सिद्धांतों,तत्वों और जीवन प्रणाली को कहते हैं, जिससे मानव जाति परमात्मा प्रदत्त शक्तियों के विकास से अपना लौकिक जीवन सुखी बना सके तथा मृत्यु के पश्चात् जीवात्मा शान्ति का अनुभव कर सके। 
  • शरीर नश्वर है, आत्मा अमर है, यह अमरता मोक्ष से जुड़ी हुई है और यह मोक्ष पाने के लिए अर्थ और काम के पुरुषार्थ करना भी जरूरी है। इस प्रकार भारतीय संस्कृति में धर्म और मोक्ष का आध्यात्मिक संदेश एवं अर्थ और काम की भौतिक अनिवार्यता परस्पर सम्बद्ध है।
  • आध्यात्मिकता और भौतिकता के इस समन्वय में भारतीय संस्कृति की वह विशिष्ट अवधारणा परिलक्षित होती है, जो मनुष्य के इस लोक और परलोक को सुखी बनाने के लिए भारतीय मनीषियों ने निर्मित की थी। 
  • सुखी मानव- जीवन के लिए ऐसी चिन्ता विश्व की अन्य संस्कृतियाँ नहीं करती । साहित्य, संगीत और कला की सम्पूर्ण विधाओं के माध्यम से भी भारतीय संस्कृति के इस आध्यात्मिक एवं भौतिक समन्वय को सरलतापूर्वक समझा जा सकता है।

 

भारतीय संस्कृति की अनेकता में एकता 

  • भौगोलिक दृष्टि से भारत विविधताओं का देश है, फिर भी सांस्कृतिक रूप से एक इकाई के रूप में इसका अस्तित्व प्राचीन काल से बना हुआ है। 
  • इस विशाल देश में उत्तर का पर्वतीय भू-भाग, जिसकी सीमा पूर्व में ब्रह्मपुत्र और पश्चिम में सिन्धु नदियों तक विस्तृत है। 
  • इसके साथ ही गंगा, यमुना, सतलज की उपजाऊ कृषि भूमि, विंध्य और दक्षिण का वनों से आच्छादित पठारी भू-भाग, विभिन्नता के अतिरिक्त इस देश में आर्थिक और सामाजिक भिन्नता भी पर्याप्त रूप से विद्यमान है वस्तुतः इन विभिन्नताओं के कारण ही भारत में अनेक सांस्कृतिक उपधाराएँ विकसित होकर पल्लवित और पुष्पित हुई हैं। 
  • अनेक विभिन्नताओं के बावजूद भी भारत की पृथक सांस्कृतिक सत्ता रही है हिमालय सम्पूर्ण देश के गौरव का प्रतीक रहा है, तो गंगा यमुना और नर्मदा जैसी नदियों की स्तुति यहाँ के लोग प्राचीन काल से करते आ रहे हैं । 
  • राम , कृष्ण और शिव की आराधना यहाँ सदियों से की धरती रही है। भारत की सभी भाषाओं में इन देवताओं पर आधारित साहित्य का सृजन हुआ है । 
  • उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक सम्पूर्ण भारत में जन्म, विवाह और मृत्यु के संस्कार एक समान प्रचलित हैं । 
  • विभिन्न रीति-रिवाज, आचार-व्यवहार और तीज-त्यौहारों में भी समानता है। 
  • भाषाओं की विविधता अवश्य है फिर भी संगीत, नृत्य और नाट्य के मौलिक स्वरूपों में आश्चर्यजनक समानता है। 
  • संगीत के सात स्वर और नृत्य के त्रिताल सम्पूर्ण भारत में समान रूप से प्रचलित हैं। 
  • भारत अनेक धर्मों, सम्प्रदायों और मतों और पृथक अवधारणों एवं विश्वासों का महादेश है, तथापि इसका सांस्कृतिक समुच्चय और अनेकता में एकता का स्वरूप संसार के अन्य देशों के लिए विस्मय का विषय रहा है।

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